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एडिटोरियल

  • 08 Dec, 2020
  • 11 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक समूहों को बैंक स्वामित्व की अनुमति

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक की आतंरिक कार्य समिति द्वारा बड़े औद्योगिक समूहों को देश के बैंकिंग क्षेत्र में प्रत्यक्ष भागीदारी की अनुमति की सिफारिश के प्रभावों व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) की आतंरिक कार्य समिति (Internal Working Group- IWG) ने बड़े औद्योगिक समूहों को देश के बैंकिंग क्षेत्र में प्रत्यक्ष भागीदारी की अनुमति देने के लिये ‘बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949’ में आवश्यक संशोधन किये जाने का सुझाव दिया है। बैंकिंग क्षेत्र को औद्योगिक समूहों के लिये खोले जाने की यह सिफारिश ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFC) के साथ अन्य आकांक्षियों को अतिरिक्त बैंकिंग लाइसेंस देने की नीति के अनुरूप है। हालाँकि औद्योगिक समूहों के पास बैंकों का स्वामित्व होना हमेशा से ही एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। विश्व के कई देशों ने बैंकों और अन्य व्यावसायिक/औद्योगिक समूहों के बीच एक मज़बूत दीवार बनाए रखने के विकल्प को चुना है।

ऐसे में औद्योगिक समूहों को बैंकों का प्रायोजक बनने या बैंकों का स्वामित्व प्राप्त करने की अनुमति देने से पहले इसके लाभ और नुक्सान की व्यापक समीक्षा करना बहुत ही आवश्यक है।

औद्योगिक समूहों को बैंकिंग लाइसेंस देने के लाभ:       

  • पूंजी निवेश में वृद्धि: भारत के अधिकांश बैंकों में बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश किये जाने की आवश्यकता है और वर्तमान में सरकार द्वारा सार्वजनिक बैंकों का पूंजीकरण  करदाताओं से प्राप्त धन से किया जाता है।
    • ऐसे में बड़े औद्योगिक समूहों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देकर इस क्षेत्र में पूंजी की कमी को दूर करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • वित्तीय समायोजन: देश की स्वतंत्रता के लगभग 7 दशकों के पश्चात् सरकार की कई योजनाओं के बावज़ूद देश की एक बड़ी आबादी अभी भी बैंकिंग सेवाओं तक पहुँच से बाहर है। बैंकिंग क्षेत्र में कोर्पोरेट्स के प्रवेश से इसके पूंजी निवेश में वृद्धि के साथ-साथ सेवा क्षेत्र का भी विस्तार होगा। बैंकों की नई शाखाओं के खुलने से अधिक-से-अधिक लोगों को बैंकिग सेवाओं से जोड़ा जा सकेगा।    
  • प्रतिस्पर्द्धा में सुधार: बैंकों का निजीकरण भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में लंबे समय से प्रस्तावित सुधार रहा है। बैंकिंग क्षेत्र में कॉर्पोरेट्स के प्रवेश की अनुमति से सार्वजनिक बैंकों पर अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिये दबाव बढ़ेगा। 

औद्योगिक समूहों को बैंकिंग लाइसेंस देने के नुकसान: 

औद्योगिक समूहों को बैंकों का स्वामित्व प्राप्त करने की अनुमति न देने के प्रमुख कारणों में से कुछ निम्नलिखित हैं: 

  • पारदर्शिता की कमी और नैतिक जोखिम: एक ऐसा बैंक जिसका औद्योगिक समूहों से कोई संबंध न हो, वह बिना हितों के टकराव के प्रभावी रूप से ऋण आवेदनों की समीक्षा कर सकता है और इस प्रकार अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में तेज़ी लाने के लिये धन का कुशल आवंटन सुनिश्चित किया जा सकता है।    
    • दूसरी ओर औद्योगिक समूहों के स्वामित्व वाले बैंकों पर ऋण जारी करने के दौरान अधिक योग्य संस्थानों/कंपनियों की बजाय लगातार समूह की ही अन्य कंपनियों को प्राथमिकता देने का दबाव बना रहेगा। इसे ‘कनेक्टेड लेंडिंग’ (Connecting Lending) के रूप में देखा जा सकता है।    
    • कनेक्टेड लेंडिंग, परियोजनाओं के जोखिम को औद्योगिक समूहों से प्रभावी रूप से हटाकर बैंकों को स्थानांतरित कर सकती है। इसके कारण होने वाली क्षति की भरपाई बैंक के अन्य शेयरधारकों या करदाताओं (बैंक के असफल होने की स्थिति में)  को करनी पड़ सकती है।   
    • आर्थिक दृष्टि से यह कुशल निधि के उपयोग को रोक सकता है और लाभ की संभावनाओं तथा शोधन क्षमता को प्रभावित कर सकता है। 
    • नैतिक दृष्टि से देखा जाए तो यह एक प्रभावी वित्तीय मध्यस्थ के रूप में बैंक की भूमिका को प्रभावित करेगा और  नैतिक खतरा या हितों के टकराव की स्थिति पैदा करेगा।    

सर्कुलर लेंडिंग और विनियमन की चुनौतियाँ: 

  • औद्योगिक समूहों को बैंकों के स्वामित्व की अनुमति देने का एक और जोखिम ‘सर्कुलर लेंडिंग’ (Circular Lending) से जुड़ा है।  
  • यहाँ सर्कुलर लेंडिंग से आशय उस स्थिति से हैं जहाँ कोई कॉर्पोरेट बैंक ‘X’ किसी ऐसे औद्योगिक समूह की परियोजना की फंडिंग कर रहा है जिसके पास कॉर्पोरेट बैंक ‘Y’ का स्वामित्व है, इसके साथ ही कॉर्पोरेट बैंक ‘Y’ किसी ऐसे औद्योगिक समूह की परियोजना की फंडिंग कर रहा है जिसके पास कॉर्पोरेट बैंक ‘Z’ का स्वामित्व है और अंत में कॉर्पोरेट बैंक ‘Z’ किसी ऐसे औद्योगिक समूह की परियोजना की फंडिंग कर रहा है जिसके पास कॉर्पोरेट बैंक ‘X’ का स्वामित्व है। 
  • ऐसी स्थिति में उपलब्ध कानूनी प्रावधानों और शेल कंपनियों के प्रसार के बीच वास्तविक समय में ऐसे ऋणों की निगरानी का कार्य बहुत ही कठिन होगा।     

असमानता और धन का संकेंद्रण:

  •  औद्योगिक समूहों को बैंकों का स्वामित्व प्राप्त होने से बड़े औद्योगिक समूहों की शक्ति में और वृद्धि होगी, जिनका पहले से ही अर्थव्यवस्था के कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों (जैसे- दूरसंचार, संगठित खुदरा व्यापार, विमानन, सॉफ्टवेयर और ई-कॉमर्स आदि) में वर्चस्व रहा है।
    • बड़े औद्योगिक समूहों का बैंकिंग तंत्र (जो आर्थिक क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है) में  प्रत्यक्ष हस्तक्षेप न सिर्फ छोटे व्यसायों/उद्योगों के हितों को प्रभावित करेगा बल्कि यह अन्य नए बाज़ारों में बड़े औद्योगिक समूहों को अपनी शक्ति का लाभ उठाने में सहायता करेगा। 
    • इसके अतिरिक्त औद्योगिक समूहों को बैंकों के स्वामित्व की अनुमति देने से धन के संकेंद्रण और असमानता को बढ़ावा मिलेगा।
    • इससे आर्थिक क्षेत्र में नई बड़ी शक्तियों का उदय हो सकता है, जो शीघ्र ही अर्थव्यवस्था को सही दिशा में ले जाने की सरकार की क्षमता को समाप्त कर देंगे।

पूर्व के नियमों के विपरीत:

  • पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसे देखते हुए वर्ष 2016 में RBI द्वारा किसी एक ही कंपनी को ऋण देने की सीमा निर्धारित करने के लिये नए दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।
    • इस निर्णय के पीछे तर्क यह था कि यदि कोई बैंक एक ही कंपनी को बहुत अधिक ऋण देता है तो संबंधित कंपनी के असफल होने पर बैंक के आर्थिक जोखिम की संभावनाएँ  बढ़ जाती हैं।   
    • ऐसे में बैंकिंग क्षेत्र में बड़े औद्योगिक समूहों के प्रवेश की अनुमति की सिफारिश वर्ष 2016 के उपरोक्त निर्णय के विपरीत होगी।  

निष्कर्ष:   

औद्योगिक और बैंकिंग क्षेत्र को मिलाने के लाभ तथा नुकसान के अध्ययनों से इस कदम के विकास, सार्वजनिक वित्त एवं भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य के लिये अनुकूल न होने का संकेत मिलता है। ऐसे में कॉर्पोरेट्स के हाथों में बहुत अधिक आर्थिक शक्ति देने की बजाय काफी समय से लंबित बैंकिंग सुधारों को लागू करने के साथ ही  RBI की कार्यात्मक स्वायत्तता को मज़बूत करने के प्रयासों पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: ‘औद्योगिक समूहों को बैंकों का प्रायोजक बनने या बैंकों का स्वामित्व प्राप्त करने की अनुमति देने से पहले इसके लाभ और नुक्सान की व्यापक समीक्षा करना बहुत ही आवश्यक है।’ चर्चा कीजिये।


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