नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 16 Feb, 2019
  • 14 min read
शासन व्यवस्था

दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल की शक्तियों का विवाद

संदर्भ

गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसमें सर्विसेज़, सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और ज़मीन से जुड़े मामलों को उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में रखा गया था। इसमें ब्‍यूरोक्रेट के सर्विस से संबंधित मामले भी शामिल थे। इसे दिल्ली सरकार ने पहले उच्च न्यायालय में और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

पिछले वर्ष जून में सुप्रीम कोर्ट की 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने फैसला दिया था कि ज़मीन, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस से संबंधित मामलों को छोड़कर दिल्ली सरकार के फैसलों में उपराज्यपाल की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन इस फैसले में सेवाओं (Services) और अन्य मुद्दों को लेकर कुछ नहीं कहा गया था। इसके लिये दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अब सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की बेंच ने पाँच महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला दिया है:

  1. ट्रांसफर और पोस्टिंग: राज्‍य सूची में राज्‍य पब्लिक सर्विसेज़ की एंट्री 41 के अधीन दिल्‍ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों के संबंध में जस्टिस ए.के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की राय भिन्‍न थी। जस्टिस भूषण ने कहा कि दिल्‍ली सरकार के पास इस संबंध में कोई कार्यकारी शक्तियाँ नहीं हैं, जबकि जस्टिस सीकरी ने कहा कि जॉइंट सेक्रेटरी और उसके ऊपर की रैंक के अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार उपराज्‍यपाल के पास रहेग तथा उससे नीचे की रैंक के अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर का अधिकार GNCTD (राष्ट्रीय राजधानी सरकार दिल्ली क्षेत्र) के पास रहेगा। इसके बाद बेंच ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं पर नियंत्रण पर अपना खंडित फैसला तीन सदस्यों वाली बेंच के पास भेज दिया।
  2. जाँच आयोग का गठन: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कमीशन ऑफ इन्‍क्‍वायरी एक्ट के तहत अधिकार उपराज्यपाल के पास रहेंगे। कमीशन ऑफ इन्‍क्‍वायरी एक्‍ट, 1952 के तहत दिल्‍ली सरकार जाँच आयोग का गठन नहीं कर सकती, लेकिन उपराज्यपाल के बजाय अब दिल्ली सरकार के पास लोक अभियोजकों या कानूनी अधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार होगा।
  3. ज़मीन और राजस्व: ज़मीनों का सर्कल रेट दिल्ली सरकार तय करेगी और मुआवज़े का निर्धारण करने का अधिकार भी उसी के पास रहेगा। ज़मीन से जुड़े अन्य मामले भी मुख्यमंत्री कार्यालय के नियंत्रण में होंगे। हालाँकि रेवेन्यू के मामले में सरकार को उपराज्यपाल की सहमति लेनी होगी।
  4. एंटी करप्शन ब्रांच: ACB का अधिकार भी केंद्र को दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दिल्ली विशेष स्थिति वाला राज्य है और यहाँ की पुलिस केंद्र के अधीन है, इसलिये भ्रष्टाचार की जाँच के मामले भी उपराज्यपाल के अधीन ही होंगे। केंद्र की उस अधिसूचना को बरकरार रखा गया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली सरकार का ACB भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जाँच नहीं कर सकता।
  5. बिजली बोर्ड दिल्ली के पास: बिजली बोर्ड से जुड़े कार्य दिल्ली सरकार को सौंपे गए हैं। दिल्ली सरकार बिजली विभाग के कर्मचारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग भी कर सकती है तथा बिजली के दाम निर्धारित कर सकती है।

दोनों जजों ने कहा कि रेवेन्यू या ट्रांसफर, पोस्टिंग के मामले में दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच यदि कोई मतभेद होता है तो मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि उपराज्यपाल को अनावश्यक रूप से फाइलों को रोकने की ज़रूरत नहीं है और राय को लेकर मतभेद होने के मामले में उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिये। उपराज्‍यपाल किसी भी मुद्दे पर अपनी राय बना सकते हैं, लेकिन उन्हें रूटीन के कामकाज में हस्‍तक्षेप नहीं करना चाहिये।

सर्विसेज (ट्रांसफर और पोस्टिंग) को लेकर क्या कहा दोनों जजों ने

न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी ने कहा कि संयुक्त निदेशक और इससे ऊपर के अधिकारियों के तबादले और तैनाती का अधिकार केंद्र सरकार के पास तथा अन्य अधिकारियों से संबंधित मामलों में नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। मतभेद होने की स्थिति में उपराज्यपाल का दृष्टिकोण मान्य होगा। उन्होंने IAS अधिकारियों के लिये बने बोर्ड की तरह ही ग्रेड-3 और ग्रेड-4 के अधिकारियों के तबादले और तैनाती के लिए अलग बोर्ड बनाने का सुझाव दिया। न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि दिल्ली में सुचारू ढंग से शासन के लिये सचिव और विभागों के मुखिया के पद पर तैनाती और तबादले उपराज्यपाल द्वारा किए जाएंगे जबकि दानिक्स और दानिप्स सेवा के अधिकारियों के मामले में फाइल मंत्री परिषद को उपराज्यपाल के पास भेजनी होगी। संयुक्त निदेशक और उससे उच्च पदों के अधिकारियों की तैनाती और तबादले सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा ही किये जाएंगे क्योंकि इस संबंध में राज्य संघ लोक सेवा आयोग का कोई कानून नहीं है और दिल्ली सरकार के पास काडर नियंत्रण का अधिकार भी नहीं है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने इससे असहमति व्यक्त की और कहा कि कानून के तहत दिल्ली सरकार को सेवाओं पर नियंत्रण का कोई अधिकार नहीं है। सभी प्रशासनिक सेवाओं के बारे में दिल्ली सरकार को कोई अधिकार नहीं होगा और सारे अधिकार उपराज्यपाल में निहित होंगे। दिल्ली सबऑर्डनेट सेवा स्पष्ट रूप से केंद्रीय सेवा है और इसके नियम 1967 में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 309 के तहत बनाए हैं। उन्होंने इन सेवाओं के बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।

सेवाओं के नियंत्रण के मुद्दे पर मतभेद के बाद पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह मामला वृहद पीठ को सौंपने की आवश्यकता है और दोनों न्यायाधीशों की राय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखी जाए ताकि उचित पीठ का गठन किया जा सके।

दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा 2016 में

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस बताया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 अगस्त 2016 को अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और दिल्ली सरकार उपराज्यपाल की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती। उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के फैसले को मानने के लिए किसी भी तरह से बाध्य नहीं हैं। वह अपने विवेक के आधार पर फैसला ले सकते हैं, जबकि दिल्ली सरकार को कोई भी नोटिफिकेशन जारी करने से पहले उपराज्यपाल की सहमति लेनी ही होगी।

कहाँ से शुरू हुआ विवाद?

केंद्र सरकार ने 23 जुलाई, 2014 को भी एक नोटिफिकेशन जारी किया था, जिसके तहत दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों को सीमित कर दिया गया था और दिल्ली सरकार के ACB का अधिकार क्षेत्र दिल्ली सरकार के अधिकारियों तक सीमित किया गया था। इसके जाँच दायरे से केंद्र सरकार के अधिकारियों को बाहर कर दिया गया था। इस नोटिफिकेशन को दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी जिसे खारिज कर दिया गया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से मामले को उठाते हुए कहा गया कि सर्विसेज़ तथा ACB जैसे मामलों में गतिरोध कायम है और इन मुद्दों पर सुनवाई की जरूरत है।

केंद्र सरकार का पक्ष

  • केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि उपराज्यपाल को केंद्र से अधिकार मिले हुए हैं।
  • सिविल सर्विसेज़ का मामला उपराज्यपाल के हाथ में है क्योंकि यह अधिकार राष्ट्रपति ने उपराज्यपाल को दिया है। इसलिये मुख्य सचिव की नियुक्ति आदि का मामला उपराज्यपाल ही तय करेंगे।
  • दिल्ली के उपराज्यपाल की पावर अन्य राज्यों के राज्यपाल के अधिकार से अलग है।
  • संविधान के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को विशेषाधिकार मिला हुआ है।
  • विधानसभा होने का यह अर्थ नहीं है कि दिल्ली एक राज्य है और उसे अन्य राज्यों की तरह अधिकार प्राप्त हैं।
  • दिल्ली पूर्णतया केंद्र द्वारा शासित प्रदेश है और अंतिम अधिकार केंद्र के ज़रिये राष्ट्रपति के पास है।

दिल्ली सरकार का पक्ष

  • चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना ज़रूरी है।
  • उपराज्यपाल को कैबिनेट की सलाह पर काम करना चाहिये।
  • संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत चुनी हुई सरकार होती है, जो जनता के प्रति जवाबदेह होती है।
  • ज़मीन, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस के अलावा राज्य और समवर्ती सूची में शामिल मामलों में दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।
  • जैसे ही जॉइंट कैडर के अधिकारी की पोस्टिंग दिल्ली में होती है, वह दिल्ली प्रशासन के तहत आ जाता है।
  • ACB को भी दिल्ली सरकार के दायरे में होना चाहिए क्योंकि आपराधिक दंड संहिता में ऐसा प्रावधान है।

संवैधानिक पीठ ने की थी संविधान के अनुच्छेद-239AA की व्याख्या

पिछले साल 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की संवैधानिक पीठ ने संविधान के अनुच्छेद-239AA की व्याख्या की थी, जिसमें उसने कहा था कि दिल्ली में उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की मंत्री परिषद की सलाह से काम करेंगे, यदि कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे, उस पर अमल करेंगे।

पूरी तरह खत्म नहीं हुआ गतिरोध

उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध लगता है अभी पूरी तरह से खत्म नहीं होने वाला। नौकरशाही पर नियंत्रण सहित दूसरे महत्त्वपूर्ण विषय किसके अधिकार क्षेत्र में रहेंगे, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ के फैसले से समस्या का संपूर्ण रूप से समाधान नहीं होता। सेवाओं को लेकर पीठ में मतैक्य नहीं होने की वज़ह से खंडित फैसला आया, इसीलिये अब यह मामला तीन जजों वाली खंडपीठ देखेगी। ऐसे में स्थिति टकराव वाली ही बनी रहेगी। हालाँकि पीठ ने कुछ मामलों में स्थिति स्पष्ट करते हुए बता दिया है कि दिल्ली सरकार के दायरे और अधिकार क्षेत्र क्या हैं। गौरतलब है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल नहीं है, यह केंद्रशासित प्रदेश है जिस पर काफी हद तक केंद्र का नियंत्रण है।

स्रोत: The Hindu, The Indian Express तथा अन्य अंग्रेज़ी समाचार पत्रों में प्रकाशित आलेखों और समाचारों पर आधारित।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow