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एडिटोरियल

  • 13 Oct, 2022
  • 12 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर कदम

यह एडिटोरियल 07/10/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Drafting a robust security strategy for Indo-Pacific” लेख पर आधारित है। इसमें फ्राँस, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच नए त्रिपक्षीय प्रारूप के संदर्भ में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वर्तमान भू-राजनीति के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

गतिशील परिवर्तन के दौर से गुज़र रही दुनिया में हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific region) जैसे कुछ क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक तेज़ी से रूप बदल रहे हैं। यह निर्विवाद है कि हिंद-प्रशांत 21वीं सदी में व्यापार एवं प्रौद्योगिकी ऊष्मायन के केंद्र में है जो ‘इंडो-पैसिफिक’ यानी हिंद-प्रशांत को वैश्विक भू-राजनीतिक शब्दावली में एक प्रमुख योग के रूप में शामिल करता है।

  • इसी क्रम में इस क्षेत्र की सुरक्षा एवं स्थिरता एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है और यह विषय उभरते राजनीतिक समीकरणों पर विचार करने भर तक सीमित नहीं है। एक खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत की स्थापना के लिये हितधारक देशों को एक ‘सहयोगी प्रबंधन’ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

हिंद-प्रशांत का क्या महत्त्व है?

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व के सर्वाधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका।
  • इस क्षेत्र की गतिशीलता और जीवन शक्ति स्वयं में प्रकट है, जहाँ 60% वैश्विक आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन के 2/3 भाग के साथ यह क्षेत्र वैश्विक आर्थिक केंद्र होने की स्थिति रखता है।
  • यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) का एक विशाल स्रोत और गंतव्य क्षेत्र भी है। विश्व की कई महत्त्वपूर्ण और बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं का हिंद-प्रशांत से महत्त्वपूर्ण संबंध है।
  • हिंद और प्रशांत महासागर में संयुक्त रूप से समुद्री संसाधनों का विशाल भंडार मौजूद है, जिसमें ऑफशोर हाइड्रोकार्बन, मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री तल खनिज और दुर्लभ मृदा धातु (Rare earth metals) शामिल हैं।
    • बड़ी समुद्र तटरेखा और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zones- EEZs) इन संसाधनों के दोहन के लिये तटवर्ती देशों को प्रतिस्पर्द्धी क्षमता प्रदान करते हैं।
    • इसके साथ ही, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसी विश्व की कई सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ही अवस्थित हैं।

हिंद-प्रशांत की प्रमुख वर्तमान चुनौतियाँ

  • भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का रंगमंच: यह क्षेत्र ‘क्वाड’ (QUAD) और शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation) जैसे विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों के बीच भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का एक प्रमुख रंगमंच है।
  • चीन द्वारा सैन्यीकरण के प्रयास: चीन हिंद महासागर में भारत के हितों और स्थिरता के लिये एक प्रमुख चुनौती रहा है।
    • भारत के पड़ोसी देशों को चीन से सैन्य और अवसंरचनागत सहायता मिल रही है, जिसमें म्यांमार को पनडुब्बियाँ और श्रीलंका को युद्धपोत प्रदान करने के साथ ही जिबूती (‘हॉर्न ऑफ अफ्रीका’) में एक विदेशी सैन्य अड्डे का निर्माण करना शामिल है।
    • इसके अलावा, चीन का हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका) पर नियंत्रण है, जो भारतीय तट से महज कुछ सौ मील की दूरी पर है।
  • गैर-पारंपरिक मुद्दों के लिये हॉटस्पॉट: इस क्षेत्र की विशालता समुद्री डाका या पाइरेसी, तस्करी एवं आतंकवाद की घटनाओं सहित विभिन्न जोखिमों के आकलन और उनके समाधान को कठिन बनाती है।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और तीन लगातार ला नीना परिघटनाओं (जो चक्रवात और सूनामी उत्पन्न कर रहे हैं) के कारण भौगोलिक एवं पारिस्थितिक स्थिरता से संबंधित गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
      • इसके अलावा, अवैध, अनियमित और असूचित (illegal, unregulated and unreported- IUU) मत्स्यग्रहण और समुद्री प्रदूषण इस क्षेत्र के जलीय जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।
  • भारत की सीमित नौसेना क्षमता: भारतीय सैन्य बजट के सीमित आवंटन के कारण भारतीय नौसेना के पास अपने प्रयासों को सुदृढ़ करने के लिये सीमित संसाधन एवं क्षमता ही मौजूद है। इसके अलावा, विदेशी सैन्य ठिकानों की कमी भारत के लिये हिंद-प्रशांत में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के मार्ग में एक बुनियादी सैन्य-सहाय्य संबंधी चुनौती उत्पन्न करती है।

भारत हिंद-प्रशांत में अपनी उपस्थिति कैसे बढ़ा सकता है?

  • मुद्दा आधारित गठबंधन: हिंद-प्रशांत सहयोग एक भार-साझाकरण मॉडल (burden-sharing model) द्वारा रूपांकित किये गए समन्वित और मुद्दा-आधारित भागीदारी के बिना सफल नहीं हो सकता।
    • हाल ही में, तीन समुद्री देशों—फ्राँस, संयुक्त अरब अमीरात और भारत ने समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR), नीली अर्थव्यवस्था, क्षेत्रीय संपर्क, ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा और लोगों के बीच परस्पर संबंध के लिये हिंद-प्रशांत में एक त्रिपक्षीय प्रारूप को आकार दिया है।
  • समुद्र संबंधी जागरूकता: भारतीय नौसैन्य परिप्रेक्ष्य से, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को प्रमुख प्रेक्षण बिंदु के रूप में रखते हुए, खुफिया जानकारी एकत्र करने एवं निगरानी करने के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में विकास के संबंध में व्यापक एवं अधिक विश्वसनीय स्थितिजन्य जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
  • हिंद-प्रशांत में बहुध्रुवीयता पर भारत का रुख: विश्व की 1/5 आबादी वाले देश और 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को अपना पक्ष चुनने, अपने हितों पर विचार करने और अपने अनुकूल विकल्प चुनने या निर्णय लेने का अधिकार है, जहाँ ये विकल्प निंदक और लेनदेन आधारित नहीं होंगे, बल्कि भारतीय मूल्यों एवं राष्ट्रीय हितों के बीच के संतुलन को परिलक्षित करेंगे।
    • भारत सभी तरह के संरेखण पर बल देता है, जैसे उसने कुरील द्वीप (रूस और जापान के बीच विवादित क्षेत्र) के निकट आयोजित वोस्तोक सैन्य अभ्यास के केवल थल सैन्य घटक में भाग लिया और इसके नौसैन्य घटक से दूर रहा।
    • इसके साथ ही, भारत का ‘सागर’ विज़न (Security and Growth for all in the Region- SAGAR) हिंद-प्रशांत में साझा चुनौतियों के लिये साझा प्रतिक्रियाओं का एक टेम्पलेट है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ संलग्नता बढ़ाना: भारत को स्वदेशी रक्षा उत्पादन बढ़ाने के साथ ही अपने रक्षा उपकरणों के निर्यात को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है जो हिंद-प्रशांत में चुनौतीपूर्ण सुरक्षा मुद्दों के साथ अधिक सक्रिय भारतीय संलग्नता के द्वार खोलेगा।
    • भारत अब ऑस्ट्रेलिया जैसे रणनीतिक साझेदारों के साथ व्यापार संबंधों को उदार बनाने की इच्छा रखता है, जबकि फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल प्रणाली की बिक्री के साथ हिंद-प्रशांत से भारतीय संलग्नता को एक बड़ा बल प्राप्त हुआ है।
  • मुक्त, खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत की ओर: समय की आवश्यकता यह है कि हिंद-प्रशांत में आर्थिक सहयोग और सामूहिक विकास को बढ़ावा देने पर बल दिया जाए, जहाँ आर्थिक एवं सामाजिक मोर्चे पर हितधारक राष्ट्रों की सक्रिय भागीदारी हो और वे एक खुले, परस्पर संबद्ध, समृद्ध, सुरक्षित और प्रत्यास्थी हिंद-प्रशांत पर लक्षित होने के साथ ही इस क्षेत्र के अधिक समावेशी एवं संवहनीय भविष्य को सुनिश्चित करें।

अभ्यास प्रश्न: हाल के वर्षों में वैश्विक भू-राजनीतिक शब्दावली में ‘इंडो-पैसिफिक’ का एक प्रमुख शब्द के रूप में उभार हुआ है। विचार कीजिये कि भारत इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का किस प्रकार विस्तार कर सकता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

Q.भारत निम्नलिखित में से किसका सदस्य है? (वर्ष 2015)

  1. एशिया - प्रशांत महासागरीय आर्थिक सहयोग
  2. दक्षिण - पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ
  3. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3
 (C) 1, 2 और 3
 (D) भारत इनमें से किसी का भी सदस्य नहीं है

 उत्तर: (B)


मुख्य परीक्षा

Q.1 भारत-रूस रक्षा सौदों के बदले भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्व है?  हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये।  (वर्ष 2020)


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