इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 18 Jul, 2019
  • 12 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के लिये व्यावहारिक अर्थशास्त्र की उपयोगिता

इस Editorial में The Hindu, Indian Express, Business Line, Livemint आदि में प्रकाशित आलेखों का विश्लेषण शामिल हैं। इस आलेख में व्यावहारिक अर्थशास्त्र तथा इसकी भारतीय संदर्भ में उपयोगिता की चर्चा की गई है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2019 में व्यावहारिक अर्थशास्त्र का उल्लेख किया गया है। व्यावहारिक अर्थशास्त्र पर वर्ष 2017 में अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को नोबेल पुरुस्कार मिला था, इसके बाद से व्यावहारिक अर्थशास्त्र की अवधारणा पर अधिक चर्चा होने लगी है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में इस अवधारणा का उपयोग सामाजिक बदलाव के लिये करने पर बल दिया गया है। साथ ही यह भारत की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर के स्तर तक पहुँचाने में सहायक हो सकती है। स्वच्छ भारत मिशन, जन धन योजना और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे कार्यक्रम भारत में लोगों के व्यवहार में बदलाव की क्षमता को पहले ही प्रदर्शित करते रहे हैं।

भारत की समृद्ध संस्कृति एवं अध्यात्म तथा सामाजिक नियम जो लोगों के व्यवहार के निर्माण तथा परिवर्तन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, का उपयोग करके व्यावहारिक परिवर्तन को संभव बनाया जा सकता है। यद्यपि यह ध्यान देने योग्य है कि किसी भी देश के नीति निर्माण में व्यावहारिक अर्थशास्त्र को एकमात्र उपागम नहीं माना जा सकता है।

क्या है व्यावहारिक अर्थशास्त्र?

ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं के सर्वोत्तम लाभ को ध्यान में रखकर लेता है। अर्थशास्त्र के तार्किक विकल्प सिद्दांत का भी यही मानना है कि एक तार्किक व्यक्ति लाभ, उपयोगिता तथा लागत को ध्यान में रखकर अपने निर्णय लेता है। व्यावहारिक अर्थशास्त्र की अवधारणा उपर्युक्त विचारों से भिन्न है, इस अवधारणा का मानना है कि लोगों के फैसले अन्य बातों पर भी निर्भर करते हैं।

Behavioral Economics

व्यावहारिक अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान एवं अर्थशास्त्र के संयोजन के रूप में कार्य करता है तथा लोगों के व्यवहार का अध्ययन करके यह समझने का प्रयास करता है कि भिन्न-भिन्न लोग समान परिस्थिति में अपने लिये भिन्न आर्थिक फैसले क्यों लेते हैं। इस संबंध में व्यावहारिक अर्थशास्त्र का मानना है कि लोगों के फैसले न सिर्फ उनकी तर्कशक्ति बल्कि अन्य कारकों जैसे- भावनाओं, मनोवृत्ति परिवर्तन, परिस्थिति आदि से भी प्रभावित होते हैं।

व्यावहारिक अर्थशास्त्र का उपयोग मौजूदा समय में विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है, विभिन्न कंपनियाँ इस अवधारणा के ज़रिये उपभोक्ताओं की मनोवृत्ति में परिवर्तन करती हैं, जैसे- किसी सुपर मार्केट अथवा शॉपिंग मॉल में ऐसी वस्तुएं जिनको बेचने पर कंपनी का अधिक ज़ोर होता है, को उपभोक्ताओं के सामने आकर्षक मूल्य के साथ दर्शाया जाता है। इसी प्रकार कंपनियाँ उत्पादों के विकल्पों को इस प्रकार दर्शाती हैं कि एक औसत दर्जे का विकल्प होने के बावजूद अन्य घटिया विकल्पों के सामने आकर्षक प्रतीत होता है।

आर्थिक सर्वेक्षण तथा व्यावहारिक अर्थशास्त्र

व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अनुसार, मानव का व्यवहार प्रमुख रूप से समाज एवं उसके बनाए नियमों से प्रमुख रूप से प्रभावित होता है। भारत में सामाजिक एवं धार्मिक नियम लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं तथा लोगों के व्यवहार को परिवर्तित करते हैं, इस तथ्य को ध्यान में रखकर ज़रूरी बदलाव लाने में व्यावहारिक अर्थशास्त्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

कई ऐसी योजनाएँ हैं जो भारत में व्यावहारिक अर्थशास्त्र की सफलता को रेखंकित करती हैं, जैसे स्वच्छ भारत मिशन (SBM), बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ (BBBP), स्वैच्छिक एलपीजी सब्सिडी छोड़ना (Give it up) आदि।

उपर्युक्त योजनाओं की सफलता से प्रभावित होकर आर्थिक सर्वेक्षण में व्यावहारिक अर्थव्यवस्था के सिद्धांत को भारत में लैंगिक असमानता को कम करने, भारत के लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने, लोगों की बचत करने की आदत को बढ़ावा देने, कर चुकाने की मनोवृत्ति विकसित करने में भी उपयोग करने का विचार प्रस्तुत किया गया है।

भारत के संदर्भ में व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अनुप्रयोग

व्यावहारिक अर्थशास्त्र के नज सिद्धांत (Nudge Theory) का उपयोग नीति निर्माण के दृष्टिकोण से बेहद महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति को अपने व्यवहार में ज़रूरी सकारात्मक परिवर्तन करने के लिये प्रेरित किया जाता है। साथ ही व्यक्ति के चुनने के अधिकार को भी सुरक्षित रखा जाता है। नज सिद्धांत का मानना है कि लोगों को समाज या देश के मूल्यों के अनुरूप व्यवहार करने के लिये मार्गदर्शन तथा प्रोत्साहन की आवश्यकता है। इस विचार को ध्यान में रखकर विभिन्न सरकारें एवं संस्थान नीतियों का निर्माण करते हैं। OECD के अनुसार, विश्व में 200 से भी अधिक सरकारी संस्थान व्यवहारिक अर्थशास्त्र अथवा नज सिद्धांत का उपयोग कर रहे हैं, इस प्रकार की नीतियों को नज नीति के नाम से भी जाना जाता है।

नज नीति के उदाहरण

  • भारत में कर अनुपालन में वृद्धि करने के लिये: नागरिकों को प्रचार एवं व्यक्तिगत संदेश के माध्यम से कर के सार्वजनिक सेवाओं में उपयोग की जानकारी देकर प्रेरित किया जा सकता है।
  • गरीब परिवारों के बच्चों की स्कूल छोड़ने की दर कम करने में: बच्चों के माता-पिता को शिक्षा की उपयोगिता तथा उसके आर्थिक लाभों से अवगत कराकर।
  • बचत दर की वृद्धि में: लोगों को आकर्षक बचत स्कीम के अंतर्गत लाकर आदि।

Some behavioural Economics

व्यावहारिक अर्थशास्त्र की सीमाएँ

  • स्वैच्छिक आधार पर एलपीजी सब्सिडी (Give It up) छोड़ने जैसी योजना तुलनात्मक रूप में व्यावहारिक अर्थशास्त्र के लिये सरल कार्य है क्योंकि यह योजना ऐसे लोगों से आग्रह करती है जो समाज का जागरूक वर्ग माना जाता है एवं इसमें सिर्फ एक बार प्रयास करने की आवश्यकता होती है। किंतु स्वच्छ भारत मिशन तथा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएँ इस अवधारणा के लिये कठिन चुनौती प्रस्तुत करती हैं। ऐसी योजनाओं में निरंतर संस्थागत प्रयास किये जाने की आवश्यकता होती है, साथ ही लोगों के सदियों से प्रचलित व्यवहार को बदलना इसे और जटिल बना देता है।
  • समुदाय के प्रतिनिनिधित्व पर आधारित स्वच्छता कार्यक्रम जो स्वच्छ भारत मिशन का भाग है, में लोगों के व्यवहार को बदलने का प्रयास किया जाना शामिल था किंतु विज्ञापन आधारित कैंपेन, जैसे- बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ में ऐसे राज्यों जहाँ लैंगिक विषमता विद्यमान है, को लक्षित नहीं किया गया। यद्यपि इस अभियान से हरियाणा (जहाँ अधिक लैंगिक विषमता विद्यमान है) की स्थिति में सुधार आया है। इसके बावज़ूद लोगों के व्यवहार में परिवर्तन के लिये जन भागीदारी का होना भी आवश्यक है।
  • इसके माध्यम से भ्रष्टाचार को कम करने, विलासिता पूर्ण जीवन को हतोत्साहित करने, कर देने के कार्य को गौरवपूर्ण समझने के साथ ही कर अनुपालन जैसी वृत्तियों को प्रोत्साहित करना निकट भविष्य में मुश्किल दिखाई देता है। साथ ही व्यावहारिक अर्थशास्त्र लोगों के मध्य कम कर (Tax) देने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित कर सकता है जिससे कर देने की नकारात्मक मनोवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा।

इस परिदृश्य में सरकारी विनियमों, कर तथा मुक्त बाज़ार से जुड़ी नीतियों को संयोजित करके नज प्रभाव के साथ जोड़कर नीति निर्माण की प्रभावोत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। जैसे-

  • BBBP (बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ) से BADLAV (बेटी आपकी धन लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी)।
  • स्वच्छ भारत से सुंदर भारत की ओर।
  • एलपीजी की सब्सिडी छोड़ने से आगे बढ़कर सब्सिडी की तार्किकता पर विचार करना।
  • कर चोरी से कर अनुपालन की ओर।

इस प्रकार के प्रयासों के माध्यम से देश की ज़रूरतों के अनुसार लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह सिद्धांत भारत में विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, सामाजिक समरसता को बढ़ाने एवं अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से उचित आर्थिक निर्णय लेने में उपयोगी हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2024-25 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न: व्यावहारिक अर्थशास्त्र की अवधारणा नीति निर्माताओं के लिये हाल के वर्षों में एक आकर्षण बनकर उभरी है। आपके विचार में यह अवधारणा क्या है। और भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये यह किस प्रकार उपयोगी हो सकती है?


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2