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एडिटोरियल

  • 16 Sep, 2023
  • 16 min read
भारतीय राजव्यवस्था

भारत बनाम इंडिया

प्रिलिम्स के लिये:

58वाँ संशोधन, अनुच्छेद 1(1), संविधान सभा, भारत की आधिकारिक भाषाएँ

मेन्स के लिये:

"भारत" और "इंडिया" से जुड़ी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, "इंडिया" और "भारत" के बीच संतुलन

यह एडिटोरियल 07/09/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘India, Bharat and a Host of Implications’’ लेख पर आधारित है। इसमें ‘भारत’ और ‘इंडिया’ नामों के ऐतिहासिक, वैचारिक, संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थों के बारे में चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि इन नामों के उपयोग किस प्रकार राजनीतिक निहितार्थ रखते हैं।

‘भारत’ देश के लिये एक ऐतिहासिक और वैचारिक नाम है, जबकि ‘इंडिया’ एक संवैधानिक और अंतर्राष्ट्रीय नाम है। INDIA (Indian National Development Inclusive Alliance) नामक विपक्षी गठबंधन के गठन के कारण इन नामों के उपयोग का राजनीतिकरण हो गया है।

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने G-20 शिखर सम्मेलन के निमंत्रण कार्ड पर ‘President of India’ के बजाय ‘President of Bharat’ शब्द का इस्तेमाल किया। शब्दावली में इस बदलाव पर प्रतिक्रिया आई और इन नामों के उपयोग के राजनीतिक आयाम प्रकट हुए।

'भारत’ और ‘इंडिया’ से संबद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • नामों की उत्पत्ति: ‘इंडिया’ शब्द और इसके अन्य भिन्न रूप (जैसे अरबी-फरसी में ‘हिंद’ या तुर्की में हिंदुस्तान) विदेशी मूल के हैं। ये नाम ऐतिहासिक रूप से बाहरी लोगों द्वारा सिंधु या सिंधु नदी के दक्षिण और पूर्व की भूमि को संदर्भित करने के लिये उपयोग किये जाते थे।
  • ऐतिहासिक उपयोग: अफगान और मुगल शासन के दौरान ‘हिंदुस्तान’ शब्द का प्रयोग प्रायः भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रों को संदर्भित करने के लिये किया जाता था।
    • बाद में, यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों, विशेष रूप से ब्रिटिश ने न केवल उत्तरी क्षेत्र बल्कि पूरे उपमहाद्वीप का वर्णन करने के लिये ‘इंडिया’ शब्द का उपयोग किया। उनके लिये, यह मुख्य रूप से एक भौगोलिक पदनाम था।
  • भारतीय पुनर्जागरण और राष्ट्रवाद: भारतीय पुनर्जागरण ने इस चेतना को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई कि भारतीय उपमहाद्वीप के सभी लोग एक ही राष्ट्र का गठन करते हैं। इस आंदोलन के कुछ प्रवर्तकों ने भारतीय राष्ट्रवाद की प्राचीन जड़ें खोजने की कोशिश की और उनका मानना था कि विदेशियों द्वारा दिये गए नाम का उपयोग करना अस्वीकार्य था।
    • उन्होंने 'भारत’ शब्द और विभिन्न भाषाओं में इसके अन्य रूपों को प्राथमिकता दी।
  • नाम को लेकर विवाद: मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने नव स्वतंत्र राष्ट्र के लिये ‘इंडिया’ नाम के इस्तेमाल पर चिंता जताई। उनका तर्क था कि 'इंडिया’ शब्द को हिंदू-बहुल क्षेत्रों से संबद्ध किया जाना चाहिये, जबकि मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों को एक अलग राष्ट्र- ‘पाकिस्तान’ के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये।
    • नाम का यह विवाद विभाजन के दौरान गहराई से मौजूद धार्मिक और राजनीतिक विभाजन को दर्शाता है।
  • समन्वयात्मक शब्द ‘हिंद’: नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने एक समन्वयात्मक शब्द ‘हिंद’ की वकालत की, जो विभिन्न धर्मों के लोगों सहित व्यापक आबादी के लिये स्वीकार्य हो सकता था।
    • ‘हिंद’ शब्द आज भी प्रयोग में है और ‘जय हिंद’ जैसी अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति में इसके स्थायी महत्त्व को प्रकट करती है।

‘भारत’ और ‘इंडिया’ के बीच संतुलन 

  • संविधान का अंगीकरण: संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को मूल रूप से अंग्रेज़ी में अंगीकृत किया गया था। यह संविधान के मूलभूत पाठ के रूप में अंग्रेज़ी संस्करण के ऐतिहासिक और विधिक महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • हिंदी अनुवाद का प्रकाशन: अंग्रेज़ी संस्करण के अलावा, भारतीय संविधान का हिंदी अनुवाद वर्ष 1950 में प्रकाशित किया गया। इस अनुवाद पर संविधान सभा के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किये गए और यह संविधान सभा द्वारा पारित एक प्रस्ताव के अनुसार किया गया। 
  • दोनों संस्करणों की आधिकारिक स्थिति: संविधान के अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों संस्करणों की उपस्थिति भारतीय विधिक ढाँचे के भीतर उनकी आधिकारिक स्थिति को रेखांकित करती है।
    • यह भारत की दोनों आधिकारिक भाषाओं— अंग्रेज़ी और हिंदी में संविधान तक पहुँच प्रदान करने के महत्त्व को प्रकट करती है।
  • संवैधानिक संशोधन: वर्ष 1987 में संविधान के 58वें संशोधन द्वारा आधिकारिक दस्तावेजों, विधिक कार्यवाही और सरकारी संचार में हिंदी एवं अंग्रेज़ी के उपयोग से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित किया गया।
    • 58वें संशोधन ने राष्ट्रपति को संविधान के आधिकारिक पाठ को हिंदी में प्रकाशित करने की शक्ति दी, जिसका उपयोग विधिक कार्यवाही में भी किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 1(1): संविधान का अनुच्छेद 1(1) देश के नाम और स्वरूप को परिभाषित करता है। अंग्रेज़ी संस्करण में कहा गया है- ‘‘India, that is Bharat, shall be a Union of States’’; यहाँ प्राथमिक नाम के रूप में ‘इंडिया’ शब्द पर बल दिया गया है।
    • हिंदी संस्करण में लिखा है- ‘‘भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा’’; यहाँ ‘भारत’ नाम को प्रमुखता दी गई है।
  • नामों के उदाहरण: अंग्रेज़ी में ‘गज़ट ऑफ इंडिया’ और हिंदी में ‘भारत का राजपत्र’ जैसे उदाहरण यह प्रकट करते हैं कि यह नामकरण परंपरा विभिन्न आधिकारिक प्रकाशनों पर किस प्रकार लागू होती है।
    • नामों का यह चयन भारत के आधिकारिक दस्तावेजों और प्रकाशनों की दोहरी भाषा प्रकृति को दर्शाता है।

कुछ अन्य देश जिन्होंने अपना नाम बदला है

  • सियाम से थाईलैंड (1939):
    • दक्षिण पूर्व एशिया में पश्चिमी औपनिवेशिक प्रभाव के विरुद्ध अपनी एकता और पहचान का दावा करने के लिये इस देश ने अपना नाम बदल लिया था। नए नाम ‘थाईलैंड’ का अर्थ है ‘स्वतंत्र लोगों की भूमि’ और यह देश की स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय गौरव पर बल देता है।
  • ज़ैरे से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (1997):
    • तीन दशकों से अधिक समय तक शासन करने वाले तानाशाह मोबुतु सेसे सेको (Mobutu Sese Seko) के सत्तावादी शासन से दूरी बनाने के लिये देश ने अपना नाम बदल लिया। नए नाम ने शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली की वापसी पर बल दिया।
  • पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश (1971):
    • वर्ष 1971 में एक हिंसक युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान से स्वतंत्र हो गया और बांग्लादेश के रूप में नया देश बना। इसने बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के अंत को चिह्नित किया और दोनों क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक, भाषाई एवं राजनीतिक मतभेदों का प्रतिनिधित्व किया।
  • वर्ष 2022 में तुर्की/टर्की (Turkey) ने अपना नाम बदलकर तुर्किये (Türkiye) कर लिया, क्योंकि यह नाम तुर्की के लोगों की संस्कृति, सभ्यता और मूल्यों के सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व एवं अभिव्यक्ति का प्रतीक है।

वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ नाम का उपयोग: भारत ने सभी अंतर्राष्ट्रीय और बहुपक्षीय मंचों पर नियमित रूप से ‘इंडिया’ नाम का उपयोग किया है। यह दर्शाता है कि देश की अंतर्राष्ट्रीय पहचान और मान्यता ‘इंडिया’ नाम के साथ संबद्ध है।
    • यह वैश्विक कूटनीति और संचार में अंग्रेज़ी नाम ‘इंडिया’ के उपयोग की व्यावहारिकता और मानकीकरण को रेखांकित करता है।
  • ग्रीस का हालिया उदाहरण: हाल ही में प्रधानमंत्री की ग्रीस यात्रा के दौरान जारी संयुक्त वक्तव्य का संदर्भ एक समसामयिक उदाहरण के रूप में रखा जा सकता है। दस्तावेज़ का शीर्षक ‘इंडिया-ग्रीस जॉइंट स्टेटमेंट’ था, जो आधिकारिक द्विपक्षीय संबंधों में ‘इंडिया’ के उपयोग पर बल देता है।
  • दोहरी भाषा का दृष्टिकोण: यह देखा गया है कि भारत आधिकारिक दस्तावेजों और राजनयिक संदर्भों में दोहरी भाषा के दृष्टिकोण (Dual-Language Approach) का पालन करता है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित राजदूतों को सौंपे जाते प्रत्यय पत्र (letters of credence) में राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे ‘राष्ट्रपति’ और ‘भारत गणतंत्र’ शब्द हिंदी में लिखे होते हैं, जबकि उसके नीचे अंग्रेज़ी में ‘प्रेसिडेंट’ और ‘रिपब्लिक ऑफ इंडिया’ लिखे होते हैं। 
    • यह दृष्टिकोण बहुभाषावाद (multilingualism) और अपनी विविध भाषाई विरासत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • आधुनिक उपयोग: समकालीन भारत में ‘जय हिंद’ और ‘जय भारत’ दोनों का उपयोग देखा जाता है, जो विभिन्न सांस्कृतिक और भाषाई परंपराओं के सह-अस्तित्व को दर्शाता है। उदाहरण के लिये, अधिकांश प्रमुख संभाषणों (जैसे कि स्वतंत्रता दिवस का संबोधन) में इन दोनों अभिव्यक्तियों का उपयोग किया जाता है, जो राष्ट्र के ताने-बाने का निर्माण करने वाले विविध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक तंतुओं की मान्यता को दर्शाता है।

नोट:

  • वर्ष 2015 में केंद्र ने यह कहते हुए किसी भी नाम परिवर्तन का विरोध किया था कि संविधान के प्रारूपण के दौरान इस मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श किया जा चुका है।
    • भारत का सर्वोच्च न्यायालय इंडिया’ का नाम बदलकर ‘भारत’ करने संबंधी याचिका को दो बार खारिज कर चुका है (वर्ष 2016 में और फिर वर्ष 2020 में), जहाँ यह पुष्टि की कि ‘भारत’ और ‘इंडिया’ दोनों का संविधान में उल्लेख है।

निष्कर्ष

इस तरह का नाम परिवर्तन देश के उन हिस्सों को अलग-थलग कर सकता है जो ‘भारत’ के बजाय ‘इंडिया’ नाम को प्राथमिकता देते हैं। देश के नाम के संबंध में सार्वजनिक भावनाएँ और क्षेत्रीय प्राथमिकताएँ विविध हैं तथा किसी भी निर्णय में इस पर विचार किया जाना चाहिये। इस परंपरा से किसी भी विचलन के सांस्कृतिक और अस्मिता संबंधी निहितार्थ उत्पन्न हो सकते हैं। अंग्रेज़ी में ‘इंडिया’ और हिंदी में ‘भारत’ का उपयोग, भारत की भाषाई विविधता को दर्शाता है और इसे विवेकपूर्ण एवं संवैधानिक रूप से सही माना जाता है। सवाल यह उठता है कि एक ऐसे समय जब देश अन्य चुनौतियों (बेरोज़गारी, पर्यावरणीय गिरावट, गरीबी, स्वास्थ्य देखभाल, असमानता, लिंग भेदभाव आदि) का सामना कर रहा है, तब देश के एक नाम पर दूसरे नाम को प्राथमिकता देने और इससे संबद्ध राजनीति क्या यथोचित है।

अभ्यास प्रश्न: हाल की बहसों और कानूनी निर्णयों के आलोक में, देश के नामकरण में दोहरी भाषा के दृष्टिकोण को बनाए रखने के महत्त्व और निहितार्थ का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। इस परंपरा में किसी भी संभावित परिवर्तन से संबद्ध चुनौतियों और विचारों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान कीजिये।


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