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  • 18 Jan, 2020
  • 14 min read
आंतरिक सुरक्षा

मॉब लिंचिंग: कारण और प्रभाव

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मॉब लिंचिंग के कारणों और उसके प्रभावों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

बीते कुछ वर्षों में मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) की बढ़ती घटनाओं ने सामाजिक एवं आर्थिक रूप से शोषित वर्गों और हाशिये पर मौजूद समुदायों के मध्य एक भय का माहौल पैदा कर दिया है। ज्ञात हो कि वर्ष 2015 के बाद से NCRB ने लिंचिंग के मामलों से संबंधित आँकड़े भी संकलित नहीं किये हैं। इस संदर्भ में NCRB का कहना था कि मॉब लिंचिंग को लेकर राज्यों द्वारा जो आँकड़े प्रस्तुत किये गए वे ‘अविश्वसनीय’ थे। हालाँकि मॉब लिंचिंग को लेकर विभिन्न स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा एकत्रित आँकड़े चौंकाने वाले हैं। वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने लिंचिंग को ‘भीड़तंत्र के एक भयावह कृत्य’ के रूप में संबोधित करते हुए केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को कानून बनाने के दिशा-निर्देश दिये थे। इसके बावजूद विभिन्न राज्यों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है और लिंचिंग की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं।

क्या होती है मॉब लिंचिंग?

  • जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी मात्र अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) कहते हैं।
    • इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।
  • वर्ष 2017 का पहलू खान हत्याकांड मॉब लिंचिंग का एक बहुचर्चित उदाहरण है, जिसमें कुछ तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ ने गौ तस्करी के झूठे आरोप में पहलू खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।
  • यह तो सिर्फ राजस्थान का ही उदाहरण है, इसके अतिरिक्त देश के कई अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही घटनाएँ सामने आई हैं।

लिंचिंग के कारण

  • भारत में धर्म और जाति के नाम पर होने वाली हिंसा की जड़ें काफी मज़बूत हैं। वर्तमान में लगातार बढ़ रहीं लिंचिंग की घटनाएँ अधिकांशतः असहिष्णुता और अन्य धर्म तथा जाति के प्रति घृणा का परिणाम है।
    • वर्ष 2002 में हरियाणा के पाँच दलितों की गौ हत्या के आरोप में लिंचिंग कर दी गई थी। वहीं सितंबर 2015 में एक अज्ञात समूह ने मोहम्मद अखलाक और उनके बेटे दानिश पर गाय की हत्या करने और मांस का भंडारण करने का आरोप लगाते हुए पीट-पीट कर उनकी हत्या कर दी थी।
    • इन घटनाओं से मॉब लिंचिंग में धर्म और जाति का दृष्टिकोण स्पष्ट तौर पर ज़ाहिर होता है।
  • यह कहा जा सकता है कि देश में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई है जो कि हमेशा एक-दूसरे को संशय की दृष्टि से देखने के लिये उकसाती है और मौका मिलने पर वे एक-दूसरे से बदला लेने के लिये भीड़ का इस्तेमाल करते हैं।
  • आधुनिकता के साथ ही हमारे अंदर व्यक्तिवाद की भावना का विकास हुआ है और हमारे सामाजिक जुड़ाव में कमी आई है, जिसके कारण हम विविधता की सराहना करना भूल गए हैं।
  • अक्सर यह कहा जाता है कि ‘भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता’ और शायद इसी कारण से भीड़ में मौजूद लोग सही और गलत के बीच फर्क नहीं करते हैं।
  • लिंचिंग में संलिप्त लोगों की गिरफ्तारी न होना देश में एक बड़ी समस्या है। यह न केवल पुलिस व्यवस्था की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि अपराधियों को प्रोत्साहन देने का कार्य भी करता है।
  • भारत में जनप्रतिधियों के नैतिक आचरण को नियंत्रित करने को लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं, जिसके कारण भारत में निजी हमले तथा अपमानजनक और नफरत फैलाने वाले भाषण काफी सामान्य हो गए हैं और ये भाषण भी मॉब लिंचिंग में बड़ी भूमिका अदा करते हैं।

संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जान बूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है।
  • भीड़ द्वारा किसी की हत्या किये जाने पर IPC की धारा 302 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है और इसी तरह भीड़ द्वारा किसी की हत्या का प्रयास करने पर धारा 307 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है तथा इसी के तहत कार्यवाही की जाती है।
  • CrPC में भी इस संबंध में कुछ स्पष्ट तौर पर नहीं कहा गया है।
  • भीड़ द्वारा की गई हिंसा की प्रकृति और उत्प्रेरण सामान्य हत्या से अलग होते हैं इसके बावजूद भारत में इसके लिये अलग से कोई कानून मौजूद नहीं है।

प्रभाव

  • मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएँ पूर्णतः गैर-कानूनी और संविधान में निहित मूल्यों के विरुद्ध होती हैं। ऐसे में यदि इन पर रोक नहीं लगाई जाती है तो आम जनता का संविधान और न्यायपालिका से विश्वास उठ जाएगा।
  • ज्ञात हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। मॉब लिंचिंग से व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है।
  • साथ ही राज्य की कानून व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगता है। ग्लोबल पीस इंडेक्स 2019 में भारत 163 देशों में से 141वें स्थान पर था।
  • यह समाज की एकजुटता और विविधता में एकता के विचार को प्रभावित करता है और आम लोगों के मध्य असंतोष तथा अशांति की भावना को जन्म देता है। इससे समाज में बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का माहौल पैदा होता है और जाति, वर्ग तथा सांप्रदायिक घृणा को बढ़ावा मिलता है।
  • यह विदेशी और घरेलू निवेश दोनों को प्रभावित करता है और इससे हमारी अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान होता है। कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत को भीड़ द्वारा की जाने वाली घटनाओं के खिलाफ चेतावनी दी है।
  • इससे आंतरिक प्रवास को बढ़ावा मिलता है और अर्थव्यवस्था प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है।
  • इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिये सार्वजनिक संसाधनों की भी काफी अधिक बर्बादी होती है।

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • राज्य सरकारें प्रत्येक ज़िले में मॉब लिंचिंग और हिंसा को रोकने के उपायों के लिये एक सीनियर पुलिस अधिकारी को प्राधिकृत करेंगी।
  • राज्य सरकारें शीघ्रता से उन ज़िलों, उप-ज़िलों, गाँवों की पहचान करेंगी जहाँ हाल ही में मॉब लिंचिंग की घटनाएँ हुई हैं।
  • नोडल अधिकारी मॉब लिंचिंग से संबंधित अंतर ज़िला स्तरीय मुद्दों को राज्य के DGP के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
  • केंद्र तथा राज्य सरकारों को रेडियो, टेलीविज़न और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह प्रसारित कराना होगा कि किसी भी प्रकार की मॉब लिंचिंग एवं हिंसा की घटना में शामिल होने पर विधि के अनुसार कठोर दंड दिया जा सकता है।
  • विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित ऐसे गैर-ज़िम्मेदार और भड़काऊ संदेशों तथा अन्य सामग्री पर प्रतिबंध लगाना चाहिये जिनसे समाज में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएँ घटित होती हैं। ऐसे संदेश फैलाने वालों पर उचित प्रावधान के अंतर्गत FIR दर्ज करनी चाहिये।
  • राज्य सरकारें मॉब लिंचिंग से प्रभावित व्यक्तियों के लिये क्षतिपूर्ति योजना प्रारंभ करेगी।
  • राज्य सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि पीड़ित के परिवार के किसी भी व्यक्ति का पुनः उत्पीड़न न हो।

राज्य सरकारों के कानून

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सर्वप्रथम मणिपुर ने वर्ष 2018 में ही लिंचिंग के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया था। विशेषज्ञों ने तर्क और प्रासंगिकता की दृष्टि से मणिपुर के बिल को काफी अच्छा बताया था। मणिपुर के लिंचिंग विरोधी विधेयक में निम्नलिखित बिंदु शामिल थे:
    • विधेयक में यह निश्चित किया गया था कि लिंचिंग जैसे अपराधों को रोकने के लिये प्रत्येक ज़िले में एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति हो।
    • अपने क्षेत्राधिकार में लिंचिंग के अपराध को रोकने में विफल रहने वाले पुलिस अधिकारियों के लिये जुर्माने तथा कैद की सज़ा का प्रावधान भी किया गया है।
    • लिंचिंग संबंधी अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिये राज्य सरकारों की अनुमति भी नहीं लेनी होगी।
    • साथ ही पीड़ितों या उनके निकट परिजनों को पर्याप्त मौद्रिक मुआवज़ा प्रदान करने की बात भी कही गई है।
  • जिसके पश्चात् राजस्थान सरकार ने भी अगस्त 2019 में लिंचिंग विरुद्ध के विधेयक पारित किया। उल्लेखनीय है कि इसी दौरान संसदीय कार्य मंत्री द्वारा सदन में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों से यह बात सामने आई थी कि वर्ष 2014 के बाद देश में घटित लिंचिंग घटनाओं में से 78 प्रतिशत घटनाएँ राजस्थान में हुई थीं।
    • राजस्थान सरकार के लिंचिंग विरोधी विधेयक को लेकर विश्लेषकों का कहना है कि इनमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए कई दिशा-निर्देशों की अनदेखी की गई है, मसलन यह विधेयक लिंचिंग की घटनाओं को रोकने में विफल रहने वाले अधिकारियों के संबंध में कोई प्रावधान नहीं करता।
  • राजस्थान के बाद पश्चिम बंगाल ने भी लिंचिंग को रोकने के लिये एक विधेयक पारित किया। पश्चिम बंगाल के विधेयक में किसी व्यक्ति को घायल करने वालों को तीन साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान है और यदि लिंचिंग से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मृत्युदंड या कठोर आजीवन कारावास का प्रावधान भी है।
  • मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त अब तक अन्य किसी भी राज्य ने इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की है।

आगे की राह

  • अभी तक आम हत्या और भीड़ द्वारा की गई हत्या को कानून की दृष्टि में समान माना जाता है, आवश्यक है कि इन दोनों को कानून की दृष्टि से अलग-अलग परिभाषित किया जाए।
  • भीड़ द्वारा की गई हत्या या मॉब लिंचिंग की पहचान कर उसके लिये दहेज रोकथाम अधिनियम और पॉस्को की तरह एक सख्त और असरदायक कानून बनाया जाए।
  • सोशल मीडिया और इंटरनेट के प्रसार से भारत में अफवाहों के प्रसार में तेज़ी देखी गई है जिससे समस्या और भी गंभीर हो गई है। एक रिसर्च के मुताबिक, 40 फीसदी पढ़े-लिखे युवा खबर की सच्चाई को नहीं परखते और उसे अग्रसारित कर देते हैं, इस संदर्भ में व्यापक जागरूकता की आवश्यकता है।

प्रश्न: मॉब लिंचिंग से आप क्या समझते हैं? चर्चा कीजिये कि क्या मौजूदा कानून मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को रोकने में असमर्थ है?


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