लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 15 Jun, 2019
  • 11 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के लिये SCO का महत्त्व

(इस Editorial में 13 जून को The Indian Express में प्रकाशित आलेख What SCO summit means for India’s global and regional interests तथा इसी दिन The Hindu में प्रकाशित संपादकीय Navigations in Bishkek का विश्लेषण किया गया है।)

संदर्भ

13-14 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग सम्मेलन (SCO) की 19वीं शिखर बैठक में हिस्सा लेने के लिये किर्गिज़स्तान की राजधानी बिश्केक में थे। इस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने SCO शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इतर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय वार्ताओं में हिस्सा लिया तथा ईरान, मंगोलिया और कज़ाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्षों के साथ भी मुलाक़ात की।

SCO शिखर सम्मेलन 2019 का प्रमुख एजेंडा

  • आने वाले वर्षों में सदस्य देशों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देने हेतु नई परियोजनाओं की शुरुआत करना।
  • अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर तथा व्यापारिक तनाव की वज़ह से उत्पन्न हुए बहुपक्षीय संरक्षणवाद पर भी चर्चा।
  • बढ़ते संरक्षणवाद के खिलाफ वैश्विक मोर्चा बनाना तथा विश्व व्यापार संगठन में सुधार, कारोबार एवं निवेश को प्रोत्साहन देना ।
  • सदस्य देशों के लिये लगातार बढ़ता आतंकवाद चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा।

क्या है शंघाई सहयोग संगठन (SCO)?

  • SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में हुई थी।
  • अपने गठन से पूर्व SCO को ‘शंघाई-5’ के नाम से जाना जाता था, जिसकी स्थापना वर्ष 1996 में विसैन्यीकरण वार्ता की श्रृंखलाओं के बाद हुई थी।
  • प्रारंभ में ‘शंघाई-5’ के पाँच सदस्य देश- कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान थे।
  • वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के इसमें शामिल होने के बाद ‘शंघाई-5’ को SCO नाम दिया गया।
  • वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान को इसके सदस्य का दर्जा मिला और वर्तमान में इसके सदस्य देशों में उपरोक्त 6 देशों के अलावा भारत और पाकिस्तान शामिल हैं।
  • अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया SCO के पर्यवेक्षक देशों में शामिल हैं।
  • अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका इस संगठन के वार्ता साझेदार देश हैं।

भारत के लिये SCO की सदस्यता का महत्त्व

  • भारत के लिये एशिया के संदर्भ में SCO दो तरह से काम आ सकता है- 1. आतंकवाद से मुकाबला करने में और 2. मध्य एशिया से व्यापार तथा अन्य कार्यों हेतु सीधा संपर्क कायम करने में।
  • यह दोनों उद्देश्य SCO के प्रमुख उद्देश्यों से भी मेल खाते हैं और भारत अपने हितों की प्राप्ति हेतु SCO का इस्तेमाल एक सीढ़ी के रूप में कर सकता है।
  • आतंकवाद से निपटने के लिये SCO के आतंकवाद विरोधी निकाय (क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना-Regional Anti Terror Structure-RATS) द्वारा प्रदान की जाने वाली खुफ़िया जानकारियाँ भी भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं।

क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (Regional Anti Terror Structure - RATS)

  • RATS की स्थापना वर्ष 2004 में SCO के शिखर सम्मेलन में की गई थी।
  • क्षेत्रीय आतंकवाद-विरोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure -RATS), SCO का एक महत्त्वपूर्ण तथा स्थायी अंग है, जिसका मुख्यालय उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में स्थित है।
  • इसका कार्य सदस्य देशों के मध्य आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद से लड़ने के लिये आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • RATS में प्रतिनिधित्व के लिये सभी सदस्य देश अपने-अपने स्थायी प्रतिनिधि भेजते हैं और जिनमें से एक व्यक्ति तीन वर्षों के लिये RATS के अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है।
  • सुरक्षा, व्यापार, ऊर्जा और आर्थिक परिदृश्य में मध्य एशिया भारत के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। और इसीलिये भारत द्वारा चलाई जा रही ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीति को सफल बनाने में SCO बहुत ही महत्त्वपूर्ण मंच साबित हो सकता है।
  • SCO को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है और इसमें चीन तथा रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है।
  • मध्य एशिया के देश जो प्राकृतिक गैस-तेल भंडार के मामले में धनी हैं, उनके साथ संबंधों को विस्तार देने में SCO भारत के लिये एक अच्छा ज़रिया बन सकता सकता है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और रूस व यूरोप तक व्यापार के ज़मीनी मार्ग खोलने के लिये इस मंच का इस्तेमाल करना चाहिये।

SCO के लक्ष्य

  • सदस्य देशों के मध्य परस्पर विश्वास तथा सद्भाव को मज़बूत करना।
  • राजनैतिक, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि में क्षेत्रों संबंधों को बढ़ाना।
  • संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना तथा सुनिश्चिता प्रदान करना।
  • एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना।

SCO के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • SCO की सुरक्षा चुनौतियों में आतंकवाद, उग्रवाद तथा अलगाववाद का मुकाबला करना; मादक पदार्थों तथा हथियारों की तस्करी को रोकना एवं अवैध आप्रवासन की रोकथाम करना, इत्यादि शामिल हैं।
  • भौगोलिक रूप से निकटता होते हुए भी संगठन के सदस्यों के इतिहास, पृष्ठभूमि, भाषा, राष्ट्रीय हितों एवं सरकार, संपन्नता व संस्कृति के रूप में समृद्ध विविधता SCO के निर्णयों लेने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।

BRI को लेकर भारत की आशंकाएँ

इस संगठन में शामिल होने से निश्चित ही भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व बढ़ा है। चीन के बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) सम्मेलन का भारत द्वारा दो बार बहिष्कार करने के बाद चीन ने भारत की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है। चीन ने भारत को समझाने का प्रयास किया है कि यह परियोजना केवल कुछ देशों की नहीं है। सभी परियोजनाओं के व्यावसायिक और राजकोषीय दृष्टि से लंबे समय तक उपयोगी बने रहने के लिये अन्य बड़ी आर्थिक ताकतों का सहयोग आवश्यक है। गौरतलब है कि चीन ने छह BRI आर्थिक गलियारों की योजना बनाई है। इनमें से दो मध्य एशिया और दक्षिण काकेशस क्षेत्र से गुजरेंगे। इनमें से एक- उत्तरी बेल्ट ऐतिहासिक रेशम मार्ग के साथ-साथ रूस और यूरोपीय बाजारों तक जाएगा। दूसरी ओर मध्य बेल्ट मध्य एवं पश्चिम एशिया से होकर फारस की खाड़ी और भूमध्य सागर तक जाएगा, जिससे भूमध्य सागर के आसपास के बाज़ारों तक सीधा संपर्क बन जाएगा।

यूरेशियाई देशों के साथ कारोबार की संभावनाएँ

SCO के तीन सदस्य- रूस, किर्गिस्तान और कज़ाकिस्तान यूरेशियन आर्थिक संगठन के भी सदस्य हैं, जिसका 18.3 करोड़ आबादी का एक समन्वित एकल बाजार है। यह संगठन 2015 से भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की कोशिश कर रहा है। इसे लेकर वहाँ एक संयुक्त शोध समूह 2016 में विश्लेषण कर चुका है। दोनों पक्षों के बीच खनन, धातु, बिजली, तेल एवं गैस, रेलवे एवं फार्मा जैसे क्षेत्रों की निवेश परियोजनाओं की संभावनाएँ तलाशी जा सकती हैं।

आगे की राह

कहा जा सकता है सार्क (SAARC) के लगभग अप्रासंगिक हो जाने के बाद SCO एकमात्र ऐसा बड़ा क्षेत्रीय मंच है जहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय वार्ता संभव है और आतंकवाद के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। इसके अलावा चीन इसके संस्थापक सदस्यों में से है और ऐसे में भारत और चीन के बीच आपसी तनाव को कम करने का मौका भी SCO के माध्यम मिल सकता है। दोनों भारत के पड़ोसी देश हैं और इनके साथ संबंधों में सुधार तीनों ही देशों के हित में है।

अभ्यास प्रश्न: एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में SCO कैसे भारत के लिये चुनौतियों और अवसर दोनों को प्रस्तुत करता है। उन क़दमों का उल्लेख करें जो भारत को SCO के संबंध में रणनीतिक संतुलन के लिये उठाने चाहिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2