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एडिटोरियल

  • 06 Nov, 2019
  • 20 min read
आंतरिक सुरक्षा

इस्लामिक स्टेट: अंत?

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line, The Economist आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट की मौजूदा स्थिति की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

इसी वर्ष मार्च माह में इस्लामिक स्टेट (IS) के सीरिया के बेगुज़ कस्बे से उखाड़ फेंक दिया गया। यह क़स्बा IS का अंतिम प्रत्यक्ष कब्जे वाला क्षेत्र था। कुछ समय पूर्व अमेरिका द्वारा IS प्रमुख अबू बक्र अल-बग़दादी को मारे जाने की खबर सामने आई है। बग़दादी की हत्या को इस आतंकवादी संगठन के लिये एक आघात माना जा रहा है लेकिन IS ने बग़दादी के उत्तराधिकारी की घोषणा कर दी है। विश्लेषकों का मानना है कि बगदादी की मौत ने इस आतंकवादी संगठन को कमज़ोर किया है किंतु इसे समाप्त मानना एक भूल साबित हो सकती है। इसलिये IS को आतंकवाद के एक वाहक के रूप में विश्व के समक्ष अभी भी खतरे के रूप में देखा जा रहा है।

IS Control

इस्लामिक स्टेट: इतिहास

इस्लामिक स्टेट की स्थापना जमात अल-ताव्हिद वल जिहाद के नाम से वर्ष 1999 में हुई मानी जाती है। अमेरिका पर वर्ष 2001 में हुए आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने अल-काएदा को समाप्त करने के लिये इराक में प्रवेश किया। इस मौके का लाभ उठाकर IS ने अपनी स्थिति को मज़बूत किया। अरब स्प्रिंग के समय संपूर्ण मध्य-पूर्व की तानाशाही सरकारें गंभीर संकट झेल रहीं थी। वर्ष 2011 में सीरिया में असद की तानाशाह सरकार के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन हुए, जो शीघ्र ही गृह-युद्ध में बदल गया। इराक भी सद्दाम हुसैन की मृत्यु के बाद अस्थिरता की स्थिति से जूझ रहा था। इराक और सीरिया की सुभेद्य स्थिति उग्रवादी एवं आतंकवादी संगठनों को उर्वर भूमि उपलब्ध करा रही थी। इसी का लाभ उठाकर इस्लामिक स्टेट ने वहाँ के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया तथा वर्ष 2014 में मोसूल पर कब्ज़ा करने के पश्चात् अपने संगठन का नाम परिवर्तित कर इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया (ISIS) कर लिया। साथ ही बगदादी ने स्वयं को इस्लामिक विश्व का खलीफा घोषित कर दिया।

पश्चिम एशिया प्रमुख रूप से इस्लामी मान्यताओं को मानने वाला क्षेत्र है। किंतु इस क्षेत्र में इस्लाम के भीतर ही लोग विभिन्न समुदायों यथा-शिया, सुन्नी और कुर्द में विभाजित हैं। इस क्षेत्र में विद्यमान विभिन्न समस्याओं की जड़ में अन्य कारकों के साथ-साथ इस सांप्रदायिक संघर्ष को भी एक बड़ा कारक समझा जाता है। सीरिया तथा इराक में सुन्नी और शिया आबादी प्रमुख रूप से विद्यमान है। इराक में सद्दाम हुसैन जो कि एक सून्नी था, के अंत के बाद इस्लामिक स्टेट ने इराक में सुन्नियों के शोषण किये जाने की बात कही तथा स्वयं को सुन्नी संप्रदाय का रहनुमा बताया। इस प्रकार से वह सीरिया तथा इराक में एक बड़ी आबादी को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा।

सबसे धनी आतकंवादी संगठन

किसी भी संगठन को बनाए रखने के लिये आर्थिक स्रोतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस्लामिक स्टेट भी इससे भली-भाँति परिचित था। इसी पृष्ठभूमि में IS ने इराक एवं सीरिया के आयल फील्ड पर कब्ज़ा कर लिया। जिससे इस आतंकवादी संगठन को बड़ी मात्रा में धन प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त जबरन वसूली, धार्मिक कर, सुन्नी समर्थक लोगों से आर्थिक सहायता भी इस संगठन के महत्त्वपूर्ण आर्थिक स्रोत बने। आर्थिक रूप से सशक्त होने के कारण IS ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से लोगों को भर्ती किया तथा अपने विरोधियों के खिलाफ प्रत्यक्ष संघर्ष में कूद गया। इतिहास में यह संभवतः पहला मामला था, जब कोई आतंकवादी संगठन इस प्रकार से किसी क्षेत्र पर अपना प्रभुत्त्व बनाए रख सका ।

इस्लामिक स्टेट का वैश्विक विस्तार

बगदादी ने स्वयं को खलीफा घोषित करने के पश्चात् इस्लामिक स्टेट के वैश्विक विस्तार का प्रयास किया। अब यह सिर्फ सीरिया और इराक तक ही सीमित नहीं था। इसने पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी एशिया तथा भारत समेत विश्व के अन्य क्षेत्रों में भी IS के प्रसार की बात कही। हालाँकि विश्व स्तर पर तथा भारत में इसको अधिक सफलता नहीं मिली लेकिन विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान अन्य आतंकी संगठन इससे जुड़ गए तथा उन्होंने खलीफा के रूप में बगदादी के समक्ष स्वयं की वफादारी प्रस्तुत की। सर्वप्रथम जब रूस के एक नागरिक विमान को IS से संबंद्ध आतंकवादी संगठन ने मार गिराया, तब विश्व को IS के वैश्विक प्रसार का आभास हुआ। IS ने संबद्ध संगठनों को विलायत का नाम दिया, जिसका अर्थ एक प्रशासनिक इकाई के रूप में लिया जा सकता है।

इस्लामिक स्टेट का पराभव

इस्लामिक स्टेट के बढ़ते प्रभाव ने न सिर्फ इससे संबंधित क्षेत्रों में ही आतंक फैलाया बल्कि यूरोप, अमेरिका तथा एशिया के विभिन्न देशों में भी आतंकी हमलों को अंजाम दिया। इस्लामिक स्टेट के आतंक ने विश्व के विभिन्न देशों को एक छतरी के नीचे आकर एक वैश्विक संगठन के निर्माण के लिये प्रेरित किया। साथ ही इस गठबंधन का नेतृत्त्व अमेरिका द्वारा किया गया। इस गठबंधन ने IS के खात्मे के लिये की जाने वाली कार्रवाई को ऑपरेशन कोहेरेंट रेसॉल्व नाम दिया। इस गठबंधन में प्रमुख रूप से अमेरिका, यूरोपीय संघ, नाटो, खाड़ी सहयोग परिषद तथा अरब लीग शामिल थे। हालाँकि ईरान, रूस, यमन आदि देशों ने भी इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में सहयोग दिया किंतु ये इस गठबंधन का हिस्सा नहीं बने। उपर्युक्त देशों के अतिरिक्त कई संगठन जिनमें से कुछ आतंकवादी संगठन भी हैं, इस्लामिक स्टेट के विरुद्ध लड़ाई में शामिल हुए। इसमें तालिबान, हमास, हिजबुल्लाह, कुर्द लड़ाके तथा सीरियाई डेमोक्रेटिक फोर्सेस (SDF) प्रमुख रूप से शामिल थे। हालाँकि ये संगठन एक साथ मिलकर IS के खिलाफ संघर्ष नहीं कर रहे थे, बल्कि अपने प्रभाव क्षेत्र में IS द्वारा की गई घुसपैठ का प्रतिरोध कर रहे थे। कारण चाहे जो भी हो, इसका लाभ यह हुआ कि वर्ष 2017 तक IS पूर्व में अपने द्वारा कब्ज़ा किये गए क्षेत्र के मात्र 2 प्रतिशत हिस्से तक ही सीमित रह गया। वर्ष 2019 के आरंभ तक IS को अल-कमाल तथा बेगूज़ से भी उखाड़ फेंका गया। इसके पश्चात् अब कोई भी क्षेत्र IS के प्रत्यक्ष रूप से कब्जे में नहीं रह गया।

लोन वुल्फ एवं इंटरनेट

इस्लामिक स्टेट के चरमोत्कर्ष के दौर में विश्व में विशेष रूप से पश्चिमी विश्व तथा पूर्वी एशिया में आतंकी घटनाओं में वृद्धि हुई। साथ ही इन घटनाओं को रोकना कठिन हो गया। इस प्रकार के हमलों को किसी व्यक्ति या एक छोटे से समूह द्वारा अंजाम दिया जाता था और इनका किसी भी आतंकवादी संगठन से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता था। इस प्रकार के हमलों को लोन वुल्फ अटैक कहा गया। इसमें आतंकी इंटरनेट तथा सोशल मीडिया द्वारा IS की विचारधारा से जुड़ता था और इंटरनेट के माध्यम से ही हमलों के लिये विशेषज्ञता प्राप्त करता था।

इस्लामिक स्टेट विश्व के लिये खतरा

इस्लामिक स्टेट भले ही वर्तमान में इराक एवं सीरिया में कमजोर हो गया है तथा उसके कब्ज़े में कोई क्षेत्र भी नहीं है, इसके बावजूद वह विश्व के समक्ष एक बड़ा खतरा बना हुआ है। इस्लामिक स्टेट में शामिल विदेशी लड़ाके जिनकी संख्या 25-30 हजार आँकी जा सकती है, अपने देशों में वापस लौटने में सफल हुए हैं। ये लड़ाके IS की विचारधारा में विश्वास रखते हैं और अपने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती बने हुए हैं। श्रीलंका में हुए आतंकी हमले तथा इंडोनेशिया एवं फ़िलीपींस के आत्मघाती हमलों ने IS के खतरे से विश्व को आगाह किया है। इस्लामिक स्टेट के उच्च स्तर के कई आतंकियों के मारे जाने के बावजूद इसने पूर्वी अफगानिस्तान क्षेत्र में तालिबान से भी अधिक आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया है। एशिया ही नहीं बल्कि अफ्रीका में भी IS से संबद्ध आतंकी संगठन सक्रिय हैं। पूर्व में नाइजीरिया का एक बड़ा आतंकी संगठन बोकोहरम भी IS से संबद्ध था लेकिन कुछ समय पूर्व इससे अलग हुई IS की एक शाखा इस क्षेत्र, विशेषकर उत्तरी नाइजीरिया में अधिक सक्रिय है। ध्यातव्य है कि इद्लिब, जहाँ IS सरगना बगदादी को मारा गया, तुर्की सीमा से केवल 50 किमी. की दूरी पर स्थित है, साथ ही तुर्की और सीरिया की सीमा रेखा पर कुर्दिश लड़ाके मौजूद हैं। इससे तुर्की IS के प्रति अधिक सुभेद्य हो जाता है। इसी प्रकार अन्य क्षेत्र जहाँ आतंकवाद के लिये उर्वर भूमि मौजूद है, वहाँ इस्लामिक स्टेट लंबे समय तक खतरा बना रह सकता है।

क्या यह इस्लामिक स्टेट का अंत है?

बगदादी के अंत को इस्लामिक स्टेट का अंत मानना विश्व समुदाय के लिये एक बड़ी भूल हो सकती है। जॉर्जिया स्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर जेन्ना जोर्डन ने 1000 से भी अधिक ऐसे मामलों का अध्ययन किया है, जिनमें आतकंवादी संगठनों के सरगनाओं तथा प्रमुखों की हत्या या पकड़े जाने के मामले शामिल हैं। इसके आधार पर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि किसी भी आतंकी समूह के प्रादुर्भाव के लिये उसकी सांगठनिक व्यवस्था, उसके आर्थिक स्रोत तथा विचारधारा की प्रमुख भूमिका होती है। उपर्युक्त तीनों आयामों में इस्लामिक स्टेट एक अच्छी स्थिति में है। जब किसी आतंकी संगठन के प्रमुख की मौत होती है, तो कोई अन्य उसका स्थान ले लेता है। बगदादी के इस्लामिक स्टेट का प्रमुख बनने में भी उसके पूर्ववर्ती उत्तराधिकारियों की मौत की भूमिका रही थी। बगदादी की मौत के बाद IS ने अबू इब्राहिम अल-हाश्मी को इस्लामिक स्टेट का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। ऐसे में IS की निरंतरता अभी भी जारी है, किंतु यह कहना गलत नहीं होगा कि भले ही इस्लामिक स्टेट अपनी पूर्व स्थिति में कभी न आ सके लेकिन एक आतंकी संगठन के रूप में सदैव विश्व के समक्ष खतरे उत्पन्न करता रहेगा।

Middle East

मध्य-पूर्व को सूद्रण करना आवश्यक

पिछले दो दशकों से मध्य-पूर्व विभिन्न कारणों से संघर्ष से जूझ रहा है जिससे इस क्षेत्र में अस्थिरता का माहौल व्याप्त है और विभिन्न देश आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर पर संकट का सामना कर रहे हैं। साथ ही इस क्षेत्र में व्याप्त कट्टरता की स्थिति इसे और अधिक गंभीर कर रही है। सीरिया में आठ वर्षों से चल रहे गृह युद्ध ने केवल तबाही और मानवीय संकट को ही जन्म दिया है। इसी प्रकार कुर्द अभी भी अपने लिये कुर्दिस्तान की लगातार मांग कर रहे हैं लेकिन न सीरिया और न ही तुर्की सरकार इस मांग को मानने के लिये तैयार है। अमेरिका ने कुर्दों को उनके अधिकार दिलाने का वादा किया था, इसके बदले में कुर्दों ने इस्लामिक स्टेट से लड़ाई में अमेरिका का साथ दिया । किंतु कुछ समय पूर्व ही अमेरिका सीरिया से बाहर निकल गया है, जबकि कुर्द अभी भी तुर्की और सीरिया के सीमा के आस पास अपना कब्ज़ा बनाए हुए हैं। कुर्द समर्थित पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट (YPG) को तुर्की अपनी आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा मानता है तथा उसका मानना है कि YPG तुर्की में स्थित कुर्दों को भड़का रही है। अमेरिका के इस क्षेत्र से बाहर निकलने के बाद तुर्की ने कुर्दों के खिलाफ हमले आरंभ कर दिये हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में शांति बहाली एक मुश्किल लक्ष्य बना हुआ है। दूसरी ओर सीरिया में असद सरकार को रूस का समर्थन प्राप्त है, जबकि अमेरिका असद सरकार का विरोधी रहा है। इराक में भी शिया-सुन्नी विवाद बना हुआ है। इस क्षेत्र में शिया और सुन्नी के बीच विवाद को भडकाने में भी सऊदी अरब की सुन्नी सरकार तथा ईरान की शिया सरकार की भूमिका मानी जाती है। यदि यह क्षेत्र शांति और स्थिरता की ओर आगे बढ़ता है तो इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी सगठनों को दोबारा पनपने के लिये उचित भूमि प्राप्त नहीं हो सकेगी, जिसके चलते सरकारें और संगठन इन आतंकियों के खात्में में सफल हो सकेंगे।

पूर्वी एशिया में इस्लामिक स्टेट का विस्तार

वर्ष 2018 में इंडोनेशिया में 11 तथा फिलिपींस में 6 आत्मघाती हमले हुए। साथ ही वर्ष 2019 में श्रीलंका में IS द्वारा बहुत बड़े आतंकी हमले को अंजाम दिया गया। वर्ष 2015 के बाद से बांग्लादेश में भी स्थानीय चरमपंथियों के साथ इस्लामिक स्टेट सक्रिय हुआ है। इस प्रकार पूर्वी एशिया में IS की उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता। इस क्षेत्र में गरीब आबादी, शिक्षा की कमी तथा बड़ी मुस्लिम जनसंख्या मौजूद है, जो IS को एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। ध्यातव्य है कि जब भी इस क्षेत्र की आंतरिक सुरक्षा में चूक होती है तो वह किसी आतंकी हमले के रूप में सामने आती है।

इस्लामिक स्टेट और भारत

बगदादी की वैश्विक विस्तार की कल्पना में उसने भारत को भी खुरासान प्रांत के रूप में शामिल किया था। किंतु अब तक भारत में IS की उपस्थिति के साक्ष्य नहीं मिले हैं, साथ ही भारत के लोगों को यह संगठन आकर्षित करने में विफल रहा है। इसके बावजूद यह अनुमान है कि भारत से 100-200 लोग IS में भर्ती होने के लिये सीरिया, इराक और अफ़ग़ानिस्तान की ओर गए थे। इनकी वापसी के बाद भारत में इनसे खतरा उत्पन्न हो सकता है। इस प्रकार के IS समर्थक भारत में युवाओं को भर्ती करने तथा स्लीपर सेल की भूमिका निभाने एवं साथ ही आवश्यकता पड़ने पर आतंक फ़ैला सकते हैं। कुछ समय पूर्व भारत सरकार ने कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया है, इससे कश्मीर में तनाव की स्थिति बनी हुई है। विश्लेषकों का मानना है कि IS भारत में अपने प्रसार के लिये कश्मीर मुद्दे का दुष्प्रचार कर सकता है। इसके अतिरिक्त भारत में सोशल मीडिया विनियमन भी कमज़ोर है, जिससे कोई भी आतंकी संगठन भारत के युवाओं की मनोवृत्ति बदलने, उनको प्रभावित करने तथा उन्हें आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिये तैयार कर सकता है। इस प्रकार की चुनौतियों से भारत को निपटना होगा, क्योंकि भारत की अवस्थिति तथा जनसांखिकीय भारत को IS के विस्तार के लिये सुभेद्य बनाती है।

निष्कर्ष

इस्लामिक स्टेट का प्रभाव कुछ वर्षों तक ही विश्व पटल पर रहा है लेकिन उसके द्वारा पैदा किये गए प्रभाव बेहद गंभीर रहे। बगदादी के मारे जाने के बाद IS की स्थिति कमज़ोर हुई है लेकिन इसका अंत होना अभी शेष है। मध्य-पूर्व अभी भी अमेरिका और रूस के बीच के संघर्ष के कारण विभाजित है, साथ ही वहाँ की स्थानीय परिस्थितियाँ भी गंभीर हैं। इस्लामिक स्टेट ही नहीं बल्कि अन्य आतंकी संगठनों को इस क्षेत्र से समाप्त करने के लिये आवश्यक है कि इस क्षेत्र में स्थायित्त्व एवं शांति हो। साथ ही विश्व को मिलकर इस प्रकार की विचारधाराओं से लड़ना होगा। जैसा इस्लामिक स्टेट के मामले में देखा गया कि विश्व बहुत देर से इस आतंकी संगठन को रोकने के लिये तत्पर हुआ, इस कारण इसने व्यापक स्तर पर तबाही मचाई। विश्व समुदाय को भविष्य में इस प्रकार के खतरों के प्रति सचेत रहना होगा, ताकि कोई समस्या इस स्तर तक बढ़कर विश्व के समक्ष चुनौती उत्पन्न न कर सके।

प्रश्न: आतंकवाद ने भारत सहित संपूर्ण विश्व में आंतरिक सुरक्षा के समक्ष गंभीर संकट उत्पन्न किया है। इस्लामिक स्टेट के परिप्रेक्ष्य में चर्चा कीजिये।


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