एडिटोरियल (09 Mar, 2022)



महिला कार्यबल क्षमता का दोहन

यह एडिटोरियल 08/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “International Women’s Day - Reaping the Potential of the Female Workforce” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में महिला कार्यबल की क्षमता का दोहन कर सकने के मार्ग की चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 (8 मार्च) की थीम है- 'एक संवहनीय कल के लिये आज लैंगिक समानता' (Gender Equality Today for a Sustainable Tomorrow) है। यद्यपि रोज़गार उन क्षेत्रों में से एक है जहाँ लैंगिक असमानता अपने चरम स्तर पर देखी जा सकती है। भारत की महिला श्रम शक्ति भागीदारी (Female Labour Force Participation- FLFP) दर ‘ब्रिक्स’ देशों में सबसे कम है और यह दक्षिण एशिया में श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से भी कम है। इस समस्या के समाधान के लिये हमें दृष्टिकोण में परिवर्तन के साथ ही ठोस प्रयासों और लक्षित रणनीतियों की आवश्यकता है ताकि महिलाएँ इन नए श्रम बाज़ार अवसरों का लाभ उठा सकें। उच्च शिक्षा तक पहुँच, कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल प्रौद्योगिकी वे तीन प्रमुख क्षेत्र हैं जो भारत को अपनी महिला श्रम शक्ति की क्षमता का लाभ उठाने में मदद कर सकते हैं।

महिला कार्यबल भागीदारी का वर्तमान परिदृश्य 

  • कुछ मामलों में महिलाओं की उपस्थिति संतोषजनक है। उदाहरण के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत कार्यान्वित परियोजनाओं में महिलाओं की भागीदारी लगभग 50% है।
  • भारत में महिला एयरलाइन पायलटों की हिस्सेदारी विश्व में उच्चतम (5% वैश्विक औसत की तुलना में 15%) है।
  • इसके अतिरिक्त अभी हाल तक भारत की लगभग आधी बैंकिंग आस्तियाँ महिलाओं के नेतृत्त्व वाले संस्थानों के अधीन थीं।
  • इसके बावजूद भारत में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी अभी भी कम बनी हुई है। भारत की महिला श्रमबल भागीदारी दर (LFBR) 20% है जो विश्व में न्यूनतम दरों में से एक है और इसकी तुलना सऊदी अरब जैसे देशों से ही की जा सकती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत महिला LFBR के मामले में 131 देशों की सूची में 121वें स्थान पर है।

अनौपचारिक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति

  • ILO द्वारा वर्ष 2018 में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 95% से अधिक कामकाज़ी महिलाएँ अनौपचारिक कामगार हैं जो प्रायः श्रम-गहन, निम्न-भुगतान प्राप्त और अत्यधिक अनिश्चित नौकरियों/कार्य-परिस्थितियों में बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के कार्यरत हैं।
  • मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 द्वारा महिला कर्मचारियों के लिये मातृत्व अवकाश की अवधि को दोगुने से भी अधिक बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है और इस अवधि के बाद भी नियोक्ता के साथ आपसी समझौते के आधार पर वे ‘वर्क फ्रॉम होम’ की सुविधा ले सकती हैं, जबकि 50 या अधिक महिलाओं को नियुक्त करने वाले किसी भी प्रतिष्ठान के लिये ‘क्रेच’ सुविधा’ उपलब्ध कराना भी अनिवार्य कर दिया गया है।
    • यद्यपि इन लाभों का उपभोग अधिकांशतः औपचारिक क्षेत्र से संलग्न महिलाकर्मी ही ले पाती हैं, जिनकी महिला कार्यबल में हिस्सेदारी 5% से भी कम है।
  • वहनीय और गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल सेवाओं और मातृत्व लाभों की कमी से अनौपचारिक क्षेत्र की महिला कामगारों पर बोझ बढ़ जाता है, जिससे लैंगिक और वर्गीय असमानताओं की वृद्धि होती है।

विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी की स्थिति

  • ‘यूनाइटेड नेशंस वीमन’ (UN Women) के अनुमानों के अनुसार, महिलाएँ स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के एक उल्लेखनीय अनुपात का निर्माण करती हैं और नर्सों एवं दाइयों के रूप में उनकी संख्या 80% से अधिक है।
  • भारत में शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा और आरंभिक बाल्यावस्था देखभाल में महिलाएँ कुल कार्यबल में एक महत्त्वपूर्ण अनुपात रखती हैं।
  • देखभाल सेवा क्षेत्र (जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य व्यक्तिगत देखभाल सेवाएँ शामिल हैं) विनिर्माण, निर्माण या अन्य सेवा क्षेत्रों जैसे क्षेत्रों की तुलना में अधिक श्रम प्रधान है, जहाँ उपकरणों के बढ़ते प्रवेश, प्रौद्योगिकी और मशीनीकरण की वृद्धि जैसे कारकों के कारण रोज़गार क्षमता प्रभावित होती है। 

‘गिग इकोनॉमी’ और महिलाओं की डिजिटल संसाधनों तक पहुँच:

  • गिग इकोनॉमी (Gig Economy) ने महामारी के दौरान भी प्रत्यास्थता या लचीलेपन के गुण का प्रदर्शन किया है,  जहाँ ‘प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स’ शहरी भारत में एक अनिवार्य भूमिका निभा रहे हैं।
    • अध्ययनों से संकेत मिलता है कि महिलाएँ गिग इकोनॉमी की आय-सृजन क्षमता से आकर्षण रखती हैं।
    • ILO ग्लोबल सर्वे (2021) ने दर्ज किया है कि ‘वर्क फ्रॉम होम’ या ‘जॉब फ्लेक्सिबिलिटी’ महिलाओं के लिये विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म जो दूरस्थ कार्य की अनुमति देते हैं, सिद्धांततः किसी भी स्थान पर पुरुषों और महिलाओं के लिये सुलभ हैं। हालाँकि इंटरनेट और स्मार्टफोन तक पहुँच एक निषेधकारी कारक हो सकता है।
  • आँकड़े बताते हैं कि भारत में महिलाओं की इंटरनेट और स्मार्टफोन तक पहुँच पुरुषों की तुलना में पर्याप्त कम है।
  • ‘GSMA मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट’ के अनुसार वर्ष 2020 में भारत में 41% पुरुषों की तुलना में केवल 25% महिलाओं के पास स्मार्टफोन थे।
    • गिग और प्लेटफॉर्म सेक्टर में महिलाओं के रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये इस अंतर को पाटना आवश्यक होगा।

FLFP दर में वृद्धि लाने के उपाय 

  • कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना: गिग, प्लेटफॉर्म और देखभाल क्षेत्रों के साथ-साथ उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PIL) योजना के तहत आने वाले अन्य उभरते क्षेत्रों में उपलब्ध रोज़गार अवसरों का लाभ उठाने के लिये महिलाओं के कौशल प्रशिक्षण को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
    • ऑनलाइन कौशल प्रशिक्षण भी महिलाओं के लिये लाभप्रद हो सकता है जिन्हें सामाजिक मानदंडों, घरेलू ज़िम्मेदारियों या सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण भौतिक गतिशीलता की बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • हमें महिलाओं की डिजिटल पहुँच और उभरते हुए क्षेत्रों में रोज़गार अवसरों का लाभ उठाने में उन्हें सक्षम बनाने के लिये ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो सुपरिभाषित परिणाम लाते हों।
  • निवेश में वृद्धि: बेहतर स्वास्थ्य एवं देखभाल सुविधाओं में अधिकाधिक निवेश से न केवल लोगों की सेहत में सुधार होगा (और इस प्रकार उनकी आर्थिक उत्पादकता में सुधार होगा), बल्कि महिलाओं के लिये रोज़गार के अधिक अवसर भी पैदा होंगे।
    • केयर वर्क एंड केयर जॉब्स फॉर द फ्यूचर ऑफ डिसेंट वर्क’ पर ILO रिपोर्ट: ‘Asia and the Pacific (2018)’ के प्रमुख निष्कर्ष में संकेत दिया गया है कि ‘केयर इकोनॉमी’ में बढ़ते निवेश में वर्ष 2030 तक भारत में कुल 69 मिलियन नौकरियाँ पैदा करने की क्षमता है।
    • नवीन और उभरते क्षेत्रों में रोज़गार अवसरों का लाभ उठाने के लिये महिलाओं को भौतिक संपत्ति (क्रेडिट सुविधाओं, रिवॉल्विंग फंड आदि के माध्यम से) और रोज़गार योग्य कौशल दोनों ही हासिल करने में सक्षम बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • बाल देखभाल सेवाएँ प्रदान करना: यह पहल महिलाओं को उनकी देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों को प्रबंधित करने में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता करेगी, जिससे वे भुगतान-प्राप्त रोज़गार के लिये पर्याप्त समय दे सकेंगी।
    • कार्यालय परिसरों में सहयोगपूर्ण मॉडल के माध्यम से और औद्योगिक गलियारों में उद्योग संघों की मदद से बाल देखभाल सेवाओं की स्थापना के लिये भी निवेश किया जाना आवश्यक है।
    • कामकाजी महिलाओं के लिये विशिष्ट प्रावधान करने वाली ‘राष्ट्रीय शिशु गृह योजना’ (National Creche Scheme) को सरकारी वित्तपोषण में कमी का सामना करना पड़ा है। योजना के प्रावधानों को पुनर्जीवित करना और सार्वजनिक एवं कार्यस्थल पर शिशु गृहों के नेटवर्क को जोड़ना बेहद फायदेमंद हो सकता है।
      • सार्वजनिक शिशु गृहों को कार्यस्थल समूहों-जैसे औद्योगिक क्षेत्रों, बाज़ारों, सघन निम्न-आय आवासीय क्षेत्रों के निकट संचालित किया जा सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत में महिला श्रमबल भागीदरी दर को बढ़ाना न केवल आर्थिक विकास के लिये बल्कि समावेशी विकास को बढ़ावा देने एवं सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।’’ टिप्पणी कीजिये।