एडिटोरियल (08 Mar, 2022)



विदेशों में अध्ययनरत भारतीय छात्रों की सुरक्षा

यह एडिटोरियल 07/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A Safety Net for Students Abroad” लेख पर आधारित है। इसमें विदेशों में अध्ययनरत भारतीय छात्रों की सुरक्षा संबंधी आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारतीय छात्रों का अध्यययन के लिये विदेश जाना कोई नई परिघटना नहीं है। भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संस्थानों की कमी और मांग-आपूर्ति अंतराल के कारण लंबे समय से कई भारतीय परिवार अपने बच्चों को अध्ययन हेतु विदेश भेजने के लिये विवश होते रहे हैं। लेकिन हाल की दो घटनाओं कोविड-19 महामारी और यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने विदेशों में अध्ययनरत ऐसे छात्रों को विशेष रूप से सुर्खियों में ला दिया है। जब तक भारत में शिक्षा प्रणाली छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं बनेगी, उनका विदेश जाना जारी रहेगा। भारतीय संस्थानों को प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और अन्य विषयों सहित व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिये छात्रों के समक्ष अधिकाधिक विकल्प प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

वर्तमान परिदृश्य

  • वर्तमान में 7,70,000 भारतीय छात्र विदेशों में अध्ययनरत हैं, जो वर्ष 2016 में 4,40,000 छात्रों की तुलना में 20% वृद्धि को इंगित करता है। दूसरी ओर विदेशों में शिक्षा की मांग की तुलना में घरेलू क्षेत्र में वृद्धि केवल 3% रही है।
  • विश्व में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के मामले में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। महामारी की शुरुआत से पहले विदेशों में अध्ययनरत भारतीय छात्र विदेशी अर्थव्यवस्थाओं में 24 बिलियन डॉलर का व्यय कर रहे थे, जो कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% है।
    • वर्ष 2024 तक विदेशों में अध्ययनरत भारतीय छात्रों की संख्या बढ़कर लगभग 1.8 मिलियन हो जाने का अनुमान है जब भारतीय छात्र भारत से बाहर लगभग 80 बिलियन डॉलर खर्च कर रहे होंगे।
  • मेडिकल की डिग्री हासिल करने के लिये भारतीय छात्र लगभग तीन दशकों से रूस, चीन, यूक्रेन, किर्गिस्तान, कज़ाखस्तान और फिलीपींस का रुख करते रहे हैं।
  • भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेशों में रहने वाले भारतीयों को देश का ‘ब्रांड एंबेसडर’ पुकारा था। भारत और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन में रह रहे भारतीयों को दोनों देशों के बीच का ‘living Bridge’ या ‘जीवंत सेतु’ कहा था।
    • भारतीय प्रवासियों (Indian Diaspora) का वृहत लाभ ‘सॉफ्ट पावर’, ‘ज्ञान हस्तांतरण’ (Knowledge Transfer) और भारत आने वाले धन विप्रेषण (Remittances) के रूप में प्राप्त होता है।

शिक्षा के लिये विदेश पलायन के मुख्य कारण

  • जहाँ भारत की आधी से अधिक आबादी 25 वर्ष से कम आयु की है और दुनिया के शीर्ष 100 में कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय शामिल नहीं है, ऐसे में स्वाभाविक है कि महत्त्वाकांक्षी छात्र शिक्षा हेतु विदेश का रुख करेंगे।
  • मेडिकल डिग्री के विशेष संदर्भ में भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस सीट के लिये भुगतान की तुलना में विदेशों में रहने और शिक्षण शुल्क पर होने वाला खर्च कहीं अधिक वहनीय है।
  • भारत में उपलब्ध एमबीबीएस सीटों की तुलना में एमबीबीएस उम्मीदवारों की संख्या अधिक है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021-22 में देश में कुल 596 मेडिकल कॉलेज थे, जहाँ एमबीबीएस सीटों की संख्या 88,120 थी।

छात्रों के समक्ष हाल में उत्पन्न हुआ संकट

  • वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष में यूक्रेन में अध्ययनरत दो भारतीय छात्रों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत के मामले सामने आए हैं, जिनमें एक गोलाबारी का शिकार हुआ जबकि दूसरा हृदयाघात से अपनी जान गँवा बैठा।
    • यद्यपि बाह्य सशस्त्र आक्रमण के बीच यूक्रेन में अराजकता की स्थिति है, यह परिदृश्य गंभीर हस्तक्षेप की आवश्यकता रखता है।
    • अनुमान है कि लगभग 20,000 भारतीय छात्र यूक्रेन में फँसे हुए थे।
  • हाल ही में कनाडा में तीन कॉलेजों के अचानक बंद हो जाने से लगभग 2,000 अंतर्राष्ट्रीय छात्र (जिनमें मुख्य रूप से भारतीय छात्र शामिल थे) प्रभावित हुए हैं।
    • आरोपों के अनुसार अब दिवालिया घोषित हो चुके इन कॉलेजों ने शिक्षण शुल्क के रूप में छात्रों से लाखों रुपए प्राप्त किये थे और अब इन छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया है।
  • महामारी के दौरान ऐसी ही एक घटना सामने आई थी जब ऑस्ट्रेलिया ने अपने कॉलेज परिसरों में अध्ययन हेतु नामांकित हजारों भारतीय छात्रों के लिये अपनी सीमाएँ बंद कर दी थी।

आगे की राह

  • मेजबान देशों की भूमिका: विदेशों में अध्ययनरत भारतीय छात्र उन देशों में न केवल उच्च शिक्षा के उपभोक्ता हैं, बल्कि उनके मेहमान भी हैं। इस दृष्टिकोण से भारत के लिये यह स्वाभाविक ही होगा कि वह विदेशों में भारतीयों की सुरक्षा हेतु मेज़बान देशों द्वारा इसका उत्तरदायित्व ग्रहण करना सुनिश्चित कराए।
  • अंतर्राष्ट्रीय संधियों के माध्यम से सुरक्षा जाल: भारत सरकार को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिये तत्परता से एक सुरक्षा जाल या ‘सेफ्टी नेट’ तैयार करना चाहिये। संकट और आकस्मिकताओं के समय भारतीय छात्रों के कल्याण को सुनिश्चित करने हेतु मेज़बान देशों को बाध्य करने वाले अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को सर्वोपरि महत्त्व दिया जाना चाहिये।
    • वर्तमान में यूके और ऑस्ट्रेलिया के साथ चल रही व्यापार समझौता वार्ताएँ एक बड़ा अवसर प्रदान करती हैं कि भारत इस दृष्टिकोण से भी आगे बढ़े।
  • छात्र बीमा योजनाएँ: लोकप्रिय धारणा के विपरीत विदेशों में अध्ययनरत छात्रों का एक बड़ा भाग समृद्ध परिवारों से संबंधित नहीं होता और वे प्रायः अपनी शिक्षा के वित्तपोषण के लिये महँगे ऋण का सहारा लेते हैं।
    • बेहतर अवसर और भविष्य को सुरक्षित करने की आकांक्षा उन्हें कठिनाइयों की ओर धकेल सकती है।
    • विदेशी सरकार के साथ समझौतों में एक अनिवार्य छात्र बीमा योजना के साथ-साथ विदेशों में छात्रों के कल्याण का उत्तरदायित्व मेजबान देश को सौंपने जैसी शर्तें शामिल की जानी चाहिये ताकि मेजबान देश में उल्लेखनीय राशि व्यय करने वाले इन छात्रों के हितों की रक्षा की जा सके।
  • सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि करना: यदि पहुँच और उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके तो सरकारी मेडिकल कॉलेजों की संख्या में वृद्धि करना देश के लिये लाभप्रद होगा।
    • केवल निजी उद्यम का सहारा लेने से यह संभव नहीं होगा, बल्कि राज्य और केंद्र सरकार ज़िला मुख्यालय अस्पतालों का उपयोग कर, आधारभूत संरचना का विस्तार कर और अधिक मेडिकल कॉलेजों (नीति आयोग की अनुशंसा के अनुरूप) की स्थापना कर सकती हैं।
    • इस प्रकार, निम्न एवं मध्यम सामाजिक-आर्थिक स्तर के वे छात्र भी लाभान्वित होंगे जो अन्यथा मेडिकल सीटों तक पहुँच नहीं बना पाते हैं।
  • उच्च शिक्षा में अधिक निवेश: भारत में उच्च शिक्षा के स्तर को ऊपर ले जाने के लिये उच्च शिक्षा, विशेष रूप से अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।
    • उच्च गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना एवं नवाचार पारितंत्र के निर्माण के लिये प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों को वित्त प्रदान करने हेतु उच्च शिक्षा वित्तपोषण एजेंसी (Higher Education Finance Agency- HEFA) का गठन एक स्वागतयोग्य कदम है।
    • इसके साथ ही, विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति देने से भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में विदेशी धन का प्रवाह बढ़ेगा और भारत से ‘प्रतिभा के पलायन’ या ‘ब्रेन ड्रेन’ (Brain Drain) में कमी आएगी।

अभ्यास प्रश्न: देश के अंदर उच्च शिक्षा प्राप्ति में भारतीय छात्रों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये और उन कदमों से संबंधित सुझाव दीजिये जो भारत में उच्च शिक्षा के लिये एक बेहतर पारितंत्र के विकास हेतु उठाए जा सकते हैं।