फार्मा क्षेत्र में नवाचार
यह एडिटोरियल दिनांक 07/09/2021 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Pharma industry must turn more innovative’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय फार्मा क्षेत्र की संभावनाओं और इस क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।
भारत वैश्विक फर्मास्युटिकल क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यदि सही कदम उठाए जाएँ और उपयुक्त तरीके से संपोषण किया जाए तो भारत वैश्विक फर्मास्युटिकल बाज़ार में अग्रणी देश बन सकता है। भारतीय फार्मा उद्योग की अगली उपलब्धि नवाचार के इर्द-गिर्द केंद्रित होनी चाहिये।
हालाँकि, जेनेरिक से आगे जाने और नवाचार लाने के लिये फार्मा उद्योग को R&D टैक्स ब्रेक, पेटेंट कानून में बदलाव त्तथा अनुसंधान प्रतिभा के रूप में नीति समर्थन की आवश्यकता होगी।
भारतीय फार्मा क्षेत्र की स्थिति
- भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। यह विभिन्न टीकों/वैक्सीन की वैश्विक माँग के 50%, अमेरिका की जेनेरिक माँग के 40% और यू.के. में सभी दवाओं की माँग के 25% की आपूर्ति करता है।
- भारतीय फर्मास्युटिकल बाज़ार लगभग 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है और फार्मा कंपनियाँ अतिरिक्त 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात करती हैं।
- हालाँकि, यह 1.27 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक फर्मास्युटिकल बाज़ार का एक मामूली हिस्सा ही है।
- दवा उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर पर भारत मात्रा के हिसाब से तीसरे और मूल्य के हिसाब से 14वें स्थान पर है।
- वैश्विक जेनेरिक बाज़ार में भारत की हिस्सेदारी 30% से अधिक है, लेकिन न्यू मॉलिक्यूलर एंटिटी स्पेस में इसकी हिस्सेदारी 1% से भी कम है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, अगले दशक में घरेलू बाज़ार के तीन गुना वृहत होने की उम्मीद है।
- भारत का घरेलू फार्मास्युटिकल बाज़ार वर्ष 2021 में 42 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आकलित किया गया है, जिसके वर्ष 2024 तक 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 120 से 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
भारतीय फार्मा क्षेत्र के साथ संबद्ध समस्याएँ
- नवाचार के क्षेत्र में क्षमताओं की कमी: भारत श्रमशक्ति और प्रतिभा के मामले में तो समृद्ध है, लेकिन फिर भी नवाचार अवसंरचना के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। सरकार को भारत के नवाचार के विकास के लिये अनुसंधान पहलों और प्रतिभा में निवेश करने की आवश्यकता है।
- सरकार को कुछ नियामक निर्णयन में नैदानिक परीक्षणों और ‘सब्जेक्टिविटी’ का समर्थन करना चाहिये।
- बाहरी बाज़ारों का प्रभाव: रिपोर्टों के अनुसार भारत सक्रिय दवा सामग्री (API) और अन्य मध्यवर्ती सामग्रियों के लिये अन्य देशों पर बहुत अधिक निर्भर है। 80% API चीन से आयात किये जाते हैं।
- इसलिये भारत आपूर्ति में व्यवधान और अप्रत्याशित मूल्य उतार-चढ़ाव का शिकार होता है। आपूर्ति को स्थिर करने के लिये आंतरिक सुविधाओं के क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे में सुधार लाया जाना आवश्यक है।
- गुणवत्ता अनुपालन अन्वेषण (Quality compliance inquiry): भारत वर्ष 2009 के बाद से सर्वाधिक खाद्य एवं औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration- FDA) निरीक्षण के दायरे में रहा है; इसलिये, गुणवत्ता मानकों के उन्नयन के लिये निरंतर निवेश पूँजी को विकास के अन्य क्षेत्रों से दूर कर देगा और विकास की गति कम हो जाएगी।
- स्थिर मूल्य निर्धारण और नीतिगत वातावरण का अभाव: भारत में अप्रत्याशित और लगातार घरेलू मूल्य निर्धारण नीति में परिवर्तन से एक चुनौती उत्पन्न हुई है जिसने निवेश और नवाचारों के लिये एक संदिग्ध माहौल का निर्माण किया है।
फार्मा क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता
- दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना और प्रौद्योगिकी के उपयोग में वृद्धि करना वर्तमान समय की माँग थी। लेकिन अब यह आवश्यक हो गया है कि नवाचार इस व्यवसाय के मूल में हो, और यदि भारत वैश्विक फार्मास्युटिकल क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहने की इच्छा रखता है तो उसके लिये नवाचार को अंगीकार करने की महती आवश्यकता है।
- नवाचार के विषय में भारत की व्यापक संलग्नता न केवल देश की सहायता करेगी बल्कि स्थायी राजस्व के एक स्रोत का सृजन करेगी और अपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के लिये नए समाधान लेकर आएगी।
- भारत में इसके परिणामस्वरूप रोगों के बोझ में कमी आएगी (तपेदिक और कुष्ठ रोग जैसी भारत-विशिष्ट चिंताओं के लिये दवाओं के विकास पर वैश्विक ध्यान नहीं दिया जाता है), नई उच्च-कुशल नौकरियों का सृजन होगा और वर्ष 2030 से लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त निर्यात की स्थिति बनेगी।
- चीन जैसे देश पहले ही जेनेरिक दवा आधारित विकास पीछे छोड़ पर्याप्त आगे बढ़ चुके हैं।
नवाचार के मार्ग की चुनौतियाँ
भारत में नवाचार की उन्नति के लिये विभिन्न चुनौतियों से निपटना होगा, जिनमें प्रमुख हैं:
- जटिल और लंबी अनुमोदन प्रक्रियाएँ (भारत में नई दवाओं के विकास के लिये मंज़ूरी प्रदान करने में विकसित देशों के 11-18 माह के समय की तुलना में 33-63 माह लगते हैं)।
- सुदृढ़ प्रक्रिया दिशा-निर्देशों का अभाव (USFDA में सूचीबद्ध 600 से अधिक दिशा-निर्देशों की तुलना में भारत में 24 दिशा-निर्देश ही सूचीबद्ध हैं)।
- पारदर्शिता की कमी (अमेरिका में एक सुस्थापित प्री-सबमिशन प्रक्रिया और एक समयबद्ध स्टेज-गेट प्रक्रिया मौजूद है)।
- अपर्याप्त क्षमता/सक्षमता (भारत में नियामक निकायों की सक्षमता में पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता है)।
- सीमित शासन (भारतीय प्राधिकरण वर्तमान में केवल आवेदनों और अनुमोदनों की संख्या को ट्रैक करते हैं)।
- एक सीमित नवाचार मानसिकता (नैदानिक परीक्षणों की स्वीकृति जैसे मामलों में अधिकांश वैश्विक निकायों की तुलना में भारत जोखिम से दूर रहने की मानसिकता रखता है)।
आगे की राह
- सुदृढ़ विनियमन: सरलीकृत प्रक्रियाओं, सुदृढ़ दिशा-निर्देशों, पूर्वानुमेयता, पर्याप्त सक्षमता और सुदृढ़ शासन के साथ एक सक्षम नियामक संरचना का निर्माण करना।
- भारत को प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये अनुमोदन समय में 60% की कमी लाने की आवश्यकता है।
- औद्योगिक निवेश के लिये नीतियों/प्रोत्साहनों, प्रत्यक्ष सरकारी निवेश और उल्लेखनीय निजी निवेश के माध्यम से सरकारी सहायता के साथ ठोस वित्तीय समर्थन प्रदान करना।
- भारत लाभ की एक आकर्षक शृंखला प्रदान करता है जहाँ भारित R&D कटौती, अतिरिक्त पेटेंट बॉक्स लाभ और नवाचार निधि की वृद्धि के लिये प्रगतिशील नीतियाँ अधिक निवेश आकर्षित कर सकती हैं।
- उद्योग-अकादमिक संबद्धता: उच्च गुणवत्तायुक्त शैक्षणिक प्रतिभा और अवसंरचना, उद्योग-उन्मुख अनुसंधान तथा सुदृढ़ शासन के साथ अकादमिक क्षेत्र एवं उद्योग के बीच मजबूत संबंध का निर्माण करने की आवश्यकता।
- अमेरिका ने स्वतंत्र कंपनियों की स्थापना के लिये शिक्षाविदों को प्रोत्साहित करने के लिये ‘Bayh-Dole Act’ पारित किया है।
- भारत को वैश्विक प्रतिभाओं को आकर्षित करने और अत्याधुनिक अनुसंधान का समर्थन करने के लिये विश्वस्तरीय उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की आवश्यकता है।
- सुसंगत नीतियाँ: अनुसंधान, प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण और बौद्धिक संपदा (IP) जैसे समस्त विषयों में सुसंगत नीतियों के माध्यम से एक अनुकूल नीति परिदृश्य के निर्माण की आवश्यकता है।
- सहयोग में तेज़ी लाने के लिये नवाचार केंद्रों की आवश्यकता: उपयुक्त संख्या में कई नवाचार केंद्रों के विकास की आवश्यकता है जहाँ अकादमिक क्षेत्र, सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र, उद्योग, स्टार्ट-अप्स और इन्क्यूबेटर्स सह-स्थापित हों।
- अन्य आधुनिक क्षेत्रों में निवेश: भारत को जैव प्रौद्योगिकी पर भी ध्यान देना चाहिये और इसमें निवेश करना चाहिये। भारत के जैव प्रौद्योगिकी उद्योग (जिसमें बायोफार्मास्युटिकल्स, बायो-सर्विसेज, बायो एग्रीकल्चर, बायो-इंडस्ट्री और बायो-इनफॉरमैटिक्स शामिल हैं) के प्रति वर्ष लगभग 30% की औसत दर से विकास करने और वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
अभ्यास प्रश्न: वैश्विक दवा बाज़ार में अग्रणी देश बनने के लिये भारत को फार्मा क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।