लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 07 Jan, 2020
  • 11 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका-चीन तनाव के नए आयाम

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अमेरिका और चीन के मध्य हितों के टकराव के मुद्दों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

अमेरिका और चीन के मध्य लंबे समय से चल रहा व्यापार युद्ध अपने अंतिम चरण में दिखाई दे रहा है। विगत कुछ महीनों से दोनों देश व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने का अथक प्रयास कर रहे हैं, इस क्रम में पहला सुव्यवस्थित प्रयास तब दिखाई दिया जब अमेरिका ने चीन के 160 अरब डॉलर के सामानों पर शुल्क लगाने के विचार को कुछ समय के लिये टाल दिया। हालाँकि मौजूदा समय में दोनों देशों के मध्य प्रतिद्वंद्विता व्यापार से कहीं आगे बढ़ चुकी है। अब आर्थिक मुद्दों से इतर हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता, उइगर मानवाधिकार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल स्पेस और 5G जैसे मुद्दे विवाद की नवीन पृष्ठभूमि बन गए हैं। ऐसे में यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि विश्व की दो बड़ी शक्तियों के मध्य संघर्ष का विश्व के विभिन्न देशों पर किस प्रकार का प्रभाव होगा और विशेष तौर पर भारत के लिये इसके क्या मायने हैं?

ऊर्जा संबंधी चिंता

  • हाल के कुछ वर्षो में अमेरिका ने अपनी ऊर्जा संबंधी आयात निर्भरता को काफी कम किया है जिससे वैश्विक बाज़ार में मांग में कमी आने के कारण तेल की कीमतें काफी कम हो गई थीं, जो कि भारत के लिये एक संतोषजनक खबर थी क्योंकि भारत कच्चे तेल की अपनी 80 प्रतिशत से अधिक और प्राकृतिक गैस की 40 प्रतिशत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर रहता है।
    • वैश्विक बाज़ार में तेल की कम कीमतें भारत को अपने चालू खाते घाटे को संबोधित करने में मदद कर सकती थीं।
  • किंतु ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख और इरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की मृत्यु के बाद वैश्विक बाज़ार में तेल की कीमतों में अचानक 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।
  • भारत के विपरीत चीन ईरान से काफी अधिक मात्रा में कच्चे तेल का आयात करता है और ईरान का सबसे बड़ा खरीदार भी है। हाल ही में चीन ने घोषणा की थी कि वह ईरान के तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल क्षेत्रों को विकसित करने में 280 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा।
  • मध्य-पूर्व में हुए हालिया घटनाक्रम को लेकर भी चीन ने अपना पक्ष रखते हुए अमेरिका से संयम बरतने एवं तनाव को और अधिक न बढ़ाने का आग्रह किया है। इस विषय पर चीन के पक्ष से स्पष्ट है कि वह स्वयं को ‘ईरान से सहानुभूति रखने वाले’ के रूप में प्रदर्शित करना चाहता है। ऐसे में चीन की यह नीति अमेरिका और चीन के मध्य प्रतिद्वंद्विता एवं तनाव को और अधिक बढ़ा देगी।
  • अनुमानतः वित्तीय वर्ष 2019-20 में अमेरिका से भारत का ऊर्जा आयात 10 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा। जहाँ ऊर्जा आयात के लिये अमेरिका पर भारत की निर्भरता बढ़ रही है, वहीं चीन मध्य-पूर्व में अपनी उपस्थिति को और अधिक मज़बूत कर रहा है।
  • यह कहा जा सकता है कि भविष्य में ऊर्जा क्षेत्र दोनों के मध्य प्रतिद्वंद्विता के लिये एक नई भूमि तैयार करेगा।

तकनीक के क्षेत्र में

  • स्पष्ट है कि भविष्य में जिस देश के पास सर्वाधिक उन्नत तकनीक होगी वही वैश्विक पटल पर एक मज़बूत शक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा। यही कारण है कि विश्व की दो बड़ी शक्तियाँ (अमेरिका और चीन) तकनीक के क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने के लिये भरसक प्रयास कर रही हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों पर चीन के महत्त्वाकांक्षी रुझान ने अमेरिकी प्रशासन के समक्ष एक बड़ी चुनौती उत्पन्न कर दी है।
  • वर्ष 2019 की शुरुआत में अमेरिका ने चीन की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) पर जासूसी का आरोप लगाते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग का मानना था कि हुआवे द्वारा तैयार किये जा रहे उपकरण देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
  • इसके अतिरिक्त दिसंबर 2018 में अमेरिकी अधिकारियों के कहने पर हुआवे के मुख्य वित्तीय अधिकारी (CFO) मेंग वानझो को कनाडा में गिरफ्तार कर लिया गया था।
  • दोनों देशों के मध्य चल रहे तकनीक युद्ध (Tech War) में अब तक भारत इसे अपने अनुकूल नहीं बना पाया है। आँकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2018 में चीन की तीन बड़ी टेक कंपनियों-बाईडू, अलीबाबा और टेंसेंट ने भारत के स्टार्ट-अप्स में तकरीबन 5 बिलियन डॉलर का निवेश किया था।
    • भारत इस अवसर का उपयोग कर चीन को भारत के IT निर्यातों के लिये अपना बाज़ार खोलने हेतु मजबूर कर सकता था, किंतु अब तक ऐसा संभव नहीं हो पाया।
  • अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तकनीक युद्ध से भारत की सामरिक स्वायत्तता को भी खतरा है। विदित हो कि हाल ही में भारत ने अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित कंपनी हुआवे को देश में 5G ट्रायल के आयोजन में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी है।

हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता और उइगर समुदाय के मानवाधिकार का मुद्दा

  • विगत वर्ष हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थकों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग मानवाधिकार और लोकतंत्र अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत अमेरिकी प्रशासन को इस बात का आकलन करने की शक्ति दी गई है कि हॉन्गकॉन्ग में अशांति की वजह से इसे विशेष क्षेत्र का दर्जा दिया जाना उचित है या नहीं।
  • चीन की सरकार ने हॉन्गकॉन्ग को उसका आंतरिक विषय बताते हुए अमेरिका के इस अधिनियम को चीन की संप्रभुता पर खतरा माना था।
  • इसके अलावा हाल ही में अमेरिका के निचले सदन ने चीन के उइगर मुसलमानों के संबंध में भी एक विधेयक पारित किया था। हालाँकि यह विधेयक अभी ऊपरी सदन सीनेट (Senate) द्वारा पारित होना बाकी है।
    • अधिनियम बनने के पश्चात् इसके माध्यम से अमेरिका द्वारा चीन पर उसके शिनजियांग (Shinxiang) प्रांत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार के कारण कई प्रतिबंध लगाए जा सकेंगे। इनमें वरिष्ठ चीनी अधिकारियों तथा चीन को होने वाले निर्यात पर प्रतिबंध भी शामिल है।
    • ज्ञात हो कि अमेरिका के इस कदम के प्रत्युत्तर में चीन ने अमेरिकी सेना के जहाज़ों तथा एयरक्राफ्ट को हॉन्गकॉन्ग में जाने से मना कर दिया था।

व्यापार युद्ध और भारत

  • जब एक देश दूसरे देश के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है अर्थात् वहाँ से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क बढ़ाता है तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई में यही प्रक्रिया अपनाता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को व्यापार युद्ध (Trade War) कहते हैं।
  • अमेरिका और चीन बीते लगभग 17 महीनों से व्यापार युद्ध में उलझे हुए हैं। विश्लेषकों को उम्मीद थी कि इस व्यापार युद्ध से भारत को काफी लाभ होगा, परंतु स्टेट ऑफ इंडिया (SBI) द्वारा जारी जुलाई 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका-चीन के व्यापार युद्ध से भारत को काफी कम लाभ हुआ है।
  • आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 की पहली छमाही में व्यापार युद्ध के कारण अमेरिकी बाज़ार में चीन के निर्यात में लगभग 35 बिलियन डॉलर की कमी आई थी। इसमें से लगभग 14 बिलियन डॉलर की आपूर्ति अमेरिकी उत्पादकों द्वारा की गई, जबकि शेष 62 प्रतिशत यानी 21 बिलियन डॉलर की आपूर्ति अन्य देशों द्वारा की गई। अन्य देशों द्वारा की गई आपूर्ति में भारत का हिस्सा मात्र 755 मिलियन डॉलर था, जो कि स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत इस अवसर का फायदा प्राप्त नहीं कर सकता था।

प्रश्न: अमेरिका-चीन तनाव की वृद्धि में नए क्षेत्रों की भूमिका का उल्लेख करते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2