अंतर्राष्ट्रीय संबंध
GSP छूट वापस लेकर भारत के साथ ट्रेड वॉर की राह पर अमेरिका
संदर्भ
अमेरिका ने सामान्य प्राथमिकता प्रणाली (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस-GSP) के तहत भारतीय उत्पादों को शुल्क में मिलने वाली छूट आगे और जारी न रखने का एलान किया है। यह छूट 60 दिनों बाद खत्म हो जाएगी और भारत द्वारा इसका विरोध करने की संभावना नहीं है। अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) ने घोषणा की है कि भारत और तुर्की को GSP के तहत शुल्क में मिलने वाली छूट का फायदा अब और नहीं मिलेगा। गौरतलब है कि यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (US Trade Representative-USTR) ने भारत को लेकर GSP की समीक्षा की थी, जिसमें अमेरिका इसके तहत कुछ निश्चित निर्यात सीमा पर भारत से कोई शुल्क नहीं लेता।
क्या है GSP?
- GSP विकसित देशों (प्राथमिकता देने वाले या दाता देश) द्वारा विकासशील देशों (प्राथमिकता प्राप्तकर्त्ता या लाभार्थी देश) के लिये विस्तारित एक अधिमान्य प्रणाली है।
- 1974 के ट्रेड एक्ट के तहत 1976 में शुरू की गई GSP व्यवस्था के अंतर्गत विकासशील देशों को अमेरिका को निर्यात की गई कुछ सूचीबद्ध वस्तुओं पर करों से छूट मिलती है।
- GSP अमेरिका की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी व्यापार तरजीही योजना है, जिसका उद्देश्य हजारों उत्पादों को आयात शुल्क में छूट देकर विकासशील देशों को आर्थिक विकास में मदद करना है।
- इस प्रणाली के तहत विकासशील देशों को विकसित देशों के बाज़ार में कुछ शर्तों के साथ न्यूनतम शुल्क या शुल्क मुक्त प्रवेश मिलता है।
- विकसित देश इसके ज़रिये विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हैं।
- नामित लाभार्थी विकासशील देशों के लगभग 30-40 प्रतिशत उत्पादों के लिये वरीयता शुल्क मुक्त व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। भारत भी एक लाभार्थी विकासशील देश है।
- ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, कनाडा, यूरोपीय संघ, आइसलैंड, जापान, कज़ाखस्तान, न्यूज़ीलैंड, नॉर्वे, रूसी संघ, स्विट्ज़रलैंड, तुर्की और अमेरिका GSP को प्राथमिकता देने वाले देशों में प्रमुख हैं।
GSP को 1 जनवरी 1976 को अमेरिका के ट्रेड एक्ट-1974 के तहत शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य दुनियाभर के विकासशील देशों के बाज़ारों को सहारा देना था। इस कार्यक्रम में शामिल देशों को अमेरिका में अपने उत्पाद बेचने पर किसी तरह का आयात शुल्क नहीं देना होता है। इस कार्यक्रम में भारत सहित 121 देशों को शामिल किया गया है।
सरल शब्दों में कहें तो अमेरिका कुछ देशों से आयात होने वाली वस्तुओं पर ड्यूटी नहीं लगाता अर्थात् जिन देशों को GSP की सुविधा मिलती है, वे बिना किसी शुल्क के अपनी कुछ वस्तुएँ अमेरिकी बाज़ार में पहुँचा सकते हैं। इसे बिजनेस की भाषा में कहें तो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में जब कोई देश किसी अन्य देश को कुछ सामान बेचता है तो उसे ड्यूटी अदा करनी पड़ती है। ऐसे में सामान की कीमत बढ़ जाती है और जब ड्यूटी नहीं लगती तो कीमत कम रहती है और वह वस्तु अधिक बिकती है। इससे मुनाफा तो बढ़ता ही है, व्यापार में भी वृद्धि होती है।
भारत और GSP
- भारत GSP का सबसे बड़ा लाभार्थी है, 2017-18 में 19 करोड़ डॉलर का फायदा हुआ।
- GSP के तहत 5.6 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जो कुल निर्यात का 11% है।
- GSP के तहत 3700 उत्पादों को छूट मिली हुई है, परंतु भारत केवल 1900 उत्पादों का निर्यात करता है।
GSP के लिये कुछ अनिवार्य शर्तें
इसके तहत मुकदमा होने पर अमेरिकी कंपनियों और नागरिकों को प्राथमिकता देना, सामान बनाने में बाल श्रम का इस्तेमाल नहीं हुआ हो, कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करना, पेंटेंट नियमों को मानना, अमेरिकी कंपनियों को अपने देश में बराबर के मौके देना आदि शामिल हैं।
अमेरिका की चिंताएँ
- भारत को होने वाले GSP लाभों के तहत अमेरिका प्रतिवर्ष 190 मिलियन डॉलर की कर छूट दे रहा था। लेकिन भारत को अपने यहाँ से निर्यात होने वाले स्टेंट जैसे कुछ मेडिकल उपकरणों को लेकर वह समय-समय पर चिंताएँ जाहिर करता रहा है। भारत सैद्धांतिक रूप से मेडिकल उपकरणों के बारे में अमेरिका की चिंताओं को हल करने के लिये तैयार था।
- इसी प्रकार दुग्ध उत्पादों की बाज़ार पहुँच से जुड़े मुद्दों पर भारत ने स्पष्ट किया कि इनके लिये यह प्रमाणित होना आवश्यक है कि स्रोत पशुधन को अन्य पशुधन से प्राप्त रक्ताहार कभी नहीं दिया गया है। यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए है और इसके बारे में कोई वार्ता संभव नहीं है।
- अल्फाफा, चैरी और पोर्क जैसे उत्पादों के बारे में अमेरिकी बाज़ार पहुँच के अनुरोधों की स्वीकार्यता से अवगत कराया गया था। भारत ने स्पष्टत: अमेरिका के हितों से जुड़ी विशेष वस्तुओं पर कर में रियायत देने की इच्छा से अवगत कराया।
- गौरतलब है कि तेल और प्राकृतिक गैस तथा कोयला जैसे सामानों की खरीद बढ़ने से भारत के साथ अमेरिकी व्यापार घाटे में 2017 और 2018 में काफी कमी हुई है। 2018 में 4 बिलियन डॉलर से अधिक कमी का अनुमान है।
- भारत में ऊर्जा और विमानों की बढ़ती मांग जैसे घटकों के परिणामस्वरूप भविष्य में इसमें और भी कमी होने का अनुमान है। अरबों डॉल्रर के राजस्व वाली अमेरिकी सेवाओं और एमेजन, उबर, गूगल तथा फेसबुक आदि जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये भी भारत एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार है।
हालांकि तुर्की को भी GSP से बाहर किया गया है, लेकिन USTR ने भारत की कड़ी आलोचना की है। उसके अनुसार, “भारत ने कई तरह की व्यापार बाधाएँ खड़ी कर रखी हैं, जिससे अमेरिकी कारोबार पर गंभीर नकारात्मक असर पड़ रहा है।“
भारत को WTO में भी चुनौती देता रहा है अमेरिका
- अमेरिका ने भारत की एक्सपोर्ट सब्सिडी स्कीमों को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चुनौती देता रहा है। अमेरिकी शिकायत में 6 योजनाओं के नाम हैं।
- इसमें कहा गया है कि भारत निर्यातकों के अलावा स्टील प्रोडक्ट, फार्मा, केमिकल, IT और टेक्सटाइल निर्माताओं को इन्सेंटिव देता है।
- इन स्कीमों से इन्हें हर साल 7 अरब डॉलर (45,500 करोड़ रुपए) की मदद मिलती है। इस मदद से निर्यातक अपना सामान सस्ते में एक्सपोर्ट करते हैं, जिससे अमेरिकी निर्माताओं और कामगारों को नुकसान होता है।
- WTO के नियमों के मुताबिक जिन देशों की प्रति व्यक्ति औसत आय 1000 डॉलर से कम है, वे एक्सपोर्ट इन्सेंटिव दे सकते हैं।
- इन्सेंटिव उन्हीं क्षेत्रों के लिये दिया जा सकता है जिनकी वैश्विक निर्यात में 3.25% से कम हिस्सेदारी है।
- अमेरिका का कहना है कि भारत 2015 में ही इस मानदंड से ऊपर आ गया था। नियम के अनुसार, यह छूट खत्म कर दी जानी चाहिये थी, लेकिन भारत ने इसका आकार और दायरा, दोनों बढ़ा दिया है।
WTO के पहले के एक फैसले के मुताबिक GSP के तहत छूट की प्रकृति गैर-पारस्परिक है। भारत ने पहले कहा था कि अमेरिका ने यदि यह छूट वापस ली तो वह उसे WTO में खींचेगा। अब चूँकि यह पूरी तरह एक एकतरफा कदम ठहराया गया है, इसलिये अमेरिका के अपने फैसले से पलटने की कम ही उम्मीद है।
चीन की दमदार आर्थिक कूटनीति
पिछले एक साल से चला आ रहा अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध अब खत्म होता दिख रहा है। दोनों देशों के बीच इसके लिये एक समझौते पर बातचीत चल रही है। अगर दोनों देशों में सहमति बन जाती है तो चीनी उत्पादों पर लगभग 200 अरब डॉलर का शुल्क अमेरिका हटा लेगा, जबकि चीन ऑटोमोबाइल आदि पर लगाए जाने वाले औद्योगिक करों को घटाएगा। इसके अलावा, चीन एक नया विदेशी निवेश कानून बनाने पर भी विचार कर रहा है, जो वैश्विक निवेशकों को निवेश के समान अवसर उपलब्ध कराएगा। इस कानून में बौद्धिक संपदा अधिकारों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर कानूनी सुरक्षा उपायों का भी जिक्र होगा। चीन ने अपने यहाँ कृषि और ऊर्जा क्षेत्र को लाभ पहुँचाने के लिये छह साल में 12 खरब अमेरिकी डॉलर की खरीद बढ़ाने की पेशकश भी की है। सरकारों के स्तर पर दोनों देश नियमित रूप से परामर्श तंत्र स्थापित करने की योजना भी बना रहे हैं, ताकि व्यापार संबंधी कठिनाइयाँ दूर की जा सकें।
भारत पर क्या होगा असर?
अमेरिका के लिये भारत 11वाँ सबसे बड़ा व्यापार घाटे वाला देश है। 2017 में अमेरिका ने भारत से 76.7 अरब डॉलर का सामान खरीदा, लेकिन भारत ने इसी दौरान अमेरिका से 49.4 अरब डॉलर का सामान लिया। इस तरह से अमेरिका को 27.3 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ। भारत से अपने व्यापार घाटे (Trade Surplus) को कम करने के लिये अमेरिका लगातार ज़ोर देता रहा है।
ऐसे में माना जा रहा है कि GSP छूट वापस लेने का पहला असर दोनों देशों के बीच पारस्परिक रूप से स्वीकार्य व्यापार पैकेज पर पड़ेगा जिस पर लंबे समय से बातचीत चल रही है। भारत सरकार ने कहा है कि अमेरिका के भारतीय उत्पादों पर से कर छूट वापस लेने से दोनों देशों के आपसी व्यापार पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। अमेरिका को होने वाले कुल निर्यात में कर छूट वाले उत्पादों की संख्या कम है और इनका निर्यात मूल्य अपेक्षाकृत कम होता है। इस प्रणाली से बाहर होने से भारतीय उत्पादों को मिलने वाली 19 करोड डॉलर की छूट समाप्त हो जाएगी। इससे लगभग 2000 भारतीय उत्पादों का 560 करोड़ डॉलर का निर्यात प्रभावित होगा। इनमें मुख्यतः आभूषण, हस्तशिल्प और चमड़ा उत्पाद तथा परिधान शामिल हैं। अमेरिका के इस फैसले से भारत का निर्यात प्रभावित होगा। अमेरिका के जवाब में भारत उसके उत्पादों पर और ड्यूटी बढ़ा सकता है। इससे जो ट्रेड वॉर अमेरिका और चीन के बीच चल रहा था, वही भारत और अमेरिका के बीच भी शुरू हो जाएगा।
यह भी प्रासंगिक है कि भारत की ओर से लगाए गए शुल्क विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बाध्यताओं के तहत सीमित दरों के भीतर हैं और ये सीमित दरों से काफी कम औसत स्तर पर बने हुए हैं। ऐसे में भारत प्रमुख विवादित मुद्दों पर सार्थक और परस्पर स्वीकार्य पैकेज को मानने और शेष मुद्दों के बारे में भविष्य में विचार-विमर्श जारी रखने के बारे में सहमत हो सकता था। यह भी ठीक है कि GSP के लाभ सीमित हैं और इसे लेकर दोनों देशों के बीच चल रही बातचीत में इसका समाधान निकाला जा सकता था, लेकिन इसका पटाक्षेप उस तरह नहीं हुआ जैसा अपेक्षित था।
स्रोत: 6 मार्च को The Indian Express में प्रकाशित आलेख What the US Trade Rap Means तथा अन्य जानकारी पर आधारित