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एडिटोरियल

  • 08 May, 2023
  • 18 min read
सामाजिक न्याय

शहरों का विस्तार एवं विकास

यह एडिटोरियल 05/05/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘urban governance model of Maharastra’’ लेख पर आधारित है। इसमें शहरीकरण और अन्य संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

शहरीकरण (Urbanization) आर्थिक विकास की सबसे आम विशेषताओं में से एक है। धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था के विकास के क्रम में शहरीकरण की प्रक्रिया कुछ औद्योगिक शहरी केंद्रों के विकास के साथ-साथ ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में अधिशेष आबादी के स्थानांतरण पर निर्भर करती है।

  • शहरीकरण आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण से निकटता से संबद्ध है। शहरीकरण महज एक आधुनिक परिघटना नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर मानव सामाजिक मूलों का तीव्रता से और ऐतिहासिक परिवर्तन है, जहाँ ग्रामीण संस्कृति तेज़ी से मुख्यतः शहरी संस्कृति से प्रतिस्थापित हो जाती है।
  • धन और सामाजिक गतिशीलता जैसे कारणों से ग्रामीण लोग शहर में आते हैं। लेकिन शहरीकरण की तस्वीर उतनी वैभवपूर्ण नहीं है, जितनी वह नज़र आती है। तीव्र औद्योगीकरण के कारण आधुनिक शहरों का बेतरतीब और अनियोजित तरीके से विकास हुआ है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में शहरीकरण की दर 31.2% थी जो वर्ष 2001 में 27.8% रही थी। वर्ष 2030 तक लगभग 590 मिलियन लोग शहरों में वास कर रहे होंगे। भारत तीव्र शहरीकरण का सामना कर रहा है। इस परिदृश्य में, इस वृद्धि के पैटर्न और जनसंख्या पर इसके प्रभाव को समझना महत्त्वपूर्ण है।

तीव्र शहरीकरण के कौन-से कारण हैं?

शहरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति कुछ प्रमुख शहरों में शहरी आबादी के बहुसंख्यक भाग की बढ़ती एकाग्रता में परिलक्षित होती है।

  • प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि:
    • प्राकृतिक जनसंख्या वृद्धि की उच्च दर के कारण तीव्र शहरीकरण हो रहा है।
    • शहरी आबादी की प्राकृतिक वृद्धि दर ग्रामीण आबादी की तुलना में अधिक है क्योंकि बेहतर स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं के परिणामस्वरूप शहरों में उच्च शुद्ध उत्तरजीविता दर (net survival rate) पाई जाती है।
    • चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर उपलब्धता, सुरक्षित पेयजल आपूर्ति और बेहतर स्वच्छता सुविधाओं के कारण शहरी क्षेत्रों में मृत्यु दर में पर्याप्त कमी आई है।
  • पलायन/प्रवासन:
    • ग्रामीण-शहरी प्रवासन को भारत में तीव्र शहरीकरण के लिये ज़िम्मेदार एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जाता है।
    • औद्योगिक विकास के परिणामस्वरूप विभिन्न विनिर्माण और व्यापारिक गतिविधियों के सृजन के कारण रोज़गार एवं उच्च आय की तलाश में ग्रामीण लोगों का शहरी क्षेत्रों में प्रवास हुआ है।
    • उद्योग और खनन में भारी सार्वजनिक निवेश के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास और सतत कृषि विकास घटित हो रहा है।
      • अपकर्ष कारकों (pull factors) के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास कर रहे हैं।
    • कुछ प्रतिकर्ष कारक (push factors) भी हैं, जैसे आर्थिक बाधाएँ, सुविधाओं की कमी, राजनीतिक हिंसा आदि, जिनके कारण बहुत-से ग्रामीण लोग ग्रामीण क्षेत्र से पलायन के लिये प्रेरित होते हैं।
  • व्यापार और उद्योग का विस्तार:
    • क्षेत्र के राज्य विशेष में उद्योग और व्यापार के बढ़ते विस्तार के साथ भी शहरीकरण घटित हुआ है।
    • उद्योग के स्थानीयकरण के साथ-साथ उद्योग एवं उससे संबद्ध सहायक गतिविधियों का विकास सदैव किसी शहरी प्रतिष्ठान के विकास के लिये अनुकूल स्थिति उत्पन्न करता है।
      • इसी प्रकार, एक सक्रिय बाज़ार की स्थापना के साथ व्यवसाय एवं व्यापार की वृद्धि उन स्थानों में शहरीकरण की वृद्धि के लिये पर्याप्त समर्थन प्रदान करती है जो उद्योग और व्यापार के विकास से जुड़े होते हैं।

तीव्र शहरीकरण के परिणाम

  • सकारात्मक पहलू:
    • आर्थिक विकास:
      • तीव्र औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप कई औद्योगिक शहरों का विकास और स्थापना हुई है।
      • इन शहरी क्षेत्रों में विनिर्माण इकाइयों के साथ ही सहायक गतिविधियों और सेवा क्षेत्र का विकास शुरू हुआ है।
    • रोज़गार:
      • शहरी क्षेत्रों में विस्तार करते नवीन विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र में रोज़गार के नए और अतिरिक्त अवसर सृजित हो रहे हैं।
      • इसके कारण ग्रामीण-शहरी प्रवास और औद्योगीकरण-शहरीकरण प्रक्रिया के स्थापित होने जैसे परिणाम उत्पन्न हो रहे हैं।
    • आधुनिकीकरण और दृष्टिकोण में परिवर्तन:
      • शहरीकरण शहरी लोगों के दृष्टिकोण एवं सोच में परिवर्तन को जन्म देता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यवहार का आधुनिकीकरण और उपयुक्त प्रेरणा का सृजन होता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से देश को तीव्र आर्थिक विकास प्राप्त करने में मदद करता है।
  • नकारात्मक पहलू
    • भीड़-भाड़ की स्थिति:
      • बढ़ता शहरीकरण शहरी क्षेत्रों में बढ़ते भीड़-भाड़ के लिये काफी हद तक ज़िम्मेदार है।
      • बहुत अधिक भीड़-भाड़ के कारण ट्रैफिक जाम और जनसंख्या के अत्यधिक संकेंद्रण जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिनका प्रबंधन समय के साथ अत्यंत कठिन और महँगा होता जा रहा है।
    • जीवन की निम्न गुणवत्ता:
      • बहुत अधिक आबादी आवासन, शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं, मलिन बस्ती विकास, बेरोज़गारी, हिंसा, अत्यधिक भीड़ आदि से संबंधित शहरी अराजकता को जन्म देती है।
      • इन सभी से मानव जीवन की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादकता की हानि:
      • ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पलायन का परिदृश्य उत्पन्न हुआ है।
      • ग्रामीण क्षेत्रों से सक्रिय आबादी के इतने बड़े पैमाने पर पलायन या प्रवासन के परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादकता की हानि होगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति बदहाल हो जाएगी।
      • परिणामस्वरूप, एक निश्चित बिंदु से परे शहरीकरण के अस्वास्थ्यकर परिणाम उत्पन्न होंगे।

शहरी जीवन का महत्त्व

  • सुविधाओं तक आसान पहुँच:
    • शहरी जीवन साक्षरता एवं शिक्षा के उच्च स्तर, बेहतर स्वास्थ्य, दीर्घ जीवन प्रत्याशा, सामाजिक सेवाओं तक वृहत पहुँच और सांस्कृतिक एवं राजनीतिक भागीदारी के लिये अवसरों की वृद्धि से संबद्ध है।
    • शहरीकरण सामान्यतः अस्पतालों, क्लीनिकों और स्वास्थ्य सेवाओं तक आसान पहुँच से जुड़ा हुआ है।
    • इन सेवाओं की निकट उपलब्धता से आपातकालीन देखभाल और सामान्य स्वास्थ्य में सुधार का परिणाम प्राप्त होता है।
  • सूचना तक पहुँच:
    • रेडियो और टेलीविज़न जैसे सूचना के स्रोतों तक आसान पहुँच से भी लाभ प्राप्त होते हैं, जिनका उपयोग आम जनता को स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देने के लिये किया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये, क़स्बों और शहरों में रहने वाली महिलाओं को परिवार नियोजन के बारे में सूचित किये जाने की अधिक संभावना होती है, जिससे परिवार के आकार को छोटा रखने और बार-बार प्रसव में कमी जैसे परिणाम प्राप्त होते हैं।
  • व्यक्तिपरकता:
    • अवसरों की बहुलता, सामाजिक विविधता और निर्णयन के मामले में पारिवारिक एवं सामाजिक नियंत्रण की कमी अधिक स्व-हित की ओर ले जाती है और किसी व्यक्ति द्वारा निर्णय लेने और अपने करियर एवं कृत्यों को स्वयं चुनने की सुविधा प्रदान करती है।

शहरीकरण से संबद्ध समस्याएँ

  • अत्यधिक जनसंख्या दबाव:
    • ग्रामीण-शहरी प्रवास एक ओर शहरीकरण की गति को तीव्र करता है तो दूसरी ओर यह मौजूदा सार्वजनिक उपयोगिताओं पर अत्यधिक जनसंख्या दबाव का निर्माण करता है।
    • इसके परिणामस्वरूप शहर मलिन बस्तियों, अपराध, बेरोज़गारी, शहरी गरीबी, प्रदूषण, भीड़-भाड़, अस्वस्थता और विभिन्न विकृत सामाजिक गतिविधियों जैसी समस्याओं से ग्रस्त हुए हैं।
  • मलिन बस्तियों का अनियंत्रित विस्तार:
    • देश भर में लगभग 13.7 मिलियन मलिन आवास हैं जो 65.49 मिलियन लोगों को आश्रय देते हैं।
    • कम से कम 65% भारतीय शहरों में आस-पास मलिन बस्तियाँ मौजूद हैं जहाँ लोग एक-दूसरे से सटे छोटे-छोटे घरों में रहने को विवश हैं।
  • अपर्याप्त आवास सुविधा:
    • शहरीकरण से संबद्ध विभिन्न सामाजिक समस्याओं में आवास की समस्या सबसे विकट है।
    • शहरी आबादी का एक बड़ा हिस्सा बदतर आश्रय सुविधा और अत्यधिक भीड़भाड़ वाले स्थानों में रहने को विवश है।
    • भारत में आधे से अधिक शहरी परिवार एक कमरे के घर में निवास करते हैं, जहाँ औसतन प्रति कमरा 4.4 व्यक्ति रहते हैं।
  • अनियोजित विकास:
    • एक विकसित शहर के निर्माण के मॉडल में अनियोजित विकास शामिल है, जो शहरों में अमीर और गरीब के बीच विद्यमान द्विभाजन को सुदृढ़ ही करता है।
  • महामारी-प्रेरित समस्याएँ:
    • कोविड-19 महामारी ने शहरी गरीबों या मलिन बस्ती निवासियों की दुर्दशा को और बढ़ा दिया है।
    • अचानक लागू हुए कोविड लॉकडाउन से मलिन बस्ती निवासियों की आजीविका कमाने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई।
  • गैर-समावेशी कल्याणकारी योजनाएँ:
    • शहरी गरीबों के लिये क्रियान्वित कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्रायः लक्षित लाभार्थियों के एक छोटे से हिस्से तक ही पहुँच पाता है।
    • मुख्य रूप से समावेशन और अपवर्जन की त्रुटियों के कारण अधिकांश राहत निधि और लाभ मलिन बस्ती वासियों तक नहीं पहुँच पाते हैं।

शहरीकरण के लिये भारत की प्रमुख पहलें

आगे की राह

  • समावेशी शहरी विकास का एकीकरण:
    • सभी विकास क्षेत्रों को शामिल करते हुए शहरी कार्यक्रम निर्माण के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना और शहरी विकास में समावेशिता को प्राथमिकता देना।
  • वैज्ञानिक डेटा विधियों का उपयोग:
    • साक्ष्य-आधारित निर्णयन सुनिश्चित करने के लिये राज्य और केंद्रीय दोनों योजनाओं के परिणामों के आकलन एवं निगरानी के लिये वैज्ञानिक डेटा विधियों का उपयोग करना।
  • नागरिक भागीदारी:
    • भौतिक और डिजिटल माध्यमों से नागरिक कार्यों में नागरिकों की आवाज़ एवं भागीदारी को बढ़ाना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शहरी प्रशासन में उनकी आवश्यकताएँ एवं प्राथमिकताएँ परिलक्षित हों।
  • रणनीतिक सोच और निवेश:
    • शहरों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों को संबोधित करने के लिये रणनीतिक सोच और निवेश पर ध्यान देना—जिसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी भी शामिल हो और विभिन्न एजेंसियों के मध्य एकीकृत एवं समन्वित कार्रवाई को सुनिश्चित करना।

अभ्यास प्रश्न: भारत में तीव्र शहरीकरण के कारणों की चर्चा करें और तीव्र शहरीकरण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को दूर करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रारंभिक परीक्षा:

 प्र. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2020)

  1. श्रमिक उत्पादकता (वर्ष 2004-05 की कीमतों पर प्रति कर्मचारी रुपए) शहरी क्षेत्रों में बढ़ी जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह घट गई।
  2. कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिशत हिस्सा लगातार बढ़ा।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4. ग्रामीण रोज़गार में विकास दर में कमी आई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3 और 4
 (C) केवल 3
 (D) केवल 1, 2 और 4

 उत्तर: (B)

 व्याख्या:

  •  वर्ष 2017 की नीति आयोग की रिपोर्ट, "रोज़गार और विकास के लिये भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदलती संरचना के निहितार्थ", निम्नलिखित जानकारी प्रदान करती है
  •  ग्रामीण अर्थव्यवस्था के संबंध में:
  • ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिये श्रमिक उत्पादकता में वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह वर्ष 2004-05 में `37273 और 2011-12 में `101755 था, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिये यह वर्ष 2004-05 में `120419 और वर्ष 2011-12 में `282515। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • कुल कार्यबल में ग्रामीण हिस्सेदारी वर्ष 1999-00 में 76.1% से घटकर 2011-12 में 70.9% हो गई। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • ग्रामीण उत्पादन संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों में से एक गैर-कृषि क्षेत्र का बढ़ता हिस्सा है, जो वर्ष 1980-81 में 37% से बढ़कर वर्ष 2009-10 में 65% हो गया और इस प्रकार यह दर्शाता है कि उत्पादन के मूल्य के संदर्भ में, ग्रामीण अब केवल कृषि नहीं है।
  •  अतः कथन 3 सही है।
  • ग्रामीण रोज़गार ने पूर्व-सुधार अवधि के दौरान 2.16% वार्षिक वृद्धि दर दिखाई, जो सुधार के बाद की अवधि में घटकर 1.45% हो गई और आर्थिक त्वरण की अवधि में नकारात्मक (-0.28%) हो गई। अतः कथन 4 सही है।
  •  अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

मुख्य परीक्षा

प्र. उच्च तीव्रता वाली वर्षा के कारण शहरी बाढ़ की आवृत्ति पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रही है। शहरी बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारी के तंत्र पर प्रकाश डालें।  (वर्ष 2016)


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