अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पूर्वी भारत को हिंद-प्रशांत से एकीकरण
यह एडिटोरियल 03/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Connecting India’s East with the Indo-Pacific” लेख पर आधारित है। इसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ शेष भारत को एकीकृत करने में भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) एक नवीन अवधारणा है—लगभग महज एक दशक पुरानी। हालाँकि इसके महत्त्व में तेज़ी से वृद्धि हुई है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की लोकप्रियता के पीछे का एक प्रमुख कारण यह है कि वैश्विक भू-राजनीति के गुरुत्वाकर्षण का केंद्र एशिया की ओर मुड़ रहा है।
- विश्व की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ—जैसे चीन, भारत, जापान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, मलेशिया और फिलीपींस हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ही अवस्थित हैं।
- भारत की ‘लुक ईस्ट’ (Look East) और ‘एक्ट ईस्ट’ (Act East) नीतियों ने भी वर्ष 2018 में हिंद-प्रशांत नीति एवं रणनीति के चरण में प्रवेश कर लिया है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण भाग का निर्माण करने वाले दक्षिण-पूर्व और पूर्व एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों को सुदृढ़ करने के संदर्भ में रणनीतिक के साथ-साथ आर्थिक दृष्टिकोण से भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र (North-Eastern Region- NER) अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका रखता है।
‘लुक ईस्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियाँ
- ‘लुक ईस्ट’ अथवा ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति:
- सोवियत संघ (USSR) के विघटन (शीत युद्ध 1991 की समाप्ति) के साथ एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार को खो देने की भरपाई के लिये भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में उसके सहयोगी देशों के साथ संबंध निर्माण की दिशा में आगे बढ़ा।
- इस क्रम में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने वर्ष 1992 में दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के साथ भारत की संलग्नता को एक रणनीतिक बल देने के लिये ‘लुक ईस्ट’ नीति का शुभारंभ किया ताकि भारत एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में तथा चीन के रणनीतिक प्रभाव के प्रतिकार के लिये अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सके।
- ‘एक्ट ईस्ट’ नीति:
- नवंबर 2014 में घोषित ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’, ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का ही उन्नत रूप है।
- यह विभिन्न स्तरों पर विशाल एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने हेतु एक राजनयिक पहल है।
- इस पॉलिसी के तहत द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर कनेक्टिविटी, व्यापार, संस्कृति, रक्षा और लोगों-से-लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ गहन और निरंतर संपर्क को बढ़ावा दिया जाता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र से कैसे जोड़ता है?
- रणनीतिक महत्त्व:
- पूर्वोत्तर भारत दक्षिण-पूर्व एशिया और उससे आगे के लिये प्रवेश द्वार है। यह म्यांमार की ओर भारत का भूमि-सेतु है।
- भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के पूर्व की ओर संलग्नता की क्षेत्रीय अग्रिम पंक्ति पर रखती है।
- आर्थिक महत्त्व: पूर्वोत्तर राज्यों में निवेश के लिये मूल रूप से दो मोर्चे हैं:
- क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति वृहत भारतीय क्षेत्र के उत्पाद बाज़ारों को दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के सुदृढ़ बाज़ारों से जोड़ती है।
- शक्तिशाली इनपुट बाज़ार का अस्तित्व क्षेत्र में सामाजिक (विविधता, सांस्कृतिक समृद्धि), भौतिक (संभावित ऊर्जा आपूर्ति केंद्र), मानव (सस्ता, कुशल श्रम) और प्राकृतिक (खनिज, वन) पूंजियों को उत्प्रेरित करता है।
- आधारभूत संरचना का विकास:
- जापान दशकों से इस क्षेत्र के सभी राज्यों में अवसंरचना, विशेष रूप से सड़क संपर्क के विकास और आधुनिकीकरण से संलग्न है।
- जापान द्वारा वर्तमान में ब्रह्मपुत्र नदी पर धुबरी-फुलबाड़ी पुल के निर्माण में सहयोग किया जा रहा है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र को हिंद-प्रशांत से जोड़ने के मार्ग की प्रमुख चुनौतियाँ
- गंभीर गैर-पारंपरिक खतरे: इसमें तस्करी, मादक पदार्थों का व्यापार, अंतर्राष्ट्रीय सीमा अपराध, विद्रोही गतिविधि और म्यांमार से शरणार्थियों की आमद जैसी अहितकर घटनाएँ शामिल हैं।
- चीन की दुर्भावनापूर्ण गतिविधियाँ: चीन पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत के साथ सीमा तनाव (जैसे डोकलाम संघर्ष) और उपर्युक्त गंभीर गैर-पारंपरिक खतरों को बढ़ाने में उल्लेखनीय भूमिका रखता है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवादी समूहों का चीन द्वारा वित्तपोषण किया जाना सिद्ध हुआ है (जैसे वर्ष 1979 में यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) का वित्तपोषण)।
- आंतरिक सुरक्षा चिंताएँ: चरमपंथी और उग्रवादी समूह, जो भारतीय सुरक्षा बलों से बचने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संबंध रखते हैं तथा म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में सुरक्षित आश्रय का उपयोग करते हैं और क्षेत्र में पाकिस्तानी ISI जैसी अंतर्राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कथित उपस्थिति एवं सक्रियता अन्य प्रमुख चिंताएं हैं जो पूर्वोत्तर क्षेत्र की क्षमताओं के इष्टतम उपयोग में बाधा डालती हैं।
- प्रगति एवं विकासात्मक चुनौतियाँ: शेष भारत से अलगाव, कुशल बुनियादी ढाँचे की कमी, बदहाल सड़क संपर्क और औद्योगिक विकास की धीमी गति पूर्वोत्तर क्षेत्र के पिछड़ेपन के प्रमुख कारण हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के उत्थान के लिये क्या किया जा सकता है?
- पूर्वोत्तर से ‘एक्ट ईस्ट’: ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का व्यापक कार्यान्वयन पूरे देश के लिये प्रासंगिक है लेकिन पूर्वोत्तर क्षेत्र के दीर्घकालिक विकास के लिये यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- इसके कार्यान्वयन का एजेंडा पूर्वोत्तर क्षेत्र की राज्य सरकारों के साथ सक्रिय सहयोग से तैयार किया जाना चाहिये।
- सीमा और कनेक्टिविटी संबंधी मुद्दों का प्रबंधन: कनेक्टिविटी वाणिज्य को बढ़ावा देती है और इसलिये पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये हवाई संपर्क को प्राथमिकता से स्थापित किया जाना चाहिये। सड़क और रेल परियोजनाओं का विकास भी आपदा-प्रतिरोधी उपायों के अनुसार किया जाना चाहिये।
- एक निष्पक्ष मूल्यांकन से पता चलता है कि भविष्य के सीमा प्रबंधन और सड़क संपर्क के लिये पर्याप्त अवसर मौजूद है जो कार्यात्मक और जन-केंद्रित दोनों है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में जापान भारत का प्रमुख भागीदार रहा है; अन्य देशों के साथ भी ऐसी भागीदारियों का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
- वृहत रोज़गार अवसर: पूर्वोत्तर क्षेत्र के स्थानीय विश्वविद्यालयों द्वारा हज़ारों स्नातक तैयार किये जा रहे हैं। इन युवाओं के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिये उपयुक्त नौकरियों और रोज़गार अवसरों का सृजन करना समय की मांग है।
अभ्यास प्रश्न: भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जोड़ने के निहितार्थों की चर्चा कीजिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)Q1. नियंत्रण रेखा (एलओसी) सहित म्यांमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमाओं पर आंतरिक सुरक्षा खतरों और सीमा पार अपराधों का विश्लेषण करें। इस संबंध में विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (वर्ष 2020) Q2. विशेष रूप से दक्षिण एशिया और म्यांमार के अधिकांश देशों के साथ लंबी छिद्रयुक्त सीमाओं को देखते हुए भारत की आंतरिक सुरक्षा चुनौतियां सीमा प्रबंधन से किस हद तक जुड़ी हुई हैं? (वर्ष 2013) Q3. भारत-रूस रक्षा सौदों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा करें। |