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एडिटोरियल

  • 13 Apr, 2020
  • 18 min read
आंतरिक सुरक्षा

भारत की आंतरिक सुरक्षा व चुनौतियाँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत की आंतरिक सुरक्षा व चुनौतियाँ से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य के शब्दों में किसी भी प्रकार के आक्रमण से अपनी प्रजा की रक्षा करना प्रत्येक राजसत्ता का सर्वप्रथम उद्देश्य होता है। “प्रजा का सुख ही राजा का सुख और प्रजा का हित ही राजा का हित होता है।” प्रजा  के सुख और हित को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने में दो वाहकों की भूमिका प्रमुख है, जिनमें पहला वाहक पड़ोसी या कोई अन्य देश हो सकता है जबकि दूसरा वाहक राज्य के भीतर अपराधियों की उपस्थिति हो सकती है।

चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि एक राज्य को निम्नलिखित चार अलग-अलग प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है- 1) आंतरिक, 2) वाह्य, 3) वाह्य रूप से सहायता प्राप्त आंतरिक, 4) आंतरिक रूप से सहायता प्राप्त बाहरी। भारत में आंतरिक सुरक्षा के परिदृश्य में उपर्युक्त खतरों के लगभग सभी रूपों का मिश्रण है। वर्तमान में चल रहे लॉकडाउन के बावज़ूद भारत वाह्य व आंतरिक सुरक्षा के स्तर पर विभिन्न चुनौतियों को झेल रहा है। इसका ज्वलंत उदाहरण पड़ोसी देश पाकिस्तान के द्वारा भारत में सीमापार से आतंकियों को भेजने हेतु की जा रही फायरिंग व पंजाब में लॉकडाउन का पालन कराने के दौरान निहंग सिखों द्वारा किया गया हमला है।

इस आलेख में आंतरिक सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा की समस्या के कारणों पर विमर्श करने के साथ ही समस्या समाधान के प्रभावी उपायों पर भी चर्चा की जाएगी।

आंतरिक सुरक्षा से तात्पर्य           

  • आंतरिक सुरक्षा का सामान्य अर्थ एक देश की अपनी सीमाओं के भीतर की सुरक्षा से है। आंतरिक सुरक्षा एक बहुत पुरानी शब्दावली है लेकिन समय के साथ ही इसके मायने बदलते रहे हैं। स्वतंत्रता से पूर्व जहाँ आंतरिक सुरक्षा के केंद्र में धरना-प्रदर्शन, रैलियाँ, सांप्रदायिक दंगे, धार्मिक उन्माद थे तो वहीँ स्वतंत्रता के बाद विज्ञान एवं तकनीकी की विकसित होती प्रणालियों ने आंतरिक सुरक्षा को अधिक संवेदनशील और जटिल बना दिया है।
  • पारंपरिक युद्ध की बजाय अब छदम युद्ध के रूप में आंतरिक सुरक्षा हमारे लिये बड़ी चुनौती बन गई है। 

आंतरिक सुरक्षा के घटक  

  • राष्ट्र की संप्रभुता की सुरक्षा 
  • देश में आंतरिक शांति और सुरक्षा को बनाए रखना 
  • कानून व्यवस्था बनाए रखना 
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व एवं सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना 

आंतरिक सुरक्षा के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ   

भारत की भू-राजनैतिक स्थिति, इसके पड़ोसी कारक, विस्तृत एवं जोखिम भरी स्थलीय, वायु और समुद्री सीमा के साथ इस देश के ऐतिहासिक अनुभव इसे सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील बनाते हैं। इस संदर्भ में आंतरिक सुरक्षा के सम्मुख निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं-

  • नक्सलवाद- नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के उस आंदोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई। वर्ष 1967 में चारू मजुमदार और कानू सान्याल ने इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। जल्द ही नक्सलवाद ने देश के कई राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया, परिणामस्वरूप नक्सलवाद ने हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। आज नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में मौज़ूद है। 
  • धार्मिक कट्टरता एवं नृजातीय संघर्ष- स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक भारत में अनेक सांप्रदायिक दंगे हुए हैं। जिसने भारत की बहुलतावादी संस्कृति को छिन्न-भिन्न कर दिया है, धर्म, भाषा या क्षेत्र आदि संकीर्ण आधारों पर अनेक समूह व संगठनों ने लोगों में सामाजिक विषमता बढ़ाने का समानांतर रूप में प्रयास भी करते रहे हैं। ये अतिवादी संगठन अपने धर्म, भाषा या क्षेत्र की श्रेष्ठता का दावा प्रस्तुत करते हैं तथा विद्धेषपूर्ण मानसिकता का विकास करते हैं। 
  • भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार को सभी समस्याओं की जननी माना जाता है, क्योंकि यह राज्य के नियंत्रण, विनियमन एवं नीति-निर्णयन क्षमता को प्रतिकूल रूप में प्रभावित करता है। वस्तुतः ऐसा कार्य जो अवांछित लाभ को प्राप्त करने के इरादे से किया जाए अर्थात जो सदाचार, नैतिकता, परंपरा और कानून से विचलन दर्शाता हो तथा निर्णय निर्माण प्रक्रिया में एकीकरण के अभाव व शक्ति का दुरुपयोग करता हो उसे भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा जाता है।
  • मादक द्रव्य व्यापार- भारत के पड़ोसी देशों में ‘स्वर्णिम त्रिभुज’ (म्यांमार, थाईलैंड और लाओस) व ‘स्वर्णिम अर्द्धचंद्राकार’ (अफगानिस्तान, ईरान एवं पाकिस्तान) क्षेत्रों की उपस्थिति के फलस्वरूप मादक द्रव्य का बढ़ता व्यापार भारत की आंतरिक सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौती बन कर उभरा है। 
  • मनी लाँड्रिंग- काले धन को वैध बनाना ही मनी लाँड्रिंग है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अवैध स्रोत से अर्जित की गई आय को वैध बनाकर दिखाया जाता है। इसमें शामिल धन को मादक द्रव्य व्यापार, आतंकी फंडिंग और हवाला इत्यादि गतिविधियाँ में प्रयोग किया जाता है। मापन में कठिनाई के बावजूद हर साल वैध बनाए जाने वाले काले धन की राशि अरबों में है और यह सरकारों के लिये महत्त्वपूर्ण नीति संबंधी चिंता का विषय बन गया है।
  • आतंकवाद- आतंकवाद ऐसे कार्यों का समूह होता है जिसमें हिंसा का उपयोग किसी प्रकार का भय व क्षति उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। किसी भी प्रकार का आतंकवाद, चाहे वह क्षेत्रीय या राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय हो, देश में असुरक्षा, भय और संकट की स्थिति को उत्पन्न करता है। आतंकवाद की सीमा कोई एक राज्य, देश अथवा क्षेत्र नहीं है बल्कि आज यह एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या के रूप में उभर रही है। 
  • संगठित अपराध- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक अथवा अन्य लाभों के लिये एक से अधिक व्यक्तियों का संगठित दल, जो गंभीर अपराध करने के लिये एकजुट होते हैं, संगठित अपराध के श्रेणी में आता है। परंपरागत संगठित अपराधों में अवैध शराब का धंधा, अपहरण, जबरन वसूली, डकैती, लूट और ब्लैकमेलिंग इत्यादि। गैर-पारंपरिक अथवा आधुनिक संगठित अपराधों में हवाला कारोबार, साइबर अपराध, मानव तस्करी, मादक द्रव्य व्यापार आदि शामिल हैं।          

वाह्य राज्य अभिकर्त्ताओं की भूमिका   

  • वाह्य राज्य अभिकर्त्ताओं में पड़ोसी देश या छद्म मित्रता प्रदर्शित करने वाले देश शामिल किये जाते हैं जो सैन्य उपकरणों या गैर-सैन्य उपकरणों के माध्यम से सुरक्षा संकट उत्पन्न करना चाहते हैं। इस संदर्भ में वाह्य राज्य प्रायोजित आतंकवाद को सबसे बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है।
  • उदाहरणस्वरुप वर्ष 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमले में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की संलिप्तता को देखा जा सकता है। यद्यपि राज्य यहाँ प्रत्यक्ष रूप से युद्ध की स्थिति में नहीं है, परंतु इसे ‘छद्म युद्ध’ के रूप में देखा जा रहा है। 
  • भारत जैसे देशों में अवैध घुसपैठ एवं शरणार्थियों की समस्या में भी वाह्य राज्यों का प्रत्यक्ष योगदान है, जो देश की आंतरिक सुरक्षा को अनेक रूपों में चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं। 
  • भारत में कई अतिवादी संगठन अलगाववादी भावनाओं को प्रेरित कर रहे हैं तथा ये अतिवादी संगठन अन्य देशों से संचालित किये जा रहे हैं। 

गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की भूमिका 

  • वर्तमान परिवर्तित वैश्विक परिवेश में अनेक ऐसे नवीन कर्त्ताओं  का उदय हुआ है तथा उनकी भूमिका में वृद्धि हुई है जिन्हें गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के नाम से जाना जाता है। इन गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के पास राज्यों की भांति वैधानिक शक्ति या संप्रभुता तो नहीं है, परंतु ये किसी भी राज्य की वाह्य एवं घरेलू नीतियों को निर्धारित एवं प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 
  • गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की परिभाषा के दायरे में गैर-सरकारी संगठन, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, आतंकवादी संगठन, धार्मिक व नृजातीय संगठन, पार-राष्ट्रीय प्रवासी समुदाय, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आदि आते हैं। 
  • इनमें से कुछ की भूमिका व्यवस्था समर्थक तो कुछ की व्यवस्था विरोधी होती है। ये गैर-राज्य कर्त्ता ऐसे हैं, जिनका विस्तार या प्रभाव वैश्विक स्तर पर देखा जा सकता है। अतः वर्तमान परिवेश में गैर-राज्य कर्त्ताओं को समानांतर सरकार के रूप में भी देखा जाने लगा है। 

आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन की खामियाँ 

  • ध्यातव्य है कि अमेरिका और ब्रिटेन प्रत्येक वर्ष परिस्थितियों के अनुसार, अपने आंतरिक सुरक्षा सिद्धांत को संशोधित करते हैं और उन नीतियों पर एक सार्वजनिक चर्चा आयोजित की जाती है, लेकिन इस मोर्चे पर भारत ने अपने दोनों महत्त्वपूर्ण साझेदारों से कुछ नहीं सीखा है, जबकि हम जानते हैं कि भारत में यह समस्या और भी जटिल है। 
  • किसी भी समस्या के समाधान के लिये दीर्घकालिक नीतियाँ बनानी होती हैं और दीर्घकालिक नीतियों के अंदर ही वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम अल्पकाल के लिये कुछ नीतियाँ बनाते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न तो जम्मू और कश्मीर व पूर्वोत्तर भारत को लेकर हमारी कोई दीर्घकालिक नीति है और न ही माओवादी विद्रोह से निपटने के लिये कोई रणनीतिक दृष्टि।
  • अधिकांश राज्यों में पुलिस अभी भी पुरातन व्यवस्था के अनुपलान को मज़बूर है। विदित है कि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2006 में पुलिस सुधारों को लागू किये जाने का निर्देश दिया था, लेकिन इन निर्देशों का तमाम राज्यों ने(कुछ हद तक केरल को छोड़कर) अब तक छद्म अनुपालन ही किया है।
  • न्यायिक निर्देशों के अनुपालन के लिये भारत सरकार ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई है, यहाँ तक कि दिल्ली पुलिस विधेयक को भी यह अंतिम रूप देने में विफल रहा है।  

आंतरिक सुरक्षा को बेहतर करने के उपाय

  • सर्वप्रथम राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक खुफिया तंत्र में तत्काल सुधार की आवश्यकता है।  
  • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और सुरक्षा पर गठित कैबिनेट समिति को पाकिस्तान खुफिया एजेंसी आईएसआई से उत्पन्न सुरक्षा खतरों के खिलाफ एक प्रभावी जवाबी रणनीति तैयार करनी चाहिये। हमारी रणनीति प्रतिक्रियाशीलता के बजाय अधिक सक्रियता की होनी चाहिये।
  • केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों को उनके द्वारा सुरक्षा प्रबंधन के विषय को प्राथमिकता देने की आवश्यकता के संदर्भ में जागरूक किया जाना चाहिये।
  • जिस समय सुरक्षाबलों द्वारा नक्सलवाद और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाएँ जा रहे हों, उस समय राज्य सरकार को विकास योजनाओं के क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना चाहिये। इस दिशा में ‘SAMADHAN पहल’ एक सराहनीय कदम है। 
  • राज्यों के पुलिस बल के आधुनिकीकरण की ओर तत्काल ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। 
  • आर्थिक अपराधों से निपटने के लिये संबंधित नियामक एजेंसियों के बीच समन्वय सुनिश्चित किया जाना चाहिये। ‘केंद्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो’ इस संबंध में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
  • संगठित अपराध से निपटने के लिये अंतर्राज्यीय व अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
  • साइबर सुरक्षा के लिये हर विभाग में विशेष सेल बनाए जाने के साथ-साथ आईटी अधिनियम में संशोधन कर सजा के सख्त प्रावधान किये जाने चाहिये।
  • सीमा को तकनीकी की सहायता से प्रबंधित व निगरानी करने की आवश्यकता है। 
  • भारत सरकार को एक ‘समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति’ बनाने की आवश्यकता है।  इस नीति के माध्यम से एक ‘राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों का मंत्रालय’ तथा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा प्रशासनिक सेवा’ नाम से एक अलग केंद्रीय सेवा गठित किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

निश्चित ही सरकार ने इस दिशा में आंशिक प्रयास ज़रूर किये हैं, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी की स्थापना, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना, रक्षा नियोजन समिति की स्थापना आदि। लेकिन ये सभी निकाय अपने-अपने स्तरों पर कार्यरत हैं। आवश्यकता है ऐसी नीति और ऐसी संरचना की जो इन सभी को एक साथ लेकर चले। आज हालात ऐसे हैं कि वाह्य और आंतरिक सुरक्षा में भेद करना कठिन हो गया है। हमारी सुरक्षा को वास्तविक खतरा गुप्त कार्रवाइयों, विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से है। 

प्रश्न- आंतरिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन की ख़ामियों का उल्लेख करते हुए इस समस्या के समाधान के लिये उपाय सुझाइए।


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