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एडिटोरियल

  • 18 Jun, 2022
  • 9 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

आवश्यक एवं गैर-आवश्यक सब्सिडी

यह एडिटोरियल 16/06/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘what commodities distribution of commodities should be distributed for free or at a subsidised level’’ लेख पर आधारित है। इसमें राज्य द्वारा गैर-आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं को प्रदत्त सब्सिडी के रूप में होने वाले अपव्यय के संबंध में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि राज्य अपने वितरण तंत्र के संवर्द्धन के लिये किस प्रकार सर्वोत्तम अभ्यासों का उपयोग कर सकता है।

संदर्भ

हाल ही में पंजाब सरकार द्वारा 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करने के लिये एक सब्सिडी योजना की घोषणा की गई, जिससे एक बार फिर सब्सिडी को लेकर बहस छिड़ गई है और इसपर मनन की आवश्यकता उत्पन्न हुई है कि वे कौन-सी आवश्यक वस्तु और सेवाएँ हैं जिनकी समाज के वंचित वर्ग तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है।

सब्सिडी क्या है?

  • यह किसी पण्य/वस्तु (उदाहरण के लिये गेहूँ और चावल, जिनकी सरकार द्वारा खरीद की जाती है) के बाज़ार मूल्य और उस मूल्य के बीच का अंतर है जिस पर उन्हें सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न के रूप में लाभार्थी को बेचा जा रहा है।
  • सब्सिडी की राजकोषीय लागत:
    • चूँकि भारत एक विकासशील देश है, इसलिये अधिकाधिक जनसंख्या तक सब्सिडी के शुद्ध कवरेज को बढ़ाने के लिये सीमित बजटीय संसाधन ही उपलब्ध हैं।
    • वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट में खाद्य सब्सिडी के लिये06 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए थे। कर रियायतों को देखें तो यह वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-2020 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.9% और 2.5% रही थीं।
    • भारत में लंबे समय से राजस्व और जीडीपी का अनुपात गतिहीन बना रहा है। वर्ष 2010-11 से वर्ष 2019-20 की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त राजस्व प्राप्तियाँ4 प्रतिशत से 20.3 प्रतिशत के संकीर्ण दायरे में रही हैं।
    • जबकि उल्लेखनीय है कि कई विकसित और उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं में यह अनुपात बहुत अधिक होता है। वर्ष 2019 में यह अनुपात यूके के लिये 36%, यूएसए के लिये1%, स्वीडन के लिये 48.6%, नीदरलैंड के लिये 43.6% और ब्राजील के लिये 31.5% रहा था।

सब्सिडी के प्रसार के लिये वितरण तंत्र

  • लक्षित तरीके से निम्न आय वाले परिवारों के लिये सहायता, जो मुफ्त या सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न और स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सेवाओं के रूप में उपलब्ध है, जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
    • उदाहरण के लिये, लाभार्थी के बैंक खाते में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) ताकि कोई व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार खुले बाज़ार में किसी भी खाद्यान्न का चयन करने के लिये स्वतंत्र हो और दूसरी ओर वह PDS के माध्यम से भी सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न का लाभ उठा सके।
  • निवेशकों और उत्पादकों की चयनित श्रेणियों को समर्थन देने के लिये प्रोत्साहन (जैसे कॉर्पोरेट करों में कमी), जो सामान्य रूप से या पिछड़े क्षेत्रों जैसे कुछ खंडों में निवेश को बढ़ावा देने के लिये पेश की गई है; उदाहरण के लिये, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI)
    • PLI-वैकल्पिक तरीकों में प्रत्यक्ष बजटीय समर्थन और कर रियायतों के माध्यम से अप्रत्यक्ष समर्थन शामिल हैं। योजनाओं को उनके दुरुपयोग से बचने और उनकी लागत को कम करने के लिये सावधानीपूर्वक अभिकल्पित करने की भी आवश्यकता है।

सब्सिडी के चयन का औचित्य क्या होना चाहिये?

  • सीमित बजट, खराब लक्ष्यीकरण और लीकेज के साथ हमें उन वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिन्हें ‘आवश्यक’ (Essential) और ‘उत्कृष्ट’ (Merit) वस्तु माना जाता है।
    • मुख्य रूप से खाद्यान्न (विशेष रूप से गेहूँ और चावल) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लक्षित समूहों को अत्यधिक रियायती मूल्य पर प्रदान की जाती है।
      • इसके अलावा, इस बात के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं कि इस तरह के वितरण ने गरीबी को कम करने में मदद की है।
    • वस्तुओं की एक ऐसी श्रेणी भी है जिसे उत्कृष्ट या मेरिट वस्तुओं के रूप में जाना जाता है, जहाँ महत्त्वपूर्ण सकारात्मक बाह्यताएँ (Positive Externalities) उनके उपभोग से संबद्ध होती हैं; उदाहरण के लिये, स्वास्थ्य और शिक्षा से संबंधित प्रावधान जिसमें मध्याह्न भोजन और नाश्ता शामिल हैं। इन मामलों में ऐसी वस्तुओं के उपयोग का लाभ निकटस्थ उपभोक्ता से अधिक व्यापक समुदाय तक प्रसारित होता है।
    • आवश्यक और मेरिट वस्तुओं के सब्सिडीयुक्त या मुफ्त प्रावधान को सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के आधार पर उचित ठहराया जा सकता है, लेकिन अपव्ययी या लोकलुभावन सब्सिडी के भी कई उदाहरण देखने को मिले हैं। हाल ही में पंजाब सरकार द्वारा 300 यूनिट मुफ्त बिजली की घोषणा इसी श्रेणी की है जिससे बिजली के अपव्ययी उपभोग में अनुचित वृद्धि हुई है।

आगे की राह

  • अभिनव समाधान: प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने वाले लाभार्थियों के उचित लक्ष्यीकरण की आवश्यकता है।
  • विनियमन निकाय: एक कुशल खरीद और सार्वजनिक वितरण प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है जो खरीद और वितरण का प्रबंधन करे। इससे लीकेज और परिहार्य प्रशासनिक लागत पर रोक लग सकती है।
  • वस्तुओं और सेवाओं का चयन: समय की मांग है कि सब्सिडी को केवल आवश्यक और मेरिट वस्तुओं तक ही सीमित रखा जाए।
  • राजकोषीय अवसर की कमी: वस्तुओं और सेवाओं पर बहुत ही कुशल एवं चयनित सब्सिडी प्रदान करने की आवश्यकता है क्योंकि समग्र वित्तीय सहायता सीमित है।
  • राजस्व का सृजन: केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर सरकारों को अपने वित्तीय राजस्व को और सुदृढ़ करने के लिये पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • सामाजिक प्रभाव: यद्यपि PDS प्रणाली में लीकेज मौजूद हैं, यह व्यक्तियों पर प्रमुख प्रभाव रखता है और इसके लाभ व्यक्ति से परे सामाजिक एवं सामुदायिक स्तर तक पहुँचते हैं। प्रत्यक्ष आय समर्थन और PLI के लाभ अभी तक मापन योग्य नहीं हैं।
    • इसलिये PDS योजना को जारी रखने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि जहाँ भी संभव हो इसके लीकेज को रोका जाए और इसके साथ-साथ मापन योग्य परिणामों के साथ प्रत्यक्ष आय समर्थन के साथ प्रयोग जारी रखा जाए।

अभ्यास प्रश्न: सरकारी राजकोष पर सब्सिडी का तर्कसंगत बोझ डालने के लिये लाभार्थियों के उचित लक्ष्यीकरण की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।


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