लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 09 Nov, 2019
  • 11 min read
शासन व्यवस्था

भारत में चिकित्सा उपकरण

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत में चिकित्सा उपकरण से जुड़े विनियमन तथा उससे संबंधित समस्याओं की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय चिकित्सा उपकरणों के विनियमन के लिये एक विनियामक ढाँचा बनाने जा रहा है। विनियामक ढाँचे के निर्माण से चिकित्सा उपकरणों के बाज़ार को विनियमित करने के लिये संसद से एक पृथक कानून को पारित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

प्रमुख बिंदु

  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 इस प्रकार के विनियामक ढाँचे का निर्माण करने की शक्ति स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को प्रदान करता है।
  • इस प्रकार के विनियामक ढाँचे के निर्माण हेतु सर्वप्रथम प्रयास वर्ष 2017 में मंत्रालय द्वारा चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 के माध्यम से किया गया था। उस समय कुछ चिकित्सा उपकरणों को ही एक औषधि के रूप में अधिसूचित किया गया, किंतु वर्तमान विनियामक ढाँचे में सभी प्रकार के चिकित्सा उपकरणों को शामिल किये जाने की संभावना है।
  • चिकित्सा कंपनियों का भारत में मरीज़ो के प्रति गैर-ज़िम्मेदार तथा अनैतिक व्यवहार को इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है। ध्यान देने योग्य है कि कुछ समय पूर्व ही हिप प्लांट उपकरणों के मामले में व्यापक अनियमितताएँ सामने आई थीं।

औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940

  • यह अधिनियम स्वतंत्रता से पूर्व अधिनियमित किया गया था, जिसे लगभग 80 वर्ष हो चुके हैं।
  • इस अधिनियम के तहत भारत में औषधियों का निर्माण, आयात तथा वितरण को विनियमित किया जाता है।
  • भारत में औषधियों तथा प्रसाधन सामग्रियों की सुरक्षा, प्रभावकारिता तथा उनके सुरक्षा से संबंधित मापदंडों को निर्धारित करना इस अधिनियम के प्रमुख लक्ष्य हैं।

चिकित्सा उपकरण नियम, 2017

  • यह जनवरी, 2018 में प्रभाव में आया तथा यह चिकित्सा उपकरणों एवं इन-विट्रो नैदानिक चिकित्सा उपकरणों पर लागू होता हैं।
  • इसके माध्यम से लाइसेंस प्राप्ति की प्रक्रिया को ऑनलाइन किया गया है।
  • इस प्रकार यह नियम कुछ विशेष चिकित्सा उपकरणों पर लागू होता है, जिनका भारतीय बाज़ार में उपयोग एक निश्चित विनियम के अधीन होता है।

जॉनसन एंड जॉनसन हिप इंप्लांट केस

  • वर्ष 2018 में जॉनसन एंड जॉनसन अपने हिप प्लांट में आई खराबी को लेकर चर्चा में था। हिप प्लांट के बाद लोगों के शरीर में इस चिकित्सा उपकरण से कोबाल्ट-क्रोमियम का रिसाव होने लगा। इससे लोगों को गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, जैसे- धातु का रक्त में संदूषण, अत्यधिक दर्द, शरीर के अंगों की क्षति आदि का सामना करना पड़ा।
  • इसके पश्चात् जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी ने उन अमेरिकी मरीज़ों को मुआवजा दिया जिनके इंप्लांट में खराबी आई थी। किंतु भारत में सरकार द्वारा कंपनी को आदेश दिया गया कि वह उन 4700 लोगों को मुआवज़ा दे, जो इस समस्या के शिकार हुए हैं लेकिन भारत में प्रभावी विनियमन न होने के कारण सरकार के आदेश को कंपनी ने चुनौती दे दी।
  • इस प्रकार भारत में जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियाँ कानूनों एवं विनियमों की कमी का लाभ उठा रही हैं, साथ ही मरीज़ों का शोषण भी कर रही हैं।

चुनौतियाँ

  • स्वास्थ्य मंत्रालय का यह कदम संसद से कानून निर्माण किये जाने के स्थान पर स्वयं अधिसूचना के मध्यम से नियम बनाने का प्रयास है। ध्यान देने योग्य है कि केवल संसद को ही नए दंड एवं अपराध को लागू करने का अधिकार है, जिसे किसी कार्यकारी आदेश द्वारा नहीं किया जा सकता। ध्यातव्य है कि चिकित्सा उपकरण नियम 2017 किसी भी प्रकार के दंड का प्रावधान नहीं करता है।
  • चिकित्सा एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम घटिया एवं अनुपयुक्त मानक की दवाओं हेतु दंड का प्रावधान करता है। किंतु चिकित्सा उपकरणों को दवा के रूप में अधिसूचित करने से भी समस्या का समाधान नहीं होगा क्योंकि इस अधिनियम की दूसरी सूची केवल दवाओं के लिये उचित मानक निर्धारित करती है लेकिन इसमें चिकित्सा उपकरणों के लिये मानक निर्धारित नहीं है। ध्यान देने योग्य है कि बिना मानक के किसी उत्पाद की गुणवत्ता पर निर्णय देना संभव नहीं है।
  • यदि वर्तमान प्रस्ताव को स्वीकार किया जाता है तो इससे भारत में लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन होगा किंतु ये उपकरण फिर भी भारतीय दवा कानून के अनुरूप बनी रहेंगी। इसके अतिरिक्त यदि किसी दवा निर्माता पर कार्रवाई की भी जाएगी तब भी वह किसी बड़े दंड से बच जाएगा। इसके लिये राजनीतिक इच्छा-शक्ति का न होना तथा कानून एवं नियमों का कारगर न होना प्रमुख कारण माना जा सकता है। वर्तमान प्रस्ताव में इरादतन दवा कंपनियों द्वारा बनाए गए खराब दवा उत्पादों के खिलाफ कार्रवाई हेतु भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
  • चिकित्सा उपकरणों के लिये मानक निर्धारित करना एक जटिल कार्य है, क्योंकि ये मानक अपेक्षाकृत नवीन तकनीक पर आधारित होते हैं तथा इनमें विशेषज्ञता की नितांत कमी होती है।
  • वर्तमान प्रस्तावित ढाँचे में घटिया चिकित्सा उपकरणों का निर्माण करने वाली विनिर्माता कंपनियों के लिये कोई प्रावधान नहीं है। इस ढाँचे के तहत किसी चिकित्सा उपकरण के विनिर्माण और विक्रय को ही केवल धारा 26A के अंतर्गत प्रतिबंधित किया जा सकता है।
  • जॉनसन एंड जॉनसन मामले के अनुभवों को देखते हुए स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारत में वर्तमान में किसी मरीज़ में किये गए इंप्लांट जिसके कारण मरीज़ों को गंभीर स्वास्थ्य हानि झेलनी पड़ी हो, को लेकर किसी प्रकार के दंड अथवा सज़ा का प्रावधान नहीं है।
  • जॉनसन एंड जॉनसन मामले में लोगों को न्याय दिलाने हेतु सरकार को ऐसे मरीज़ों को सूचीबद्ध करने में अत्यधिक कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि कोई भी अस्पताल या चिकित्सक मरीज़ों के इंप्लांट से जुड़ी समस्या से अवगत कराने को तैयार नहीं था।

सुझाव

  • चिकित्सा उपकरणों के लिये संसद द्वारा कानून पारित किया जाना चाहिये ताकि दंड एवं सज़ा के प्रावधानों को बढ़ाया जा सके।
  • दवा के अनुरूप ही चिकित्सा उपकरणों के लिये एक मानक संहिता का निर्माण किया जाना चाहिये। इससे मरीज़ों के अधिकारों की रक्षा की जा सकेगी।
  • ऐसी कंपनियाँ जो कि जान-बूझकर या इरादतन अधिक लाभ के लिये इस प्रकार के उपकरणों का निर्माण करती हैं, को ब्लैकलिस्ट करने का प्रावधान किया जाना चाहिये।
  • उत्पाद को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ विनिर्माता कंपनियों पर भी कठोर कार्रवाई करनी चाहिये।
  • चिकित्सा उपकरणों के इंप्लांट से संबंधित एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री का निर्माण करना चाहिये और आवश्यकता पड़ने पर मरीज़ों को भविष्य के खतरे से आगाह किया जाए तथा उन्हें उचित न्याय प्रदान किया जाए।

निष्कर्ष

भारत सरकार चिकित्सा उपकरणों को दवा के रूप में अधिसूचित करने जा रही है। सरकार के इस कदम को लेकर विभिन्न आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं। माना जा रहा है कि सरकार के मौजूदा विनियामक ढाँचे से मरीज़ों के अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं हो सकेगा। साथ ही इसको एक दवा के रूप में अधिसूचित करना भी कई समस्याओं को जन्म दे सकता है क्योंकि दवा और चिकित्सा उपकरण की प्रकृति में अत्यधिक विविधता होती है। अतः सरकार को इस प्रकार के विनियमन से पूर्व विशेषज्ञों एवं विभिन्न हित समूहों को शामिल कर निर्णय लेना चाहिये ताकि भारत के चिकित्सा क्षेत्र पर कोई विपरीत असर न पड़े, साथ ही किसी भी मरीज़ को उसके गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार से वंचित न किया जा सके।

प्रश्न: चिकित्सा उपकरण दवाओं से भिन्न हैं। इस कथन के आलोक में मौजूदा विनियामक ढाँचे में उपस्थित चुनौतियों की चर्चा कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2