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  • 17 Mar, 2020
  • 14 min read
सामाजिक न्याय

लैंगिक असमानता: कारण और समाधान

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत लैंगिक असमानता के कारण और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

‘समानता एक सुंदर और सुरक्षित समाज की वह नींव है जिस पर विकास रूपी इमारत बनाई जा सकती है।’ लैंगिक समानता क्या है? आखिर क्यों यह किसी भी समाज और राष्ट्र के लिये एक आवश्यक तत्त्व बन गया है? क्या बदलते समाज में यह प्रासंगिक है? लैंगिक समानता का अर्थ यह नहीं कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक लिंग का हो अपितु लैंगिक समानता का सीधा सा अर्थ समाज में महिला तथा पुरुष के समान अधिकार, दायित्व तथा रोजगार के अवसरों के परिप्रेक्ष्य में है। इसी तथ्य के मद्देनज़र सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय बैठक में एजेंडा 2030 के अंतर्गत 17 सतत विकास लक्ष्यों को रखा गया, जिसे भारत सहित 193 देशों ने स्वीकार किया। इन लक्ष्यों में सतत विकास लक्ष्य 5 के अंतर्गत लैंगिक समानता के विषय को भी शामिल किया गया है। स्पष्ट है कि हमारे समाज के विकास के लिये लैंगिक समानता अति आवश्यक है। महिला और पुरुष समाज के मूल आधार हैं। समाज में लैंगिक असमानता सोच-समझकर बनाई गई एक खाई है, जिससे समानता के स्तर को प्राप्त करने का सफर बहुत मुश्किल हो जाता है। 

लैंगिक असमानता के विभिन्न क्षेत्रों की बात करें तो इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र के साथ वैज्ञानिक क्षेत्र, मनोरंजन क्षेत्र, चिकित्सा क्षेत्र और खेल क्षेत्र प्रमुख हैं। 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस ‘विज्ञान के क्षेत्र में महिलाएँ’ थीम के साथ आयोजित किया गया। यह विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करने का एक बेहतरीन प्रयास है, परंतु लैंगिक असमानता की इस खाई को दूर करने में हमें अभी मीलों चलना होगा। इस आलेख में लैंगिक असमानता के कारणों पर न केवल चर्चा की जाएगी  बल्कि इस समस्या का समाधान तलाशने का प्रयास भी किया जाएगा

लैंगिक असमानता से तात्पर्य

  • लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव से है। परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है। 
  • वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेदभाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है।  

  • वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक- 2020 में भारत 153 देशों में 112वें स्थान पर रहा। इससे साफ तौर पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश में लैगिंक भेदभाव की जड़ें कितनी मजबूत और गहरी है।

लैंगिक असमानता के विभिन्न क्षेत्र 

  • सामाजिक क्षेत्र में- भारतीय समाज में प्रायः महिलाओं को घरेलू कार्य के ही अनुकूल माना गया है। घर में महिलाओं का मुख्य कार्य भोजन की व्यवस्था करना और बच्चों के लालन-पालन तक ही सीमित है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि घर में लिये जाने वाले निर्णयों में भी महिलाओं की कोई भूमिका नहीं रहती है। महिलाओं के मुद्दों से संबंधित विभिन्न सामाजिक संगठनों में भी महिलाओं  की न्यूनतम संख्या लैंगिक असमानता के विकराल रूप को व्यक्त करती है।
  • आर्थिक क्षेत्र में- आर्थिक क्षेत्र में कार्यरत महिला और पुरुष के पारिश्रमिक में अंतर है। औद्योगिक क्षेत्र में प्रायः महिलाओं को पुरुषों के सापेक्ष कम वेतन दिया जाता है। इतना ही नहीं रोज़गार के अवसरों में भी पुरुषों को ही प्राथमिकता दी जाती है। 
  • राजनीतिक क्षेत्र में- सभी राजनीतिक दल लोकतांत्रिक होते हुए समानता का दावा करते हैं परंतु वे न तो चुनाव में महिलाओं को प्रत्याशी के रूप में टिकट देते हैं और न ही दल के प्रमुख पदों पर उनकी नियुक्ति करते हैं।
  • विज्ञान के क्षेत्र में- जब हम वैज्ञानिक समुदाय पर ध्यान देते हैं तो यह पाते हैं कि प्रगतिशीलता की विचारधारा पर आधारित इस समुदाय में भी स्पष्ट रूप से लैंगिक असमानता विद्यमान है। वैज्ञानिक समुदाय में या तो महिलाओं का प्रवेश ही मुश्किल से होता है या उन्हें कम महत्त्व के प्रोजेक्ट में लगा दिया जाता है। यह विडंबना ही है कि हम मिसाइल मैन के नाम से प्रसिद्ध स्वर्गीय ए. पी.जे अब्दुल कलाम से तो परिचित हैं लेकिन मिसाइल वुमेन ऑफ इंडिया टेसी थॉमस के नाम से परिचित नहीं हैं।    
  • मनोरंजन क्षेत्र में- मनोरंजन के क्षेत्र में अभिनेत्रियों को भी इस भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। अक्सर फिल्मों में अभिनेत्रियों को मुख्य किरदार नहीं समझा जाता और उन्हें पारिश्रमिक भी अभिनेताओं की तुलना में कम मिलता है।   
  • खेल क्षेत्र में- खेलों में मिलने वाली पुरस्कार राशि पुरुष खिलाड़ियों की बजाय महिला खिलाड़ियों को कम मिलती हैं। चाहे कुश्ती हो या क्रिकेट हर खेल में भेदभाव हो रहा है।  इसके साथ ही, पुरुषों के खेलों का प्रसारण भी महिलाओं के खेलों से ज्यादा है। 

लैंगिक असमानता के कारक

  • सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के बावजूद वर्तमान भारतीय समाज में पितृसत्तात्मक मानसिकता जटिल रूप में व्याप्त है। इसके कारण महिलाओं को आज भी एक ज़िम्मेदारी समझा जाता है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रुढ़ियों के कारण विकास के कम अवसर मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। सबरीमाला और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर सामाजिक मतभेद पितृसत्तात्मक मानसिकता को प्रतिबिंबित करता है। 
  • भारत में आज भी व्यावहारिक स्तर (वैधानिक स्तर पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार संपत्ति पर महिलाओं का समान अधिकार है) पर पारिवारिक संपत्ति पर महिलाओं का अधिकार प्रचलन में नहीं है इसलिये उनके साथ विभेदकारी व्यवहार किया जाता है। 
  • राजनीतिक स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था को छोड़कर उच्च वैधानिक संस्थाओं में महिलाओं के लिये किसी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।
  • वर्ष 2017-18 के नवीनतम आधिकारिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey) के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में महिला श्रम शक्ति (Labour Force) और कार्य सहभागिता (Work Participation) दर कम है। ऐसी परिस्थितियों में आर्थिक मापदंड पर महिलाओं की आत्मनिर्भरता पुरुषों पर बनी हुई है। देश के लगभग सभी राज्यों में वर्ष 2011-12 की तुलना में वर्ष 2017-18 में महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में गिरावट देखी गई है। इस गिरावट के विपरीत केवल कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों जैसे मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और दमन-दीव में महिलाओं की कार्य सहभागिता दर में सुधार हुआ है।
  • महिलाओं के रोज़गार की अंडर-रिपोर्टिंग (Under-Reporting) की जाती है अर्थात् महिलाओं द्वारा परिवार के खेतों और उद्यमों पर कार्य करने को तथा घरों के भीतर किये गए अवैतनिक कार्यों को सकल घरेलू उत्पाद में नहीं जोड़ा जाता है।
  • शैक्षिक कारक जैसे मानकों पर महिलाओं की स्थिति पुरुषों की अपेक्षा कमज़ोर है। हालाँकि लड़कियों के शैक्षिक नामांकन में पिछले दो दशकों में वृद्धि हुई है तथा माध्यमिक शिक्षा तक लैंगिक समानता की स्थिति प्राप्त हो रही है लेकिन अभी भी उच्च शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं का नामांकन पुरुषों की तुलना में काफी कम है।

असमानता को समाप्त करने के प्रयास

  • समाज की मानसिकता में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर गंभीरता से विमर्श किया जा रहा है। तीन तलाक, हाज़ी अली दरगाह में प्रवेश जैसे मुद्दों पर सरकार तथा न्यायालय की सक्रियता के कारण महिलाओं को उनका अधिकार प्रदान किया जा रहा है
  • राजनीतिक प्रतिभाग के क्षेत्र में भारत लगातार अच्छा प्रयास कर रहा है इसी के परिणामस्वरुप वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक- 2020 के राजनीतिक सशक्तीकरण और भागीदारी मानक पर अन्य बिंदुओं की अपेक्षा भारत को 18वाँ स्थान प्राप्त हुआ। मंत्रिमंडल में महिलाओं की भागीदारी पहले से बढ़कर 23% हो गई है तथा इसमें भारत, विश्व में 69वें स्थान पर है।
  • भारत ने मैक्‍सिको कार्ययोजना (1975), नैरोबी अग्रदर्शी (Provident) रणनीतियाँ (1985) और लैगिक समानता तथा विकास एवं शांति पर संयुक्त‍ राष्‍ट्र महासभा सत्र द्वारा 21वीं शताब्‍दी के लिये अंगीकृत "बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्‍लेटफार्म फॉर एक्‍शन को कार्यान्‍वित करने के लिये और कार्रवाइयाँ एवं पहलें" जैसी लैंगिक समानता की वैश्विक पहलों की अभिपुष्टि की है।
  • ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं’, ‘वन स्टॉप सेंटर योजना’, ‘महिला हेल्पलाइन योजना’ और ‘महिला शक्ति केंद्र’ जैसी योजनाओं के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का प्रयास किया जा रहा है। इन योजनाओं के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप लिंगानुपात और लड़कियों के शैक्षिक नामांकन में प्रगति देखी जा रही है।
  • आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हेतु मुद्रा और अन्य महिला केंद्रित योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
  • लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये कानूनी प्रावधानों के अलावा किसी देश के बजट में महिला सशक्तीकरण तथा शिशु कल्याण के लिये किये जाने वाले धन आवंटन के उल्लेख को जेंडर बजटिंग कहा जाता है। दरअसल जेंडर बजटिंग शब्द विगत दो-तीन दशकों में वैश्विक पटल पर उभरा है। इसके ज़रिये सरकारी योजनाओं का लाभ महिलाओं तक पहुँचाया जाता है।

आगे की राह

  • लैंगिक समानता के उद्देश्य को हासिल करना जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन और कार्यालयों में कुछ पोस्टर चिपकाने तक ही सीमित नहीं है। यह मूल रूप से किसी भी समाज के दो सबसे मजबूत संस्थानों - परिवार और धर्म की मान्यताओं को बदलने से संबंधित है।
  • लैंगिक समानता का सूत्र श्रम सुधारों और सामाजिक सुरक्षा कानूनों से भी जुड़ा है, फिर चाहे कामकाजी महिलाओं के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना हो या सुरक्षित नौकरी की गारंटी देना। मातृत्व अवकाश के जो कानून सरकारी क्षेत्र में लागू हैं, उन्हें निजी और असंगठित क्षेत्र में भी सख्ती से लागू करना होगा। जेंडर बजटिंग और समाजिक सुधारों के एकीकृत प्रयास से ही भारत को लैंगिक असमानता के बंधनों से मुक्त किया जा सकता है।

प्रश्न- लैंगिक असमानता क्या है? लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये किये जा रहे प्रयासों का विश्लेषण कीजिये।


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