कृषि
कृषि सुधार और किसानों के हितों की रक्षा
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में अनुबंध को बढ़ावा देने और इसकी चुनौतियों व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
भारत में कृषि आदि काल से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग रही है। हालाँकि जनसंख्या बढ़ने के साथ कृषि जोत का आकार छोटा हुआ है और इस क्षेत्र में नवीनतम प्रौद्योगिकी तथा वैज्ञानिक विधियों की पहुँच में कमी के कारण कृषि आय में भारी गिरावट हुई है। पिछले कई वर्षों से सरकारों ने किसानों के हितों की रक्षा को ध्यान में रखते हुए कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने का प्रयास किया है, परंतु इनमें से अधिकांश असफल ही रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को दूर करने के लिये जून 2020 में कृषि सुधार से जुड़े तीन अध्यादेश जारी किये गए तथा इन्हें वैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिये सितंबर 2020 में संसद में इससे संबधित तीन विधेयक प्रस्तुत किये गए जिन्हें संसद के दोनों सदनों से पारित कर दिया गया। सरकार द्वारा इन अधिनियमों के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि के साथ कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों की बात कही गई, हालाँकि इन विधेयकों के खिलाफ देश के कई हिस्सों में भारी विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिला और कुछ राज्यों (जैसे-पंजाब और राजस्थान) में इसके प्रभावों को सीमित करने के लिये विधानसभा में विधेयक भी प्रस्तुत किये गए हैं।
कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु लागू अधिनियम:
- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020।
- मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020।
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020।
प्रस्तावित सुधार:
- ‘किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020’ के अंतर्गत राज्य कृषि उपज विपणन कानून के तहत अधिसूचित बाज़ारों के भौतिक परिसर के बाहर अवरोध मुक्त अंतर्राज्यीय और राज्यांतरिक व्यापार तथा कृषि क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
- इस अधिनियम के तहत कृषि उपज की बिक्री पर कोई उपकर या लगान नहीं लिया जाएगा। साथ ही इसके तहत किसानों और व्यापारियों के बीच विवाद की स्थिति से निपटने हेतु अलग विवाद समाधान तंत्र की स्थापना का प्रावधान भी किया गया है।
- केंद्र सरकार के अनुसार, ‘मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020’ किसानों को बगैर किसी शोषण के भय के प्रसंस्करणकर्त्ताओं, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुड़ने में सक्षम बनाता है।
- साथ ही इसके माध्यम से कृषि अवसंरचना के विकास हेतु निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने और अनुबंध कृषि को विधिक मान्यता प्रदान करने का प्रयास किया गया है।
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 के तहत अन्य सुधारों के साथ अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है।
अनुबंध कृषि:
- अनुबंध कृषि खरीदार और किसानों के मध्य एक ऐसा समझौता है, जिसके तहत दोनों पक्षों के बीच किसी विशेष फसल के उत्पादन, उसकी मात्रा, विपणन, उत्पाद का विक्रय मूल्य आदि से संबंधित प्रमुख शर्तों को परिभाषित किया जाता है।
- ध्यातव्य है कि अनुबंध कृषि को समवर्ती सूची के तहत शामिल किया गया है, जबकि कृषि राज्य सूची का विषय है।
लाभ:
- कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि, बाज़ार तक पहुँच में सुधार, विपणन तथा परिवहन लागत में बचत और उपज गुणवत्ता में सुधार आदि।
चुनौतियाँ:
- अनुबंध कृषि के बारे में यह अवधारणा है कि इसमें बड़े किसानों पर ही ध्यान दिया जाता है, जबकि छोटे किसानों के पास मोल-भाव की अधिक शक्ति न होने के कारण उनका शोषण होता है।
- इसके तहत किये गए समझौते प्रायः अनौपचारिक होते हैं और छोटे किसानों को कानूनों की अधिक समझ नहीं होती है , ऐसे में कई बार लिखित अनुबंध भी अदालतों से अधिक सुरक्षा नहीं प्रदान करते।
- फसलों की खरीद में देरी या भुगतान में विलंब, नई फसलों पर कीटों के हमले आदि से किसानों को नुकसान होता है, साथ ही इसमें महिलाओं की भागीदारी में कमी भी एक बड़ी समस्या है।
विरोध का कारण:
- इन अधिनियमों के लागू होने के बाद किसानों द्वारा इनमें शामिल कई मुद्दों जैसे-न्यूनतम समर्थन मूल्य का उल्लेख न होना, कृषि उपज विपणन समिति (APMC) के प्रभाव को सीमित करने के साथ अधिनियम में प्रस्तावित विवाद निस्तारण प्रणाली को लेकर भी प्रश्न उठे हैं।
- केंद्र सरकार के अनुसार, ‘मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020’ किसानों को विपणन में स्वतंत्रता प्रदान करने का प्रयास करता है।
- इस उद्देश्य के लिये यह अधिनियम किसी प्रायोजक (किसान के साथ कृषि समझौते में शामिल कोई व्यक्ति, फर्म, कंपनी आदि) के साथ लेनदेन के दौरान किसानों के हितों की रक्षा करने का प्रावधान करता है।
- किसानों की सुरक्षा के अन्य प्रावधानों के साथ यह भुगतान के लिये प्रायोजक के उत्तरदायित्व का निर्धारण करता है और प्रायोजक को लिखित समझौते के माध्यम से किसान की भूमि या परिसर के स्वामित्व को लेने या भूमि में कोई स्थायी बदलाव करने से रोकता है।
- हालाँकि किसानों के हितों की रक्षा के इन प्रावधानों की प्रभावशीलता इनको लागू करने के संस्थान की शक्ति तथा उसकी कार्यप्रणाली पर ही निर्भर करेगी और इस अधिनियम के तहत निर्धारित विवाद निस्तारण प्रणाली (सुलह एवं समझौते पर आधारित) अधिक प्रभावी नहीं प्रतीत होती है।
विवाद निस्तारण प्रणाली:
- इस अधिनियम के तहत कृषि अनुबंध के संदर्भ में किसान और प्रायोजक के बीच किसी भी विवाद को एक सुलह बोर्ड (Conciliation Board)के माध्यम से हल करने का प्रावधान किया गया है।
- इसके अंतर्गत कृषि समझौते में शामिल पक्षों के प्रतिनिधियों द्वारा एक सुलह बोर्ड का गठन किया जाएगा, जिसमें दोनों पक्षों का निष्पक्ष और बराबर प्रतिनिधित्त्व होगा और किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पक्ष इस बोर्ड के समक्ष अपनी बात रख सकेंगे। इस प्रक्रिया के तहत हुआ कोई भी समझौता अंतिम तथा दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होगा।
- यदि किसी समझौते में सुलह प्रक्रिया को नहीं शामिल किया गया है तो ऐसे मामलों में विवाद की स्थिति में संबंधित क्षेत्र के सब-डिवीज़नल मजिस्ट्रेट (SDM) को विवाद के समाधान हेतु सुलह बोर्ड का गठन करने का अधिकार होगा।
सुलह प्रणाली का लाभ:
- सुलह या समझौते के माध्यम से जटिल न्यायिक प्रक्रिया से बचते हुए धन और समय की बचत की जा सकती है।
- सुलह या समझौते की वैधता आपसी सहमति और इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों के अधिकारों में समानता के मूल्य पर आधारित होती है।
- सुलह प्रक्रिया में विवाद के समाधान के बाद दोनों पक्षों के बीच भविष्य में व्यावसायिक संबंधों को जारी रखा जा सकता है, जबकि न्यायिक फैसलों में इसकी संभावना बहुत कम होती है।
विवाद निस्तारण प्रणाली में व्याप्त समस्याएँ:
- यह अधिनियम कृषि अनुबंध से जुड़े विवादों में सुलह या समझौते को ही समाधान के एकमात्र विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है।
- हालाँकि दोनों पक्षों के बीच शक्ति असंतुलन के कारण कई मामलों में इस प्रकार की सुलह प्रक्रिया के परिणाम दोनों पक्षों के लिये अपेक्षाकृत निष्पक्ष, तर्कसंगत और सामंजस्यपूर्ण नहीं होंगे, जो इस सुलह को कमज़ोर पक्ष के लिये एक मजबूरी में बदल सकता है।
- इस विवाद समाधान प्रक्रिया में किसी तीसरे पक्ष (जैसे-न्यायाधीश या मध्यस्थ) के अभाव में अधिक शक्ति वाला पक्ष सुलह प्रक्रिया और इसके परिणाम को नियंत्रित कर सकता है।
- साथ ही इस अधिनियम में SDM द्वारा गठित इस बोर्ड की संरचना के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई है।
शक्ति संतुलन की आवश्यकता:
- भारत में 86.2% किसान 47.3% कृषि क्षेत्र में औसतन 2 हेक्टेयर से कम की कृषि भूमि के साथ छोटे और सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं, कृषि से जुड़े लगभग 70% से अधिक परिवारों का खर्च उनकी आय से अधिक है और लगभग एक-चौथाई (1/4) किसान परिवार गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
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ऐसे में इस अधिनियम के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु सुलह प्रक्रिया में संभावित शक्ति असंतुलन के विरुद्ध सुरक्षा उपायों का निर्धारण करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, सुलह प्रक्रिया के रुकने और विवाद के न्यायालय में पहुँचने की स्थिति में कई मामलों में ऐसा भी हो सकता है कि कमज़ोर पक्ष के पास इसके लिये आवश्यक संसाधन नहीं हों।
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ऐसी स्थिति में सुलह के दौरान कमज़ोर पक्ष को अपने हितों के विपरीत रखी गई शर्तों को मानने के लिये विवश होना पड़ सकता है।
- सुलह प्रक्रिया में शक्ति संतुलन की विषमताओं को दूर करने के लिये सुरक्षा उपायों का अभाव प्रायोजकों को बढ़त प्रदान करेगा।
कानूनी प्रावधान:
- गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने ‘केंद्रीय अंतर्देशीय जल परिवहन निगम लिमिटेड बनाम ब्रजो नाथ गांगुली (Brojo Nath Ganguly)’ मामले में स्पष्ट किया था कि न्यायालयों द्वारा किन्हीं दो पक्षों के बीच हुए ऐसे किसी भी अनुचित अनुबंध या अनुबंध के अनुचित प्रावधान को लागू नहीं किया जाएगा जिसमें दोनों पक्षों के पास मोल-भाव की बराबर शक्ति न हो तथा ऐसे अनुबंधों को न्यायालय द्वारा रद्द (मांग किये जाने पर) भी किया जा सकता है।
- हालाँकि अधिकांश ग्रामीण किसानों में अपने अधिकारों के प्रति विधिक साक्षरता का अभाव और बड़े संस्थानों के विरूद्ध अदालती कार्रवाई के लिये धन तथा अन्य संसाधनों की कमी के कारण उनके लिये यह विकल्प अपनाना आसान नहीं होगा।
आगे की राह:
- सरकार द्वारा लागू किये गए अधिनियम के तहत किसानों के हितों की रक्षा हेतु बिना किसी विशेष प्रावधान या अनुबंध की शर्तों की जाँच के लिये किसी अधिनिर्णायक (Adjudicator) की अनुपस्थिति के कारण प्रायोजकों द्वारा किसानों के शोषण का भय बना रहेगा।
- किसी भी व्यावसायिक अनुबंध में सभी पक्षों को समान अधिकार दिये जाते हैं, हालाँकि वर्तमान समय में देश में कृषि क्षेत्र में ऐसे अनुबंधों को बढ़ावा देने के दौरान सरकार को किसानों के हितों की रक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा।
- कृषि क्षेत्र के विकास हेतु नवीनतम प्रौद्योगिकियों और वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग को बढ़ावा देने तथा बाज़ार तक उनकी पहुँच को मज़बूत करने के साथ किसानों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना बहुत ही आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न: केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में कृषि क्षेत्र में सुधारों हेतु लागू किये गए अधिनियमों का संक्षिप्त विवरण देते हुए भारत में अनुबंध कृषि की संभावनाओं और इसकी चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।