न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 16 Mar, 2019
  • 14 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत को बदलनी होगी आतंक और चीन से निपटने की रणनीति

संदर्भ

13 मार्च की देर रात चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर जैश सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी (Global Terrorist) घोषित करने वाले प्रस्ताव के विरोध में अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर उसे बचा लिया। जबकि परिषद के चार अन्य स्थायी सदस्यों- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस और रूस ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। गौरतलब है कि सुरक्षा परिषद में चौथी बार चीन ने इस प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल किया है। सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति के समक्ष अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिये फ्राँस, ब्रिटेन और अमेरिका ने 27 फरवरी को प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद समिति ने सदस्य देशों को आपत्ति दर्ज करने के लिये 10 दिनों का समय दिया था। चीन ने इसे तकनीकी रोक बताया जो छह महीनों के लिये वैध है और इसे आगे तीन महीने के लिये और बढ़ाया जा सकता है।

अनपेक्षित नहीं है चीन का रवैया

यह बिल्कुल अपेक्षित ही था, ‘तकनीकी रोक’ लगाने वाला यह चीन का चौथा वीटो है। अपने इस कदम से चीन ने भारत को यह जता दिया है कि आतंकवाद भारत की अपनी राष्ट्रीय समस्या है और इसे सुलझाने का ज़िम्मा भी उसी का है। साथ ही चीन ने यह भी जता दिया है कि ‘वैश्विक आतंकवाद’ और उसकी दक्षिण एशिया नीतियों में अंतर बरकरार है तथा भारतीय चिंताओं को लेकर उसके दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं आया है।

क्या है वीटो पावर?

वीटो (Veto) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब होता है 'मैं अनुमति नहीं देता हूँ'। प्राचीन रोम में कुछ निर्वाचित अधिकारियों के पास अतिरिक्त शक्ति होती थी, जिसका इस्तेमाल वे रोम सरकार की किसी कार्रवाई को रोकने में करते थे। तब से यह शब्द किसी काम को करने से रोकने की शक्ति के लिये इस्तेमाल होने लगा।

मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्राँस, रूस, UK और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। मसूद अज़हर के मामले में यही हो रहा है। सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य उसे ग्लोबल आतंकी घोषित करने के समर्थन में थे, लेकिन चीन उसके विरोध में था और उसने वीटो लगा दिया।

आपको बता दें कि फरवरी, 1945 में क्रीमिया, यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन को याल्टा सम्मेलन या क्रीमिया सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इसी सम्मेलन में तत्कालीन सोवियत संघ के प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा था। याल्टा सम्मेलन का आयोजन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की योजना बनाने के लिये हुआ था। इसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी.रूजवेल्ट ने हिस्सा लिया। वैसे 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो अस्तित्व में आ गया था। उस समय लीग काउंसिल के स्थायी और अस्थायी सदस्यों, दोनों के पास वीटो पावर थी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 16 फरवरी, 1946 को पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) ने किया था। लेबनान और सीरिया से विदेशी सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव पर यह वीटो किया गया था।

बेहद मज़बूत हैं पकिस्तान से चीन के रिश्ते

  • हालिया चीनी वीटो से भारत को यह स्पष्ट संदेश मिला है कि पाकिस्तान के साथ चीन के संबंध बेहद मज़बूत हैं। यहाँ तक कि उभरती ज़िम्मेदार शक्ति के तौर पर प्रतिष्ठा से उसके लिये राष्ट्रीय हित अधिक मायने रखते हैं।
  • इसे अमेरिका और इज़राइल के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में समझना होगा। सुरक्षा परिषद में जब-जब इज़राइली हितों पर आँच आती है अमेरिका अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल करता है। ठीक ऐसा ही पाकिस्तान के लिये चीन कर रहा है।

दरअसल, वैश्विक आतंकवाद जैसी कोई चीज है ही नहीं। अमेरिका ने 9/11 की घटना के बाद अपने दोस्तों और दुश्मनों के बीच अंतर करने के लिये इसे गढ़ा था। इसी दौरान अमेरिका ने सबसे महत्त्वपूर्ण गैर-नाटो सहयोगी के तौर पर पाकिस्तान की खोज की थी। अपनी राज्य-प्रायोजित आतंकवाद की नीतियों से पाकिस्तान अब भारत में आतंकवाद को जारी रखे हुए है और अमेरिका उसे लगातार नज़रअंदाज़ करता रहा है। इस दौरान पाकिस्तान नकदी व हथियारों के रूप में लगातार अमेरिकी सहायता प्राप्त करता रहा।

  • चीन और पाकिस्तान के सामरिक संबंध काफी गहरे हैं और अपने ऊपर पाकिस्तान की निर्भरता बनाए रखने में चीन के अपने हित हैं। दुनिया एक बात भली-भाँति जानती है कि चीन कोई भी नीति अपने दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखकर बनाता है। यही वज़ह है कि भारत-पाक संबंधों को सुधारने को लेकर भी उसने कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि इससे उसे अपने हितों पर चोट पहुँचने का अंदेशा है।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी है एक मुद्दा

पाकिस्तान को चीन की आर्थिक मदद के रूप में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) प्रोजेक्ट है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रमुख परियोजना है। बेशक 62 बिलियन डॉलर की यह चीनी परियोजना पाकिस्तान के आर्थिक भविष्य को नहीं बदल सकती, लेकिन यह चीन के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण है। इसके माध्यम से चीन न सिर्फ पाकिस्तान, बल्कि अफगानिस्तान, हिंद महासागर, ईरान और खुद के झिंजियांग प्रांत में अपने हितों को साध रहा है। ऐसे में चीन एक साथ अपने कई हितों को साधने वाले बहु-लाभकारी देश पाकिस्तान का साथ आखिर क्यों छोड़ेगा? 

भारत क्या कर सकता है?

  • चीन के रुख से साफ है कि इस मामले में वह भारत की दलीलों को समझने को तैयार नहीं है। इस तरह के मामलों को सुरक्षा परिषद में ले जाने से पहले भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति बनानी होगी। एक भी सदस्य छूटा तो फिर उसका नतीजा यही होगा जैसा चीन के मामले में है।
  • चीन जानता है कि पाकिस्तान ही इन आतंकी घटनाओं का स्रोत है, फिर भी वह पाकिस्तान का रक्षा कवच बना हुआ है। यह स्पष्ट है कि इस मामले ने भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों को कमज़ोर किया है।

भारत को बदलनी होगी अपनी रणनीति

  • भारत को यह बात अब अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिये कि चीन और हमारा सिस्टम अलग है। हम कानूनी और न्यायिक प्रकिया से चलते हैं। लेकिन जिस तरह से हमारी आंतरिक न्यायिक व्यवस्था है, चीन की न्यायिक व्यवस्था नहीं है।
  • अपने वीटो से चीन हमको यही समझाने की कोशिश कर रहा है...और जब तक यह बात हमें समझ में नहीं आएगी, हम सुरक्षा परिषद में बार-बार जाते रहेंगे परिणाम लगभग एक जैसा ही मिलता रहेगा।

युद्ध की संभावना को हरसंभव टालते हुए भारत को पाकिस्तान पर निरंतर दबाव बनाए रखना होगा। हमें अमेरिका और चीन को लेकर इस गफलत में नहीं रहना चाहिये कि वे हमारे लिये पाकिस्तान पर एक सीमा से आगे जाकर दबाव डालेंगे।आखिर अमेरिका और चीन के अपने-अपने हित हैं। पूरी दुनिया जानती है कि अफगानिस्तान में अमेरिका को पाकिस्तानी मदद चाहिये। फिर चीन क्यों चाहेगा कि पाकिस्तान के आतंकी भारत आने के बजाय उसके यहाँ आ जाएँ।

  • हमें यह बात भी अच्छी तरह से समझनी होगी कि पाकिस्तान की जो कानूनी-न्यायिक व्यवस्था है, उसमें डोज़ियर सौंपकर हम कानूनी रूप से कोई प्रभावी कामयाबी नहीं हासिल कर सकते।
  • इसी तरह सुरक्षा परिषद में भी हमारे प्रयास एक सीमा के आगे काम नहीं कर सकते, क्योंकि सुरक्षा परिषद की अलग-अलग शक्तियों के अपने-अपने हित हैं।
  • हमें विश्व मंचों पर पड़ोसी देश की कारगुज़ारियों को उजागर करते रहना चाहिये, लेकिन यह अतिरिक्त प्रयास होना चाहिये, मुख्य नहीं। 
  • हमें यह भी समझना होगा कि एक मसूद अज़हर के लिये हम चीन से अपने संबंधों में एक सीमा से अधिक खटास नहीं आने दे सकते। आखिर जिस पाकिस्तान में मसूद अज़हर बैठा है, उससे ही कहाँ अपने सारे रिश्ते हम तोड़ पाए हैं। पिछले 70 वर्षों से हम पड़ोसी देश की हरकतों से परेशान हैं, लेकिन कूटनीति के अपने तकाज़े होते हैं।

वर्तमान परिदृश्य में भारत के विकल्प

वर्तमान में वैश्विक व्यवस्था अराजकता का प्रतिनिधित्व करती है और किसी को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने या प्रतिबंधित करने की संयुक्त राष्ट्र की प्रक्रिया टूट चुकी है। यह प्रमुख शक्तियों के हितों की संरक्षक भर है। भारत संयुक्त राष्ट्र से जो अपेक्षा करता है, वह उसे स्वयं करना होगा। सीमा पार से जिस आतंकवाद का वह सामना करता है, उसे खत्म करने के लिये वह जो उपाय कर रहा है, वह सही है, लेकिन इसे लेकर भारत को व्यावहारिक होना होगा। भारत की बदले की प्रतिक्रिया उपलब्ध विकल्पों का ही परिणाम है, जो पहले देखने को नहीं मिलता था। भारत को यह भी समझना होगा कि चीन कभी भी पाकिस्तान के मामले में असहज महसूस नहीं करता। ऐसे में भारत को अराजकता को पहचानने और खुद के बूते अपने राष्ट्रीय हित को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है।

पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखना होगा

भारत अब तक चार बार इस मुद्दे को सुरक्षा परिषद में वोटिंग के लिये ले जा चुका है, लेकिन हर बार चीन ने रास्ता रोक दिया। इस बार 13 देश भारत के साथ थे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बीजिंग भी गईं थीं, लेकिन चीन आतंक के खिलाफ बने जनमत के दबाव में नहीं आया। लेकिन अभी हाल ही में मसूद अज़हर पर बैन लगाने के प्रस्ताव पर चीन द्वारा वीटो करने के बाद फ्राँस ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद पर अब खुद एक्शन लिया है और अज़हर मसूद की संपत्ति को ज़ब्त करने का फैसला किया है। लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, इसे दबाव बनाने का सांकेतिक प्रयास कहा जा सकता है। ऐसे में भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने के लिये अनेक मोर्चों पर एक साथ सक्रिय रहने पड़ेगा। मसूद अज़हर पर हम पाकिस्तान के ज़रिये ही दबाव बना सकते हैं। कोई आतंकवादी संगठन वहाँ से हमारे यहाँ आतंकी कार्रवाई के षड्यंत्र कर रहा है, तो हम उस पर काउंटर अटैक करके उसके मनसूबे ध्वस्त कर सकते हैं। जहाँ तक चीन की बात है, तो उसके साथ हमें अपनी बातचीत जारी रखनी होगी। हमें अपने बूते ही पाकिस्तान पर दबाव बनाना होगा...इसके सिवा और कोई विकल्प नहीं है।

स्रोत: 15 मार्च को Indian Express में प्रकाशित What next after China’s block तथा अन्य जानकारियों पर आधारित


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2