जैव विविधता और पर्यावरण
पर्यावरण और विकास
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में आरे जंगलों के संबंध में हो रहे विरोध प्रदर्शनों और उनसे संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
मुंबई स्थित आरे मिल्क कॉलोनी में हज़ारों पेड़ों की कटाई ने देश में पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन पर एक नई बहस को जन्म दिया है, देश की आर्थिक राजधानी में आरे बचाओ आंदोलन के तहत हज़ारों लोग लामबंद हो गए हैं और सड़कों पर आकर अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। ऐसे में यह प्रश्न अनिवार्य हो जाता है कि क्या हम पर्यावरण की अनदेखी करते हुए विकास के नए आयाम प्राप्त कर सकते हैं? उल्लेखनीय है कि आरे जंगलों के कारण ही मुंबई दुनिया के उन अनोखे महानगरों में शामिल है जिनमें कंक्रीट के जंगलों के साथ-साथ एक असली जंगल भी मौजूद है।
क्यों हो रहा है विरोध प्रदर्शन?
- यह विवाद मार्च 2015 में तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने आरे कॉलोनी में मेट्रो कार शेड की स्थापना से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिये छह सदस्यों की एक तकनीकी समिति नियुक्त की।
- 12 जून, 2015 को पर्यावरण विशेषज्ञों ने अपनी असंतुष्टि ज़ाहिर करते हुए कहा कि आरे कॉलोनी में पेड़ों को बिना किसी समझौते के बचाया जाना चाहिये, क्योंकि यह मुंबई का एक बहुत ही वांछनीय पारिस्थितिक क्षेत्र है।
- 29 अगस्त, 2019 को मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) ने अपनी परियोजनाओं हेतु बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) की ट्री अथॉरिटी (Tree Authority) से 2,185 पेड़ों को काटने और 460 पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने की अनुमति प्राप्त कर ली।
- आरे के जंगलों को बचाने के लिये विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत तब हुई जब 5 अक्तूबर, 2019 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी मेट्रो हेतु कार शेड बनाने के लिये मुंबई मेट्रो को पेड़ काटने की अनुमति दे दी।
- मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (MMRCL) ने कोर्ट के आदेश के कुछ ही घंटों बाद आरे के जंगलों में पेड़ों को काटना शुरू कर दिया जिसके बाद व्यापक रूप से विरोध प्रदर्शन शुरु हो गए और इसके तहत मुंबई पुलिस ने कई पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार भी किया।
- आरे में पेड़ों की कटाई पर महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि यह कार्य राज्य में विकास हेतु अनिवार्य है और मुंबई मेट्रो से राज्य के निवासियों को परिवहन के लिये एक पर्यावरण हितैषी साधन प्राप्त होगा।
- वहीं प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे ऐसे विकास का समर्थन कभी नहीं करेंगे जिसकी लागत पर्यावरण को चुकानी पड़ रही हो।
मेट्रो का नहीं हो रहा है विरोध
पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और आरे बचाओ आंदोलन में शामिल लोगों का कहना है कि वे राज्य में मेट्रो का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे तो इतनी अधिक संख्या में पेड़ों के काटे जाने का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि आरे के जंगलों में स्टेशन बनाने का निर्णय हास्यास्पद है, क्योंकि इन जंगलों के आस-पास रहने वाले लोगों की संख्या काफी कम है और जो रहते भी हैं उनका इससे दूर-दूर तक कुछ लेना-देना नहीं है।
आरे जंगलों का इतिहास
- आज़ादी के समय मुंबई काफी अच्छी गति से विकास कर रहा था, यह व्यवसायियों का सबसे पसंदीदा शहर था।
- विदित है कि किसी भी शहर के विकास के लिये आवश्यक है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में कृषि उपज आपूर्ति की व्यवस्था हो, जिसमें से अधिकांश वस्तुओं को लंबी दूरी से लाया जा सकता है लेकिन कुछ को स्थानीय क्षेत्रों से लाना पड़ता है और दूध एक ऐसी ही वस्तु है।
- इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आरे मिल्क कॉलोनी का विकास किया गया था।
- आरे मिल्क कॉलोनी की स्थापना वर्ष 1949 में हुई थी और वर्ष 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका उद्घाटन किया था एवं इसकी अभिकल्पना दारा एन. खुरोदी द्वारा की गई थी।
- जिसके बाद मात्र कुछ ही वर्षों में इस क्षेत्र में इतने पेड़ लगाए गए कि 3166 एकड़ क्षेत्रफल में फैला यह इलाका जंगल की तरह दिखने लगा।
क्यों ज़रूरी है आरे
- इस साल मार्च में जारी एक रिपोर्ट में सामने आया था कि मुंबई, महाराष्ट्र में सबसे प्रदूषित शहर और राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण के मामले में 27वें स्थान पर था।
- इसी साल जून में सरकार ने लोकसभा के समक्ष केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आँकड़े पेश करते हुए बताया था कि मुंबई में वर्ष 2018 की वायु गुणवत्ता पिछले 20 वर्षों की तुलना में सबसे खराब थी।
- उल्लेखनीय है कि मुंबई के कई पर्यावरण जानकार आरे के जंगलों को राज्य के फेफडों की भी संज्ञा देते हैं।
- वर्ष 1949 में स्थापित इस मिल्क कॉलोनी में पक्षियों की लगभग 77 प्रजातियाँ और साँपों की लगभग 46 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। साथ ही इस इलाके में तितलियों की भी अलग-अलग 86 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- हाल ही में इस क्षेत्र के अंतर्गत मकड़ी और बिच्छू की एक नई प्रजाति भी खोजी गई है।
- इस क्षेत्र में 0.4 मिलियन पेड़ों के साथ वनस्पतियों की अद्भुत विविधता है। यहाँ उन प्रजातियों की पुनः खोजा की गई है जो पहले विलुप्त घोषित कर दी गई थीं।
जंगल नहीं है आरे
आरे के इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इसकी स्थापना मुख्यतः व्यावसायिक गतिविधियों हेतु की गई थी, परंतु समय के साथ यहाँ इतने अधिक पेड़ लगाए गए कि यह एक जंगल जैसा लगने लगा। वर्तमान समय में यहाँ 4 लाख से अधिक पेड़, एक सक्रिय पारिस्थितिकी तंत्र, दुर्लभ पक्षी एवं जानवर, झीलें, खेत हैं और साथ ही कुछ आदिवासी समुदायों के लोग रहते हैं। ध्यातव्य है कि ये सभी विशेषताएँ किसी भी एक सामान्य जंगल में देखी जा सकती हैं। वर्ष 2015 में वनशक्ति नाम के एक NGO ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर कर आग्रह किया कि आरे को "जंगल" घोषित किया जाए, परंतु यह याचिका सितंबर 2018 में खारिज कर दी गई। इसके अलावा कोर्ट में इस संदर्भ में दायर की गई कई अन्य याचिकाओं की सुनवाई अभी शेष है।
पर्यावरण पर प्रभाव
- प्रस्तावित कार शेड में मेट्रो की धुलाई, रखरखाव और मरम्मत जैसी सुविधाएँ होंगी। मेट्रो कार शेड एक ‘रेड श्रेणी’ उद्योग है, जिससे काफी अधिक मात्रा में प्रदूषण होता है।
- प्रदर्शन में शामिल लोगों का कहना है कि शेड में होने वाली गतिविधियों में तेल, ग्रीस और बिजली के कारण कचरा पैदा होता है, इसके अलावा एसिड और पेंट जैसी खतरनाक सामग्री भी यहाँ मिलती है जो आरे के पारिस्थितिक तंत्र को बर्बाद कर सकती है।
- उनका कहना है कि शेड का अपशिष्ट पास की मीठी नदी में प्रवाहित होगा और यह नदी को प्रदूषित करने के साथ-साथ भूजल को भी दूषित करेगा।
- इसके अलावा शेड के निर्माण से क्षेत्र विशेष में भूजल संसाधनों का दोहन बढ़ जाएगा।
मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का पक्ष
- मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अनुसार, प्रस्तावित कार शेड केवल 33 हेक्टेयर में स्थापित किया जाएगा, जो कि आरे के कुल क्षेत्र का बमुश्किल 2 प्रतिशत है।
- कॉर्पोरेशन का कहना है कि शेड के लिये निर्धारित 33 हेक्टेयर के अतिरिक्त आरे का अन्य कोई भी हिस्सा प्रभावित नहीं होगा।
- साथ ही मेट्रो ने तर्क भी दिया है कि यह परियोजना समग्र कार्बन फुटप्रिंट को कम करके पर्यावरणीय लाभ प्राप्त करने में भी मदद करेगी।
- कॉर्पोरेशन द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि मेट्रो के 7 दिनों के परिचालन से कार्बन डाइऑक्साइड में उतनी ही कटौती की जा सकेगी जितनी 2700 पेड़ मिलकर एक साल के अंतर्गत करते हैं।
निष्कर्ष
यह सत्य है कि मज़बूत आधारिक संरचना के अभाव में किसी भी समाज के लिये विकास करना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल होता है, परंतु इस तथ्य का पालन करते हुए पर्यावरण को पूर्णतः नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। अतः यह आवश्यक है कि यदि कभी देश के विकास और पर्यावरण के मध्य द्वंद्व उत्पन्न हो तो विवेक के साथ इस विषय पर विचार किया जाए और ऐसे वैकल्पिक रास्तों की तलाश की जाए जो पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए हमें विकास की नई दिशा दिखाएँ।
प्रश्न: आरे जंगल का उदाहरण देते हुए समाज में विकास और पर्यावरण के मध्य द्वंद्व को स्पष्ट कीजिये।