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एडिटोरियल

  • 11 Nov, 2020
  • 19 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली में व्याप्त अनियमितताएँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की असफलता और इसके कारणों के साथ संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

भारत में सर्दियों की शुरुआत के साथ ही राजधानी दिल्ली सहित देश के अन्य कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या कई गुना बढ़ जाती है। प्रदूषण में होने वाली इस वृद्धि के कारण हर वर्ष लाखों लोग श्वास संबंधी गंभीर बीमारियों के साथ मधुमेह और कैंसर के शिकार होते हैं। हाल के वर्षों में प्रदूषण में होने वाली वृद्धि के प्रति लोगों में जागरूकता बड़ी है और इससे निपटने के लिये सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा कई बड़े प्रयास भी किये गए है। हालाँकि इस मामले में अधिकांशतः लोगों का ध्यान पराली जलाने की चुनौती तक सीमित रहता है, जबकि यह संकट एक अत्यधिक जटिल, बहु-अनुशासनात्मक मुद्दा है जिसमें उद्योग, बिजली उत्पादन, निर्माण, पराली जलाना और परिवहन सहित कई बड़े कारक शामिल हैं। इस समस्या से निपटने के लिये भारत में कई बड़े नियम, कानून और विशिष्ट एजेंसियाँ सक्रिय हैं, जो सैधांतिक रूप से बहुत प्रभावशाली लगते हैं परंतु ये प्रदूषण की समस्या से निपटने में उतने सफल नहीं दिखाई देते। यह ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों का परिणाम इसके लिये बनाए गए नियमों के कार्यान्वयन पर निर्भर करता है।

प्रदूषण की समस्या:    

  • हाल ही में 'हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (HEI) द्वारा जारी 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर'- 2020 (SoGA- 2020) रिपोर्ट में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल को विश्व के उन शीर्ष 10 देशों की सूची में रखा गया है जहाँ की वायु में पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 की मात्रा सबसे अधिक पाई गई।
  • इस सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2019 में विश्व भर में PM 2.5 से जुड़े मृत्यु के कुल मामलों में 58% भारत और चीन से थे।
  • लैंसेट पत्रिका के अनुसार, वर्ष 2019 में वायु प्रदूषण के कारण विश्व भर में लगभग 4,76,000 नवजात बच्चों की मृत्यु हो गई,  इसमें से लगभग 1,16,000 भारत से थे।
  • साथ ही वायु प्रदूषण के कारण भारत में ओज़ोन के दुष्प्रभावों में भी वृद्धि हुई है।

प्रदूषण से निपटने हेतु प्रमुख निकाय और प्रयास:  

  • प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये देश में वर्ष 1981 में ‘वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981’ को लागू किया गया।
  • इसके तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को देश में वायु गुणवत्ता में सुधार करने, वायु प्रदूषण को रोकने आदि कार्यों की ज़िम्मेदारी दी गई है।
  • CPCB वायु प्रदूषण से निपटने के लिये ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ (SPCBs) के साथ मिलकर कार्य करता है तथा उन्हें तकनीकी सहायता और आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।  
  • वायु प्रदूषण सहित पर्यावरण से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिये वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) की स्थापना की गई थी।
  • वायु प्रदूषण की बढ़ती समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकार द्वारा जनवरी 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP) की शुरुआत की गई जिसके तहत वर्ष 2024 तक देश में वायु प्रदूषण में 20-30% कटौती करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये 28 अक्तूबर, 2020 को एक अध्यादेश जारी किया गया जिसके तहत NCR और इसके आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये एक 18 सदस्यीय ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ [Commission for Air Quality Management- CAQM) गठित करने की बात कही गई। 
    • इस आयोग में केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के अलावा पाँच राज्यों (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), नीति आयोग, प्रदूषण विशेषज्ञ, संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा।  

समस्याएँ:

  • प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ी सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) के अधिकारी और कर्मचारी सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  
  • हालाँकि हाल के कुछ वर्षों में जब प्रदूषण नियंत्रण की अधिकांश चर्चाएँ कानूनों और वायु प्रदूषण के राजनीतिकरण पर केंद्रित रही हैं, ऐसे समय में प्रदूषण को कम करने के लिये असली लड़ाई लड़ रहे SPCBs को पर्याप्त संसाधन, आवश्यक विशेषज्ञता और कौशल तथा उपयुक्त उपकरणों की कमी जैसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है।  
  • दिल्ली स्थित CPCB के पास आवश्यक धन और अन्य संसाधनों की कोई कमी नहीं होती। हालाँकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, जबकि उन्हें CPCB द्वारा बनाए नियमों के कार्यान्वयन का उत्तरदायित्त्व सौंपा गया है।  

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) की चुनौतियाँ:    

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रमुख चुनौतियों को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है:  

1. कर्मचारियों और संसाधनों की कमी: देश के अधिकांश राज्यों के ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ में कर्मचारियों की भारी कमी देखी गई है। उदाहरण के लिये हरियाणा राज्य प्रदूषण बोर्ड में कर्मचारियों की कमी 70% तक पहुँच गई है, जिसका अर्थ है कि एक अधिकारी को किसी तकनीकी कर्मचारी के सहयोग के  बिना ही पूरे एक ज़िले (कई मौकों पर दो ज़िले भी) में प्रदूषण नियंत्रण की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई है। राज्य में NGT के निर्देश पर बने विशेष पर्यावरण निगरानी कार्य बल के लिये सिर्फ एक अधिकारी की नियुक्ति की गई है जिसे कई अन्य कार्यों की ज़िम्मेदारी भी दी गई है। इसी प्रकार हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पूरे राज्य के लिये केवल चार प्रयोगशालाएँ हैं।

2. विशेषज्ञता का अभाव: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में नियुक्ति के बाद वैज्ञानिकों को किसी विशेष क्षेत्र (जैव चिकित्सा अपशिष्ट या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आदि) में विशेषज्ञता प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाता है। साथ ही उन्हें इसके लिये प्रोत्साहित किया जाता है और इसी आधार पर उनकी पदोन्नति होती है। जबकि SPCBs में एक ही अधिकारी को प्रदूषण की सभी श्रेणियों की ज़िम्मेदारी दे दी गई है, जिससे उनके लिये किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करना बहुत ही कठिन हो जाता है।

  • इसी प्रकार कई मामलों में SPCBs में शीर्ष पदों पर नियुक्त अधिकारियों के पास प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याओं को समझने के लिये पर्यावरण या विज्ञान से संबंधित विशेषज्ञता नहीं होती है। साथ ही ऐसे बोर्डों की अध्यक्षता कर रहे अधिकारी कई बार अन्य विभागों में शामिल होते हैं, कुछ मामलों में दोनों विभाग एक दूसरे के विपरीत भी  होते हैं।
  • वर्ष 2008 की एक संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, देश के विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में 77% अध्यक्ष और 55% सदस्य सचिव अपने पदों पर कार्य करने के योग्य नहीं थे। 
  • देश के आठ SPCBs में किये गए एक सर्वेक्षण में अधिकांश कर्मचारियों को प्रदूषण के कई  महत्त्वपूर्ण मानकों के इतिहास और उनके उद्देश्य के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
  • वर्ष 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के कई राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मणिपुर आदि ) में SPCBs में शीर्ष पदों पर राजनीतिक दलों के सदस्यों की नियुक्ति की गई थी।

3. विधिक कौशल का अभाव:  अधिकांश  SPCBs में प्रदूषण के आरोप में पकड़े गए लोगों या संस्थाओं पर मामले चलाने के लिये विधिक कौशल की भारी कमी देखी गई है। हालाँकि अधिकांश SPCBs के प्रधान कार्यालयों में एक कानूनी सेल होता है परंतु उनमें पूर्णकालिक सरकारी वकीलों की संख्या बहुत ही कम होती है। 

4. वित्तीय चुनौतियाँ: देश के अधिकांश राज्यों में SPCBs के सामने व्यवस्थित वित्तीय प्रबंधन का अभाव एक बड़ी चुनौती बन गया है। उदाहरण के लिये हरियाणा के साथ ही देश के कई अन्य राज्यों में SPCBs की आय का एक बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा बजटीय आवंटन की बजाय बोर्ड द्वारा औद्योगिक परियोजनाओं के लिये जारी किये जाने वाले ‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’ और ‘संचालित करने की सहमति’  के प्रमाणपत्र से प्राप्त शुल्क से आता है। 

5. अतिरिक्त उत्तरदायित्व: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों में से एक औद्योगिक क्षेत्रों में नियमित रूप से प्रदूषण का ऑनसाइट निरीक्षण करना है। आमतौर पर देखा गया है कि SPCBs के क्षेत्रीय कार्यालयों पर इस कार्य की ज़िम्मेदारी के अतिरिक्त कई अन्य उत्तरदायित्वों का भार डाल दिया जाता है जिनका प्रदूषण नियंत्रण से कोई संबंध नहीं है। उदाहरण के लिये हरियाणा राज्य प्रदूषण बोर्ड के दायरे में पोल्ट्री फार्म भी हैं।  

  • संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2008 में कर्नाटक और महाराष्ट्र के SPCBs प्रत्येक उद्योग का वर्ष भर में एक बार निरीक्षण करने में सफल नहीं रहे थे,  इस दौरान प्रति उद्योग प्रतिवर्ष औसत निरीक्षण, महाराष्ट्र के लिये 0.3 बार और कर्नाटक के लिये यह 0.63 था। विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले एक दशक में इस स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है।

6. समन्वय की कमी:  राज्यों में विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण SPCBs की भूमिका मात्र एक सलाहकारी निकाय के रूप में रह जाती है, SPCBs द्वारा संबंधित विभागों को प्रदूषण नियंत्रण के संदर्भ में आवश्यक सुधार हेतु जानकारी देने के बावजूद इनका पालन नहीं होता है।  

प्रभाव: 

  • SPCBs में विधि विशेषज्ञों की अनुपस्थिति में अन्य अधिकारियों या कर्मचारियों को आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हेतु दस्तावेज़ तैयार करना पड़ता है, विधिक मामलों की जानकारी के अभाव के कारण ऐसे मामले बहुत ही कमज़ोर हो जाते है या कई मामलों को  दस्तावेज़ में व्याप्त कमियों के कारण न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है।
  • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार, स्टाफ की कमी और अतिरिक्त कार्यों का दबाव निरीक्षण में देरी का प्रमुख कारण है। 
  • एक ही अधिकारी को कई विभाग देने, राजनितिक सदस्यों की नियुक्ति और वित्तीय स्वतंत्रता का अभाव SPCBs की कार्यप्रणाली में बाहरी हस्तक्षेप की संभावनाओं को बढ़ाता है।
  • SPCBs को वायु, जल प्रदूषण, औद्योगिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाले प्रदूषण के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की निगरानी का दायित्व दिया गया है, ऐसे में इसमें अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित विशेषज्ञों का अभाव इसकी कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठाता है।
  • वर्ष 2016 में विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण हुई मौतों और बीमारियों की वजह से भारी आर्थिक क्षति होती है, वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2013 में श्रमिक आय के रूप में कुल 225 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षति हुई यदि इसमें देखभाल पर किये गए खर्च को जोड़ा जाए तो यह क्षति 5.11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुँच सकती है।  

आगे की राह: 

  • प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये योजनाओं के निर्माण के साथ-साथ उनके क्रियान्वयन में पारदर्शिता और संबंधित विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय होना बहुत ही आवश्यक है।
  • हाल में सरकार की कई योजनाओं से प्रदूषण को कम करने में कुछ सीमित सफलता (जैसे-CNG के प्रयोग से यातायात प्रदूषण और उज्ज्वला योजना से घरेलू प्रदूषण में कमी) देखने को मिली है परंतु वर्तमान संकट को दूर करने के लिये SPCBs की कार्यप्रणाली में व्याप्त गंभीर अनियमितताओं को शीघ्र दूर किया जाना बहुत ही आवश्यक है।
  • सरकार द्वारा SPCBs की वित्तीय चुनौतियों को दूर करने के साथ उनमें बाहरी हस्तक्षेप की संभावनाओं को कम करते हुए इसकी स्वायत्तता और संस्थागत पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष: 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित देश के विभिन्न शहरों में प्रदूषण का बढ़ना, यहाँ रह रहे लोगों की जीवन-शैली, परिवहन, उद्योग, भौगोलिक स्थिति और कृषि से होने वाले प्रदूषण जैसे कई अनेक कारकों का एक जटिल मिश्रण है। प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष बीमारियों, प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण आदि के रूप में भारी क्षति होती है। प्रदूषण नियंत्रण के लिये हमारी दैनिक जीवन-शैली में बदलाव के साथ लक्षित योजनाओं का निर्माण और उनका प्रभावी क्रियान्वयन बहुत ही आवश्यक है। हालाँकि वर्तमान में वित्तीय चुनौतियों, अतिरिक्त कार्य का दबाव और अकुशल नेतृत्त्व वाले SPCBs के माध्यम से इन लक्ष्यों को प्राप्त करना अत्यंत कठिन होगा, ऐसे में SPCBs को सशक्त बनाने के लिये इनमें मानव संसाधन, विशेषज्ञ, आवश्यक तकनीकी उपकरणों आदि की कमियों को दूर किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों और इनके दुष्प्रभावों का संक्षिप्त विवरण दीजिये। इसके साथ ही पिछले दो दशकों के विभिन्न प्रयासों के बावजूद वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में सरकार की असफलता के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिये। 


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