भारतीय अर्थव्यवस्था
ई-वाणिज्य वार्ता से दूर
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में ई-वाणिज्य तथा डेटा की उपयोगिता की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
इस वर्ष के आरंभ में 76 देशों के बीच (यूरोपीय संघ के सदस्य एवं 43 अन्य देश) ई-कॉमर्स पर शुरू हुई बहुपक्षीय वार्ता ने भारतीय उद्योगों और नीति निर्माताओं की चिंता में वृद्धि की है। अमेरिका द्वारा कुछ समय पूर्व प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई के रूप में भारत को अपने जीएसपी लाभार्थी सूची से बाहर करने के साथ-साथ H1-B वीज़ा पर मंडराते खतरे तथा भारत के टैरिफ व सब्सिडी पर विकसित देशों के प्रतिकारात्मक प्रयासों से इन तर्कों को बल मिला है। विशेषज्ञ और नीति निर्माता आशंकित हैं और ई-कॉमर्स वार्ताओं में शामिल नहीं होने के खतरों को लेकर उलझन में हैं। इससे भी अधिक असहजता इस परिदृश्य से है कि पश्चिमी शक्तियों द्वारा भारत पर वार्ता में शामिल होने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है।
जारी वार्ता में भागीदारी नहीं करने पर भारत के पीछे छूट जाने की आशंका मुख्यतः दो तर्कों पर आधारित है। पहला, भारत ई-कॉमर्स पर जारी वार्ताओं (विशेषकर डेटा को नियंत्रित करने वाले नियमों के संदर्भ में) को आकार देने में अपनी भूमिका के अवसर को गंवा देगा। दूसरा, यदि भारत देर से इन वार्ताओं में शामिल होने का निर्णय लेता है तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी जो मुख्यतः वार्ता के निर्णयों को स्वीकार करने के लिये विवश होने के रूप में व्यक्त होगा।
डेटा की केंद्रीयता एवं उपयोगिता
डिजिटल क्रांति के युग में डेटा केंद्रीय भूमिका में है और वह प्रमुख संसाधन बन गया है जो किसी देश के उत्थान या पतन का कारण बन सकता है। बिग डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT), रोबोटिक्स जैसी सभी डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता के उन्नयन के लिये डेटा पर ही निर्भर हैं। प्रश्न है कि डेटा का सृजन कौन करता है? किसी देश की आबादी जितनी अधिक होगी, सृजित डेटा की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी, साथ ही आबादी जितनी अधिक युवा होगी, डेटा का सृजन उतना ही अधिक होगा। तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत की 1.3 बिलियन की आबादी ओईसीडी (जिसमें 36 देश शामिल हैं) की कुल आबादी से भी अधिक है, जबकि भारत की 66 प्रतिशत जनसंख्या 15-64 आयु वर्ग में आती है और यह विश्व की कुल युवा जनसंख्या के 18 प्रतिशत का निर्माण करती है। इसका अभिप्राय यह है कि भारत में प्रत्येक क्षण भारी मात्रा में डेटा का सृजन हो रहा है जो पश्चिम के लिये अत्यंत मूल्यवान है ताकि वह भविष्य के लिये कुशल डिजिटल उत्पादों और सेवाओं का निर्माण कर सके। यही वह मूल कारण है कि भारत पर बहुपक्षीय ई-कॉमर्स वार्ता में शामिल होने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है।
डेटा: ई-कॉमर्स से परे
क्या भारत को वास्तव में ई-कॉमर्स वार्ता में भागीदारी से वंचित रह जाने पर चिंता करनी चाहिये? 'ई-कॉमर्स नियम' (E-commerce Rules) पद भ्रामक है क्योंकि जिन नियमों पर वार्ता चल रही है, वे ई-कॉमर्स तक ही सीमित नहीं हैं और इसमें उन सभी डिजिटल नियमों को दायरे में लिया गया है जो विकसित विश्व की महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिये आवश्यक हैं और जिससे यह सुनिश्चित हो कि भविष्य में भी डेटा तक उनकी स्वतंत्र पहुँच बनी रहेगी। डेटा के स्वामित्व के मामले में वर्तमान स्थिति यह है कि जिसके पास डेटा एकत्र करने और संसाधित करने की क्षमता है, वही इसका मालिक बन जाता है। इस प्रकार गूगल, अमेज़न, फेसबुक, एप्पल, अलीबाबा आदि द्वारा संग्रहीत डेटा पर इन सुपर प्लेटफ़ॉर्मों का स्वामित्व है, भले ही यह डेटा विश्व में कहीं भी सृजित हुआ हो। उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकांश प्लेटफ़ॉर्म अमेरिका में अवस्थित हैं। यद्यपि डिजिटल विश्व में डेटा के महत्त्व को लेकर अब चीन व भारत जैसे देश और अफ्रीका जैसे महाद्वीप (जो भविष्य के सर्वप्रमुख डेटा स्रोत होंगे) जागरूक हुए हैं। विकासशील देशों द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं ताकि उनके डेटा पर उनका ही स्वामित्व स्थापित हो। चीन का साइबर सुरक्षा कानून एक अनुकरणीय कानून है जिसमें डेटा के देश के बाहर संचरण पर रोक, डेटा का स्थानीय संग्रहण, संयुक्त उद्यम भागीदारी और स्रोत कोड (Source Code) साझेदारी जैसे प्रावधानों को शामिल किया गया है। अफ्रीका के कई देशों ने अपने डेटा पर ‘स्वामित्व’ घोषित करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिये रवांडा की डेटा क्रांति नीति (Data Revolution Policy) राष्ट्रीय डेटा संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है जिसके तहत रवांडा अपने राष्ट्रीय डेटा पर अनन्य संप्रभु अधिकार व शक्ति रखता है। उसने अपने संप्रभु डेटा को एक क्लाउड (Cloud) में प्रस्तुत करने अथवा राष्ट्रीय परिसरों के अंदर डेटा केंद्रों में साझा परिवेश में रखने अथवा रवांडा के बाहर सहमत शर्तों के अधीन व रवांडा के कानूनों द्वारा नियंत्रित स्थिति में पेश करने का निर्णय लिया है। उसने दूसरे देशों की सरकारों अथवा निजी डेटा स्वामियों के लिये डेटा होस्टिंग सेवाओं की पेशकश हेतु उपयुक्त विधिक, नीतिगत, अवसंरचनात्मक और निजता परिवेश के निर्माण का भी निर्णय लिया है। इसी प्रकार दक्षिण अफ्रीका भी अपनी डिजिटल औद्योगिक नीति का विकास कर रहा है।
भारत इस क्रम में अपनी राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का मसौदा लेकर आया है जो उसे अपने डेटा पर स्वामित्व प्रदान करेगा और देश को अपने स्वयं के डेटा के प्रसंस्करण एवं अत्यंत आवश्यक डिजिटल क्षमताओं के विकास का अवसर देगा। यदि चीन व भारत जैसे देश और अफ्रीका जैसे महाद्वीप अपने डेटा पर स्वामित्व तथा उनके स्थानीय प्रसंस्करण पर बल देंगे तो विकसित देश विश्व में सृजित डेटा के एक बड़े भंडार पर नियंत्रण खो देंगे और इसके परिणामस्वरूप डेटा के संसाधन तथा डिजिटल सॉफ्टवेयर व प्रौद्योगिकियों के निर्माण का उनका प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ समाप्त हो जाएगा। यही कारण है कि विकसित देश त्वरित गति से आगे बढ़ने और ऐसे समझौतों के रूप में विकासशील देशों पर अंकुश रखने के भारी दबाव में हैं ताकि विकासशील देशों को अपने डेटा पर स्वामित्व व प्रसंस्करण से वंचित किया जा सके। ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी के लिये व्यापक एवं प्रगतिशील समझौता (The Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP) जैसे कुछ व्यापार समझौतों में शामिल खंडों से बहुपक्षीय ई-कॉमर्स वार्ताओं के मूल उद्देश्य पर पर्याप्त अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।
मौजूदा वक्त में डेटा के महत्त्व को दर्शाने के लिये इसको तेल की संज्ञा दी जा रही है। इसका अभिप्राय यह है पहली औद्योगिकी क्रांति के समय तेल का उत्पादन करने वाले देश विकसित नहीं हुए, बल्कि वे देश विकसित हुए जिन्होंने तेल का प्रसंस्करण किया और इसका उपयोग अपने कारखानों में किया। इसी प्रकार भारी मात्रा में डेटा का सृजन करने वाले देश डिजिटल क्रांति के युग में डिजिटल रूप से विकसित नहीं होंगे, बल्कि वे देश विकसित होंगे जो अपने डेटा केंद्रों में इनका प्रसंस्करण करेंगे और डेटा का उपयोग डिजिटल प्रौद्योगिकियों के लिये सॉफ़्टवेयर विकसित करने में करेंगे।
भारत की स्थिति
डेटा के स्वामित्व और प्रसंस्करण के संबंध में भारत को अपनी संप्रभुता बनाए रखनी चाहिये। ई-कॉमर्स वार्ताओं से बाहर रहने से भारत को किसी नुकसान की संभावना नहीं है। एक बड़ी जनसंख्या, बढ़ती हुई युवा आबादी और मज़बूत आईटी कौशल के साथ भारत तुलनात्मक लाभ की स्थिति रखता है। इसलिये भारत को अपने डेटा पर स्वामित्व स्थापित करने और स्वयं के डेटा केंद्रों तथा डेटा प्रसंस्करण क्षमताओं, विशेष रूप से उत्कृष्ट सॉफ्टवेयर के विकास जो कि भारत को अपने स्वयं के AI, IoT जैसे डिजिटल प्रौद्योगिकियों के विकास में सक्षम करेगा, पर केंद्रित होना चाहिये। इसके साथ ही बिग डेटा एनालिटिक्स कौशल को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि औद्योगिक और विदेशी व्यापार नीति जैसी प्रमुख नीतियों को बेहतर डिजिटल सूचना आधार प्रदान किया जा सके। भविष्य में देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को भी देश में स्वयं के डेटा के उपयोग से विकसित डिजिटल प्रौद्योगिकियों व सॉफ्टवेयर पर ही अत्यधिक निर्भर रखने की आवश्यकता होगी। चीन ने अपने डेटा के उपयोग को सुरक्षित कर लिया है और जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) के माध्यम से यूरोपीय संघ ने भी यही कदम उठाया है।
निष्कर्ष
19वीं शताब्दी में भारत कच्चे माल का निर्यातक बना रहा, इसी माल के बल पर यूरोप विशेषकर इंग्लैंड ने अपना औद्योगिक विकास कर लिया इसी प्रकार 20 वीं सदी में सोना एवं तेल का प्रसार जिन स्रोतों से विश्व में हुआ वहाँ उनकी चमक फीकी ही रही, सोने के बल पर यूरोप के कई देशों ने बाज़ार का विकास कर लिया तो मध्य-पूर्व का तेल पश्चिमी देशों के इंजन में काम आया। 21वीं सदी डेटा की है, भारत जैसे देश डेटा के उत्पादन में तो अग्रणी हैं किंतु इसके उपयोग के लिये विकसित देश तत्पर हैं। ये विकसित देश इसे 21वीं सदी का तेल समझते हैं। भारत जैसे देशों को ई-कॉमर्स वार्ताओं में शामिल न होने से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि ज़रूरत इस बात की है कि भारत इस डेटा के स्थानीयकरण के लिये क्या प्रयास करे ताकि इस पर आधारित लाभ भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान दे, न कि पश्चिमी देशों को और समृद्ध बनाए।
प्रश्न: डेटा का स्थानीयकरण ई-कॉमर्स वार्ताओं से अधिक आवश्यक है। चर्चा कीजिये।