आंतरिक सुरक्षा
नगा समस्या: कारण और निवारण
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नगा समस्या के कारण और समाधान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत के पूर्वोत्तर में स्थित नगा समुदाय एवं नगा संगठन, नगा बहुल इलाकों को लेकर एक ग्रेटर नगालिम राज्य बनाने की लंबे समय से माँग कर रहे हैं। इस विषय पर उनकी केंद्र सरकार से कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है। हाल ही में नगा शांति वार्ता के वार्ताकार और नागालैंड के राज्यपाल आर. एन. रवि ने मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio) को लिखे अपने एक पत्र में यह आशंका व्यक्त की है कि कुछ सशस्त्र चरमपंथी संगठनों द्वारा संवैधानिक रूप से स्थापित राज्य सरकार की वैधता को चुनौती दी जा रही है। चरमपंथी संगठनों द्वारा राज्य के सामान्य लोगों, कर्मचारियों व अधिकारियों से फिरौती की वसूली की जा रही है तथा विनाशक हथियारों के बल पर सरकारी धन को भी लूटा गया है।
हालाँकि सात चरमपंथी समूहों के संगठन नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (Naga National Political Groups-NNPGs) की कार्यकारिणी समिति ने किसी भी समूह के इस प्रकार की गतिविधि में शामिल होने से इनकार किया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- नगा एक नृजातीय समूह है, जो विभिन्न जनजातियों में विभाजित है। ब्रिटिश काल एवं उससे पूर्व भी नगा अपनी पृथक पहचान एवं उसके संरक्षण के लिये प्रतिबद्ध रहे हैं।
- वर्ष 1929 में साइमन कमीशन के समक्ष सर्वप्रथम नगाओं ने अपने भविष्य का निर्धारण स्वयं करने की मांग कर प्रतिरोध की शुरुआत का प्रारंभिक साक्ष्य दिया था। नगा इस क्षेत्र में भारत के पूर्वोत्तर तथा म्याँमार में फैले हुए हैं।
- वर्ष 1935 के भारत शासन अधिनियम से तत्कालीन बर्मा जिसे वर्तमान में म्याँमार कहा जाता है, को भारत से पृथक कर दिया गया। राजनीतिक सीमा के निर्धारण ने नगाओं को भारत एवं म्याँमार में विभाजित कर दिया।
- भारतीय स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व ही अर्थात् 14 अगस्त, 1947 को विभिन्न नगा समूहों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इसमें प्रमुख भूमिका नगा नेशनल कौंसिल की मानी गई। इन समूहों ने भूमिगत सरकार तथा सेना का गठन किया।
- तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे भारतीय एकता-अखंडता के लिये अनुचित माना। वर्ष 1958 में पूर्वोत्तर के अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम (AFSPA) लागू किया गया।
- इस क्षेत्र में पिछले कई दशकों से हिंसा एवं शांति समझौते के लिये प्रयास साथ-साथ चलते रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी ठोस नतीजे पर पहुँचना संभव नहीं हो सका है।
नगा समूह की क्या है मांग?
- नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स पूर्वोत्तर में फैले हुए नगा क्षेत्रों को मिलाकर एक वृहत नगालैंड अर्थात् नगालिम की मांग करते रहे हैं, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर तथा म्याँमार के भी कुछ क्षेत्र शामिल हैं।
- इसके लिये वे ऐतिहासिक कारकों एवं पृथक संस्कृति का हवाला देते हैं। इसके तहत उनकी मांग है कि नगालिम को विशेष दर्जा दिया जाए। साथ ही नगा समूह नगालिम के प्रशासन के लिये एक पृथक संविधान तथा एक पृथक झंडे की मांग करते रहे हैं।
- ज्ञातव्य है कि नगा ध्वज और संविधान पर नगा समूहों और केंद्र के बीच सहमति होनी अभी बाकी है। नगा लोग अपने प्रतीकों के प्रति काफी संवेदनशील हैं और इन प्रतीकों को अपनी पहचान तथा गौरव से जुड़ा हुआ मानते हैं।
पहचान का है संकट
- पहचान के संकट को एक ऐसी अवधारणा के रूप में व्याख्यायित किया जाता है ‘जिसमें कोई व्यक्ति अथवा समूह दीर्घ अवधि में अपनी संस्कृति, सभ्यता की पहचान को लेकर असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होता है।’
- भारत एवं विश्व में ऐसे समुदाय एवं समाज जो आधुनिक विचारों को नहीं अपना सके हैं तथा अभी भी अपनी पुरातन मान्यताओं के आधार पर जीवन व्यतीत कर रहे हैं, में प्रायः आने वाले बदलावों के परिणामस्वरूप पहचान के संकट की की भावना उत्पन्न हो रही है।
- भारत में यह समस्या प्रमुख रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में देखी जा सकती है। पूर्वोत्तर में विभिन्न नृजातीय तत्त्व विद्यमान हैं, इन नृजातीय समूहों में सांस्कृतिक स्तर पर भिन्नताएँ हैं।
- विभिन्न नृजातीय समूह आधुनिक भौतिक कारकों के चलते न चाहते हुए भी करीब आए हैं, इससे इनकी पहचान का संकट उत्पन्न हुआ है। इसी के परिणामस्वरूप विभिन्न नृजातीय समूह जिसमें नगा भी शामिल हैं, स्वयं की पृथक पहचान स्थापित करने के लिये निरंतर सरकार से संघर्ष कर रहे हैं।
शांति समझौतों का दौर
- शांति समझौते का सर्वप्रथम प्रयास जून 1947 में हुआ था, जब भारत सरकार व नगा विद्रोही नगा हिल्स में एक अंतरिम प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना को लेकर सहमत हुए थे। लेकिन यह व्यवस्था एक विवादास्पद सूत्र के चलते नहीं चल पाई, इसमें यह प्रावधान था कि भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर असम के राज्यपाल के पास 10 साल तक यह विशेष ज़िम्मेदारी होगी कि इस समझौते को लागू कराएँ।
- जैसे ही 10 साल पूरे हुए, नगा विद्रोहियों ने इसकी व्याख्या अपनी आज़ादी के अधिकार के रूप में की, जबकि सरकार ने इसे कानून के अंतर्गत प्रशासनिक बदलाव के लिये सिर्फ सलाह का अधिकार बताया।
- उपरोक्त घटनाक्रम के अलावा वर्ष 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (National Socialist Council of Nagaland-NSCN) ने अलग होने की मांग को लेकर सशस्त्र आंदोलन छेड़ा था।
- वर्ष 1988 में इसमें मतभेद उत्पन्न हो गए और एक गुट NSCN (IM) व दूसरा NSCN (Khaplang) के नाम से जाना गया। इन दोनों गुटों के बीच हिंसक संघर्ष चलता रहता है, जबकि दोनों ने ही केंद्र सरकार के साथ शांति समझौता कर रखा है। IM गुट ने वर्ष 1997 में शांति समझौता किया और खपलांग गुट ने वर्ष 2010 में उनका अनुसरण किया।
ग्रेटर नगालिम के पक्ष में तर्क
- नगालैंड कहता रहा है कि ‘16-पॉइंट एग्रीमेंट’ में यह बात शामिल है कि नगा क्षेत्रों को वापस नगालैंड को लौटा दिया जाएगा। विदित हो कि इस समझौते के तहत 1960 में नगालैंड भारत का राज्य बना था।
- असम कहता है कि नगालैंड द्वारा उसके भू-भाग में अतिक्रमण किये जाते हैं, जबकि नगालैंड का तर्क यह है कि ऐतिहासिक तौर पर नगाओं की भूमि असम के कब्ज़े में है। असम और नगालैंड के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसा होती रहती है जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं।
- मणिपुर का जहाँ तक सवाल है तो वहाँ घाटी में रहने वाली आबादी पहाड़ी आबादी की तुलना में ज़्यादा है। नगा जनजातियाँ ईसाई धर्म को मानती हैं तो घाटी में रहने वाले अधिकतर लोग हिंदू हैं जो मैतेयी समुदाय के हैं। पहाड़ों पर रहने वाली नगा जनजातियों और मैतेयी समुदाय के बीच व्याप्त अविश्वास कई बार हिंसा का रूप ले चुका है।
ग्रेटर नगालिम के विपक्ष में तर्क
- यदि असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के भौगोलिक एकीकरण को मंज़ूरी दी गई तो यहाँ सांप्रदायिक संघर्ष आरंभ हो सकता है।
- नगालिम के गठन से राष्ट्रीय एकता और अखंडता को चोट तो पहुँचेगी ही, साथ में राज्यों की परियोजनाओं और योजनाओं को आगे बढ़ाने में बाधाएँ भी आ सकती हैं।
- यदि नगालिम के गठन की मांग मान ली जाती है तो यह देश के अन्य राज्यों को भौगोलिक एकीकरण की मांग करने के लिये प्रोत्साहित करने का भी काम करेगा।
- नगा विद्रोह को खत्म करने के लिये कोई भी समाधान नगालैंड राज्य तक ही सीमित नहीं होना चाहिये, बल्कि अन्य राज्यों की चिंताओं को भी ध्यान में रखना चाहिये।
- केंद्र को किसी विशेष समुदाय को 'व्यवस्थित' करने के प्रयास नहीं करने चाहिये, क्योंकि नगालैंड की सीमा से लगे राज्य मणिपुर में 30 से अधिक विभिन्न जातीय समूह निवास करते हैं। किसी एक समुदाय को महत्त्व देना भी हिंसा बढ़ाने का काम करेगा।
संभावित समाधान
- वर्तमान में समझौता बातचीत के दौर में है, किंतु सरकार के बयानों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार NNPGs की मांगों को पूर्ण रूप से स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है। समझौते के लिये एक बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया जा रहा है।
- नगालिम के स्थान पर नगालैंड को दी जाने वाली विभिन्न सहूलियतों को अन्य संबंधित राज्यों में निवास कर रहे नगाओं तक भी विस्तृत किया जाएगा, साथ ही सांस्कृतिक मंचों और कार्यक्रमों पर नगाओं को स्वयं का झंडा उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी किंतु यह छूट राजनीतिक मामलों में नहीं होगी।
- पृथक संविधान के स्थान पर नगाओं को स्वायत्तता दी जाएगी तथा उनके हितों की विशेष रक्षा की जाएगी। साथ ही अन्य मांगें जिनके प्रभाव व्यापक नहीं हैं, उनको स्वीकार करने पर सरकार विचार कर सकती है।
समझौता लागू होने में रुकावटें
- नगा संगठनों को सरकार बता चुकी है कि उनकी मांगों का समाधान नगालैंड की सीमा के भीतर ही होगा और इसके लिये पड़ोसी राज्यों की सीमाओं को बदलने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
- असम सरकार कहती रही है कि किसी भी कीमत पर राज्य का नक्शा नहीं बदलने दिया जाएगा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा हर हाल में की जाएगी। मणिपुर की सरकार का यह मत रहा है कि नगा समस्या के समाधान से राज्य की शांति भंग नहीं होनी चाहिये।
- अरुणाचल प्रदेश सरकार ने भी साफ कर दिया है कि उसे ऐसा कोई समझौता मंजूर नहीं होगा जिससे राज्य की सीमा प्रभावित हो।
- दूसरी ओर, क्षेत्रीय एकीकरण अर्थात् नगा इलाकों का एकीकरण नहीं होने की स्थिति में नगा विद्रोही गुट किसी प्रकार का समझौता करने के इच्छुक नहीं हैं। विभिन्न नगा समूहों में तीखे मतभेद भी रहे हैं, इसलिये किसी समझौते को आगे बढ़ाने में कठिनाई आती है, अतीत में बार-बार ऐसा देखने को मिला है।
आगे की राह
- नगा संघर्ष के इतिहास से पता चलता है कि विभिन्न दलों द्वारा अपनी सुविधानुसार की गई भिन्न-भिन्न व्याख्याओं के कारण अब तक हुए अधिकतर समझौते विफल रहे हैं।
- सरकारों को मिल-बैठकर इस समस्या का समग्र हल तलाशने का प्रयास करना चाहिये, अन्यथा बार-बार विफलता ही हाथ लगेगी। इसके परिणामस्वरूप नए विद्रोही नगा गुट जन्म लेंगे, जो समस्या को बढ़ाने के अलावा और कुछ नहीं करेंगे।
- विद्रोह पर नियंत्रण रखने के लिये विदेशों से संसाधनों (हथियारों तथा धन) की उपलब्धता पर प्रभावी रोक लगाने के हरसंभव प्रयास करने की ज़रूरत है।
- नगा समस्या पर व्यापक समझ कायम करते हुए जनजातीय समूहों तथा अन्य लोगों की बदलती आकांक्षाओं के मद्देनज़र स्वीकार्य एवं व्यापक समाधान तलाशने की आवश्यकता है।
प्रश्न- ‘देश को सांस्कृतिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से एकीकृत किया जाना चाहिये, हालाँकि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि एकीकरण के नाम पर किसी समुदाय के साथ ज़्यादती न हो।’ नगा समस्या के संदर्भ में कथन की विवेचना कीजिये।