भारतीय राजनीति
स्वतंत्रता का अधिकार
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में स्वतंत्रता के अधिकार व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
सरकार द्वारा जून माह में लागू किये गए तीन कृषि सुधार कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच तनाव अभी भी जारी है। गणतंत्र दिवस के दिन दिल्ली के कई हिस्सों में किसानों के उग्र प्रदर्शन के बाद से सरकार ने विरोध प्रदर्शन स्थलों के निकट सुरक्षा और अधिक बढ़ा दी है।
हालाँकि इन विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा लगाए गए बैरीकेड्स की मात्रा/स्तर को लेकर देश तथा विदेशों से भी नागरिक समाज ने प्रश्न उठाए हैं। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को रोकने के लिये भी सक्रिय प्रयास किये गए हैं। इसे विरोध प्रदर्शन के दौरान सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के कुछ उदाहरणों में देखा जा सकता है, जैसे- लगभग नौ वरिष्ठ पत्रकारों पर राजद्रोह के कानून के तहत मामले दर्ज किये गए, एक युवा स्वतंत्र पत्रकार को गिरफ्तार किया गया, समाचार पत्रों द्वारा चलाए जाने वाले कई सोशल मीडिया पेजों को ब्लॉक कर दिया गया और सरकार की तरफ से जारी एक कार्यकारी आदेश में कहा गया कि सोशल मीडिया कंपनी, ट्विटर के कर्मचारियों को सरकार के आदेश का अनुपालन करने में विफलता के कारण गिरफ्तारी का सामना करना पड़ सकता है।
सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त "स्वतंत्रता के अधिकार" पर हमले के रूप में देखा जा सकता है।
स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित मुद्दे:
- नॉन-ऑब्स्टांट (Non-Obstante) क्लाॅज़: भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार अध्याय के कई अन्य अनुच्छेदों की तरह अनुच्छेद 19 में भी एक नॉन-ऑब्स्टनट क्लॉज़ शामिल है, जिसका अर्थ है कि इन अधिकारों के अंतर्गत कानून और व्यवस्था, देश की संप्रभुता तथा सुरक्षा आदि से जुड़े मामलों में उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 19 (2) के तहत ये धाराएँ मुख्य रूप से भारतीय संविधान के प्रथम संशोधन द्वारा सम्मिलित की गई थीं।
- हालाँकि कई बार जब सरकार को नागरिकों की स्वतंत्रता और उचित प्रतिबंधों के बीच की बारीक रेखा को संतुलित करना पड़ता है, तो इससे परस्पर विरोधी स्थिति के साथ स्वतंत्रता के अधिकारों के लिये संकट खड़ा हो जाता है।
- व्यापक शब्दावली और अनदेखी: नागरिकों की स्वतंत्रता और तार्किक प्रतिबंधों (विशेष परिस्थितियों में) के बीच का द्वंद्व सरकार को आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह कानून के माध्यम से सत्ता का दुरुपयोग का अवसर प्रदान करता है।
- इसे संज्ञान में लेते हुए ‘केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य, 1962’ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि देशद्रोह केवल उन गतिविधियों पर लागू होगा जिनमें सार्वजनिक शांति को बाधित करने या अव्यवस्था फैलाने के उद्देश्य से हिंसा का सहारा लिया गया हो।
- हालाँकि जैसा कि ये नियम और इसमें शामिल शब्द बहुत ही अस्पष्ट हैं, जो अक्सर राजद्रोह कानून के दुरुपयोग तथा सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन को बढ़ावा देता है।
- न्यायिक भेदभाव: हाल के वर्षों में न्यायिक प्रणाली तक पहुँच एक विलासिता की वस्तु के रूप में उभरी है, जिसके तहत अमीर और प्रभावशाली मीडिया हाउस तथा पत्रकारों को बहुत जल्दी ज़मानत मिल जाती है, जबकि स्वतंत्र पत्रकारों एवं छोटे मीडिया संस्थानों को ज़मानत मिलने में देरी हो जाती है या उन्हें ज़मानत देने से इनकार कर दिया जाता है।
- नया कानूनी हथियार: राजद्रोह और अन्य आपराधिक मामलों में आरोपित होने के अलावा स्वतंत्र प्रेस को अब अधिक कठोर ‘गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 2019’ का भी सामना करना पड़ सकता है, जो उनके समक्ष संभावित रूप से अनिश्चितकाल के लिये बंदी बनाए जाने का जोखिम खड़ा करता है।
- धार्मिक पहलू: अनुच्छेद 19 (2) में भले ही उचित प्रतिबंध के आधार के रूप में धर्म का कोई विशेष उल्लेख नहीं किया गया है परंतु धार्मिक अपराध की राजनीति ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के लिये एक स्पष्ट खतरा है।
- इसका एक उदाहरण हाल ही में रिलीज़ एक वेब सीरीज़ के विरुद्ध दर्ज मामलों के रूप में देखा जा सकता है, जिसके निर्माता और कुछ अभिनेताओं को कई बार माफी मांगने के बावजूद कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है।
आगे की राह:
- न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका: उच्च न्यायपालिका को स्वतंत्र अभिव्यक्ति की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति मजिस्ट्रेट-वर्ग और पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिये अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग करना चाहिये।
- देशद्रोह के कानूनों में स्पष्टता लाना: देशद्रोह की परिभाषा को अधिक स्पष्ट और सीमित किया जाना चाहिये, तथा इसके तहत केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता एवं देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
- मीडिया नैतिकता का पालन: मीडिया के उत्तरदायित्वों के संदर्भ में यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सच्चाई, सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता और तटस्थता जैसे मुख्य सिद्धांतों का पालन करे।
- संस्थागत ढाँचे को मज़बूत बनाना: मीडिया पर प्रभावी नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने हेतु सरकार के हस्तक्षेप की बजाय समाचार नियामक संस्थाओं (प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया व न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन) को सशक्त किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
वर्तमान में व्यक्तिगत अधिकारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति और समाज तथा राज्य की सामूहिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है, इस उत्तरदायित्व का भार अकेले सरकार द्वारा ही नहीं बल्कि उन सभी लोगों द्वारा उठाया जाना चाहिये जो इन अधिकारों से लाभान्वित होते हैं।
अभ्यास प्रश्न: आलोचनात्मक पत्रकारिता के खिलाफ पहले उपाय के रूप में दंडात्मक कार्रवाई करना भारतीय संविधान के तहत निहित स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। चर्चा कीजिये।