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  • 09 Sep, 2020
  • 16 min read
आंतरिक सुरक्षा

नगा विद्रोह का मुद्दा

यह संपादकीय विश्लेषण द हिंदू में 8 सितंबर 2020 को प्रकाशित The search for an end to the complex Naga conflict लेख पर आधारित है। यह नगा विद्रोह और इससे जुड़े मुद्दों का विश्लेषण करता है।

 संदर्भ                    

दशकों की बातचीत के बाद नगा शांति प्रक्रिया फिर से अवरुद्ध हुई है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN-IM) के “नगा राष्ट्रीय ध्वज” और “नगा येझाबो” (संविधान) पर गैर-लचीलेपन को कई अन्य कारणों के मध्य प्राथमिक कारण कहा जा रहा है। यह मुद्दा इन दो स्थितियों की तुलना में अधिक जटिल है, क्योंकि यह पूर्वोत्तर भारत में नगालैंड के पड़ोसी राज्यों को भी प्रभावित करता है।

इसकी शुरुआत कैसे हुई?

  • वर्ष 1881 में नगा हिल्स ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गईं।
  • बिखरी हुई नगा जनजातियों को एक साथ लाने के प्रयास के परिणामस्वरूप वर्ष 1918 में नगा क्लब का गठन हुआ।
  • नगा क्लब ने वर्ष 1929 में साइमन कमीशन को अस्वीकार कर दिया और उन्हें "प्राचीन काल की तरह उनके स्वयं के हाल पर छोड़ने के लिये" कहा।
  • क्लब को वर्ष 1946 में नगा नेशनल काउंसिल (NNC) में मिला दिया गया।
  • अंगामी ज़ापू फिज़ो के नेतृत्व में, एनएनसी ने 14 अगस्त, 1947 को नगालैंड को एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया और मई 1951 में एक "जनमत संग्रह" कराया, जिसमें दावा किया गया कि 99.9% नगाओं ने "संप्रभु नागालैंड" का समर्थन किया है।
  • 22 मार्च, 1952 को फिज़ो ने ‘भूमिगत नगा फेडरल गवर्नमेंट’ (NFG) और ‘नगा फेडरल आर्मी’ (NFA) का गठन किया।
  • उग्रवाद से निपटने के लिये भारत सरकार ने वर्ष 1958 में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) बनाकर वहाँ लागू किया।
  • वर्ष 1975 में, सरकार ने शिलांग समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत NNC और NFG के इस गुट ने हथियार छोड़ने पर सहमति जताई।
  • थिंजलेंग मुइवा (जो उस समय चीन में थे) की अगुवाई में लगभग 140 सदस्यों के एक गुट ने शिलॉन्ग समझौते को मानने से इनकार कर दिया। इस गुट ने वर्ष 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) का गठन किया। 
  • मुइवा के साथ इसाक चिसी स्वू और एस एस खापलांग भी थे।
  • वर्ष 1988 में, हिंसक झड़प के बाद NSCN विभाजित होकर NSCN (IM) और NSCN (K) में बँट गया।
  • एनएनसी कमज़ोर पड़ने लगा, और वर्ष 1991 में लंदन में फिज़ो की मृत्यु हो गई, एनएससीएन (आईएम) को इस क्षेत्र में "सभी विद्रोहियों की जननी" के रूप में देखा जाने लगा।

शांति प्रक्रिया का इतिहास

  • जून 1947 में, असम के गवर्नर सर अकबर हैदरी ने NNC में मध्यस्थों के साथ नौ बिंदुओं वाले समझौते पर हस्ताक्षर किये, लेकिन फिज़ो जैसे आंदोलन के मुख्य नेताओं को विश्वास में नहीं लिया गया और इसलिये फिज़ो ने इसे सिरे से खारिज कर दिया।
  • जुलाई 1960 में 16 दिसंबर के समझौते के बाद 1 दिसंबर, 1963 को नगालैंड का निर्माण हुआ, इस मामले में समझौता एनएनसी के साथ नहीं होकर नगा पीपुल्स कन्वेंशन के साथ हुआ था, जो कि अगस्त 1957 में एक उदारवादी चरण के दौरान नगाओं का नेतृत्त्व कर रहा था।
  • अप्रैल 1964 में, एनएनसी के साथ संचालन के निलंबन पर एक समझौते के लिये एक शांति मिशन का गठन किया गया था, लेकिन वर्ष 1967 में छह दौर की वार्ता के बाद इसे त्याग दिया गया था।
  • 11 नवंबर, 1975 को, सरकार ने शिलांग समझौते पर हस्ताक्षर किये , जिसके तहत एनएनसी और एनएफजी के इस गुट ने हथियार छोड़ने पर सहमति व्यक्त की।
  • हालाँकि, समूह के भीतर एक धड़े ने शिलांग समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और वर्ष 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड का गठन किया।

विभिन्न प्रधानमंत्रियों के तहत नगा शांति प्रक्रिया

  • नगा भारत की स्वतंत्रता से पहले भी संप्रभुता की मांग कर रहे थे, उनका दावा था कि वे ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थे।
  • पंडित नेहरू ने मांग को अस्वीकार कर दिया, लेकिन उन्होंने नगा मामलों को विदेश मंत्रालय में एक निदेशक के अधीन रखा।
  • इंदिरा गांधी ने उन्हें "स्वतंत्रता के अतिरिक्त कुछ भी प्रदान करने" की पेशकश की, लेकिन इस मुद्दे को गृह मंत्रालय को स्थानांतरित कर दिया, और इसने नगाओं को नाराज़ कर दिया।
  • पी.वी. नरसिम्हा राव वह प्रधानमंत्री थे जिसने इस मुद्दे पर शांति के लिये हाथ बढाया।
  • उनकी सरकार ने गुप्त रूप से एनएससीएन-आईएम के साथ बातचीत की और उसके बाद एच.डी. देवेगौड़ा ने भी इसी का अनुपालन किया।
  • इंद्र कुमार गुजराल उनके साथ युद्ध विराम समझौते का करने में सक्षम हुए लेकिन यह एक लंबे समय तक चलने वाली शांति स्थापित करने में विफल रहा।
  • अटल बिहारी वाजपेयी ने "अद्वितीय इतिहास एवं नगाओं की स्थिति" को मान्यता दी तथा वर्ष 2001 में एक संघर्ष विराम निगरानी समूह बनाया।
  • मनमोहन सिंह ने भी NSCN-IM के साथ बातचीत करने की कोशिश की लेकिन कुछ भी अंतिम रूप नहीं ले सका।
  • वर्तमान सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (इसाक-मुइवा) या एनएससीएन-आईएम ने अगस्त 2015 में एक नगा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जो उस समय एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी गई थी। लेकिन तब से एक अंतिम समझौता अप्राप्य बना हुआ है।

शांति में अवरोध

  • नगा संप्रभुता की मान्यता, सभी नगा-भाषी क्षेत्रों का एकीकरण कर एक ग्रेटर नगालैंड, अलग संविधान और अलग झंडे ऐसी माँगें है जिन्हें पूरा करना केंद्र सरकार के लिये मुश्किल हो सकता है।
  • वर्तमान में NSCN (IM) ने पूर्ण संप्रभुता की अपनी मांग छोड़ दी है और यह भारतीय संवैधानिक ढाँचे के तहत अधिक स्वायत्त क्षेत्र चाहता है, जो नगा इतिहास और परंपराओं की विशिष्टता से जुड़ा है।
  • हालाँकि, एनएससीएन-आईएम के साथ बातचीत जटिल बनी हुई है, क्योंकि नगा अपने पैतृक क्षेत्रों के एकीकरण की माँग कर रहे हैं, जिसमें असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र शामिल हैं।
    • तीनों राज्यों ने नगाओं को अपना क्षेत्र सुपुर्द करने से इनकार कर दिया है।
    • मणिपुर ने एक याचिका में विरोध किया है कि मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता के साथ कोई भी समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
    • अन्य दो राज्यों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपनी क्षेत्रीय अखंडता के साथ समझौता नहीं करेंगे।
  • एक और महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि एनएससीएन-आईएम शिविरों में हथियारों का प्रबंधन किस प्रकार किया जाने वाला है। एक 'युद्धविराम' दल के रूप में, इसके कैडरों को केवल आत्मरक्षा के लिये निर्धारित शिविरों के अंदर अपने हथियारों को बनाए रखने की आशंका है, लेकिन कई बार न, कई प्रभावशाली कैडरों को नागरिक इलाकों में हथियारों के साथ चलते हुए देखा जाता है, जिससे कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • केंद्र के लिये यह सुनिश्चित करना एक कठिन कार्य होगा कि सभी हथियार अंतिम समझौते के समय समर्पित कर दिये जाएँ।
  • प्रारंभिक चरण में, नगा विद्रोहियों को म्यांमार में जिसे ‘सुरक्षित पनाहगाह’ के रूप में जाना जाता है, उपलब्ध कराए गए थे।
  • भारत के विरोधियों (चीन और पाकिस्तान) ने उन्हें एक समय पर महत्त्वपूर्ण बाहरी सहायता प्रदान की थी।
  • कई जगह पर खुली हुई सीमा और दुरूह इलाके इसे सुरक्षा बलों के लिये मुश्किल बनाते हैं क्योंकि उग्रवादी सीमा पार चले जाते हैं जहाँ उन्हें भोजन एवं आश्रय दिया जाता है।

हालिया गतिरोध

  • राज्यपाल द्वारा नगालैंड के मुख्यमंत्री को लिखा गया एक पत्र नवीनतम गतिरोध बन गया है।
  • राज्यपाल आर.एन. रवि, ने नगालैंड में जबरन वसूली और सामान्य कानून एवं व्यवस्था की स्थिति के पतन पर अपनी पीड़ा व्यक्त की, जहाँ संगठित गिरोह व्यवस्था के समानांतर अपनी स्वयं की ‘कर संग्रह’ प्रणाली चलाते हैं।
  • करों के नाम पर जबरन वसूली नगा मुद्दे का एक चुभने वाला पहलू रहा है।
  • विद्रोही समूहों द्वारा लगाए गए करों ने नागालैंड में लगभग सभी विकासात्मक गतिविधियों में दखल दिया है और एनएससीएन-आईएम का एक प्रमुख उद्देश्य समझौते के माध्यम से इस अनौपचारिक अभ्यास को औपचारिक मान्यता प्राप्त करना है।

कहानी का दूसरा पहलू

  • नगालैंड में कुछ लोगों ने नगालैंड को एक राजनीतिक मुद्दे के बजाय "कानून और व्यवस्था के मुद्दे" की दृष्टि से देखने को राज्यपाल के दृष्टिकोण की आलोचना की है।
  • उनका दावा है कि सरकार ने वर्ष 2015 में NSCN-IM के साथ एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये होते अगर नगालैंड "कानून और व्यवस्था का मुद्दा" होता।
  • नगा लोगों के इतिहास और पहचान के बारे में गलतफहमी ने वार्ता को और जटिल कर दिया है।
  • केंद्र सरकार नगालैंड को एक "अशांत क्षेत्र" के रूप में देखती है और उसने राज्य को सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत रखा है।
  • यह अधिनियम सेना को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है, जिसमें बिना वारंट के बल प्रयोग एवं  गिरफ्तारी शामिल हैं।

आगे की राह

  • केंद्र को उग्रवादियों के सभी गुटों और समूहों के साथ लंबे समय तक चलने वाली शांति के लिये बातचीत करनी चाहिये।
  • सरकार ने भी यह महसूस किया कि एक विद्रोही समूह को विशेषाधिकार देने से अंततः अंतिम शांति समझौते की रूपरेखा विकृत हो सकती है और इसने बाद में नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (NNPG) की छत्रछाया में चल रहे सात अन्य नगा विद्रोही समूहों को शामिल कर शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
    • हालाँकि, एक अन्य महत्त्वपूर्ण समूह, NSCN- खापलांग, जिसके कैडर म्यांमार के अंदर होने की सूचना है, अभी भी औपचारिक प्रक्रिया से बाहर हैं।
  • नगा सांस्कृतिक रूप से विभिन्न समुदायों / जनजातियों के विषम समूह है जिनकी मुख्यधारा की आबादी से अलग समस्याएँ हैं।
  • लंबे समय तक चलने वाले समाधान को प्राप्त करने के लिये, उनकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं क्षेत्रीय सीमा को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
  • इस मुद्दे से निपटने का एक अन्य तरीका जनजातीय प्रमुखों के लिये शक्तियों का अधिकतम विकेंद्रीकरण और शीर्ष स्तर पर न्यूनतम केंद्रीयकरण हो सकता है, मुख्य रूप से शासन को सुविधाजनक बनाने एवं बड़ी विकास परियोजनाओं को शुरू करने की दिशा में काम करना चाहिये।
  • किसी भी शांति ढाँचे के प्रभावी होने के लिये, उससे असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश राज्यों की वर्तमान क्षेत्रीय सीमाओं को खतरा नहीं होना चाहिये। जैसा कि इन राज्यों को स्वीकार्य नहीं होगा।
  • इन राज्यों में नगा क्षेत्रों के लिये अधिक स्वायत्तता प्रदान की जा सकती है, जो नगाओं की संस्कृति और विकास के मुद्दों के साथ नगा क्षेत्रों के लिये पृथक बजट आवंटन को शामिल करेगा।
  • एक नए निकाय का गठन किया जाना चाहिये जो नगालैंड के अलावा अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में नगाओं के अधिकारों की देखभाल करेगा।
  • इसके अलावा, केंद्र को यह ध्यान रखना होगा कि विश्व भर में अधिकांश सशस्त्र विद्रोह केवल जीत अथवा केवल हार में नहीं, बल्कि 'समझौता' कहे जाने वाले ग्रे जोन में समाप्त होते हैं।

नगा

  • नगा एक पहाड़ी समुदाय के लोग हैं जिनकी संख्या लगभग 2.5 मिलियन (नागालैंड में 1.8 मिलियन, मणिपुर में 0.6 मिलियन और अरुणाचल राज्यों में 0.1 मिलियन) है और वे भारतीय राज्य असम और बर्मा के मध्य सुदूर एवं पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं।
  • बर्मा में भी नगा समूह हैं।
  • नगा एक जनजाति नहीं है, बल्कि एक जातीय समुदाय है, जिसमें कई जनजातियाँ शामिल हैं, जो नगालैंड और उसके पड़ोसी क्षेत्रों में रहती हैं।
  • नगा इंडो-मंगोलॉयड वंश से संबंध रखते हैं।
  • उन्नीस प्रमुख नगा जनजातियाँ हैं, जिनके नाम हैं, एओस, अंगामिस, चांग्स, चकेसांग, कबूइस, कचारिस, खैन-मंगस, कोन्याक्स, कुकिस, लोथस (लोथास), माओस, मिकीर्स, फोम्स, रेंगमास, संग्तामास, सेमस, टैंकहुल्स, यामचुमगर और ज़ीलियांग।

मुख्य परीक्षा प्रश्न: नगा विद्रोह और इसके लिये ज़िम्मेदार कारणों का गंभीर रूप से विश्लेषण करें। नगालैंड में हमेशा के लिये शांति कैसे सुनिश्चित की जा सकती है?


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