कृषि व्यवस्था: अवमंदन से बचाव का बेहतर विकल्प
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में आर्थिक अवमंदन को दूर करने में कृषि की भूमिका से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
यह सर्वविदित है कि कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन की व्यवस्था उपलब्ध विकल्पों में सर्वोत्तम है, परंतु यह भी सत्य है कि लॉकडाउन के चलते सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ रोक दी गई हैं। परिणामस्वरूप अब यह आशंका बलवती हो गई है कि भारत सहित विश्व की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएँ अवमंदन/मंदी की ओर बढ़ रही हैं। जहाँ एक ओर लगभग विश्व के सभी देश कोरोना वायरस से बचाव संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे हैं वहीँ दूसरी ओर अब इन देशों के समक्ष अर्थव्यवस्था को मंदी से बचाने की दोहरी चुनौती है।
ऐसे में प्रत्येक देश अपने स्तर पर अर्थव्यवस्था को मंदी से बचाने के लिये प्रयासरत हैं। भारत के लिये विशेषज्ञों ने अर्थव्यवस्था में आई मंदी का मुकाबला करने के लिये कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के साथ इसके आधुनिकीकरण की वकालत की है। ध्यातव्य है कि भारत में मंदी की यह स्थिति अधिक चिंताजनक है क्योंकि पूर्व में ही राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2019-20 की अंतिम तिमाही में घटकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई थी। जो स्पष्ट रूप से मंदी का संकेत दे रहा था।
इस आलेख में आर्थिक मंदी, आर्थिक मंदी के प्रमुख संकेतकों के साथ भारत की मौजूदा कृषि स्थिति व उससे संबंधित चुनौतियों पर विमर्श किया जाएगा साथ ही मंदी के प्रभाव को सीमित करने वाले संभावित विकल्पों का विश्लेषण भी किया जाएगा।
आर्थिक मंदी से तात्पर्य
- सामान्य शब्दों में आर्थिक मंदी से तात्पर्य उस स्थिति से है जब अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही में आर्थिक वृद्धि की दर नकारात्मक हो तो उसे मंदी की संज्ञा दी जाती है। इसके अतिरिक्त ऐसी स्थिति में मांग में कमी आती है, मुद्रास्फीति दर में गिरावट आती है, साथ ही रोज़गार में कमी होती है तथा बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
आर्थिक मंदी के प्रमुख संकेतक
- उपभोग में कमी- आर्थिक मंदी का एक बड़ा संकेत यह है कि लोग खपत यानी उपभोग कम कर देते हैं। इस दौरान बिस्कुट, तेल, साबुन, कपड़ा, धातु जैसी सामान्य चीजों के साथ-साथ घरों और वाहनों की बिक्री घट जाती है।
- औद्योगिक उत्पादन में गिरावट- अर्थव्यवस्था में यदि उद्योग का पहिया रुकेगा तो नए उत्पाद नहीं बनेंगे। इसमें निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका होती है। मंदी के दौर में उद्योगों का उत्पादन कम हो जाता। औद्योगिक मिलों और फैक्ट्रियों में ताले लग जाते हैं, क्योंकि बाजार में मांग घट जाती है।
- बेरोज़गारी दर में वृद्धि- अर्थव्यवस्था में मंदी आने पर रोज़गार के अवसर घट जाते हैं। उत्पादन न होने की वजह से उद्योग बंद हो जाते हैं, ढुलाई नहीं होती है, बिक्री ठप पड़ जाती है। इसके चलते कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने लगती हैं। परिणामस्वरूप बेरोज़गारी दर में वृद्धि हो जाती है।
- बचत और निवेश में कमी- मंदी के दौर में निवेश कम हो जाता है क्योंकि लोगों की आमदनी सीमित हो जाती है। इस स्थिति में उनकी क्रय करने की क्षमता घट जाती है और वे बचत भी कम कर पाते हैं। इससे बाज़ार में तरलता घट जाती है।
- शेयर बाजार में गिरावट- शेयर बाजार में उन कंपनियों के शेयर बढ़ते हैं, जिनकी कमाई और मुनाफा बढ़ रहा होता है। यदि कंपनियों के मुनाफे का अनुमान लगातार कम हो रहे हैं और वे उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहीं, तो इसे भी आर्थिक मंदी के रूप में ही देखा जाता है।
भारत में कृषि की मौजूदा स्थिति
- आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों की तुलना में रोज़गार अवसरों के लिये कृषि क्षेत्र पर अधिक निर्भर है।
- आँकड़ों के मुताबिक देश में चालू कीमतों पर सकल मूल्यवर्द्धन में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का हिस्सा वर्ष 2014-15 के 18.2 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2019-20 में 16.5 प्रतिशत हो गया है, जिसे विकास प्रक्रिया का स्वभाविक परिणाम माना जा सकता है।
- देश के लाखों ग्रामीण परिवारों के लिये पशुधन आय का दूसरा महत्त्वपूर्ण साधन है। किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। बीते 5 वर्षों के दौरान पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
- कृषि उत्पादों के वैश्विक व्यापार में भारत अग्रणी स्थान पर है, किंतु विश्व कृषि व्यापार में भारत का योगदान मात्र 2.15 प्रतिशत ही है। भारतीय कृषि निर्यात के मुख्य भागीदारों में अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत से ही भारत कृषि उत्पादों के निर्यात को निरंतर बनाए हुए है।
कृषि क्षेत्र की चुनौतियाँ और समस्याएँ
- पूर्व में कृषि क्षेत्र से संबंधित भारत की रणनीति मुख्य रूप से कृषि उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित रही है जिसके कारण किसानों की आय में बढ़ोतरी करने पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।
- विगत पचास वर्षों के दौरान हरित क्रांति को अपनाए जाने के बाद, भारत का खाद्य उत्पादन 3.7 गुना बढ़ा है जबकि जनसंख्या में 2.55 गुना वृद्धि हुई है, किंतु किसानों की आय वृद्धि संबंधी आँकड़े अभी भी निराशाजनक हैं।
- लगातार बढ़ते जनसांख्यिकीय दबाव, कृषि में प्रच्छन्न रोज़गार और वैकल्पिक उपयोगों के लिये कृषि भूमि के रूपांतरण जैसे कारणों से औसत भूमि धारण (Land Holding) में भारी कमी देखी गई है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1970-71 में औसत भूमि धारण 2.28 हेक्टेयर था जो वर्ष 1980-81 में घटकर 1.82 हेक्टेयर और वर्ष 1995-96 में 1.50 हेक्टेयर हो गया था।
- उच्च फसल पैदावार प्राप्त करने और कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि के लिये बीज एक महत्त्वपूर्ण और बुनियादी कारक है। अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन करना जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण है उन बीजों का वितरण करना किंतु दुर्भाग्यवश देश के अधिकतर किसानों तक उच्च गुणवत्ता वाले बीज पहुँच ही नहीं पाते हैं।
- स्वतंत्रता के 70 वर्षों बाद भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन व्यवस्था गंभीर स्थिति में है। यथोचित विपणन सुविधाओं के अभाव में किसानों को अपने खेत की उपज को बेचने के लिये स्थानीय व्यापारियों और मध्यस्थों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये हुए लॉकडाउन के कारण वर्तमान में कृषि गतिविधियाँ पूरी तरह से ठप्प हो गई हैं।
- खेतों में खड़ी फसल को काटने के लिये मजदूरों का अभाव है जिससे किसान फसलों को कटवाने में असमर्थ हैं।
- यदि किसी प्रकार फसल कट गई है तो भी परिवहन के साधन न होने के कारण वह मंडियों तक नहीं पहुँच पा रही है।
आर्थिक मंदी को दूर करने में कृषि क्षेत्र की भूमिका
- विदित है कि भारत में लगभग 55 प्रतिशत लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि व उससे संबंधित गतिविधियाँ हैं। ऐसे में यदि सरकार के द्वारा लॉकडाउन के दौरान कृषि संबंधी गतिविधियाँ को छूट प्रदान की जाती है तो कृषि क्षेत्र से संबंधित लोगों के समक्ष रोज़गार की समस्या दूर हो जाएगी।
- कृषि संबंधी गतिविधियों के प्रारंभ होने से कच्चे उत्पादों पर निर्भर उद्योगों को सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन सुनिश्चित कराते हुए प्रारंभ किया जा सकता ताकि सीमित मात्रा में ही सही उत्पादन किया जा सके।
- दुग्ध उत्पादन और पशुपालन से कृषि की एक-तिहाई आय होती है। पशुओं के आहार और दवाइयों का उत्पादन करने वाले उद्योगों को भी निर्बाध रूप से चलाना होगा। इससे डेयरी उद्योग का संचालन संभव जो सकेगा।
- उन कृषि उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहन देना चाहिये जिन्हें हम अन्य देशों में निर्यात कर सकते हैं।
- कृषि उत्पादों में उत्पादन बढ़ने के साथ ही इससे संबंधित कंपनियाँ भी व्यापारिक गतिविधियाँ प्रारंभ कर सकती हैं, जिससे शेयर मार्केट में गिरावट की दर में कमी आयेगी।
- कृषि उत्पादों से संबंधित उद्योगों के संचालन से कई लोगों को रोज़गार प्राप्त होगा, जिससे बचत और निवेश की प्रक्रिया को पुनः प्रारंभ किया जा सकता है।
- फसलों का भुगतान अधिक से अधिक डिजिटल माध्यम से किया जाए ताकि किसानों को उनकी उपज़ का मूल्य शीघ्र प्राप्त जो जाए। जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर किया जा सकता है।
- कृषि समावेशी विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करता है, खासकर तब जब अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन न कर रही हो।
- पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र के योगदान को देखते हुए आवश्यक है कि इन क्षेत्रों में सरकारी व निज़ी निवेश में वृद्धि की जाए। निवेश में वृद्धि के साथ ही उत्पादन में भी वृद्धि संभावित है।
निष्कर्ष
निश्चित ही वैश्विक लॉकडाउन के कारण मंदी की स्थिति और गंभीर हो गई है, परंतु समन्वित प्रयासों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचाया जा सकता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बल पर हम आर्थिक मंदी का बेहतर ढंग से मुकाबला कर सकते हैं। पीएम किसान योजना के द्वारा किसानों को मुद्रा का हस्तानांतरण कृषि गतिविधियों में जान फूँक सकता है।
प्रश्न- आर्थिक अवमंदन को परिभाषित करते हुए कृषि क्षेत्र की समस्याओं का उल्लेख कीजिये। इसके साथ ही आर्थिक मंदी को दूर करने में कृषि क्षेत्र की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।