भारतीय अर्थव्यवस्था
नई व्यापार नीति
यह एडिटोरियल 05/05/2022 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “All Eyes on the New Trade Policy” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की वर्तमान विदेश व्यापार नीति में निहित चुनौतियों और आवश्यक उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
वित्त वर्ष 2021-22 भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये एक उत्साहजनक स्थिति के साथ पूर्ण हुआ। भारतीय निर्यात ने न केवल कोविड संकट को सहने और उससे उबर लेने के संकेत दिये, बल्कि 419.65 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड राजस्व के साथ मज़बूत वृद्धि भी दर्ज की, जिसे निर्यात में तेज़ पुनरुद्धार के लक्षण के रूप में देखा जा रहा है। ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ संपन्न मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements- FTA) को भी नीति-निर्माताओं द्वारा भारतीय उद्यमियों के लिये व्यापक अवसरों के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि इन सभी उपलब्धियों के बावजूद इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिये कि भारत के लिये एक नई विदेश व्यापार नीति (Foreign Trade Policy- FTP) अभी भी लंबे समय से प्रतीक्षित है। पिछली विदेश व्यापार नीति वर्ष 2015 में अधिसूचित की गई थी और एक नई नीति अप्रैल 2020 में पेश की जानी थी, लेकिन तब से इसे आगे की अवधि के लिये बार-बार टाला जा रहा है। हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों, स्थानीय विनिर्माण पर ज़ोर और द्विपक्षीय व्यापार अभिसमयों पर एक दिशा को देखते हुए एक नई नीति का लाया जाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
विदेश व्यापार नीति का महत्त्व:
- विदेश व्यापार नीति भारत सरकार द्वारा जारी एक कानूनी दस्तावेज़ है, जो विदेश व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम 1992 के तहत प्रवर्तनीय है।
- वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से पंचवर्षीय रूप से पुनरीक्षित और अधिसूचित विदेश व्यापार नीति सभी हितधारकों के लिये मार्गदर्शक रही है।
- विदेश व्यापार नीति का मुख्य उद्देश्य लेन-देन और पारगमन लागत, समय को कम करके व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।
- विदेश व्यापार नीति सीमा-पार व्यापार नियमों को निर्धारित करती है और प्रौद्योगिकी प्रवाह, अप्रत्क्ष संपत्ति आदि जैसे कई सहवर्ती लेकिन महत्त्वपूर्ण नीतिगत चरों पर सरकार की स्थिति को उजागर करती है।
विदेश व्यापार नीति का महत्त्व:
- वैश्विक स्तर पर भारत के रुख को स्पष्ट करना: ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ और PLI (Production Linked Incentive) योजनाओं जैसे प्रमुख कार्यक्रमों, भारत की निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के विरुद्ध विश्व व्यापार संगठन के निर्णय, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) योजना की अतिदेय समीक्षा, भारत की निर्यात टोकरी के भौगोलिक प्रोफाइल में परिवर्तन और FTAs के निहितार्थों के संबंध में भारत की स्थिति और संरेखण को स्पष्ट करना आवश्यक है ।
- वर्ष 2019 में WTO के एक विवाद समाधान पैनल ने माना था कि FTP के तहत निर्यात प्रोत्साहन (Export Incentives) भारत की WTO प्रतिबद्धता का उल्लंघन है।
- निर्यात-उन्मुख व्यवसायों पर प्रभाव: FTP के जीर्णोंद्धार का एक अन्य कारण यह है कि कुछ निर्यात-उन्मुख व्यवसाय वर्ष 2015 की नीति में कुछ तदर्थ, विरोधाभासी और गलत समय पर किये गए परिवर्तनों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।
- वर्ष 2015 की FTP ने निर्यात के अनुपात में प्रत्यक्षतः ‘ड्यूटी-क्रेडिट स्क्रिप’ (Duty-Credit Scrips- DCS) जारी कर निर्यात को प्रोत्साहित किया था। ।
- इसके अलावा, सेवा प्रोत्साहन के लिये परिवर्तन को सितंबर 2021 में पूर्वव्यापी रूप से अधिसूचित किया गया था, जिसे अप्रैल 2019 से लागू किया जाना था।
- परिव्यय और प्रोत्साहन में कमी: भारत से पण्य वस्तु निर्यात योजना (MEIS) और भारत से सेवा निर्यात योजना (SEIS) जैसे 51,012 करोड़ रुपए के वार्षिक निर्यात प्रोत्साहनों को 12,454 करोड़ रुपये के RoDTEP योजना प्रोत्साहन के साथ प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- शेष 38,558 करोड़ रुपए को कुछ क्षेत्रों को लाभ प्रदान करने के लिये PLI की ओर मोड़ दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त पहले ट्रैक्टर जैसे कृषि उपकरणों पर 3% निर्यात प्रोत्साहन प्रदान किया जाता था, जिसे घटाकर 0.7% कर दिया गया है।
- अवसंरचनात्मक असफलताएँ: बंदरगाहों, गोदामों और आपूर्ति शृंखलाओं जैसी अपर्याप्त रूप से उन्नत निर्यात अवसंरचनाओं के कारण भारत में जहाज़ों के लिये औसत ‘टर्नअराउंड टाइम’ लगभग तीन दिनों का है जबकि वैश्विक औसत 24 घंटे का है।
- MSMEs का संकट: सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 29% और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 40% के योगदान के साथ MSMEs क्षेत्र महत्त्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु प्रमुख अभिकर्त्ता हैं। लेकिन इनपुट और ईंधन लागतों में वृद्धि MSMEs के निचले स्तर पर स्थित उद्यमों को प्रभावित कर रही है।
- इस्पात और प्लास्टिक जैसे कच्चे मालों की कीमतों में वृद्धि के साथ ही शिपिंग कंटेनरों और श्रम की कमी के कारण MSMEs के लिये वैश्विक मांग में वृद्धि का पूरा लाभ उठा सकना कठिन होता जा रहा है।
नई व्यापार नीति में में संभावित संशोधन संबंधी सुझाव
- MSMEs संकट का समाधान करना: भारत में SEIS के अंतर्गत अधिसूचित सेवाओं के सेवा निर्यातकों को शुद्ध विदेशी मुद्रा आय का 3-7% प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
- नई नीति में योजना के तहत दावा योग्य शुद्ध विदेशी मुद्रा आय के लिये न्यूनतम सीमा में संशोधन और वैश्विक सेवाओं के लिये द्रुत ‘जीएसटी रिफंड’ सुविधा का होना बेहद आवश्यक है।
- सरकार को MSMEs की मौजूदा टैरिफ लाइनों में निर्यात क्षमता का दोहन करने में भी मदद करनी चाहिये और निर्यातक MSMEs की संख्या बढ़ाने के लिये तथा वर्ष 2022-23 में MSME निर्यात को 50% तक बढ़ाने के लिये नीतिगत सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- निर्यातकों के लिये अधिक प्रोत्साहन: नई FTP से निर्यातकों को लाभ हो सकता है यदि MSME श्रेणी के दायरे में खुदरा और थोक व्यापारियों को मिलने वाले प्रोत्साहन उन्हें भी दिया जाए।
- नई नीति को निर्यातकों को इस दृष्टिकोण से सक्षम बनाना चाहिये कि वे विदेशी व्यापार के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकें। यह MSMEs के लिये अपने वैश्विक समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकने में विशेष रूप से मदद करेगा।
- अवसंरचना उन्नयन: गोदामों, बंदरगाहों, SEZs, गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं, प्रमाणन केंद्र आदि के रूप में एक कुशल और व्यापक अवसंरचना नेटवर्क अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में निर्यातकों को टिके रहने में सहायता देगा।
- भारत को चीन जैसे प्रौद्योगिकी उन्नत देशों से आगे बढ़ने के लिये निर्यात अवसंरचना के उन्नयन में निवेश करने की आवश्यकता है।
- इसे आधुनिक व्यापार अभ्यासों को अपनाने की भी आवश्यकता है जिन्हें निर्यात प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के माध्यम से लागू किया जा सके। इससे समय और लागत दोनों की बचत होगी।
- GST निर्यात लाभ: GST के अंतर्गत निर्यात लाभ वर्तमान में FTP के दायरे से बाहर है, जिसके परिणामस्वरूप निर्यातकों के कुछ वर्गों को निर्यात लाभ से वंचित कर दिया गया है।
- इस परिदृश्य में दोनों नीतियों के बीच की खाई को पाटने की तत्काल आवश्यकता है। इसके अलावा बिना प्रशासनिक देरी के जीएसटी रिफंड का निर्बाध वितरण भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- विश्व व्यापार संगठन की नीतियों का अनुपालन करने वाली योजनाएँ: यह दृष्टिकोण FTP के मूल में है। विश्व व्यापार संगठन सरकारों को अपने निर्यातकों को भारी सब्सिडी देने से रोकने की दिशा में कार्य करता है ताकि सभी देशों को एक समान अवसर मिल सके।
- भारत सरकार विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के भीतर बने रहने की आवश्यकता से अच्छी तरह अवगत है और उसने सब्सिडीयुक्त योजनाओं को वापस लेने के लिये पहले ही कई उल्लेखनीय कदम उठाए हैं।
- हालाँकि निर्यात को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि वैश्विक बाज़ार में भारतीय निर्यात प्रतिस्पर्द्धी बने रहें, बुनियादी स्तर पर और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
- अन्य उपाय: नीति-निर्माताओं को सभी हितधारकों के साथ संलग्न होने के लिये विचार-परिधि का तत्काल विस्तार करना चाहिये ताकि एक सचेत रूप से तैयार और निर्देशित नीति दृष्टिकोण सामने आ सके, जो देश की आर्थिक प्रगति के लिये केंद्र और निजी व्यवसायों दोनों का मार्गदर्शन करे।
- इस विचार-परिधि में ईंधन-आयात प्रतिस्थापन की प्रखर आवश्यकता, तात्कालिक लॉजिस्टिक्स का लाभ उठाने और उद्यमशीलता अभियान को बढ़ावा देने जैसे समकालीन प्रतिमानों को भी शामिल किया जाना चाहिये।
- महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक कठिनाई को देखते हुए नई विदेशी व्यापार नीति को निर्यात बाधाओं को दूर करने के लिये चरणबद्ध तरीके से कार्य करना होगा, पारगमन लागत को कम करने के लिये नियामक एवं परिचालन ढाँचे की समीक्षा करनी होगी और विकसित लॉजिस्टिक्स एवं उपयोगिता अवसंरचना के माध्यम से निम्न लागतपूर्ण परिचालन वातावरण का सृजन करना होगा।
अभ्यास प्रश्न: “निर्यात देश के सकल घरेलू उत्पाद का महत्त्वपूर्ण अंग हैं और विदेशी व्यापार को पर्याप्त महत्त्व एवं निवेश सहयोग दिया जाना चाहिये। आगामी विदेश व्यापार नीति को यह सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय कदम उठाने चाहिये कि भारतीय कंपनियों के लिये निर्यात संवहनीय हो और विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के अनुरूप हो।’’ चर्चा कीजिये।