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एडिटोरियल

  • 16 Mar, 2020
  • 16 min read
भूगोल

जल संकट: कारण और समाधान

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत जल संकट के कारण और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

धरती पर जल संकट व्याप्त है,
शायद मानव की बुद्धि समाप्त है,
पानी की बूँद-बूँद भी बच जाए तो,
बचा हुआ पानी भी पर्याप्त है  

उपर्युक्त उद्धरण जल संकट की विभीषिका को बयाँ कर रहा है क्योंकि औद्योगीकरण की राह पर बढ़ती दुनिया में जल संकट कोने-कोने में पसर चुका है, जिसने अब एक विकराल रूप ले लिया है। नि:संदेह दुनिया विकास के मार्ग पर अग्रसर है, लेकिन स्वच्छ जल मिलना कठिन हो रहा है। एशिया में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर अफ्रीका में केन्या, इथोपिया, सूडान और इजिप्ट जैसे देश जल के संकट से जूझ रहे हैं। अफ्रीका महाद्वीप में नील नदी पर बने ग्रैंड इथोपियाई रेनेंशा डैम (Grand Ethiopian Renaissance Dam-GERD) को लेकर इथोपिया, इजिप्ट और सूडान में तनाव बढ़ता जा रहा है। इन देशों में मतभेद तब और गहरे हो गए जब संयुक्त राज्य अमेरिका तथा विश्व बैंक की अध्यक्षता में आयोजित एक त्रिपक्षीय बैठक में इथोपिया ने सूडान एवं इजिप्ट के साथ वार्ता करने से इनकार कर दिया।

तीसरी दुनिया के देशों की खराब हालत के पीछे एक बड़ी वजह स्वच्छ जल की कमी है। जब से जल संकट के बारे में विश्व में चर्चा शुरू हुई तब से एक विचार प्रचलित हुआ है कि तीसरा विश्व युद्ध जल आपूर्ति के लिये होगा। वास्तव में अब जल संबंधी चुनौतियाँ गंभीर हो गई हैं। वर्ष  1995 में विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सेराग्लेडिन ने कहा था कि ‘इस शताब्दी की लड़ाई तेल के लिये लड़ी गई है लेकिन अगली शताब्दी की लड़ाई जलापूर्ति के लिये लड़ी जाएगी।’ इस आलेख में जल संकट के कारण, प्रभाव और उनका समाधान ढूँढने का प्रयास किया जाएगा।

पृष्ठभूमि  

  • नील नदी पर बना ग्रैंड इथोपियाई रेनेंशा डैम अफ्रीका महाद्वीप की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है।
  • नील नदी सूडान के खारतूम से निकल कर इजिप्ट होते हुए भूमध्य सागर में गिरती है। खारतूम में ब्लू नील नदी और व्हाइट नील नदी के मिलने से नील नदी का निर्माण होता है।
  • अफ्रीकी देश तंजानिया, केन्या और उगांडा की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील से व्हाइट नील नदी का उदगम होता है, वहीं ब्लू नील नदी का उदगम इथोपिया में स्थित ताना झील से होता है।   
  • इथोपिया अफ्रीका महाद्वीप का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है और ग्रैंड इथोपियाई रेनेंशा डैम को अपनी संप्रभुता के प्रतीक के रूप में देखता है। 
  • इथोपिया 4 अरब डाॅलर की लागत से ब्लू नील नदी पर बाँध का निर्माण कर देश की लगभग 60% आबादी तक बिजली की आपूर्ति बढ़ाकर  बुनियादी ढाँचे की खाई को पाटना चाहता है। 
  • परंतु पूर्णतः नील नदी के जल पर निर्भर इजिप्ट और सूडान को डर है कि ब्लू नील नदी पर निर्मित बाँध से नील नदी में जल का प्रवाह कम हो सकता है जिससे दोनों देशों को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।   
  • जल संकट का यह डर ही तनाव का कारण बनता है और तनाव में वृद्धि से युद्ध की आशंका जन्म लेती है।

जल संकट क्या है?

  • एक क्षेत्र के अंतर्गत जल उपयोग की मांगों को पूरा करने हेतु उपलब्ध जल संसाधनों की कमी को ही ‘जल संकट’ कहते हैं।
  • विश्व के सभी महाद्वीपों में रहने वाले लगभग 2.8 बिलियन लोग प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक महीने जल संकट से प्रभावित होते हैं। लगभग 1.2 बिलियन से अधिक लोगों के पास पीने हेतु स्वच्छ जल की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है।

जल संकट की वैश्विक स्थिति

  • पृथ्वी पर कुल जल का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि कुल जल का 97.3% खारा जल है और पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 2.07% ही शुद्ध जल है जिसे पीने योग्य माना जा सकता है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो दुनिया के दो अरब लोगों को पीने के लिये स्वच्छ जल नहीं मिल पाता है जिससे उन्हें हैजा, आंत्रशोध आदि जानलेवा बीमारियों के होने का खतरा रहता है। 
  • एक अनुमान के अनुसार एशिया का मध्य-पूर्व (Middle-East) क्षेत्र , उत्तरी अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र, पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान और स्पेन आदि देशों में वर्ष 2040 तक अत्यधिक जल तनाव (Water Stress) की स्थिति होने की संभावना है।
  • जल संकट से सर्वाधिक ग्रसित 17 देश इस प्रकार हैं- क़तर, इज़राइल, लेबनान, ईरान, जॉर्डन, लीबिया, कुवैत, सऊदी अरब, इरीट्रिया, संयुक्त अरब अमीरात, सैन मरीनो, बहरीन, भारत, पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, बोत्सवाना।
  • इसके साथ ही भारत, चीन, दक्षिणी अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों को भी उच्च जल तनाव का सामना करना पड़ सकता है।

भारत में जल संकट की स्थिति

  • भारत में लगातार दो वर्षों के कमज़ोर मानसून के कारण 330 मिलियन लोग या देश की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या गंभीर सूखे से प्रभावित हैं। भारत के लगभग 50% क्षेत्र सूखे जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं, विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में जल संकट की गंभीर स्थिति बनी हुई है। 
  • नीति आयोग द्वारा वर्ष 2018 में जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index) रिपोर्ट के अनुसार, देश के 21 प्रमुख शहरों में निवासरत लगभग 100 मिलियन लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। भारत की 12% जनसंख्या पहले से ही 'डे ज़ीरो' की परिस्थितियों में रह रही हैं।

डे ज़ीरो: दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में पानी के उपभोग को सीमित और प्रबंधित करने हेतु सभी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिये डे ज़ीरो के विचार को पेश किया गया था ताकि जल के उपयोग को सीमित करने संबंधी प्रबंधन और जागरूकता को बढ़ाया जा सके।

  • साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक भारत में जल की मांग, उसकी पूर्ति से लगभग दोगुनी हो जाएगी।
  • देश में वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घनमीटर थी, जो वर्ष 2000 में 2300 घनमीटर रह गई तथा वर्ष 2025 तक इसके और घटकर 1600 घनमीटर रह जाने का अनुमान है।
  • हालाँकि वर्ष 2019 में नीति आयोग ने संयुक्‍त जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index -CWMI 2.0) का दूसरा संस्करण तैयार किया जिसमें कुछ राज्यों ने जल प्रबंधन में सुधार किया है।

भारत में जल संकट का कारण

  • भारत में जल संकट की समस्याओं को मुख्यतः दक्षिणी और उत्तर-पश्चिमी भागों में इंगित किया गया है, इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ पर कम वर्षा होती है, चेन्नई तट पर दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा नहीं हो पाती है। इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम में मानसून पहुँचते-पहुँचते कमज़ोर हो जाता है, जिससे वर्षा की मात्रा भी घट जाती है।
  • भारत में मानसून की अस्थिरता भी जल संकट का बड़ा कारण है। हाल के वर्षों में एल-नीनो के प्रभाव के कारण वर्षा कम हुई, जिसकी वज़ह से जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • भारत की कृषि पारिस्थितिकी ऐसी फसलों के अनुकूल है, जिनके उत्पादन में अधिक जल की आवश्यकता होती है, जैसे- चावल, गेहूँ, गन्ना, जूट और कपास इत्यादि। इन फसलों वाले कृषि क्षेत्रों में जल संकट की समस्या विशेष रूप से विद्यमान है। हरियाणा और पंजाब में कृषि गहनता से ही जल संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • भारतीय शहरों में जल संसाधन के पुर्नप्रयोग के लिये गंभीर प्रयास नहीं किये जाते हैं, यही कारण है कि शहरी क्षेत्रों में जल संकट की समस्या चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई है। शहरों में ज़्यादातर जल के पुर्नप्रयोग के बजाय उसे सीधे नदी में प्रवाहित करा दिया जाता है। 
  • लोगों के बीच जल संरक्षण को लेकर जागरूकता का अभाव है। जल का दुरुपयोग लगातार बढ़ता जा रहा हैं, गाड़ी की धुलाई, पानी के उपयोग के बाद टोंटी खुला छोड़ देना इत्यादि।

जल संकट के परिणाम 

  • खाद्य असुरक्षा: कृषि क्षेत्र में अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है तथा जल खाद्य सुरक्षा की कुंजी है।
  • जल संघर्ष और प्रवासन: जल की कमी से आजीविका का संकट उत्पन्न होगा जो प्रवासन को बढ़ावा देगा।
  • आर्थिक अस्थिरता: विश्व बैंक के अनुसार, जल की कमी के चलते कई देशों की GDP प्रभावित होगी और आर्थिक समस्याओं में भी वृद्धि हो सकती है।
  • जैव विविधता की हानि: जल संकट से पेड़-पौधों को नुकसान पहुँचने के साथ ही जीव-जंतुओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • कानून-व्यवस्था बिगड़ने के आसार: प्रायः देखा गया है कि जल संकट वाले क्षेत्रों में उपलब्ध जल स्रोतों पर कब्ज़े को लेकर कई बार हिंसक झड़प हो जाती है। पिछले कई वर्षों से भीषण जल संकट का सामना करने वाले महाराष्ट्र के लातूर ज़िले में प्रशासन को धारा 144 लगानी पड़ी है।

जल संरक्षण हेतु प्रयास

  • सतत् विकास लक्ष्य 6 के तहत वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिये पानी की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित किया जाना है, इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये जल संरक्षण के निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं-
    • वर्तमान समय में कृषि गहनता के कारण जल के अत्यधिक प्रयोग को कम करने हेतु कम पानी वाली फसलों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
    • द्वितीय हरित क्रांति में कम जल गहनता वाली फसलों पर ज़ोर दिया जा रहा है।
    • रेनवाटर हार्वेस्टिंग द्वारा जल का संचयन।
    • वर्षा जल को सतह पर संग्रहीत करने के लिये टैंकों, तालाबों और चेक-डैम आदि की व्यवस्था।
    • झीलों, नदियों और समुद्रों जैसे प्राकृतिक जल स्रोत काफी महत्त्वपूर्ण हैं। ताज़े पानी के पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र दोनों ही विभिन्न जीवों की विविधता के घर हैं और इन पारिस्थितिक तंत्रों के समर्थन के बिना ये जीव विलुप्त हो जाएंगे। इसलिये प्राकृतिक जल निकायों का संरक्षण आवश्यक है।

नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से अधिशेष जल वाले क्षेत्रों से जल को जल प्रतिबल वाले क्षेत्रों की ओर भेजा जा सकता है।  

नीति आयोग की @75 कार्यनीति और जल प्रबंधन

वर्ष 2018 में नीति आयोग ने अभिनव भारत @75 के लिये कार्यनीति जारी की थी जिसके तहत यह निश्चित किया गया था कि वर्ष 2022-23 तक भारत की जल संसाधन प्रबंधन रणनीति में जीवन, कृषि, आर्थिक विकास, पारिस्थितिकी और पर्यावरण के लिये पानी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु जल सुरक्षा की सुविधा होनी चाहिये।

आगे की राह 

  • समय आ गया है कि अब हम वर्षा का जल अधिक-से-अधिक बचाने की कोशिश करें, क्योंकि जल का कोई विकल्प नहीं है, इसकी एक-एक बूँद अमृत है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। अगर अभी जल नहीं सहेजा गया तो आगे चलकर स्थिति भयावह हो सकती है।
  • वर्षाजल संग्रहण के कई तरीके उपलब्ध हैं। कम ढलान वाले इलाकों में परंपरागत तालाबों को बड़े पैमाने पर पुनर्जीवित करके नए तालाब भी बनाने चाहिये। तालाब जल की कमी के समय जल उपलब्ध करवाने के अलावा भूजल भरण में भी उपयोगी सिद्ध होंगे।
  • आधारभूत जल संकट (उदाहरण के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन या उपयोग) की समस्या के समाधान हेतु देशों को अधिक दक्ष सिंचाई पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • प्रश्न- जल संकट से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों का उल्लेख करते हुए समाधान के उपाय सुझाएँ।

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