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एडिटोरियल

  • 10 May, 2019
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

देश में जल प्रबंधन की चुनौतियाँ

संदर्भ

गर्मियों का मौसम शुरू होते ही विभिन्न राज्यों के बीच नदियों के पानी को लेकर विवाद शुरू हो जाते हैं। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार से एक बार फिर यह सुनिश्चित करने को कहा है कि यमुना से दिल्ली को मिलने वाले उसके हिस्से के पानी की पूरी आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।

क्या कहा दिल्ली हाई कोर्ट ने

हरियाणा के मुनक नहर से दिल्ली को पानी न मिलने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने रिटायर्ड जज इंदरमीत कौर की अध्यक्षता में नई जाँच समिति बनाई है और जाँच रिपोर्ट कोर्ट में 20 मई तक जमा करने के आदेश दिये हैं। जाँच रिपोर्ट में यह बताना होगा कि दिल्ली को पूरा पानी नहीं मिलने में कहां-कहां खामियाँ हैं। यह भी बताना होगा कि क्या हरियाणा जानबूझकर दिल्ली को पानी नहीं दे रहा है। कोर्ट ने हरियाणा को 2014 में दिये गए दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश का पालन करने को कहा है जिसमें दिल्ली को पर्याप्त पानी देने के आदेश दिये गए थे।

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने हरियाणा पर एक बार फिर पानी की पूरी आपूर्ति न करने का आरोप लगाया है। दिल्ली जल बोर्ड का कहना है कि दिल्ली देश की राजधानी है और यहाँ पानी की आपूर्ति पड़ोसी राज्य से होती है। दिल्ली कोई बंधक राज्य नहीं है जिसको उसकी ज़रूरत का पानी भी न दिया जाए। दूसरी तरफ हरियाणा का कहना है कि वह 719 क्यूसेक के बजाय 1049 क्यूसेक पानी हर रोज़ दे रहा है।

यह कोई पहली बार नही है कि हरियाणा से पानी कम मिलने को लेकर कोर्ट ने हरियाणा को आदेश दिया हो। इससे पहले भी इस समस्या के निदान के लिये कई कमेटियों का भी गठन किया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली को पानी की कमी का सामना करना पड़ता है तथा गर्मियों में कठिनाई और ज़्यादा बढ़ जाती है।

देश में गहराता जा रहा जल संकट

देश के विभिन्न हिस्सों में जल संकट हर साल गहराता जा रहा है। गर्मियाँ आते ही महाराष्ट्र और गुजरात से खबरें आने लगती हैं कि वहाँ के बांधों में जमा पानी काफी कम हो गया है। हालाँकि केंद्रीय जल आयोग हर सप्ताह देश के बांधों में बचे पानी का हिसाब-किताब बताता है।

यह अलग बात है कि देश में बने पाँच हज़ार बांध हमारी ज़रूरत जितना पानी रोककर नहीं रख पाते। बढ़ती ज़रूरत के मद्देनज़र देश में जल भंडारण की क्षमता बढ़ नहीं पाई है और पानी की मांग रोज़ाना बढ़ रही है। पानी को अगर बढ़ती ज़रूरतों के हिसाब बचाकर नहीं रखा गया तो किसी भी समय देश के अधिकांश हिस्सों में लातूर जैसा जल संकट खड़ा हो सकता है, जहाँ कुछ बरस पहले रेलवे वैगनों के ज़रिये लाखों गैलन पीने के पानी की सप्लाई की गई थी।

केंद्रीय जल आयोग के आँकड़े

केंद्रीय जल आयोग हर सप्ताह देश के बांधों में बचे पानी की मात्रा के जो आँकड़े जारी करता है वे किसी काम के नहीं होते। जल आयोग की नवीनतम जानकारी यह है कि देश के बांधों में मई के पहले हफ्ते में लगभग उतना पानी जमा है जितना पिछले साल था...या पिछले साल की तुलना में 91 जलाशयों में पानी का स्तर एक प्रतिशत कम है। साथ ही यह भी बताया गया है कि पिछले 10 साल में बांधों में जितना पानी औसतन रहता आया है उतना पानी इस साल भी है। लेकिन यह आँकड़ा देश के सिर्फ 91 बांधों की निगरानी से ही निकाला जाता है, जिनकी कुल भंडारण क्षमता सिर्फ 162 अरब घनमीटर है। जबकि देश में कुल बांधों की संख्या पांच हजार के लगभग है। हालाँकि तब भी सबकी भंडारण क्षमता मिलाकर भी 257 अरब घनमीटर ही है।

महाराष्ट्र और गुजरात में होती है सर्वाधिक कमी

91 प्रमुख बांधों के जलाशयों को देश के पाँच क्षेत्रों में बाँटा जाता है। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, चिंता पश्चिमी क्षेत्र के 27 बांधों में जल स्तर को लेकर है। इसी क्षेत्र में महाराष्ट्र और गुजरात आते हैं। महाराष्ट्र के विदर्भ और गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में हर वर्ष पानी के लिये हाहाकार मच जाता है। विदर्भ में तो लगातार सूखे जैसी स्थिति बनी रहती है और किसानों द्वारा आत्महत्या करने की सर्वाधिक घटनाएँ इसी क्षेत्र से सामने आती हैं। इस क्षेत्र के बांधों की कुल जल ग्रहण क्षमता 31.26 अरब घनमीटर है, जबकि इस समय उपलब्ध जल भंडारण केवल 5.22 अरब घनमीटर है। बचे पानी का आँकड़ा वहाँ के बांधों की कुल क्षमता का 17 प्रतिशत है, जबकि पिछले साल इसी हफ्ते में यह 23 प्रतिशत था। अगर 10 साल का औसत देखें तो इन बांधों में इस समय तक औसतन 26 प्रतिशत पानी बचा रहता था। जल प्रबंधक यह अच्छी तरह समझते हैं कि जहां इन दिनों औसतन 26 प्रतिशत पानी रहता हो, वहाँ इस साल उन्हीं दिनों में अगर यह स्तर सिर्फ 17 प्रतिशत हो तो आने वाले समय में इस क्षेत्र में क्या हालत बन सकती है।

नहीं बढ़ी है जल भंडारण क्षमता

  • मुद्दा सिर्फ महाराष्ट्र और गुजरात का ही नहीं है, बल्कि यह तथ्य कम चिंताजनक नहीं है कि पिछले कई वर्षों से हमारी जल भंडारण क्षमता कमोबेश जस-की-तस बनी हुई है।
  • पिछले एक दशक से यह क्षमता 250 अरब घनमीटर के आसपास ही बनी हुई है, जबकि इस दौरान आबादी 14-15 करोड़ बढ़ गई। गौरतलब है कि प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष पानी की ज़रूरत का आँकड़ा दो हज़ार घनमीटर है।
  • बढ़ती आबादी के हिसाब से कल-कारखाने, बिजलीघर चलाने और अनाज उगाने के लिये पानी की ज़रूरत बढ़ती जा रही है।
  • मौसम विज्ञानियों ने इस वर्ष एल नीनो प्रभाव की संभावना भी जताई है जिससे वर्षा का क्रम प्रभावित हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो जल संकट की तीव्रता और बढ़ सकती है।
  • इस साल पृथ्वी दिवस पर जताई गई जलवायु परिवर्तन की चिंता ने भी जल संकट को लेकर एक चेतावनी सी दी है। ऐसे में बढ़ते वैश्विक तापमान को पानी की उपलब्धता के नज़रिये से भी देखने की ज़रूरत है।

लगातार बढ़ रहा है पृथ्वी का तापमान

  • वर्ष 1880 से लेकर 2003 तक के आँकड़ों से पता चला था कि पृथ्वी औसतन हर 10 साल में 0.05 डिग्री सेल्सियस यानी एक डिग्री सेल्सियस के 20वें हिस्से की रफ्तार से गर्म हुई।
  • केवल 1975 से लेकर 2003 तक के अंतराल में पृथ्वी के गर्म होने की रफ्तार बढ़कर प्रति 10 वर्ष 0.22 डिग्री सेल्सियस हो गई। यानी पहले की तुलना में यह रफ्तार साढ़े चार गुनी बढ़ गई।
  • इस लिहाज़ से देखा जाए तो 50 साल में पृथ्वी का औसत तापमान 0.9 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।

पर्यावरणविदों के मुताबिक यह एक ऐसा बदलाव है जो जीव-जगत के लिये खतरे की घंटी तो है ही, उसके साथ-साथ जलचक्र में बदलाव की चेतावनी भी है।

अस्थिर हो रहा वर्षा चक्र

जलवायु संकट से वर्षा चक्र भी गड़बड़ा रहा है। वर्षा अवधि पर असर पड़ रहा है। अलग-अलग क्षेत्रों में वर्षा की असमानता बढ़ती जा रही है। जब तापमान बढ़ता है तो ज्यादा पानी भाप बन कर उड़ता है। समुद्र तटीय क्षेत्रों में अचानक वायु दाब परिवर्तन होने से चक्रवात और तूफान बार-बार आते हैं। तूफानों से कई इलाकों में अचानक ज़्यादा पानी बरस जाता है जिससे बाढ़ और अन्य तबाहियाँ झेलनी पड़ती हैं। जहाँ कम वर्षा होती है उन क्षेत्रों को सूखे और पानी की कमी से जूझना पड़ता है।

वैसे तो आपूर्ति के मामले में पूरे विश्व में जल संकट है, लेकिन भारत के लिये यह मुश्किल अधिक है। असमान वर्षा और लचर जल प्रबंधन की वज़ह से भारत में साल-दर-साल ज़रूरत की तुलना में पानी कम पड़ने लगा है। हालात कुछ ऐसे हैं कि वर्तमान में भारत की 60 करोड़ आबादी पानी के मामले में अति-अभाव से लेकर गंभीर अभाव वाली स्थिति में बताई जाती है। हर साल करीब दो लाख लोग साफ पानी तक पहुँच न होने की वज़ह से काल के गाल में समा जाते हैं।

भूजल पर बढ़ी है निर्भरता

  • अभी हमें पानी की कमी से उत्पन्न होने वाले हालात उतने भयावह इसलिये नहीं दिख रहे हैं क्योंकि हमने भूजल पर निर्भरता हद से ज़्यादा बढ़ा ली है।
  • शोध बताते हैं कि हर साल बड़ी तेज़ी से भूजल का स्तर नीचे गिर रहा है और यह भी याद रखना होगा कि भूजल असीमित नहीं है।
  • अन्य देशों से तुलना करें तो दुनियाभर में किये जा रहे कुल भूजल दोहन का एक-चौथाई हिस्सा सिर्फ भारत में निकाला जा रहा है, जबकि पूरी दुनिया को वर्षा से जितना पानी मिलता है उसका सिर्फ चार प्रतिशत हमारे हिस्से में आता है।

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नीति आयोग की ‘वाटर कंपोज़िट इंडेक्स’ रिपोर्ट के मुताबिक भी भूजल कम होता जा रहा है।

नीति आयोग की वाटर कंपोज़िट इंडेक्स रिपोर्ट

  • पिछले वर्ष जून में नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट यानी वाटर कंपोज़िट इंडेक्स रिपोर्ट जारी की थी।
  • रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत हालिया समय के सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है और इससे लाखों जीवन तथा उनके साथ-साथ लाखों लोगों का रोज़गार खतरे में पड़ सकता है।
  • इस रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी मुहैया नहीं है । 84 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पाइप से पानी नहीं पहुँचता और देश में 70 प्रतिशत पानी पीने लायक नहीं है। 
  • देश के लगभग 60 करोड़ लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं और साफ पानी न मिलने से हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो रही है।
  • आगे यह समस्या और विकराल रूप लेने वाली है और पानी की वर्तमान आपूर्ति के मुकाबले वर्ष 2030 तक आबादी को दोगुनी पानी की आपूर्ति की ज़रूरत होगी।
  • इसकी वज़ह से करोड़ों लोगों को पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ेगा और इससे GDP में 6 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की जा सकती है। 

इस समग्र जल प्रबंधन सूचकांक में भूजल, जल निकायों की पुनर्स्थापना, सिंचाई, खेती के तरीके, पेयजल, नीति और प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के 28 विभिन्न संकेतकों के साथ 9 विस्तृत क्षेत्र शामिल किये गए। समीक्षा के उद्देश्य से राज्यों को दो विशेष समूहों- ‘पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्य’ और ‘अन्य राज्य’ में बाँटा गया।

चिंताजनक हैं हालात

  • चिंता की सबसे बड़ी बात है कि भारत में 60 करोड़ से अधिक लोग ज़्यादा से लेकर चरम स्तर तक का जल दबाव झेल रहे हैं।
  • भारत में तकरीबन 70 प्रतिशत जल प्रदूषित है, जिसकी वज़ह से जल गुणवत्ता के सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर है।
  • वैश्विक ताज़े पानी में भारत का कुल 4 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि यहाँ आबादी का 16 प्रतिशत रहता है।
  • सरकारी सर्वेक्षणों के मुताबिक वर्ष 2020 तक 21 महानगरों में भूजल का स्तर बेहद नीचे चला जाएगा।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के जल-संबंधी मुद्दों के विशेषज्ञों के अनुसार औद्योगिक कार्यों, ऊर्जा उत्पादन और घरेलू उद्देश्यों के लिये जल गहन कृषि का बढ़ता इस्तेमाल और बढ़ती जल मांग की वज़ह से भारत के सीमित जल संसाधनों पर दबाव बढ़ा है।

जल संकट सीधे जनता से जुड़ा मुद्दा है। देश में जल संचयन की क्षमता बढ़ाने, बांधों की मरम्मत, जलाशयों की गाद निकालने, भूजल संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों पर तुरंत काम करने की ज़रूरत है। आज हम उस दौर में हैं जब जल संकट पर गंभीरता से सोचने का मौका दोबारा मिलने की संभावना बेहद कम है।

अभ्यास प्रश्न: “भारत में पानी की कमी नहीं है बल्कि वास्तविक समस्या जल प्रबंधन की पर्याप्त व्यवस्था का न होना है।” कथन के पक्ष या विपक्ष में ठोस तर्कों के साथ अपने विचार प्रस्तुत कीजिये?


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