विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
AI के माध्यम से विधि-व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन
यह एडिटोरियल 10/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Directing AI for better and smarter legislation’’ लेख पर आधारित है। इसमें विधि-निर्माण, नीति-निर्माण और संसदीय गतिविधियों की दक्षता, पारदर्शिता एवं प्रभावशीलता को बेहतर बनाने में AI द्वारा प्रस्तुत संभावित लाभों और अवसरों की चर्चा की गई है।
संदर्भ
विभिन्न उद्योगों में प्रक्रियाओं को स्वचालित और सुव्यवस्थित करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। हाल के वर्षों में विधायी प्रक्रियाओं को संवृद्ध के लिये भी AI उपकरणों या साधनों (AI tools) के उपयोग में रुचि बढ़ी है। ये उपकरण विधि-निर्माताओं को डेटा की बड़ी मात्रा का विश्लेषण करने, प्रतिरूपों एवं प्रवृत्तियों को चिह्नित करने और अधिक सूचना-संपन्न निर्णय (informed decisions) लेने में सहायता कर सकते हैं।
- हालाँकि विधायी प्रक्रियाओं में AI के उपयोग से संबद्ध नैतिक निहितार्थों के बारे में—विशेष रूप से पूर्वाग्रह और पारदर्शिता संबंधी मुद्दों के संबंध में, चिंताएँ भी प्रकट की गई हैं। इसके साथ ही, भारत में मौजूदा कानूनों (जो जटिल और अपारदर्शी हैं) से संबद्ध कई चुनौतियाँ भी हैं, जिससे AI के लिये प्रभावी कार्यकरण कठिन हो जाता है।
- इसलिये, विधायी प्रक्रियाओं में AI का उपयोग करने से जुड़े लाभों और संभावित हानियों पर सावधानीपूर्वक विचार करना अत्यंत आवश्यक है।
विधि-निर्माण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्या भूमिका निभा सकता है?
- विधायी प्रक्रियाओं को संवृद्ध करना:
- AI उपकरण विधि-निर्माताओं के लिये प्रतिक्रियाएँ तैयार करने, अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ाने, किसी भी विधेयक के बारे में जानकारी प्राप्त करने, संक्षिप्त लेख तैयार करने, सदन के नियम विशेष के बारे में जानकारी प्रदान करने, विधायी प्रारूपण, संशोधन, हस्तक्षेप आदि में संसद सदस्यों की सहायता कर सकते हैं। यह विधायी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और उन्हें अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स’ ने विधेयकों, संशोधनों और मौजूदा कानूनों के बीच अंतर का विश्लेषण करने की प्रक्रिया को स्वचालित करने के लिये एक AI उपकरण का उपयोग शुरू किया है।
- AI उपकरण विधि-निर्माताओं के लिये प्रतिक्रियाएँ तैयार करने, अनुसंधान की गुणवत्ता बढ़ाने, किसी भी विधेयक के बारे में जानकारी प्राप्त करने, संक्षिप्त लेख तैयार करने, सदन के नियम विशेष के बारे में जानकारी प्रदान करने, विधायी प्रारूपण, संशोधन, हस्तक्षेप आदि में संसद सदस्यों की सहायता कर सकते हैं। यह विधायी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और उन्हें अधिक कुशल बनाने में मदद कर सकता है।
- अनुसंधान गुणवत्ता:
- AI डेटा की बड़ी मात्रा के विश्लेषण, प्रतिरूपों एवं प्रवृत्तियों की पहचान और परिणामों को व्यापक तरीके से प्रस्तुत करने के माध्यम से गहन अनुसंधान में सहायता कर सकता है। यह विधि-निर्माताओं को विश्वसनीय डेटा एवं साक्ष्य के आधार पर सूचना-संपन्न निर्णय लेने में मदद कर सकता है।
- निर्णयन में सहायता:
- AI विभिन्न कारकों का विश्लेषण करके और विभिन्न नीति विकल्पों के संभावित परिणामों के बारे में पूर्वानुमान व्यक्त कर संसद सदस्यों को निर्णयन में सहायता प्रदान कर सकता है। यह निर्णयन की परिशुद्धता में सुधार लाने और अनपेक्षित परिणामों के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।
- नागरिकों की शिकायतों का विश्लेषण:
- पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों की तुलना में भारत में संसद सदस्यों को विशाल आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों का प्रबंधन करना होता है।
- AI नागरिकों की शिकायतों और सोशल मीडिया प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण कर सकता है तथा उन मुद्दों एवं प्राथमिकताओं को चिन्हित कर सकता है जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
- यह विधियों पर सार्वजनिक परामर्श और घोषणापत्र तैयार करने के लिये नागरिक मत को आमंत्रित करने में भी संसद सदस्यों की सहायता कर सकता है।
- कानूनों के संभावित प्रभावों का अनुकरण करना:
- विधायी प्रक्रियाओं में AI का उपयोग किसी नीति के संभावित परिणामों को उजागर करने के लिये विभिन्न डेटासेट (जैसे कि जनगणना, घरेलू उपभोग, करदाताओं, विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों, सार्वजनिक अवसंरचना आदि पर डेटा) की मॉडलिंग में मदद कर सकता है।
- यह उन कानूनों को चिह्नित करने में भी मदद कर सकता है जो वर्तमान परिस्थितियों में पुराने पड़ चुके हैं और जिनमें संशोधन की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी के दौरान यह प्रकट हुआ कि ‘महामारी रोग अधिनियम, 1897’ (Epidemic Diseases Act, 1897) स्थिति को उपयुक्त रूप से संबोधित करने में विफल है। इसने पुराने कानूनों पर पुनर्विचार करने और उन्हें अद्यतन करने की आवश्यकता को उजागर किया।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) के कई प्रावधान भी विवादास्पद और बेमानी हैं, जैसे कि अनुच्छेद 309 (आत्महत्या का प्रयास), जो अभी भी एक आपराधिक कृत्य बना हुआ है।
- AI ऐसे पुराने कानूनों की पहचान कर और अधिक प्रासंगिक कानूनों एवं नीतियों पर ध्यान केंद्रित कर विधायी प्रक्रिया को कारगर बनाने में मदद कर सकता है।
- आपराधिक विधान के ऐसे कई खंड हैं जो 100 वर्ष से पहले अधिनियमित किये गए और वर्तमान में शायद ही कोई प्रासंगिकता रखते हैं, जैसे कि प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867, सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867, जेल अधिनियम 1894 आदि।
विधायी प्रक्रियाओं में AI के उपयोग से संबद्ध प्रमुख चिंताएँ
- पारदर्शिता की कमी:
- AI मॉडल अत्यधिक जटिल हो सकते हैं और यह समझना कठिन हो सकता है कि वे किस प्रकार निर्णय ले रहे हैं। पारदर्शिता की यह कमी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमज़ोर कर सकती है, यदि विधि-निर्माता और आम लोग विधायी निर्णयों के पीछे के तर्क को समझने में असमर्थ होंगे।
- पूर्वाग्रह:
- AI मॉडल बस उतने ही वस्तुपरक या उद्देश्यपूर्ण होते हैं जितने डेटा पर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। यदि AI मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिये उपयोग किया जाने वाला डेटा पूर्वाग्रह रखता है या पक्षपातपूर्ण है तो मॉडल अपने निर्णयों में उस पूर्वाग्रह को दोहरा सकता है या उसे बढ़ा भी सकता है।
- इससे भेदभावपूर्ण परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि ऐसे कानूनों का निर्माण जो कुछ समूहों को असंगत रूप से प्रभावित करें।
- AI मॉडल बस उतने ही वस्तुपरक या उद्देश्यपूर्ण होते हैं जितने डेटा पर उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। यदि AI मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिये उपयोग किया जाने वाला डेटा पूर्वाग्रह रखता है या पक्षपातपूर्ण है तो मॉडल अपने निर्णयों में उस पूर्वाग्रह को दोहरा सकता है या उसे बढ़ा भी सकता है।
- जवाबदेही:
- यदि विधायी निर्णय लेने में AI का उपयोग किया जाता है तो परिणामों के लिये किसी को भी जवाबदेह ठहराना कठिन सिद्ध हो सकता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिये एक चुनौती पेश कर सकता है, क्योंकि जवाबदेही प्रतिनिधि शासन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- साइबर सुरक्षा:
- विधायी प्रक्रियाओं में प्रायः संवेदनशील एवं गोपनीय सूचना शामिल होती है। यदि इन प्रक्रियाओं में उपयोग की जाने वाली AI प्रणालियाँ उपयुक्त रूप से सुरक्षित नहीं हैं तो वे साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं और इस सूचना से समझौते की स्थिति बन सकती है।
- निर्भरता:
- विधायी प्रक्रियाओं में AI पर अत्यधिक निर्भरता निर्णय लेने में मानवीय तत्व को कम कर सकती है और इससे उस विशेषज्ञता एवं विवेक की हानि हो सकती है जो मानव अंतःक्रिया एवं विमर्श से आती है।
विश्व में उठाए गए संबंधित कदम
- नीदरलैंड की ‘Speech2Write’ प्रणाली:
- नीदरलैंड के ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स’ ने ‘Speech2Write’ प्रणाली को लागू किया है जो आवाज़ को लिखित शब्द या टेक्स्ट में परिवर्तित करता है तथा आवाज़ का लिखित रिपोर्ट में ‘अनुवाद’ भी करता है।
- Speech2Write में स्वचालित वाक् पहचान और स्वचालित संपादन क्षमताएँ संलग्न हैं जो पूरक शब्दों को हटा सकती हैं, व्याकरण संबंधी सुधार कर सकती हैं और संपादन निर्णयों का प्रस्ताव दे सकती हैं।
- जापान का AI टूल:
- यह विधि-निर्माताओं के लिये प्रतिक्रियाओं की तैयारी में सहायता करता है और संसदीय बहसों में प्रासंगिक मुख्य बातों के स्वत: चयन में भी मदद करता है।
- ब्राज़ील का यूलिसिस:
- ब्राज़ील ने यूलिसिस (Ulysses) नामक AI प्रणाली विकसित किया है जो पारदर्शिता एवं नागरिक भागीदारी का समर्थन करता है।
- भारत का दृष्टिकोण:
- भारत भी नवाचार अपना रहा है और संसदीय गतिविधियों को डिजिटल करने की दिशा में कार्यरत है। ‘वन नेशन, वन एप्लीकेशन’ (One Nation, One Application) और नेशनल ई-विधान (NeVA) पोर्टल इस दिशा में प्रमुख कदम हैं।
आगे की राह
- विधियों और विनियमों को संहिताबद्ध करना:
- सरकार को व्यापक और सुलभ तरीके से विधियों एवं विनियमों को संहिताबद्ध करने के अपने प्रयासों को जारी रखना चाहिये। यह AI-आधारित समाधानों के साथ कार्य कर सकने के लिये एक ठोस आधार प्रदान करेगा।
- एक एकीकृत मंच विकसित करना:
- एक एकीकृत मंच विकसित किया जाना चाहिये जो सभी कानूनों, विनियमों और अधिसूचनाओं के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करे। यह मंच नागरिकों, व्यवसायों और सरकारी अधिकारियों सहित सभी हितधारकों के लिये सुलभ होना चाहिये।
- सहकार्यता को प्रोत्साहित करना:
- विधायी कार्यों के लिये AI-आधारित समाधान सरकारी एजेंसियों, विधि विशेषज्ञों, प्रौद्योगिकी कंपनियों और नागरिक समाज संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच सहकार्यता के माध्यम से विकसित किये जाने चाहिये।
- पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करना:
- AI-आधारित समाधानों को पारदर्शी, व्याख्या-योग्य और जवाबदेह बनाने के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये। नागरिकों को यह समझने में सक्षम होना चाहिये कि AI किसी विशेष निर्णय या अनुशंसा तक कैसे पहुँचा।
- नागरिक-केंद्रित समाधानों पर ध्यान देना:
- AI-आधारित समाधानों को नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये। समाधान उपयोगकर्ता के अनुकूल और सभी के लिये सुलभ होने चाहिये, जिनमें दिव्यांगजन या सीमित डिजिटल साक्षरता रखने वाले लोग भी शामिल हैं।
- विधियों को मशीन-उपभोज्य बनाना:
- एक केंद्रीय विधि इंजन के साथ विधियों को मशीन-उपभोज्य (Machine-Consumable) बनाने की आवश्यकता है, जो सभी अधिनियमों, विधानों के अधीनस्थ खंडों, राजपत्र, अनुपालनों और विनियमनों के लिये सत्य का एकल स्रोत बन सकता है।
- उदाहरण के लिये:
- AI हमें बता सकता है कि कोई उद्यमी महाराष्ट्र में एक निर्माण इकाई शुरू करना चाहता है तो कौन-से अधिनियम और अनुपालन लागू होंगे।
- यदि कोई नागरिक कल्याणकारी योजनाओं के लिये पात्रता की जाँच करना चाहता है तो AI नागरिकों द्वारा प्रदान किये गए विवरण के आधार पर यह अनुशंसा कर सकता है कि कौन-सी योजनाएँ उसके अनुकूल हैं।
अभ्यास प्रश्न: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का विधायी प्रक्रिया एवं निर्णयन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है और यह संसद सदस्यों एवं समग्र रूप से समाज के लिये कौन-सी चुनौतियाँ और अवसर पेश करता है?
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न 1. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमता निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (वर्ष 2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b)
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