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  • 15 Sep, 2020
  • 20 min read
शासन व्यवस्था

भारत में प्रवासन और प्रवासियों पर लॉकडाउन का प्रभाव

यह संपादकीय विश्लेषण Migration in India and the impact of the lockdown on migrants लेख पर आधारित है जिसे 10 जून 2020 को PRS Blog में प्रकाशित किया गया था। यह भारत में प्रवासन और प्रवासियों पर लॉकडाउन के प्रभाव का विश्लेषण करता है।

संदर्भ

भारत ने 25 मार्च, 2020 से लॉकडाउन लगाया था। इस समय के दौरान, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन एवं आपूर्ति में योगदान नहीं देने वाली गतिविधियों को पूरी तरह या आंशिक रूप से बंद कर दिया गया था। यात्री ट्रेनों और उड़ानों को बंद कर दिया गया। लॉकडाउन ने प्रवासियों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिनमें से कई उद्योगों के बंद होने के कारण अपनी नौकरी खो चुके हैं और अपने मूल स्थानों से बाहर फँसे हुए हैं जो वापस जाना चाहते हैं। तब से, सरकार ने प्रवासियों के लिये राहत उपायों की घोषणा की है और प्रवासियों को अपने मूल स्थानों पर भेजने की व्यवस्था की है। सर्वोच्च न्यायालय ने, देश के विभिन्न हिस्सों में फँसे प्रवासियों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, सरकार द्वारा की गई परिवहन एवं राहत व्यवस्था की समीक्षा की।

9 जून को, न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को शेष फँसे हुए प्रवासियों के लिये परिवहन व्यवस्था और प्रवासियों के लिये रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये राहत उपायों के विस्तार का निर्देश दिया। 

प्रवासन का अवलोकन

अपने सामान्य स्थान से दूर आंतरिक (देश के भीतर) अथवा अंतर्राष्ट्रीय (विभिन्न देशों में) सीमाओं के पार लोगों की आवाजाही को प्रवासन कहते हैं। प्रवासन पर नवीनतम सरकारी आँकड़े वर्ष 2011 की जनगणना में है। वर्ष 2001 में 31.5 करोड़ प्रवासियों की तुलना में (जनसंख्या का 31 %) वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 45.6 करोड़ प्रवासी थे (जनसंख्या का 38%)। वर्ष 2001 एवं वर्ष  2011 के मध्य जनसंख्या में 18% की वृद्धि हुई जबकि  प्रवासियों की संख्या में 45% की वृद्धि हुई। वर्ष 2011 में, कुल प्रवासन का 99% हिस्सा आंतरिक प्रवासन का था एवं  1%  अप्रवासियों (अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों) का था।

प्रवासन के पैटर्न

आंतरिक प्रवासन को मूल एवं  गंतव्य के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। एक प्रकार का वर्गीकरण है: i) ग्रामीण-ग्रामीण, ii) ग्रामीण-शहरी, iii) शहरी-ग्रामीण और iv) शहरी-शहरी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 21 करोड़ ग्रामीण-ग्रामीण प्रवासी थे जो आतंरिक प्रवासन का 54% था (जनगणना में 5.3 करोड़ लोगों को ग्रामीण या शहरी मूल क्षेत्रों से होने के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था)। ग्रामीण-शहरी और शहरी-शहरी प्रवासन, प्रत्येक में लगभग 8 करोड़ प्रवासी थे। लगभग 3 करोड़ शहरी-ग्रामीण प्रवासी ( आंतरिक प्रवासन का 7%) थे।

प्रवासन को वर्गीकृत करने का दूसरा तरीका है: (i) अंतर-राज्य, और (ii) आतंरिक-राज्य। वर्ष 2011 में, अंतर-राज्य प्रवासन कुल आंतरिक प्रवासन का लगभग 88% हिस्सा  (39.6 करोड़ व्यक्ति) था।

अंतर-राज्य प्रवासन के संदर्भ में राज्यों में भिन्नता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 5.4 करोड़ अंतर-राज्य प्रवासी थे। वर्ष 2011 तक, उत्तर प्रदेश और बिहार अंतर-राज्य प्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत थे, जबकि महाराष्ट्र और दिल्ली प्रवासियों के सबसे बड़े अभिग्राही राज्य थे। उत्तर प्रदेश के लगभग 83 लाख एवं  बिहार के 63 लाख निवासी या तो अस्थायी अथवा स्थायी रूप से अन्य राज्यों में चले गये थे। संपूर्ण भारत के लगभग 60 लाख लोग वर्ष 2011 तक महाराष्ट्र में चले गए थे।

चित्र 1: अंतर-राज्य प्रवासन (लाख में)

Net-in-MIgration

नोट: एक नेट आउट-माइग्रेंट राज्य वह राज्य होता है जहाँ राज्य में प्रवासन करने से अधिक लोग राज्य के बाहर पलायन करते हैं। बाहर जाने वाले प्रवासियों की तुलना में आने वाले प्रवासियों की संख्या अधिक होने पर नेट  इन-माइग्रेशन होता है।

आंतरिक प्रवासन के कारण एवं प्रवासी श्रमिक बल की संख्या

वर्ष 2011 तक, अधिकांश अंतर-राज्य प्रवास (70%) विवाह एवं परिवार के कारणों से था, जिसमें पुरुष और महिला प्रवासियों के बीच भिन्नता थी। 83% महिलाओं ने विवाह और परिवार के कारण प्रवासन किया वहीं पुरुषों के संगत प्रवासन का आँकड़ा 39% था। कुल 8% लोगों ने रोज़गार के लिये राज्य के अंदर पलायन किया (21% पुरुष प्रवासी और 2% महिला प्रवासी)।

अंतर-राज्य प्रवासियों में रोज़गार के लिये प्रवासन अधिक था- 50% पुरुष और 5% महिला अंतर-राज्य प्रवासी थे। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 4.5 करोड़ प्रवासी श्रमिक थे। हालाँकि, प्रवासन पर कार्य समूह की रिपोर्ट के अनुसार, जनगणना में प्रवासी श्रमिक आबादी को कम आँका गया है। महिला प्रवासन में परिवार को प्राथमिक कारण के रूप में दर्ज़ किया गया है। हालाँकि, कई महिलाएँ प्रवासन के बाद रोज़गार की गतिविधियों में हिस्सा लेती हैं जो काम से संबंधित कारणों से प्रवासित महिलाओं की संख्या में दर्ज़ नहीं होता है।

आर्थिक सर्वेक्षण, 2016-17 के अनुसार, जनगणना के आँकड़े अस्थायी प्रवासी श्रमिक प्रवासन को भी कम आँकते हैं। वर्ष 2007-08 में, NSSO ने भारत के प्रवासी श्रम का आकार सात करोड़ (कार्यबल का 29%) अनुमानित किया। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 ने वर्ष 2001 से वर्ष 2011 के मध्य छह करोड़ अंतर-राज्य श्रम प्रवासियों का अनुमान लगाया। आर्थिक सर्वेक्षण ने यह भी अनुमान लगाया कि वर्ष 2011-2016 के मध्य प्रत्येक वर्ष, औसतन 90 लाख लोगों ने काम के लिये यात्रा की।

चित्र 2: आतंरिक राज्य प्रवासन के कारण 

Education

चित्र 3: अंतर राज्य प्रवासन के कारण 

Move-the-family

प्रवासी श्रमिकों द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे

संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (घ), सभी भारतीय नागरिकों को भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने के अधिकार की गारंटी प्रदान करता है, जो आम जनता के हित में या किसी अनुसूचित जनजाति के संरक्षण में उचित प्रतिबंधों के अधीन है। हालाँकि, काम के लिये पलायन करने वाले लोग प्रमुख चुनौतियों का सामना करते हैं जिनमें शामिल हैं: i) सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य लाभ का अभाव और न्यूनतम सुरक्षा मानकों के कानून का खराब कार्यान्वयन, ii) राज्य द्वारा प्रदान किये गये लाभों विशेष रूप से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से प्रदान किये जाने वाली खाद्य सामग्री के लिये सुवाह्यता की कमी और iii) शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास और बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच का अभाव। 

अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 (आईएसएमडब्ल्यू अधिनियम) के तहत संरक्षण का खराब कार्यान्वयन

आईएसएमडब्ल्यू अधिनियम अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के लिये कुछ संरक्षणों का प्रावधान करता है। प्रवासियों को नियुक्त करने वाले श्रम ठेकेदारों को आवश्यक है: (i) लाइसेंस प्राप्त करना, (ii) प्रवासी श्रमिकों को सरकारी प्राधिकरणों के साथ पंजीकृत करना और (iii) श्रमिक को उनकी पहचान करने के लिये पासबुक जारी करने की व्यवस्था करना। ठेकेदार द्वारा प्रदान की जाने वाली मज़दूरी और सुरक्षा (आवास, मुफ्त चिकित्सा सुविधा, सुरक्षात्मक वस्त्र सहित) से संबंधित दिशा निर्देश भी कानून में उल्लिखित हैं।

दिसंबर 2011 में, श्रमिकों पर स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में पाया गया कि आईएसएमडब्ल्यू अधिनियम के तहत श्रमिकों का पंजीकरण कम था और अधिनियम में उल्लिखित संरक्षण का कार्यान्वयन खराब था। रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिये कोई ठोस और सार्थक प्रयास नहीं किया है कि ठेकेदार और नियोक्ता अनिवार्य रूप से उनके साथ काम करने वाले श्रमिकों को अधिनियम के तहत लाभ तक पहुँच बनाने के लिये पंजीकृत करें।

लाभ की सुवाह्यता का अभाव

एक स्थान पर लाभ तक पहुँच प्राप्त करने वाले पंजीकृत प्रवासी एक अलग स्थान पर प्रवास करके इस पहुँच को खो देते हैं। पीडीएस के तहत लाभ प्राप्त करने के लिये आवश्यक राशन कार्ड राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाता है और राज्यों में सुवाह्य नहीं होता है। यह प्रणाली पीडीएस से अंतर-राज्य प्रवासियों को बाहर कर देती है जब तक कि वे गृह राज्य को अपना कार्ड वापस नहीं करते हैं और मेजबान राज्य से एक नया कार्ड प्राप्त नहीं करते हैं।

शहरी क्षेत्रों में किफायती आवास और बुनियादी सुविधाओं का अभाव

शहरी आबादी में प्रवासियों का अनुपात 47% है । वर्ष 2015 में, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में प्रवासियों की बड़ी संख्या में पहचान की जिन्हें शहरों में आवास आवश्यकता थी। कम आय वालों के लिये आवास स्वामित्व और किराये के आवास विकल्पों की अपर्याप्त आपूर्ति है। इससे अनौपचारिक बस्तियों और मलिन बस्तियों का प्रसार होता है। प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग और कम आय वाले वर्गों की आवास तक पहुँच बनाने के लिये केंद्र सरकार की एक सहायता योजना है। इस योजना के तहत सहायता में शामिल हैं: i) मलिन बस्ती पुनर्वास, ii) आवास के लिये रियायती ऋण, iii) नए घर बनाने या अपने घर को विस्तृत करने के लिये 1.5 लाख रुपए तक की सब्सिडी iv) निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी के द्वारा किफायती आवास इकाइयों की उपलब्धता में वृद्धि । चूँकि आवास राज्य सूची का विषय है, इसलिये किफायती आवास की ओर राज्यों के दृष्टिकोण में भिन्नता है।

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम

लॉकडाउन के दौरान, कई अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों ने अपने गृह राज्य में लौटने की कोशिश की। सार्वजनिक परिवहन के बंद होने के कारण, प्रवासियों ने पैदल ही अपने गृह राज्यों की ओर चलना शुरू कर दिया। इसके बाद, केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के मध्य समन्वय के अनुसार बसों और श्रमिक विशेष ट्रेनों की अनुमति दी गई थी। 1 मई से 3 जून के बीच, 58 लाख से अधिक प्रवासियों को विशेष रूप से संचालित ट्रेनों के माध्यम से और 41 लाख लोगों सड़क परिवहन द्वारा भेजा गया था। प्रवासियों की सहायता के लिये सरकार द्वारा किये गये उपायों में शामिल हैं-

परिवहन: 28 मार्च को केंद्र सरकार ने राज्यों को प्रवासियों को आवास प्रदान करने के लिये राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष का उपयोग करने के लिये अधिकृत किया। राज्यों को सलाह दी गई कि वे चिकित्सा सुविधाओं के साथ राजमार्गों पर राहत शिविर स्थापित करें और जब तक लॉकडाउन स्थिति बनी रहे तब तक इन शिविरों में लोगों का ठहराना सुनिश्चित करें।

29 अप्रैल को जारी एक आदेश में, गृह मंत्रालय ने राज्यों को बसों का उपयोग कर प्रवासियों को परिवहन के लिये व्यक्तिगत रूप से समन्वय करने की अनुमति दी। 1 मई को, भारतीय रेल ने अपने गृह राज्य के बाहर फँसे प्रवासियों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिये श्रमिक विशेष ट्रेनों के साथ (22 मार्च के बाद पहली बार) यात्री परिवहन पुनः शुरू किया। 1 मई से 3 जून के मध्य, भारतीय रेल ने 58 लाख से अधिक प्रवासियों के परिवहन के लिये 4,197 श्रमिक ट्रेनों का संचालन किया। शीर्ष राज्य जहाँ से श्रमिक ट्रेन शुरू हुईं, वे गुजरात और महाराष्ट्र हैं और जिन राज्यों में ट्रेनें समाप्त हुई हैं, वे उत्तर प्रदेश और बिहार हैं।

खाद्य वितरण: 1 अप्रैल को, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण  मंत्रालय ने राज्य सरकारों को भोजन, स्वच्छता और चिकित्सा सेवाओं की व्यवस्था के साथ प्रवासी श्रमिकों के लिये राहत शिविर संचालित करने का निर्देश दिया। 14 मई को, आत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी श्रृंखला के तहत, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि उन प्रवासी श्रमिकों को दो महीने मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। इस उपाय से आठ करोड़ प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवारों के लाभान्वित होने की उम्मीद है। वित्त मंत्री ने यह भी घोषणा की कि पीडीएस के तहत सुवाह्यता का लाभ प्रदान करने के लिये मार्च 2021 तक वन नेशन वन राशन कार्ड योजना लागू की जाएगी। यह भारत में किसी भी उचित मूल्य की दुकान से राशन तक पहुँच प्रदान करेगा।

आवास: पीएमएवाई के तहत किफायती किराये की आवास इकाइयाँ उपलब्ध कराने के लिये आत्मनिर्भर भारत अभियान ने प्रवासी श्रमिकों एवं शहरी गरीबों के लिये किफायती किराए के आवास परिसरों के लिये एक योजना शुरू की। योजना में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी आवास मिशन (JNNURM) के तहत मौज़ूदा आवास स्टॉक का उपयोग करने का प्रस्ताव है, साथ ही सार्वजनिक और निजी एजेंसियों को किराए के लिये नई सस्ती इकाइयों के निर्माण के लिये प्रोत्साहित किया गया है। इसके अलावा, मध्य आय वर्ग के लिये पीएमएवाई के तहत क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना के लिये अतिरिक्त धन आवंटित किया गया है।

वित्तीय सहायता: कुछ राज्य सरकारों (जैसे बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश) ने प्रवासी श्रमिकों को भेजने के लिये एकमुश्त नकद हस्तांतरण की घोषणा की। उत्तरप्रदेश सरकार ने प्रवासियों के लिये 1,000 रुपए का गुजारा भत्ते का प्रावधान करने की घोषणा की जिन्हें क्वारंटाइन होने की आवश्यकता थी।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश

  • सर्वोच्च न्यायालय ने देश के विभिन्न हिस्सों में फँसे प्रवासी मज़दूरों की स्थिति की समीक्षा की और स्थिति की प्रतिक्रिया में अपर्याप्तता और सरकारी की खामियों को देखा।
  • 26 मई को,सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को एक आदेश जारी किया कि वे प्रवासी मज़दूरों के लिये संबंधित सरकारों द्वारा उठाए गए सभी उपायों के बारे में विस्तार से जवाब प्रस्तुत करें।
  • 28 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवासी श्रमिकों को राहत सुनिश्चित करने के लिये केंद्र और राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेश सरकारों को अंतरिम दिशा-निर्देश प्रदान किये: i) प्रवासी श्रमिकों से ट्रेन या बस का कोई किराया नहीं लिया जाना चाहिये, ii) फँसे हुए प्रवासियों को संबंधित राज्य / केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा मुफ्त भोजन प्रदान किया जाना चाहिये और इस जानकारी को प्रचारित किया जाना चाहिये, iii) राज्यों को परिवहन के लिये प्रवासियों के पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल और तीव्र करना चाहिये और जो पंजीकृत हैं उन्हें जल्द से जल्द परिवहन प्रदान किया जाना चाहिये और iv) प्रवासन अभिग्राही राज्य को अंतिम मील परिवहन, हेल्थ स्क्रीनिंग एवं अन्य सुविधाएँ मुफ्त प्रदान करनी चाहिये।

मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत में प्रवासन और प्रवासियों पर लॉकडाउन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये तथा इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का आलोचनात्मक मूल्याङ्कन करते हुए अन्य समाधान प्रस्तुत कीजिये।


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