एडिटोरियल (11 Jun, 2021)



न्याय वितरण प्रणाली में तकनीक का उपयोग

यह एडिटोरियल दिनांक 10/06/2021 को द हिंदू में प्रकाशित लेख “The promise and perils of digital justice delivery” पर आधारित है। इसमें ई-कोर्ट परियोजना के प्रस्तावित चरण III से संभावित लाभ और इससे जुड़े मुद्दों के बारे में बात करता है।

संदर्भ

भारतीय न्यायालयों में न्याय की प्रक्रिया सामान्यतः काफी लंबी, देरी और कठिनाइयों से भरी होती हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जून 2020 में जारी आॅंकड़ों के अनुसार, भारतीय न्यायालयों में 3.27 करोड़ मामले लंबित हैं, जिनमें से 85,000 मामले 30 से अधिक वर्षों से लंबित हैं।

अतः लंबित मामलों और अन्य समस्याओं के समाधान के लिये ई-कोर्ट के रूप में तकनीक का उपयोग किया जा रहा हैं।वीहालाँकि प्रौद्योगिकी का क्रांतिकारी उपयोग न्यायालयों में केवल तभी किया जा सकता है जब यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संवैधानिक ढाॅंचे के भीतर काम करती है। यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो इससे जुड़ी प्रौद्योगिकी आगे लोगों में बहिष्करण, असमानता और उनकी निगरानी जैसी समस्याओं को पैदा कर सकती है।

ई-कोर्ट परियोजना का प्रस्तावित चरण lll: पृष्ठभूमि

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने हाल ही में ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण के लिये अपना मसौदा विज़न दस्तावेज़ जारी किया।
  • चरण I और II में न्यायपालिका के डिजिटलीकरण यानी ई-फाइलिंग, ऑनलाइन मामलों पर नज़र रखने, निर्णयों को ऑनलाइन अपलोड करने आदि कार्यों का क्रियान्वयन किया गया था। इससे न्याय के वितरण की प्रक्रिया आसान बनाने में मदद मिली है।
  • उदाहरण के लिये ई-कोर्ट परियोजना के दूसरे चरण में राष्ट्रीय सेवा और इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की ट्रैकिंग का विकास देखा गया, एक ऐसा सॉफ़्टवेयर जिसने सम्मन हेतु ई-सेवा को सक्षम किया।
  • कोविड -19 महामारी के कारण कुछ समस्याओं के बावजूद, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय ऑनलाइन कार्य करने में सक्षम हैं।
  • ई-कोर्ट परियोजना का चरण III न्यायिक प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के लिये अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है और निचली न्यायपालिका के इलेक्ट्रॉनिक बुनियादी ढाॅंचे को उन्नत करने और वकीलों और वादियों तक पहुॅंच को सक्षम करने की योजना है।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तीसरे चरण में न्याय प्रदान करने के लिये "इकोसिस्टम दृष्टिकोण" का प्रस्ताव है।

ई-कोर्ट परियोजना

  • ई-कोर्ट परियोजना की परिकल्पना ‘भारतीय न्यायपालिका में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय नीति एवं कार्ययोजना-2005’ के आधार पर की गई थी।
  • ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट (e-Courts Mission Mode Project), एक पैन-इंडिया प्रोजेक्ट (Pan-India Project) है, जिसकी निगरानी और वित्त पोषण देश भर में ज़िला न्यायालयों के लिये न्याय विभाग, कानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा की जाती है।

परियोजना की परिकल्पना

  • ई-कोर्ट प्रोजेक्ट लिटिगेंट चार्टर (e-Court Project Litigant's Charter) में विस्तृत रूप में कुशल और समयबद्ध नागरिक-केंद्रित सेवाएँ प्रदान करना।
  • न्यायालयों में निर्णय समर्थन प्रणाली को विकसित, स्थापित एवं कार्यान्वित करना।
  • अपने हितधारकों तक सूचना की पारदर्शी पहुँच प्रदान करने के लिये प्रक्रियाओं को स्वचालित करना।
  • गुणात्मक एवं मात्रात्मक न्यायिक परिणामों में वृद्धि के लिये न्याय प्रणाली को सस्ता, सुलभ, लागत प्रभावी, पूर्वानुमेय, विश्वसनीय तथा पारदर्शी बनाना।

ई- समिति

  • ई-समिति एक निकाय है जो तकनीकी संचार एवं प्रबंधन संबंधी परिवर्तनों के लिये सलाह देता है।
  • यह भारतीय न्यायपालिका का कम्प्यूटरीकरण कर राष्ट्रीय नीति तैयार करने में सहायता के लिये भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से प्राप्त एक प्रस्ताव के अनुसरण में बनाया गया है।
  • ई-समिति की स्थापना वर्ष 2004 में न्यायपालिका में IT के उपयोग तथा प्रशासनिक सुधारों के लिये एक गाइड मैप प्रदान करने के लिये की गई थी।
  • ई-समिति के कामकाज से संबंधित सभी व्यय जिसमें अध्यक्ष, सदस्यों और सहायक कर्मचारियों के वेतन तथा भत्ते आदि शामिल हैं, भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत बजट से प्रदान किये जाते हैं।

इकोसिस्टम दृष्टिकोण: संभावित लाभ

  • सूचनाओं का निर्बाध आदान-प्रदान: इसके माध्यम से राज्य की विभिन्न शाखाओं, जैसे- न्यायपालिका, पुलिस और जेल प्रणालियों के बीच इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (Interoperable Criminal Justice System-ICJS) के माध्यम से डेटा का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
  • एकरूपता और मानकीकरण: तीसरे चरण के तहत यह व्यक्तियों की पहचान किये बिना मुद्दों के बारे में समेकित और सांख्यिकीय रूप से सही जानकारी प्रदान करेगा। अतः डेटा एकत्रीकरण उपयोगी हो सकता है ।
    • चरण III में एंट्री क्षेत्रों (Entry Fields) की एकरूपता और मानकीकरण को प्रोत्साहित करके इसे संभव बनाया जा सकता है।
  • 360-डिग्री प्रोफाइलिंग: तीसरे चरण में सरकारी एजेंसियों के साथ उनके सभी बातचीत (Interactions) को एक डेटाबेस में एकीकृत करके प्रत्येक व्यक्ति की 360-डिग्री प्रोफाइल बनाने की परिकल्पना की गई है।
    • एक बार जब कोई सरकारी विभाग ऑनलाइन हो जाता है, तो उनके 'पेन-एंड-पेपर रजिस्टर' एक्सेल शीट बन जाएॅंगे, जिन्हें एक क्लिक के साथ साझा किया जा सकता है।
    • स्थानीयकृत डेटा केंद्रीकृत हो जाएगा जिससे समस्या के समाधान में बड़ी प्रगति हो सकती है।

इकोसिस्टम दृष्टिकोण से संबद्ध चुनौतियाॅं

  • असमानताओं को बढ़ावा देना: आपराधिक न्याय और पुलिस जवाबदेही परियोजना जैसे संगठनों द्वारा यह बताया गया है कि ICJS संभावित रूप से वर्ग और जाति की असमानताओं को बढ़ा देगा जो पुलिस और जेल प्रणाली की विशेषता है।
    • उदाहरण के लिये आपराधिक डेटा निर्माण की ज़रूरत स्थानीय पुलिस स्टेशनों में होती है।
    • स्थानीय स्टेशनों ने ऐतिहासिक रूप से औपनिवेशिक युग के कानूनों के माध्यम से पूरे समुदायों के अपराधीकरण में योगदान दिया है जैसे - 1871 का आपराधिक जनजाति अधिनियम ऐसे समुदायों को "आदतन अपराधी" बताकर पूरे समुदाय का अपराधीकरण कर दिया।
  • गृह मंत्रालय के पास डेटा का भंडारण: यह विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि ई-कोर्ट परियोजना के माध्यम से जिन डेटा को एकत्रित किया जाएगा, साझा किया जाएगा एवं समाकलित किया जाएगा उसे ICJS के तहत गृह मंत्रालय के संरक्षण में रखा जाएगा। अदालतें विभिन्न प्रकार के मामलों को सुलझाती हैं, जिनमें से कुछ विशुद्ध रूप से दीवानी, वाणिज्यिक या व्यक्तिगत प्रकृति के हो सकते हैं।
    • इस बात का कोई स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि गृह मंत्रालय को ऐसे अदालती डेटा तक पहुॅंच की आवश्यकता क्यों है जिसका आपराधिक कानून से कोई संबंध नहीं हो सकता है।
  • डेटा गोपनीयता का मुद्दा: डेटा एकत्रीकरण गोपनीयता मानकों का उल्लंघन नहीं कर सकता है जो कि पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले(वर्ष 2017) में निर्धारित है, खासकर जब तक भारत में डेटा सुरक्षा व्यवस्था नहीं है।
  • लक्षित निगरानी का डर: लक्षित विज्ञापनों के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा किसी व्यक्ति की 360-डिग्री प्रोफाइलिंग किया जाता है।
    • हालाँकि अंतर यह है कि जब प्रौद्योगिकी कंपनियाॅं ऐसा करती हैं तो हमें लक्षित विज्ञापन मिलते हैं, लेकिन अगर सरकार ऐसा करती है तो हम लक्षित निगरानी के शिकार होते हैं।

निष्कर्ष

चूॅंकि तीसरे चरण का विज़न दस्तावेज़ अभी तक केवल एक मसौदा है, अतः न्यायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, लंबित मामलों को कम करने और शीघ्र न्याय पाने में वादियों की सहायता करने हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का उचित अवसर है। हालाॅंकि यह हमारे मौलिक अधिकारों की सीमा के भीतर किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: न्याय वितरण प्रणाली को सुव्यवस्थित करने में प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन अपने आप में प्रौद्योगिकी की भूमिका मुख्य नहीं हो सकती। ई-कोर्ट परियोजना के प्रस्तावित चरण III के संदर्भ में कथन पर चर्चा कीजिये।