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एडिटोरियल

  • 08 Nov, 2023
  • 20 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रोगाणुरोधी प्रतिरोध का खतरा और इसका सामना

यह एडिटोरियल 06/11/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Don’t ignore the threat of antimicrobial resistance” लेख पर आधारित है। इसमें AMR को संबोधित करने के लिये तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से निम्न एवं मध्यम-आय देशों में, जहाँ संक्रामक रोगों का बोझ अधिक है और गुणवत्तापूर्ण रोगाणुरोधकों तक सीमित पहुँच पाई जाती है।

प्रिलिम्स के लिये:

वन हेल्थ दृष्टिकोण, रोगाणुरोधी प्रतिरोध, AMR एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (AMSP), मेडिसिन पेटेंट पूल, कायाकल्प

मेन्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR): चिंताएँ, सरकार द्वारा उठाए गए कदम और आगे की राह

भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान दिल्ली घोषणापत्र (Delhi Declaration) में ‘वन हेल्थ’ (One Health) दृष्टिकोण को लागू करने, महामारी संबंधी तैयारियों को संवृद्ध करने और मौजूदा संक्रामक रोग निगरानी प्रणालियों को सुदृढ़ करने के लिये अधिक प्रत्यास्थी, समतामूलक, संवहनीय एवं समावेशी स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण करने के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य संरचना को सशक्त करने की प्रतिबद्धता जताई गई।

अनुसंधान एवं विकास (R&D), संक्रमण की रोकथाम एवं नियंत्रण के साथ ही संबंधित राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं (National Action Plans- NAPs) के अंतर्गत रोगाणुरोधी प्रबंधन प्रयासों (antimicrobial stewardship efforts) के माध्यम से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) से निपटने को प्राथमिकता देना इस समझौते का एक अन्य महत्त्वपूर्ण भाग था।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) क्या है?

  • परिभाषा: रोगाणुरोधी प्रतिरोध की स्थिति तब बनती है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक (fungi) और परजीवी समय के साथ रूपांतरित हो जाते हैं और दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं, जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है तथा रोग के प्रसार, गंभीर रूप से बीमार पड़ने एवं मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
  • AMR के कारण: जीवाणु या बैक्टीरिया में प्रतिरोध आनुवंशिक उत्परिवर्तन (genetic mutation) या एक प्रजाति द्वारा दूसरे से प्रतिरोध प्राप्त करने से नैसर्गिक रूप से उत्पन्न हो सकता है। यह यादृच्छिक उत्परिवर्तन के कारण या क्षैतिज जीन स्थानांतरण (horizontal gene transfer) के माध्यम से प्रतिरोधी जीन के प्रसार के कारण अनायास भी प्रकट हो सकता है।
    • AMR के मुख्य कारण हैं:
      • रोगाणुरोधी दवाओं (antimicrobials) का दुरुपयोग और अति-उपयोग
      • स्वच्छ जल एवं स्वच्छता का अभाव
      • अपर्याप्त संक्रमण रोकथाम एवं नियंत्रण
      • जागरूकता की कमी
  • स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: लैंसेट (Lancet) की वर्ष 2021 की एक रिपोर्ट, जिसमें 204 देशों के डेटा का दस्तावेजीकरण किया गया, का अनुमान है कि 4.95 मिलियन मौतें बैक्टीरियल AMR से जुड़ी थीं और 1.27 मिलियन मौतें प्रत्यक्ष रूप से बैक्टीरियल AMR के कारण हुईं।
    • यह परिमाण में HIV और मलेरिया जैसी बीमारियों के बराबर है।
      • उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में मृत्यु दर सबसे अधिक देखी गई, जो AMR के प्रति उच्च संवेदनशीलता को दर्शाता है।
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते स्तर—जो अत्यधिक रोगाणुरोधी दवा के उपयोग से प्रेरित हैं, न केवल संक्रामक रोगों के क्षेत्र में प्राप्त सार्वजनिक-स्वास्थ्य लाभ की स्थिति को कमज़ोर कर सकते हैं, बल्कि कैंसर के उपचार, प्रत्यारोपण आदि को भी खतरे में डालते हैं।
  • AMR के मुख्य चालक: रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मुख्य चालकों में रोगाणुरोधी का दुरुपयोग एवं अति-उपयोग तथा मनुष्यों एवं पशुओं दोनों के लिये स्वच्छ जल, साफ-सफाई एवं स्वच्छता (Water, Sanitation and Hygiene- WASH) तक पहुँच की कमी शामिल हैं।

भारत में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित प्रमुख चिंताएँ कौन-सी हैं?

  • AMR की उच्च दरें: भारत में AMR की उच्च दरें एक गंभीर समस्या है। प्रतिजैविक-प्रतिरोधी संक्रमण (Antibiotic-resistant infections) विश्व स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये एक बढ़ता हुआ खतरा है। AMR की उच्च दरों के परिणामस्वरूप प्रतिजविक या एंटीबायोटिक्स आम संक्रमणों के इलाज में अप्रभावी सिद्ध हो सकते हैं, जिससे रुग्णता (morbidity) और मृत्यु दर (mortality) में वृद्धि हो सकती है।
    • भारत में AMR की दर विश्व में उच्चतम में से एक है, जहाँ प्रति वर्ष 60,000 से अधिक नवजात शिशु प्रतिजैविक-प्रतिरोधी संक्रमण से मारे जाते हैं
    • ICMR की रिपोर्ट में दवा-प्रतिरोधी रोगजनकों (drug-resistant pathogens) में निरंतर वृद्धि देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप उपलब्ध दवाओं के माध्यम से कुछ संक्रमणों का इलाज करना कठिन हो गया है।
  • संक्रामक रोगों का उच्च बोझ: भारत तपेदिक, मलेरिया, टाइफाइड, हैजा और निमोनिया जैसी संक्रामक बीमारियों के भारी बोझ का सामना कर रहा है। AMR के उभार से इन बीमारियों का प्रभावी ढंग से इलाज करना अधिक कठिन हो जाता है। यह विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि ये बीमारियाँ पहले से ही देश में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • गैर-विनियमित प्रतिजैविक बाज़ार: प्रतिजैविक या एंटीबायोटिक दवाओं के एक बड़े एवं गैर-विनियमित बाज़ार का अस्तित्व AMR में एक प्रमुख योगदानकर्ता कारक है। एंटीबायोटिक दवाओं के अति-उपयोग, दुरुपयोग और चिकित्सक की सलाह बिना उपयोग या सेल्फ-प्रिस्क्रिप्शन (self-prescription) से प्रतिरोध का विकास हो सकता है। यह विषय एंटीबायोटिक दवाओं के वितरण एवं उपयोग को नियंत्रित करने के लिये बेहतर विनियमन और प्रवर्तन की मांग करता है।
  • निरीक्षण और निगरानी की कमी: AMR के लिये पर्याप्त निरीक्षण, निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली की अनुपस्थिति एक प्रमुख चिंता का विषय है। प्रतिरोधी उपभेदों के प्रसार पर नज़र रखने और उचित हस्तक्षेप लागू करने के लिये प्रभावी निगरानी एवं रिपोर्टिंग आवश्यक है।
  • अपर्याप्त संक्रमण नियंत्रण उपाय: स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था में संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों की अनुपस्थिति समस्याजनक है। स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रतिरोधी संक्रमण के संचरण को रोकने के लिये उचित संक्रमण नियंत्रण अभ्यास आवश्यक हैं।
  • सीमित अनुसंधान और नवाचार: AMR से निपटने के लिये नए एंटीबायोटिक्स, डायग्नोस्टिक्स और टीकों के विकास में अनुसंधान एवं नवाचार महत्त्वपूर्ण हैं। भारत में ऐसे प्रयासों की कमी चिंताजनक है, क्योंकि यह प्रतिरोधी संक्रमणों से निपटने के लिये उपलब्ध साधनों की उपलब्धता को सीमित करता है।

AMR को संबोधित करने के लिये सरकार द्वारा कौन-से कदम उठाये गए हैं?

  • AMR के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAP): केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2017 में AMR के लिये भारत की राष्ट्रीय कार्ययोजना जारी की गई थी। NAP के उद्देश्यों में जागरूकता बढ़ाना, निगरानी को सुदृढ़ करना, अनुसंधान को बढ़ावा देना और संक्रमण की रोकथाम एवं नियंत्रण में सुधार करना शामिल है।
  • AMR पर दिल्ली घोषणापत्र पर हस्ताक्षर: रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) पर दिल्ली घोषणापत्र एक अंतर-मंत्रालयी सर्वसम्मति है जिस पर भारत में संबंधित मंत्रालयों के मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षर किये गए।
    • घोषणापत्र का उद्देश्य अनुसंधान संस्थानों, नागरिक समाज, उद्योग, लघु एवं मध्यम उद्यमों आदि को संलग्न करते हुए और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित कर मिशन मोड में AMR को संबोधित करना है।
  • एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (Antibiotic Stewardship Program- AMSP): भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने देश भर में 20 तृतीयक देखभाल अस्पतालों में पायलट प्रोजेक्ट के आधार पर AMSP शुरू किया है। कार्यक्रम का उद्देश्य अस्पताल के वार्डों एवं आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग और अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित करना है।
  • अनुपयुक्त निश्चित खुराक संयोजन (fixed dose combinations- FDCs) पर प्रतिबंध: ICMR की अनुशंसा पर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने अनुपयुक्त पाए गए 40 FDCs पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • पशु आहार में वृद्धि प्रवर्तक के रूप में कोलिस्टिन के उपयोग पर प्रतिबंध: ICMR ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग और DCGI के सहयोग से मुर्गीपालन में पशु आहार में वृद्धि प्रवर्तक के रूप में कोलिस्टिन (Colistin) के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। 
  • ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण: सरकार मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफ़ेस पर अंतःविषय सहयोग को प्रोत्साहित करने के रूप में वन हेल्थ दृष्टिकोण पर कार्य कर रही है। प्रमुख प्राथमिकता क्षेत्रों में ज़ूनोटिक रोग, खाद्य सुरक्षा और एंटीबायोटिक प्रतिरोध शामिल हैं।
    • AMR के लिये एकीकृत वन हेल्थ निगरानी नेटवर्क: ICMR ने एकीकृत AMR निगरानी में भागीदारी के लिये भारतीय पशु चिकित्सा प्रयोगशालाओं की तैयारियों का आकलन करने के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध के लिये एकीकृत वन हेल्थ सर्विलेंस नेटवर्क’ (Integrated One Health Surveillance Network for Antimicrobial Resistance) पर एक परियोजना शुरू की है। 

AMR की समस्या के समाधान के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  • वैश्विक प्रयास:
    • सहयोगात्मक कार्य योजनाएँ: विश्व के देशों, विशेष रूप से G20 देशों को AMR से निपटने के लिये क्षेत्रीय कार्य योजनाएँ विकसित करने हेतु मिलकर कार्य करना चाहिये। इन योजनाओं में AMR की निगरानी, अनुसंधान और नियंत्रण के लिये रणनीतियाँ शामिल होनी चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण तंत्र: AMR अनुसंधान एवं विकास के लिये समर्पित एक अंतर्राष्ट्रीय वितपोषण तंत्र स्थापित किया जाए। यह वित्तपोषण AMR से निपटने के लिये नई एंटीबायोटिक दवाओं, उपचार विकल्पों और प्रौद्योगिकियों के निर्माण में सहायता कर सकता है।
    • पेटेंट सुधार: नए एंटीबायोटिक्स में नवाचार और वहनीयता को प्रोत्साहित करने के लिये पेटेंट सुधारों को बढ़ावा देना होगा। आवश्यक दवाओं तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये मेडिसिन पेटेंट पूल (Medicines Patent Pool) जैसे मॉडल की संभावनाओं पता लगाया जा सकता है।
  • स्थानीय प्रयास:
    • राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं का क्रियान्वयन: देश स्तर पर AMR से संबंधित राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं (NAPs) के क्रियान्वयन को प्राथमिकता दी जाए। इन कार्ययोजनाओं में प्रत्येक राष्ट्र के भीतर AMR को संबोधित करने के लिये विशिष्ट रणनीतियाँ शामिल होनी चाहिये।
    • निरीक्षण और अनुसंधान: AMR की सीमा को बेहतर ढंग से समझने और अभिनव, वहनीय हस्तक्षेप विकसित करने के लिये निरीक्षण एवं अनुसंधान प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करें। डेटा संग्रह करने और AMR के प्रसार को ट्रैक करने के लिये निगरानी नेटवर्क के दायरे का विस्तार करना आवश्यक है।
    • सरकारी पहलों का उपयोग करना: AMR रोकथाम प्रयासों को मज़बूत करने के लिये स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और कठोर प्रोटोकॉल बनाए रखने के माध्यम से निशुल्क निदान सेवाओं और ‘कायाकल्प’ (या अन्य देशों में इसी तरह के कार्यक्रम) जैसे सरकारी पहलों का उपयोग किया जाए। 
    • सार्वजनिक जागरूकता और ज़िम्मेदार व्यवहार: नागरिकों को एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के खतरों के बारे में शिक्षित किया जाए। अनावश्यक नुस्खे और दुरुपयोग को कम करने के लिये एंटीबायोटिक उपयोग के संबंध में ज़िम्मेदार व्यवहार को प्रोत्साहित किया जाए।
    • शिक्षा जगत और नागरिक समाज संगठनों (CSOs) की भागीदारी: AMR के पर्यावरणीय आयामों की समझ बढ़ाने, नई प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को प्रशिक्षण एवं शिक्षा प्रदान करने के लिये शिक्षा जगत को संलग्न किया जाए।
      • नागरिक समाज संगठन AMR के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं और नीतिगत बदलावों की वकालत कर सकते हैं, जिससे AMR के विरुद्ध संघर्ष में सार्वजनिक भागीदारी बढ़ सकती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों के साथ बेंचमार्किंग करना: इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, यूके और अमेरिका जैसे देशों के साथ बेंचमार्किंग करना उपयोगी होगा, जिन्होंने AMR को संबोधित करने के लिये सफल रणनीतियाँ लागू की हैं। उनके अनुभवों से सीख ग्रहण की जाए और प्रभावी उपायों को स्थानीय संदर्भ में अनुकूलित किया जाए।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका के एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना 2020-2025 में पाँच रणनीतिक लक्ष्यों की रूपरेखा तैयार की गई है:
        • प्रतिरोधी बैक्टीरिया के उद्भव को धीमा करना और प्रतिरोधी संक्रमणों के प्रसार को रोकना
        • राष्ट्रीय निगरानी प्रयासों को मज़बूत करना
        • तीव्र एवं नवीन नैदानिक परीक्षणों के विकास और उपयोग को आगे बढ़ाना
        • बुनियादी और व्यावहारिक अनुसंधान एवं विकास में तेज़ी लाना
        • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और क्षमताओं में सुधार करना।
      • यूनाइटेड किंगडम: रोगाणुरोधी प्रतिरोध के लिये यूके की पंचवर्षीय राष्ट्रीय कार्ययोजना (UK Five Year National Action Plan for Antimicrobial Resistance) 2019-2024 तीन मुख्य महत्त्वाकांक्षाएँ निर्धारित करती है: रोगाणुरोधी की आवश्यकता एवं अनजाने जोखिम को कम करना, रोगाणुरोधी के उपयोग को अनुकूलित करना और नवाचार, आपूर्ति एवं अभिगम्यता में निवेश करना। यह योजना प्रगति और प्रभाव के मापन के लिये विशिष्ट लक्ष्यों एवं संकेतकों की रूपरेखा भी तैयार करती है।

अभ्यास प्रश्न: रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा है। AMR संबंधी चिंताओं और सरकारी प्रयासों का परीक्षण कीजिये तथा इससे निपटने के लिये आगे की कार्रवाइयों के सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोज़ीशन) का होना।
  2.  रोगों के उपचार के लिये वैज्ञानिकों (एंटिबॉयोटिक्स) की गलत खुराकें लेना।
  3.  पशुधन फार्मिंग प्रतिजैविकों का इस्तेमाल करना।
  4.  कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1, 3 और 4 
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 

मेन्स:

प्रश्न. क्या एंटीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014)


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