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एडिटोरियल

  • 11 Mar, 2020
  • 13 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्रूड ऑयल प्राइज़ वॉर

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सऊदी अरब-रूस के मध्य प्रारंभ हुए क्रूड ऑयल प्राइज़ वॉर और उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

कच्चे तेल के मूल्य में वर्ष 1991 में हुए खाड़ी युद्ध के बाद सबसे बड़ी गिरावट दिख रही है। हाल ही में सऊदी अरब ने रूस के साथ तेल के दामों को लेकर प्राइज़ वॉर छेड़ दिया है। दुनिया के प्रमुख तेल उत्पादक देशों के बीच उत्पादन में कटौती को लेकर सहमति न बन पाने के बाद सऊदी अरब ने अपनी तेल बिक्री की कीमतों में कटौती कर दी है, जिसके बाद कच्चे तेल की कीमत में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यह 17 जनवरी, 1991 को खाड़ी युद्ध प्रारंभ होने के बाद अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। इसके साथ ही खनिज तेल बाज़ार की दिग्गज कंपनी सऊदी अरामको ने तेल आपूर्ति बढ़ाने की घोषणा की है। इससे मांग की कमी से प्रभावित बाजार में आपूर्ति बढ़ने तथा सऊदी अरब और रूस के बीच बाज़ार में मूल्य गिराने की होड़ बढ़ने की आशंका है।

इस आलेख में पेट्रोलियम की निर्माण और शोधन प्रक्रिया, प्राइज़ वॉर के कारण, परिणाम तथा कोरोना वायरस के कारण वैश्विक तेल बाज़ार पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया जाएगा।

वर्तमान घटनाक्रम

  • तेल उत्पादक और निर्यातक देशों के संगठन ‘OPEC+’ की पिछले दिनों उत्पादन कटौती पर चल रही वार्ता विफल हो गई।
  • कच्चे तेल के घटते दाम को विक्रेता के हिसाब से उचित स्तर पर वापस लाने के लिये इन देशों ने उत्पादन में कटौती जारी रखने का प्रस्ताव रखा था, जिस पर सदस्य सहमत नहीं हुए। 
  • उसके बाद सऊदी अरब ने न केवल घरेलू कच्चे तेल के दाम एकदम घटाकर तीस वर्षो के निचले स्तर पर ला दिया, बल्कि यह फैसला भी किया कि वह अगले माह से उत्पादन बढ़ाकर इसे कम-से-कम एक करोड़ बैरल प्रतिदिन कर देगा। 
  • इस समय ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम 31.02 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं। 

ओपेक (Organization of Petrolium Exporting Countries-OPEC)

  • OPEC एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन 10-14 सितंबर, 1960 को आयोजित बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला ने किया था।
  • इन पाँच संस्थापक सदस्यों के बाद इसमें कुछ अन्य सदस्यों को शामिल किया गया, ये देश हैं-
  • क़तर (1961), इंडोनेशिया (1962), लीबिया (1962), संयुक्त अरब अमीरात (1967), अल्जीरिया (1969), नाइजीरिया (1971), इक्वाडोर (1973), अंगोला (2007), गैबन (1975), इक्वेटोरियल गिनी (2017) और कांगो (2018)
  • इक्वाडोर ने दिसंबर 1992 में अपनी सदस्यता त्याग दी थी, लेकिन अक्तूबर 2007 में वह पुनः OPEC में शामिल हो गया।
  • इंडोनेशिया ने जनवरी 2009 में अपनी सदस्यता त्याग दी। जनवरी 2016 में यह फिर से इसमें सक्रिय रूप से शामिल हुआ, लेकिन 30 नवंबर, 2016 को OPEC सम्मेलन की 171वीं बैठक में एक बार फिर इसने अपनी सदस्यता स्थगित करने का फैसला किया।
  • गैबन ने जनवरी 1995 में अपनी सदस्यता त्याग दी थी। हालाँकि, जुलाई 2016 में वह फिर से संगठन में शामिल हो गया।
  • कतर ने 1 जनवरी, 2019  में अपनी सदस्यता त्याग दी थी। अतः वर्तमान में इस संगठन में सदस्य देशों की संख्या 14 है। 

पेट्रोलियम का निष्कर्षण व शोधन 

  • पेट्रोलियम धरातल के नीचे स्थित अवसादी परतों के बीच पाया जाने वाला संतृप्त हाइड्रोकार्बन का काले-भूरे रंग का तैलीय द्रव है, जिसका प्रयोग वर्तमान में ईंधन के रूप में किया जाता है पेट्रोलियम को जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं, क्योंकि इसका निर्माण धरातल के नीचे उच्च ताप व दाब की परिस्थितियों में मृत जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के जीवाश्मों के रासायनिक रूपान्तरण से होता है। 
  • विश्व में सबसे पहले पेट्रोलियम कुएँ की खुदाई संयुक्त राज्य अमेरिका के पेंसिलवेनिया राज्य में स्थित टाइटसविले स्थान पर की गई थी ड्रिलिंग से प्राप्त होने वाले पेट्रोलियम को कच्चा तेल (Crude Oil) कहा जाता है। 
  • कच्चे तेल को रिफाइनरियों में प्रसंस्कृत किया जाता है पेट्रोलियम से ही पेट्रोल, मिट्टी के तेल, विभिन्न हाइड्रोकार्बन, ईंथरप्रकृतिक गैस आदि को प्राप्त किया जाता है। 
  • पेट्रोलियम से इसके अवयवों को अलग करने की विधि प्रभावी आसवन विधि (Fractional Distillation Method) कहा जाता है इसे पेट्रोलियम शोधन (Petroleum Refining) कहा जाता है

तेल की कीमतों में गिरावट के कारण

  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और रूस (सबसे बड़ा गैर-ओपेक उत्पादक) पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में कमी का सामना करने के लिये मौजूदा उत्पादन में कटौती करने के लिये किसी भी समझौते पर पहुँचने में विफल रहे।
  • रूस के उत्पादन में कटौती से इनकार करने के बाद सऊदी अरब ने नाराज़ होकर अप्रैल में तेल उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया है। सऊदी अरब अगले महीने अपने तेल उत्पादन को बढ़ाकर एक करोड़ बैरल प्रतिदिन करने की योजना बना रहा है।
  • सऊदी अरब, रूस समेत तेल उत्पादन करने वाले बड़े देश बाजार में वर्चस्व की जंग लड़ रहे हैं। दरअसल, अमेरिका ने शेल ऑयल फील्ड से पिछले दशक में तेल उत्पादन बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। अमेरिका जिस तेजी से तेल उत्पादन बढ़ा रहा है, उससे सऊदी और रूस जैसे बड़े देशों के मार्केट पर खतरा मंडरा रहा है। यही वजह है कि रूस ने तेल उत्पादन में कटौती की बात नहीं मानी।
  • कोरोना वायरस के कारण औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट के चलते पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में कमी से चीन, सऊदी अरब से किये गए अनुबंध में कटौती कर रहा है। 
  • चीन में आतंरिक परिवहन और चीन से बाहर यात्रा करने पर कड़े प्रतिबंधों के कारण तेल की मांग में 20 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज़ की गई है। 
  • कोरोना वायरस के कारण वैश्विक स्तर पर कई देशों ने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आवागमन को सीमित कर दिया है, जिससे पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में भारी कमी देखी जा रही है। 

तेल की कीमतों में गिरावट का वैश्विक प्रभाव

  • कम तेल की कीमतें रूस और वेनेजुएला जैसे तेल उत्पादकों के लिये एक समस्या है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाएँ गहरे संकट में हैं।
  •  तेल की गिरती कीमतों से अमेरिका, चीन, जापान और भारत जैसे बड़े तेल उपभोक्ता देशों  को लाभ प्राप्त होगा।
  • सऊदी अरब और मध्य-पूर्व के उत्पादक देशों को तेल से प्राप्त राजस्व में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके विदेशी मुद्रा भंडार को काफी हद तक कम कर सकता है। इससे इन देशों में आर्थिक मंदी आने की भी संभावना रहेगी।
  • तेल की कीमतों में गिरावट जारी रहने पर मध्य पूर्व के देशों का भू-राजनीतिक महत्त्व कम हो जाएगा। इन देशों में घरेलू राजनीतिक अस्थिरता भी आ सकती है।
  • भारत पर तेल की कीमतें गिरने के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव होंगे।

भारत पर सकारात्मक प्रभाव

  • भारत तेल का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, तेल की गिरती कीमतों का एक बड़ा लाभार्थी है। घटी हुई कीमतें न केवल आयात बिल को कम करेंगी बल्कि विदेशी मुद्रा को बचाने में भी मदद करेंगी।
  • इससे चालू खाता घाटा संतुलित करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • तेल की कीमतें गिरने से अन्य आवश्यक वस्तुओं की उत्पादन लागत में कमी आएगी और इस प्रकार अर्थव्यवस्था में समग्र मुद्रास्फ़ीति में गिरावट होगी,  जिसका सीधा लाभ आम जनता को प्राप्त होगा। 
  • तेल की कीमतों में गिरावट से भारत प्रमुख विकास कार्यक्रमों और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर अधिक व्यय के साथ राजकोषीय समेकन का प्रबंधन करने में सक्षम होगा।  
  • कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण भारत सरकार के लिये सब्सिडी का बोझ काफी कम हो जाएगा, जिससे राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद मिलेगी।

भारत पर नकारात्मक प्रभाव

  • तेल उत्पादक अर्थव्यवस्थाओं के लिये भारत से निर्यात तब प्रभावित हो सकता है जब तेल की कम कीमतों के कारण उन अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में अप्रत्याशित कमी होगी।
  • चौथा सबसे बड़ा तेल आयातक होने के अलावा, भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा पेट्रोलियम उत्पाद निर्यातक भी है। तेल की कीमतों में गिरावट से अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र को नुकसान होगा।
  • खाड़ी देशों में बड़ी संख्या में अनिवासी भारतीय रहते है। अगर इन तेल उत्पादक देशों की विकास दर कम होती है तो उनकी आय प्रभावित हो सकती है। इससे भारत को प्राप्त होने वाला प्रेषण कम हो जाएगा।
  • कम तेल की कीमतों के कारण ईंधन की अधिक खपत हो सकती है जो शहरी प्रदूषण को भी बढ़ा सकती है।
  • भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) को बेचने के लिये केंद्र का विनिवेश कार्यक्रम नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है।

निष्कर्ष 

निश्चित रूप से भारत के पास अर्थव्यवस्था की गिरती विकास दर को संभालने क स्वर्णिम अवसर है। भारत अपने चालू खाता घाटे को संतुलित करते हुए राजकोषीय समेकन की बेहतर स्थिति को प्राप्त कर सकता है। इसके साथ ही भारत को भू-राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण दोनों देशों के साथ समन्वय पूर्वक अपने संबंधों को परिभाषित करना होगा।  

प्रश्न- कच्चे तेल की कीमतों में कमी के प्रमुख कारणों का उल्लेख करते हुए इससे पड़ने वाले वैश्विक प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।       


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