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एडिटोरियल

  • 15 Dec, 2023
  • 16 min read
शासन व्यवस्था

सरकार में विमर्श: कमियों और चुनौतियों का समाधान

यह एडिटोरियल 14/12/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Work of consultancy firms with government must be regulated” लेख पर आधारित है। इसमें सरकार के निर्णयन पर कंसल्टेंसी फर्मों के बहुत अधिक प्रभाव एवं शक्ति के बारे में चर्चा की गई है और अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही की आवश्यकता पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ भारत, विज़न 2047, जल जीवन मिशन

मेन्स के लिये:

कंसल्टेंसी फर्म: चुनौतियाँ, लाभ और आगे की राह।

वर्तमान में सरकारी परियोजनाएँ गंगा नदी की सफाई, स्वच्छ भारत एवं जल जीवन मिशन,  आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण और राज्य की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने के लक्ष्य में उत्तर प्रदेश की सहायता करने जैसी पहलों के लिये परामर्श समर्थन पर अत्यधिक निर्भर हो गई हैं। केंद्र सरकार ने वैश्विक रुझान के अनुरूप देश की रणनीतिक प्राथमिकताओं की पहचान करने के लिये ‘विज़न 2047 दस्तावेज़ विकसित करने के लिये भी एक वैश्विक परामर्श या कंसल्टेंसी फर्म को संलग्न किया है। 

हाल की समाचार रिपोर्टों में इस बात को उजागर किया गया है कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने पिछले पाँच वर्षों में वैश्विक कंसल्टेंसी फर्मों को लगभग 5000 मिलियन रुपए के शुल्क का भुगतान किया है और केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा ऐसी सभी परामर्श संलग्नताओं के विवरण की मांग की गई है। 

परामर्श या कंसल्टेंसी फर्म (Consultancy Firms) क्या हैं? 

  • कंसल्टेंसी फर्म एक ऐसा व्यवसाय है जो अन्य संस्थाओं/संगठनों को उन समस्याओं के संबंध में पेशेवर सलाह एवं समाधान प्रदान करता है जिनका स्वयं समाधान कर सकने में वे सक्षम नहीं होते हैं। 
  • कंसल्टेंसी फर्मों के पास विभिन्न क्षेत्रों—जैसे प्रबंधन, इंजीनियरिंग, वित्त, स्वास्थ्य सेवा आदि के विशेषज्ञ होते हैं। 
    • वे अपनी सेवाओं के लिये शुल्क लेते हैं और आमतौर पर विशिष्ट परियोजनाओं या लक्ष्यों पर कार्य करते हैं। 
  • भारत में कंसल्टेंसी फर्मों के कुछ उदाहरण हैं: टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ (TCS), मैकिन्से एंड कंपनी (McKinsey & Company), डेलॉइट (Deloitte) आदि। 

सार्वजनिक नीति निर्माण में कंसल्टेंसी फर्मों के क्या लाभ हैं? 

  • विशिष्ट विशेषज्ञता (Specialized Expertise): सलाहकार या कंसल्टेंट (Consultants) डोमेन-विशिष्ट ज्ञान एवं विशेषज्ञता लाते हैं जिनकी सरकारी एजेंसियों में कमी हो सकती है। कृषि, परिवहन, ऊर्जा और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों में प्रभावी कार्यक्रम निर्माण एवं सेवा वितरण के लिये यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
  • लचीलापन और मांग-आधारित कौशल (Flexibility and On-Demand Skills): सार्वजनिक नीतिगत चुनौतियों की गतिशील प्रकृति, विशेष रूप से डिजिटलीकरण के संदर्भ में, विशेष तकनीकी कौशल की आवश्यकता रखती है जो सलाहकारों द्वारा पर्याप्त लचीलेपन के साथ और मांग-आधारित रूप से प्रदान की जा सकती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सरकार आवश्यकता पड़ने पर आवश्यक विशेषज्ञता तक पहुँच बना सकती है। 
  • परिप्रेक्ष्य की विविधता (Diversity of Perspectives): ये सलाहकार बाह्य दृष्टिकोण और विविध कौशल समूह प्रदान करते हैं; इस प्रकार समस्या-समाधान के लिये अधिक व्यापक एवं नवोन्मेषी दृष्टिकोण में योगदान करते हैं। यह विविधता उन जटिल मुद्दों को संबोधित करने में विशेष रूप से मूल्यवान सिद्ध हो सकती है जिनका कोई संभावित स्पष्ट समाधान नहीं हो। 
  • परियोजना-विशिष्ट संलग्नताओं के साथ दक्षता (Efficiency with Project-Specific Engagements): ये परामर्श संलग्नताएँ प्रायः परियोजना-विशिष्ट होती हैं और उनकी अंतिम तिथियाँ पूर्व-निर्धारित (predetermined end dates) होती हैं। यह सरकार को अपने संस्थागत भार को स्थायी रूप से बढ़ाए बिना विशिष्ट चुनौतियों का समाधान कर सकने की अनुमति देता है, जिससे यह एक लागत प्रभावी और कुशल समाधान बन जाता है। 

कंसल्टेंसी फर्मों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियाँ कौन-सी हैं? 

  • सरकारी क्षमताओं का खोखला होना (Hollowing out of Government Capabilities): कंसल्टेंसी फर्मों पर वृहत रूप से निर्भर रहने से आंतरिक सरकारी क्षमताओं का ह्रास हो सकता है। समय के साथ सिविल सेवक आवश्यक कौशल और ज्ञान खो सकते हैं, जिससे सरकार बाह्य विशेषज्ञता पर अत्यधिक निर्भर हो जाएगी। 
    • उदाहरण के लिये, चीन के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय सरकारों ने शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं पर्यावरण संरक्षण जैसी विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं को निजी या गैर-सरकारी संगठनों को आउटसोर्स कर दिया है। इससे सार्वजनिक जवाबदेही, गुणवत्ता नियंत्रण और सामाजिक समानता की हानि हुई है। 
  • अत्यधिक निर्भरता और ‘मिशन क्रीप’ (Excessive Dependence and Mission Creep): एक जोखिम उत्पन्न हुआ है कि सरकारी अधिकारी नियमित या सामान्य कार्यकरणों के लिये भी कंसल्टेंसी सेवा पर अत्यधिक निर्भर बन सकते हैं। यह निर्भरता ‘मिशन क्रीप’ की स्थिति की ओर ले जा सकती है, जहाँ परामर्श संलग्नताओं का दायरा आरंभिक मंशा या उद्देश्य तक सीमित नहीं रहता और जिससे सलाहकारों एवं सरकारी अधिकारियों की भूमिकाओं के बीच की रेखाएँ संभावित रूप से धुंधली पड़ जाती हैं। 
    • वर्ष 2018 की CAG रिपोर्ट से उजागर हुआ कि रेल मंत्रालय द्वारा नियुक्त सलाहकार अपने कार्यक्षेत्र से परे की गतिविधियों में संलिप्त थे, जिससे उनकी जवाबदेही एवं दक्षता पर सवाल खड़े हुए। 
  • दुहरावपूर्ण कार्यकरण और नीतिगत प्रभाव के लिये पैरवी करना (Lobbying for Repeat Work and Policy Influence): सरकारी अधिकारियों के साथ लगातार संलग्न रहे कंसल्टेंसी फर्म दुहरावपूर्ण कार्यकरण के लिये इन संबंधों का गलत लाभ उठा सकते हैं। एक चिंता यह भी है कि सलाहकार कभी-कभी अपने लाभ के लिये नीतिगत निर्णयों और निर्देशों को प्रभावित करने का प्रयास करने के रूप में अपनी सीमाओं का अतिक्रमण भी कर सकते हैं। 
    • वर्ष 2019 में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR) ने भारत की स्वास्थ्य नीति को आकार देने में मैकिन्से एंड कंपनी की भूमिका पर एक केस स्टडी आयोजित की। इस अध्ययन में पता चला कि मैकिन्से का सरकारी अधिकारियों और हितधारकों के साथ घनिष्ठ संबंध था, जहाँ वह अपने प्रभाव का उपयोग अनुबंधों को सुरक्षित करने और स्वयं के अनुकूल नीति को आकार देने में कर रहा था। 
  • सार्वजनिक नीति उद्देश्यों का विरूपण (Distortion of Public Policy Objectives): नीति निर्माण में सलाहकारों की संलग्नता संभावित रूप से सार्वजनिक नीति उद्देश्यों को विकृत कर सकती है। आवश्यक नहीं है कि सलाहकारों की प्राथमिकताएँ और अनुशंसाएँ हमेशा आम लोगों के दीर्घकालिक हितों के अनुरूप ही हों, जिससे अपेक्षित नीतिगत परिणाम विकृत हो सकते हैं। 
    • वर्ष 2017 में भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) के एक शोध-पत्र ने भारत की शिक्षा नीति पर कंसल्टेंसी फर्मों के प्रभाव का अध्ययन किया। इसने निष्कर्ष दिया कि बाज़ारीकरण, निजीकरण और मानकीकरण के पक्ष में सुधारों की वकालत करने वाली इन कंपनियों का महत्त्वपूर्ण प्रभाव था, जिसने शिक्षा में समानता, गुणवत्ता और विविधता के सार्वजनिक नीति उद्देश्यों को कमज़ोर कर दिया था। 
  • कंसल्टोक्रेसी और लोक सेवकों की घटती भूमिका (Consultocracy and Diminishing Role of Public Servants): ‘कंसल्टोक्रेसी’ शब्द सरकारी संरचनाओं के भीतर सलाहकारों के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है। इस परिघटना के परिणामस्वरूप पारंपरिक लोक सेवकों की भूमिका कम हो सकती है, जिससे सरकारी संस्थानों के पारंपरिक कार्यों एवं क्षमताओं पर असर पड़ सकता है। 
  • भ्रष्टाचार का खतरा (Risk of Corruption): सरकारी गतिविधियों के साथ कंसल्टेंसी फर्मों का अंतर्संबंध भ्रष्टाचार के अवसर पैदा कर सकता है। परामर्श सेवाओं से संबंधित भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों ने विश्व स्तर पर चिंताओं की वृद्धि की है और पारदर्शिता एवं नैतिक अभ्यासों की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।  
    • कुछ वर्ष पूर्व CBI की एक रिपोर्ट में भारत में एक भ्रष्टाचार घोटाले का खुलासा किया गया था जहाँ एक कंसल्टेंसी फर्म और राज्य स्वामित्व वाला एक उद्यम इसमें संलिप्त थे। रिपोर्ट में कंपनी पर उद्यम के अधिकारियों के साथ मिलकर निविदाओं में हेरफेर करने, परियोजना लागत बढ़ाने और धन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था। 

आगे की राह:  

  • नियामक सुरक्षा उपाय (Regulatory Safeguards): कंसल्टेंसी फर्मों के साथ संलग्नता को व्यापक रूप से विनियमित करने की आवश्यकता है। इसमें ‘ऑनबोर्डिंग’ (onboarding) प्रक्रिया में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करना और ‘रेंट-सीकिंग’ (rent-seeking) व्यवहार पर अंकुश लगाना शामिल है । 
  • मूल्यवर्द्धन का खुलासा करना (Disclosure of Value Added): पारदर्शिता से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये एक ऐसा तंत्र होना चाहिये जहाँ सलाहकार बता सकें कि सार्वजनिक नीति पहलों में उन्होंने क्या मूल्यवर्द्धन किया। जवाबदेही और सार्वजनिक भरोसे के लिये यह पारदर्शिता आवश्यक है। 
    • सरकारी परियोजनाओं एवं पहलों के प्रदर्शन, परिणामों और प्रभावों की निगरानी एवं मूल्यांकन करने के लिये लोकपाल, लेखा परीक्षक और निगरानीकर्ता जैसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निरीक्षण निकाय स्थापित किये जा सकते हैं। 
  • ज्ञान हस्तांतरण और क्षमता निर्माण (Knowledge Transfer and Capacity Building): सलाहकारों से सरकारी अधिकारियों तक ज्ञान हस्तांतरण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल स्थापित किये जाने चाहिये। इसके अतिरिक्त, आंतरिक क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परामर्श संलग्नताओं के माध्यम से प्राप्त विशेषज्ञता सरकारी क्षमताओं के दीर्घकालिक विकास में योगदान दे। 
  • हितधारकों की भागीदारी: सर्वेक्षणों, मंचों एवं भागीदारी बजट के माध्यम से नागरिकों और हितधारकों के साथ संलग्न होना और परामर्श करना ताकि सुनिश्चित हो कि सरकारी नीतियाँ और कार्यक्रम आम लोगों के प्रति उत्तरदायी, समावेशी एवं जवाबदेह हैं। 

निष्कर्ष: 

कंसल्टेंसी फर्म सार्वजनिक नीति में सहायता करना जारी रखेंगी, क्योंकि यह अपेक्षा करना यथार्थपरक नहीं होगा कि सरकारी अधिकारी आधुनिक शासन एवं डिजिटल सेवा वितरण के लिये अपने कौशल को लगातार अद्यतन करते रहेंगे। निजी क्षेत्र से विशेषज्ञता की सतर्क ऑनबोर्डिंग से सार्वजनिक सेवा वितरण की गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता में वृद्धि होगी, बशर्ते कि वे एक पारदर्शी नियामक ढाँचे के भीतर ‘रिंग-फेंस्ड’ (ring-fenced) हों। 

अभ्यास प्रश्न: सरकारी परियोजनाओं में कंसल्टेंसी फर्मों पर अत्यधिक निर्भरता से उत्पन्न चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। नीतियों के प्रभावी और नैतिक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये इन चुनौतियों को कैसे कम किया जा सकता है? 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स

निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं? (2008)

  1. बामर लॉरी एंड कंपनी लिमिटेड
  2. ड्रेजिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया
  3. एजुकेशनल कंसल्टेंट्स ऑफ इंडिया लिमिटेड

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D


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