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एडिटोरियल

  • 14 Apr, 2022
  • 13 min read
शासन व्यवस्था

सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल हासिल करना

यह एडिटोरियल 13/04/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “HOPS as a Route to Universal Health Care” लेख पर आधारित है। इसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC) की अवधारणाओं और UHC के लिये ‘वैकल्पिक सार्वजनिक सेवा के रूप में स्वास्थ्य देखभाल’ (HOPS) ढाँचे के बारे चर्चा की गई है।

संदर्भ

कोविड-19 संकट ने एक ऐसे विषय के पुनरुद्धार का सुअवसर प्रदान किया है जिसके भारत में साकार होने की गति मंद रही है। यह विषय है- सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (Universal Health Care- UHC)।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल को सुदृढ़, उत्तरदायी और कुशल स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण के एक मार्ग के रूप में देखा जाता है, जो स्वास्थ्य देखभाल तथा दवा की बढ़ती लागत से आबादी को बचाने के साथ-साथ स्वास्थ्य देखभाल की मांगों में बढ़ती असमानताओं को दूर कर सकने में सक्षम है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल (UHC)

  • UHC में निहित मूल विचार यह है कि भुगतान कर सकने की क्षमता की कमी के कारण किसी को भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल से वंचित नहीं किया जाना चाहिये। हाल के समय में UHC मानव न्यायसंगतता, सुरक्षा और गरिमा के लिये एक महत्त्वपूर्ण संकेतक बन गया है।
  • UHC दुनिया भर में सार्वजनिक नीति का एक स्वीकृत उद्देश्य बन गया है। कई देशों में इस दृष्टिकोण को साकार किया गया है, जिनमें केवल अमीर देश (अमेरिका को छोड़कर) ही नहीं बल्कि ब्राजील, चीन, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे अन्य देश भी शामिल हैं।
  • भारत (या कम से कम कुछ भारतीय राज्यों) के लिये भी इस दिशा में कदम बढ़ाने का यह उपयुक्त समय होगा।

UHC को साकार करने की राह

  • UHC आम तौर पर दो बुनियादी दृष्टिकोणों—सार्वजनिक सेवा और सामाजिक बीमा में से एक पर या दोनों पर निर्भर होता है। पहले दृष्टिकोण के तहत स्वास्थ्य देखभाल निःशुल्क सार्वजनिक सेवा के रूप में (जिस प्रकार अग्निशमन या सार्वजनिक पुस्तकालय सेवा उपलब्ध होती है) प्रदान किया जाता है।
  • दूसरा दृष्टिकोण अर्थात् सामाजिक बीमा प्रदान करने का दृष्टिकोण स्वास्थ्य देखभाल के निजी और सार्वजनिक प्रावधान दोनों की अनुमति देता है, लेकिन लागत अधिकांशतः मरीज के बजाय सामाजिक बीमा कोष द्वारा वहन की जाती है।
    • यह निजी बीमा बाज़ार से बेहद अलग स्थिति है जहाँ बीमा अनिवार्य और सार्वभौमिक है, जो मुख्य रूप से सामान्य कराधान से वित्तपोषित है तथा सार्वजनिक हित में एकल गैर-लाभकारी एजेंसी द्वारा परिचालित है।
      • मूल सिद्धांत यह है कि सभी को इसके दायरे में लिया जाना चाहिये और बीमा निजी लाभ के बजाय सार्वजनिक हित की ओर उन्मुख हो।

UHC के मार्ग की चुनौतियाँ

  • जन स्वास्थ्य केंद्रों की अनुपलब्धता: सामाजिक बीमा पर आधारित व्यवस्था में भी लोक सेवा एक आवश्यक भूमिका निभाती है। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और निवारक कार्यों के लिये समर्पित सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों की अनुपलब्धता रोगियों के लिये हर दूसरे दिन महँगे अस्पतालों में जाने का जोखिम पैदा करती है। इससे पूरी प्रणाली ही बेकार और महँगी हो जाती है।
  • लागत पर नियंत्रण: सामाजिक बीमा के साथ लागत को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि महँगे देखभाल में मरीजों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं दोनों की ही रुचि है; एक बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करना चाहता और दूसरा कमाई करना।
    • एक संभावित उपाय यह है कि रोगी को लागतों का वहन करने दिया जाए लेकिन यह फिर UHC के सिद्धांत के विपरीत है।
    • हाल के साक्ष्य बताते हैं कि छोटे सह-भुगतान भी प्रायः कई गरीब रोगियों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल से दूर कर देते हैं।
  • UHC के तहत सेवाओं की पहचान करना: एक और बड़ी चुनौती यह पहचान करने की है कि आरंभ में कौन सी सेवाएँ सार्वभौमिक रूप से प्रदान की जानी हैं और किस स्तर की वित्तीय सुरक्षा स्वीकार्य मानी जाएगी।
    • समग्र आबादी को एक ही तरह की सेवाएँ प्रदान करना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है और इसके लिये भारी संसाधन जुटाने की आवश्यकता होगी।
  • निजी क्षेत्र का विनियमन: सामाजिक बीमा से संबद्ध एक और चुनौती निजी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को विनियमित करने की होगी। लाभकारी और गैर-लाभकारी प्रदाताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर करने की आवश्यकता है।
    • गैर-लाभकारी स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं ने दुनिया भर में बहुत अच्छा कार्य किया है।
    • लेकिन लाभकारी स्वास्थ्य देखभाल गहन रूप से समस्याग्रस्त है, क्योंकि वहाँ लाभ कमाने के उद्देश्य और रोगी की भलाई के बीच एक व्यापक संघर्ष की स्थिति पाई जाती है।

HOPS फ्रेमवर्क क्या है और यह UHC की प्राप्ति में कैसे मदद करेगा?

  • परिचय: UHC के लिये एक ऐसे ढाँचे की परिकल्पना करना संभव है जो मुख्य रूप से सार्वजनिक सेवा के रूप में स्वास्थ्य देखभाल पर आधारित होगा। इस ढाँचे या फ्रेमवर्क को ‘वैकल्पिक सार्वजनिक सेवा के रूप में स्वास्थ्य देखभाल’ (Healthcare As An Optional Public Service- HOPS) कहा जा सकता है।
    • HOPS के तहत सभी को उनकी इच्छा और आवश्यकता के अनुसार किसी सार्वजनिक संस्थान से निःशुल्क, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने का कानूनी अधिकार होगा। यह किसी को भी स्वयं के व्यय पर निजी क्षेत्र से स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने से अवरुद्ध नहीं करेगा।
    • लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र हर किसी को अधिकार की तरह और निःशुल्क उपयुक्त स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी देगा।
  • उदाहरण: कुछ भारतीय राज्य पहले से ही ऐसा कर रहे हैं, जैसे केरल और तमिलनाडु जहाँ सार्वजनिक क्षेत्र में अधिकांश बीमारियों का इलाज मामूली व्यय पर संतोषजनक ढंग से किया जा सकता है।
  • महत्त्व: यदि सार्वजनिक क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल निःशुल्क उपलब्ध होगा तो अधिकांश रोगियों के पास निजी क्षेत्र में जाने का कोई कारण नहीं होगा।
    • सार्वजनिक क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध नहीं होने वाली कवर प्रक्रियाओं में मदद कर सामाजिक बीमा भी इस ढाँचे में एक भूमिका निभा सकता है (उदाहरण के लिये, हाई-एंड सर्जरी)।
    • हालाँकि HOPS आरंभ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा मॉडल की तरह समतावादी नहीं होगा, फिर भी यह UHC की ओर एक बड़ा कदम होगा।
      • इसके अलावा, यह समय के साथ और अधिक समतावादी होता जाएगा, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र स्वास्थ्य सेवाओं की विस्तृत व बढ़ती शृंखला प्रदान करता है।

आगे की राह

  • जीवंत स्वास्थ्य प्रणाली: एक जीवंत स्वास्थ्य प्रणाली में न केवल अच्छा प्रबंधन और पर्याप्त संसाधन शामिल होंगे, बल्कि एक अच्छी कार्य-संस्कृति और पेशेवर नैतिकता भी शामिल होगी।
    • एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी अद्भुत काम कर सकता है, लेकिन तब जब डॉक्टर और नर्स तत्परता से अपना कार्य तथा मरीजों की देखभाल कर रहे हों।
  • UHC के लिये मानक: HOPS ढाँचे के साथ मुख्य कठिनाई गुणवत्ता मानकों सहित प्रस्तावित स्वास्थ्य देखभाल गारंटी के दायरे को निर्दिष्ट करना है। UHC का अर्थ असीमित स्वास्थ्य देखभाल नहीं है। सार्वभौमिक गारंटी की भी अपनी सीमाएँ होती हैं।
    • HOPS समय के साथ इन मानकों को संशोधित करने के लिये एक विश्वसनीय पद्धति के साथ कुछ स्वास्थ्य देखभाल मानकों को निर्धारित कर सकेगा। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक जैसे कुछ उपयोगी तत्व पहले से ही उपलब्ध हैं।
  • स्वास्थ्य पर राज्य विशिष्ट कानून: तमिलनाडु अपने प्रस्तावित ‘स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक’ के तहत HOPS को साकार करने के लिये तैयार है। राज्य पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में अधिकांश स्वास्थ्य सेवाएँ बेहतर प्रभावशीलता से उपलब्ध कराने में सफल रहा है।
    • स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल हेतु राज्य की प्रतिबद्धता की एक अमूल्य पुष्टि होगी; यह रोगियों और उनके परिवारों को गुणवत्तापूर्ण सेवाओं की मांग करने के लिये सशक्त करेगा, जिससे प्रणाली को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।
    • तमिलनाडु की पहल अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय हो सकती है।
  • स्वास्थ्य वित्त पोषण: UHC की प्राप्ति के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि सरकारें अपने देश की स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली में हस्तक्षेप करें ताकि गरीबों और कमज़ोर लोगों का समर्थन किया जा सके।
    • इसके लिये अनिवार्य सार्वजनिक शासित स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसमें जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उपयुक्त रूप से धन जुटाने, संसाधनों का निवेश करने और सेवाओं को खरीद में राज्य की मज़बूत भूमिका हो।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के लिये अधिक लक्षित वित्तपोषण देखभाल और पहुँच की गुणवत्ता के संबंध में अंतर्निहित कमज़ोरियों से निपटने में मदद करेगा, दवाओं पर ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ व्यय को कम करेगा और मानव संसाधन एवं अवसंरचना की कमी में सुधार करेगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘कोई भी समाज वैध रूप से स्वयं को सभ्य नहीं कह सकता यदि किसी बीमार व्यक्ति को साधनों की कमी के कारण चिकित्सा सहायता से वंचित कर दिया जाता हो।’’ टिप्पणी कीजिये।


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