प्रवासी श्रमिक और शहरी आवास
यह एडिटोरियल 10/01/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A Shelter In Pandemic” लेख पर आधारित है। इसमें प्रवासी श्रमिकों के आवास संबंधी समस्याओं के संबंध में चर्चा की गई है जिन्हें कोविड-19 महामारी ने और गंभीर बना दिया है।
संदर्भ
भारत में शहरीकरण और शहरों के विस्तार के साथ-साथ आधारभूत संरचना और आवास, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जैसी सेवाओं पर दबाव की वृद्धि भी हुई है। इन मूलभूत आवश्यकताओं की अनुपलब्धता के सर्वाधिक शिकार प्रवासी श्रमिक हुए हैं। कोविड-19 महामारी ने शहरी निर्धनों/प्रवासी श्रमिकों के बदतर आवास परिदृश्य को और बिगाड़ दिया है। ये सभी चुनौतियाँ प्रत्यक्ष रूप से एक ठोस नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता की ओर इशारा करती हैं जिसे मानवाधिकारों, संपत्ति अधिकारों और सामाजिक-आर्थिक विकास के नज़रिये से भी देखा जाना चाहिये। ये नीतिगत पहल सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 8.8 के अनुरूप होनी चाहिये, जो सभी श्रमिकों, विशेष रूप से प्रवासियों के लिये एक सुरक्षित और निश्चित कार्य वातावरण प्रदान करने की अपेक्षा रखता है।
शहरी आवास और प्रवासी श्रमिक
- बेघर शहरी परिवार: भारत की जनगणना (वर्ष 2011) से पता चलता है कि देश की शहरी आबादी 31.16% है, जहाँ लगभग 4.5 लाख परिवार बेघर हैं और कुल 17.73 लाख आबादी के पास रहने की कोई जगह नहीं है।
- महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जहाँ गंभीर आवास संकट की स्थिति है।
- प्रवासी और शहरी आवास: शहरी आबादी का एक बड़ा हिस्सा, विशेष रूप से प्रवासी, बदहाल आश्रय की स्थिति में और अत्यधिक भीड़-भाड़ वाले स्थानों में रहते हैं।
- भारत में आधे से अधिक शहरी परिवार एक कमरे में रहते हैं, जहाँ प्रति कमरा औसतन 4.4 व्यक्तियों का निवास है।
- छोटी इकाइयों, होटलों और घरों में काम करने वाले प्रवासियों के मामले में उनका कार्यस्थल ही उनके ठहरने का स्थान भी है।
- ऐसे स्थान प्रायः स्वच्छ और पर्याप्त हवादार नहीं होते।
- अधिकांश निर्माण श्रमिक अस्थायी व्यवस्था में रहते हैं। अनियत श्रमिक पुलों के नीचे और फुटपाथ पर सोते हैं तथा प्रायः अस्वच्छ वातावरण में समूह के रूप में रहते हैं।
- श्रमिकों के आवास पर महामारी का प्रभाव: महामारी प्रेरित राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण अधिकांश श्रमिक अपने अस्थायी ठिकानों को छोड़ अपने घरों की ओर पलायन करने को विवश हुए और जो बचे रहे उन्होंने भी कार्यस्थलों के बंद होने के कारण अपने आश्रय खो दिये।
- किराए के घरों में रहने वाले प्रवासी श्रमिक सामाजिक दूरी का पालन कर सकने में सक्षम नहीं हो सके।
- उपनगरीय क्षेत्रों में, जहाँ प्रवासी श्रमिकों की एक बड़ी संख्या का निवास था, स्थानीय आबादी ने उनके आवासों की अस्वच्छ स्थितियों का हवाला देते हुए उन पर घर खाली करने का दबाव बनाया।
- भले ही अधिकांश राज्य सरकारों ने मकान मालिकों से दो महीने का किराया माफ करने की अपील की, लेकिन प्रवासी श्रमिकों पर किराया चुकाने का दबाव लगातार बना रहा।
- शहरी आवास के लिये पहल:
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन: स्मार्ट सिटीज़ मिशन ने भारत की 21% शहरी आबादी को कवर करते हुए 100 शहरों की पहचान की जहाँ चार चरणों में (जनवरी 2016 से शुरू) रूपांतरण किया जाना है।
- स्मार्ट सिटी में उपलब्ध होने वाली प्रमुख अवसंरचनाओं में उपयुक्त जलापूर्ति, सुनिश्चित बिजली आपूर्ति, स्वच्छता और विशेष रूप से गरीबों के लिये किफायती आवास शामिल हैं।
- अमृत मिशन: वर्ष 2005 में शुरू किये गए ‘कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन’ (अमृत/AMRUT) जैसे प्रयासों का उद्देश्य शहरीकरण की प्रक्रिया को सुचारू बनाना है।
- इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक घर जल की सुनिश्चित आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन तक पहुँच रखता हो।
- यह मिशन अब अपने दूसरे चरण में पहुँच गया है जहाँ लक्ष्य शहरों को जल आपूर्ति के लिये सुरक्षित बनाना और वंचितों के लिये बेहतर सुविधाएँ प्रदान करना है।
- ‘आत्मनिर्भर भारत पैकेज’ में परिकल्पित ARHCs: मई 2020 में सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के ‘आत्मनिर्भर भारत पैकेज’ में प्रवासी श्रमिकों/शहरी गरीबों के लिये किफायती किराया आवास परिसर (Affordable Rental Housing Complexes- ARHCs) का प्रावधान भी शामिल था।
- योजना यह है कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से शहरों में स्थित सरकारी वित्तपोषित आवासों को ARHCs में परिवर्तित किया जाए और विभिन्न हितधारकों को अपनी निजी भूमि पर ARHCs का विकास करने एवं उनका संचालन करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाए।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन: स्मार्ट सिटीज़ मिशन ने भारत की 21% शहरी आबादी को कवर करते हुए 100 शहरों की पहचान की जहाँ चार चरणों में (जनवरी 2016 से शुरू) रूपांतरण किया जाना है।
प्रवासियों के लिये किफायती आवास से संबद्ध समस्याएँ
- आवास योजनाओं का अप्रभावी क्रियान्वयन: सरकारी आँकड़ों से पता चलता है कि स्मार्ट सिटीज़ मिशन की 5,196 परियोजनाओं में से 49%, जिनके लिये भारत के 100 स्मार्ट सिटीज़ में कार्य आदेश जारी किये गए थे, अब तक अपूर्ण हैं।
- कार्यान्वयन में यह कमी नवीन नीतिगत उपायों की प्रभावकारिता पर प्रश्न उठाती है।
- WASH सुविधाओं का अभाव: आंतरिक श्रमिक प्रवासियों पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पर्याप्त जल, साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता (water, sanitation and hygiene- WASH) सुविधाओं की कमी के कारण सम्मानजनक आवास के अभाव की समस्या और बढ़ गई है।
- अपर्याप्त सार्वजनिक शौचालय: ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के माध्यम से अधिकाधिक सार्वजनिक शौचालयों की स्थापना के बावजूद प्रवासी-सघन संकुलों में उनकी उपलब्धता पर्याप्त नहीं है।
- किराये में अचानक वृद्धि: प्रवासी श्रमिक मलिन बस्तियों में आवास पाते हैं जो प्रायः किराये में अचानक वृद्धि के अधीन होता है और उसकी पहुँच सबसे बदतर अवसंरचना और सेवाओं तक होती है।
आगे की राह
- आवास क्षेत्र के लिये नीति निर्माण: आवासों की मौजूदा स्थिति राज्य और ठेकेदारों की ओर से आवास संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये समन्वित प्रयासों की आवश्यकता को इंगित करती है। यह अनुबंधों के मामले में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता के साथ-साथ आवास क्षेत्र के लिये दीर्घकालिक नीतिनिर्माण और विश्लेषण की माँग रखता है।
- एक चरम स्थिति (जहाँ मकान मालिक अचानक किराये में वृद्धि कर देता हो) के बजाय राज्य ऐसी इष्टतम स्थिति सुनिश्चित करे जहाँ किराया आवासों के लिये प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार के आधार पर उभरे।
- मालिक-किरायेदार संघर्षों को कम करना: सामाजिक किराया आवास के विकास के ही साथ-साथ राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि इन स्थानों का परिवहन तंत्र, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधा तक उपयुक्त पहुँच हो।
- आंतरिक श्रम का अध्ययन करने के लिये गठित नीति आयोग के कार्य समूह ने सिफ़ारिश की है कि सार्वजनिक क्षेत्र में किराये के आवास का विस्तार रैनबसेरा आश्रयों (Dormitory Accommodation) के प्रावधान के माध्यम से किया जा सकता है।
- यह सार्वजनिक आवास को वहनीय बनाएगा और मकान मालिकों एवं किरायेदारों के बीच संघर्ष को कम करेगा।
- अकेले कार्य-उन्मुख नीतियाँ ही श्रमिक प्रवासियों के जीवन को बेहतर बना सकती हैं।
- आंतरिक श्रम का अध्ययन करने के लिये गठित नीति आयोग के कार्य समूह ने सिफ़ारिश की है कि सार्वजनिक क्षेत्र में किराये के आवास का विस्तार रैनबसेरा आश्रयों (Dormitory Accommodation) के प्रावधान के माध्यम से किया जा सकता है।
- छोटे और मध्यम शहरों का पुनर्विकास: इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि छोटे और माध्यम शहरों (non-megacities) में भी अपर्याप्त योजना, गैर-मापनीय आधारभूत संरचना, अवहनीय आवास और बदतर सार्वजनिक परिवहन की स्थिति है।
- सु-शहरीकरण (Good Urbanisation) सुनिश्चित करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि छोटे एवं मध्यम शहरों पर भी समान रूप से ध्यान केंद्रित किया जाए और इन शहरों के अपर्याप्त आवास एवं बुनियादी सुविधाओं की कमी की समस्या को संबोधित किया जाए।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘अपर्याप्त और अवहनीय शहरी आवास की समस्या सु-शहरीकरण के मार्ग में एक प्रमुख अवरोध है।’’ चर्चा कीजिये।