लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 15 Nov, 2021
  • 12 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

अनौपचारिक क्षेत्र का औपचारीकरण

यह एडिटोरियल 12/11/2021 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित ‘‘The High Cost of India’s Illusive Quest for Formalisation’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र में संकुचन का वर्णन करते नवीनतम अनुमानों की चर्चा की गई है और अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण के लिये आवश्यक कदमों के सुझाव दिये गए हैं।

संदर्भ

यह देश में विमुद्रीकरण (Demonetization) की घोषणा हो या वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया जाना हो अथवा कोविड-19 महामारी का प्रकोप हो—इसका प्रमुख असर देश के अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) पर पड़ा, जो व्यापक स्तर पर नकद राशि में अपने कार्य करता है और प्रायः किसी नियामक दायरे से बाहर परिचालित होता है। ऐसी स्थिति का प्रमुख लाभार्थी औपचारिक या संगठित क्षेत्र (Formal Sector) रहा, जिसे कई प्रकार के संरक्षण प्राप्त हैं।

एक ऐसे समय में जब ग्रामीण क्षेत्रों में आकस्मिक मज़दूरी (Casual Wages) में वास्तविक गिरावट नज़र आ रही हो, अंधाधुंध मुनाफे से प्रेरित संगठित क्षेत्र की बढ़ती समृद्धि इस बात का प्रतिबिंब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था किस प्रकार द्विधारी हो गई है। 

चूँकि अनौपचारिक क्षेत्र भारतीय कामगारों की एक बड़ी संख्या के लिये रोज़गार का प्राथमिक प्रदाता है, इसके वर्तमान स्वरूप के शीघ्रातिशीघ्र प्रभावी औपचारीकरण की तत्काल आवश्यकता है। 

भारत का अनौपचारिक क्षेत्र

  • अनौपचारिक क्षेत्र पर सर्वाधिक प्रभाव: विमुद्रीकरण के बाद ग्रामीण भारत में असंगत रूप से बड़ी संख्या में रोज़गार का सृजन हुआ है। 
    • यह तथ्य उतना सकारात्मक नहीं है जितना दिखाई देता है, क्योंकि शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरी लगभग ढाई गुना कम है। परिणामस्वरूप, अगले कुछ वर्षों में समग्र मज़दूरी स्तर और सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट आई।
    • वर्ष 2020 के राष्ट्रीय लॉकडाउन से अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को औपचारिक क्षेत्र के उनके समकक्षों की तुलना में कहीं अधिक नुकसान हुआ है।   
      • इस दौरान पर्याप्त सुरक्षा जाल के अभाव में, किसी प्रकार अपने गाँव-घर को लौटने का प्रयास करते विस्थापित अनौपचारिक श्रमिकों के पीड़ाजनक वृतांत देखने-सुनने को मिले।  
  • गैर-कृषि श्रमिकों की मज़दूरी में गिरावट: अगस्त 2021 में जारी श्रम ब्यूरो के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में गैर-कृषि श्रमिकों की वास्तविक मज़दूरी में 1.6% प्रति वर्ष की गिरावट आई है।   
    • कृषि श्रमिकों के लिये इनमें प्रति वर्ष 0.4% की गिरावट आई।   
  • अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र का संकुचन: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की शोध टीम द्वारा हाल ही में जारी 'इकॉरैप' (Ecowrap) शीर्षक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि समग्र अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2017-18 में 52% से घटकर वर्तमान में 15-20% रह गई है।
    • सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में हमारे अनौपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी वर्ष 2019-20 में 44% थी जो वर्ष 2017-18 की तुलना में मामूली वृद्धि को दर्शाती है।     
    • ‘इकॉरैप’ रिपोर्ट के अनुसार, निर्माण एवं आवास तथा खाद्य सेवाएँ एवं व्यापार दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्होंने अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की अपनी हिस्सेदारी में सबसे तेज़ गिरावट देखी है।      

संबद्ध समस्याएँ 

  • अनौपचारिक क्षेत्रों के लिये संकेतकों का अभाव: रियल-टाइम आर्थिक संकेतकों के अभाव से भारत के उस व्यापक अनौपचारिक क्षेत्र की निगरानी करना कठिन हो जाता है, जो लगभग 80% श्रम शक्ति को रोज़गार प्रदान करता है और सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 50% का उत्पादन करता है।   
  • केवल आधिकारिक रिकॉर्ड में पंजीकरण ही पर्याप्त नहीं: महज ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर श्रमिकों का पंजीकरण ही रोज़गार की औपचारिकता का कोई संकेतक नहीं हो सकता, जब तक कि वे पोर्टल पर सूचीबद्ध सभी सामाजिक सुरक्षा लाभ किसी अधिकार के रूप में प्राप्त करने में सक्षम न हो जाएँ। 
    • आधिकारिक रिकॉर्ड में डिजिटलीकरण और पंजीकरण बढ़ाना किसी भी उद्यम/कामगार को औपचारिक के रूप में वर्गीकृत करने के लिये न तो आवश्यक शर्त हो सकता है और न ही इतना भर ही पर्याप्त है।   
  • पंजीकृत अनौपचारिक श्रमिकों की अपर्याप्त मज़दूरी: ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत श्रमिकों में से 92% की मासिक आय 10,000 रुपए से कम है जो कि अधिकांश राज्यों में अकुशल मैन्युअल श्रमिकों के लिये निर्धारित न्यूनतम वेतन से कम है।
  • बेहतर अर्थव्यवस्था के मानकों के संबंध में अस्पष्टता: वास्तविक समस्या यह है कि औपचारिकता को अनिवार्य रूप से अर्थव्यवस्था में सुधार या श्रमिकों की भौतिक स्थिति में सुधार का एक उपाय या समाधान माना जाए या नहीं। 
    • हालाँकि, दोनों ही मामलों में अर्थव्यवस्था ने बदतर रोज़गार परिदृश्य, आय में गिरावट और पोषण जैसे मानव-विकास संकेतकों के मामले में असफलताओं के साथ खराब प्रदर्शन किया है।    

आगे की राह

  • नीति निर्माताओं का दायित्त्व: अनौपचारिक क्षेत्र के महत्त्व को चिह्नित किया जाना आवश्यक है, जो स्पष्ट रूप से केवल देश की एक बड़ी आबादी को आजीविका प्रदान करने तक ही सीमित नहीं है। 
    • नीति निर्माताओं को इस क्षेत्र को उपयुक्त रूप से परिभाषित करना होगा, रोज़गार की सुरक्षा के लिये श्रम कानून लाना होगा, पर्याप्त मज़दूरी प्रदान करनी होगी और औपचारिक क्षेत्र के कामगारों के ही समान अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों को भी देखना होगा।    
    • इसके अलावा, अनौपचारिक क्षेत्र से संलग्न लोगों की कार्य परिस्थितियों और कल्याण में सुधार के लिये एक संस्थागत नियामक ढाँचा बनाने की ज़रूरत है।  
  • बाध्य और नैसर्गिक औपचारीकरण के बीच के अंतर को समझना: ‘बाध्य’ और ‘नैसर्गिक’ औपचारीकरण (Forced and Natural Formalisation) के बीच के अंतर को समझा जाना भी महत्त्वपूर्ण है। 
    • ऐसा औपचारीकरण जो केवल बाहरी दबाव के कारण घटित होता है या अनौपचारिक क्षेत्र में गहरे संकट की ओर ले जाता है—संवहनीय नहीं हो सकता है।
    • इसके विपरीत, नीति परिवर्तन के माध्यम से किया गया औपचारीकरण, जो समय के साथ ‘लघु’ और ‘अनौपचारिक’ फर्मों को ‘मध्यम’ और ‘बड़े’ औपचारिक फर्मों में रूपांतरित होने में सहायता दे, अधिक संवहनीय होगा।     
  • अनौपचारिक क्षेत्र को सुरक्षा प्रदान करना: वर्तमान आवश्यकता यह है कि  सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे जिस व्यवधान का सामना कर सकें।  
    • इस दृष्टिकोण से मनरेगा (MGNREGA) योजना जैसे कार्यक्रमों के साथ लंबे समय तक उदार बने रहने की आवश्यकता है।  
  • एक शहरी समाज कल्याण संरचना की स्थापना: भारत में ग्रामीण सामाजिक कल्याण योजनाओं की तरह की कोई शहरी सामाजिक कल्याण योजना मौजूद नहीं है, जो एक अधिक स्थायी प्रत्यक्ष शहरी सामाजिक कल्याण संरचना स्थापित करने की आवश्यकता पर बल देती है।  
    • छोटे व्यवसायों के विकास को सहायता देने वाले सुधारों को बढ़ावा देना भी महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिये, विकास कर रहे फर्मों से संबद्ध नियामक बोझ को कम करना लाभदायी हो सकता है।

निष्कर्ष

चूँकि अनौपचारिक क्षेत्र कामकाजी आबादी के एक बड़े हिस्से को आजीविका प्रदान करता है, ऐसे में कार्य परिस्थितियों, रोज़गार अवसरों, मज़दूरी और उनके डेटाबेस के रखरखाव के संबंध में इस क्षेत्र से संलग्न लोगों के उत्थान के लिये कठोर और समयबद्ध उपाय किये जाने की आवश्यकता है। 

अभ्यास प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र के महत्त्व के साथ-साथ इस क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख समस्याओं एवं अनौपचारिक श्रमिकों के त्वरित एवं अधिक कुशल औपचारीकरण की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2