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एडिटोरियल

  • 06 Aug, 2021
  • 12 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पर्माफ्रॉस्ट का पिघलाना: समस्या और समाधान

यह एडिटोरियल 05/08/2021 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित ‘‘Will the next killer disease originate in the Arctic?’’ लेख पर आधारित है। इसमें पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उत्पन्न चिंताओं और इस दिशा में आवश्यक उपायों की चर्चा की गई है।

संदर्भ

पृथ्वी एक गंभीर संकट का सामना कर रही है। वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। ग्रीष्म लहर, सूखा, समुद्र का अम्लीकरण और समुद्र का बढ़ता जलस्तर जैसी घटनाएँ नई चुनौतियों को जन्म दे रही हैं।

विश्व की लगभग 90% आबादी उत्तरी गोलार्द्ध में निवास करती है, जहाँ अधिकांश आबादी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में संकेंद्रित हैं। वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि इन क्षेत्रों को काफी अधिक प्रभावित कर सकती है।  

वैज्ञानिक उन अप्रत्याशित समस्याओं को लेकर भी चिंतित हैं जो पर्माफ्रॉस्ट और हिमनदों के पिघलने से उत्पन्न हो सकती हैं।  

पर्माफ्रॉस्ट

  • पर्माफ्रॉस्ट अथवा स्थायी तुषार भूमि वह क्षेत्र है जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों से शून्य डिग्री सेल्सियस (32 डिग्री F) से कम तापमान पर जमी हुई अवस्था में है।
  • ये स्थायी रूप से जमे हुए भूमि-क्षेत्र मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्रों और पृथ्वी के उच्च अक्षांशों (उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के निकट) में पाए जाते हैं।
  • पर्माफ्रॉस्ट पृथ्वी के एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में लगभग एक चौथाई भूमि में पर्माफ्रॉस्ट मौजूद हैं। यद्यपि ये भूमि-क्षेत्र जमे हुए होते हैं, लेकिन आवश्यक रूप से हमेशा ये बर्फ से ढके नहीं होते।

पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से संबंधित समस्याएँ

  • जलवायु परिवर्तन के खतरे को और गहरा करने में योगदान: आर्कटिक क्षेत्र में विश्व के अन्य क्षेत्रों की तुलना में तापमान दोगुनी तेज़ी से बढ़ रहा है। नतीजतन, वर्ष भर जमी रहने वाली पर्माफ्रॉस्ट पिघल रही हैं।   
    • पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से जलवायु संकट के प्रभाव और गहरे हो जाएंगे, क्योंकि इस प्रक्रिया में संगृहित कार्बन का उत्सर्जन होता है।  
    • इसी प्रकार समुद्री बर्फ और भूमि को ढकने वाली बर्फ की चादरों का पिघलना तापमान में वृद्धि की गति को तेज़ करेगा (क्योंकि बर्फ में जल की तुलना में अधिक एल्बिडो होता है)। 
  • उष्णकटिबंधीय चुनौतियाँ उच्च अक्षांशों में देखने को मिल सकती हैं:जो बीमारियाँ आम तौर पर भूमध्यरेखीय बेल्ट को प्रभावित करती हैं, उनका प्रसार अब उच्च अक्षांशों की ओर हो रहा है। मच्छर, किलनी (Ticks) और अन्य कीट इनमें से कई रोगों के प्रसार के वाहक हैं।  
    • वेस्ट नील वायरस (West Nile virus- WNV), जिसका पहला मामला वर्ष 1999 में सामने आया था, प्रत्येक वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका में सैकड़ों मौतों का कारण बनता है।  
    • बढ़ते तापमान के साथ आर्कटिक के कुछ हिस्सों सहित कनाडा में वेस्ट नील वायरस की उपस्थिति अधिकाधिक सामान्य होती जा रही है। 
  • ज़ूनोटिक या पशुजन्य रोगों की व्यापकता: बढ़ते तापमान के कारण बत्तख और कलहंस जैसे जंगली पक्षियों के पर्यावासों में भी बदलाव आ रहा है जो प्रायः एवियन फ्लू के वाहक होते हैं।  
    • रूस में पक्षियों से मनुष्यों में H5N8 एवियन फ्लू के संक्रमण का पहला मामला दर्ज होने के साथ इस खतरे की पुष्टि भी हो गई है।  
    • लोमड़ियों जैसे अन्य जंगली पशुओं के पर्यावासों में परिवर्तन से भी रेबीज़ रोग के भौगोलिक वितरण में वृद्धि हो सकती है।
  • विषाणुओं और जीवाणुओं में बढ़ोतरी: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने और बर्फ के पिघलने से विषाणुओं और जीवाणुओं के उभार को लेकर भी वैज्ञानिक समुदाय चिंतित है। वर्ष 2016 के ग्रीष्म में साइबेरिया के एक सुदूर हिस्से में एंथ्रेक्स के प्रकोप ने इस चिंता को बल दिया था।
    • इस प्रकोप से दर्जनों लोग संक्रमित हुए और एक युवक की मौत भी हो गई वहीं इस प्रकोप में लगभग 2,300 रेनडियर मारे गए थे।
    • प्रसार:
      • एंथ्रेक्स, जीवाणु के कारण होने वाला एक गंभीर संक्रामक रोग है जहाँ वे बीजाणु (Spores) के रूप में लंबे समय तक निष्क्रिय बने रह सकते हैं।  
      • जमी हुई मिट्टी और बर्फ में एंथ्रेक्स बीजाणु कुछ दशकों तक रोगसक्षम बने रहने की क्षमता रखते हैं।  
      • बर्फ के पिघलने से बाहर आए संक्रमित पशुओं (विलुप्त विशालकाय मैमथ सहित) के कंकाल विभिन्न रोगों के प्रकोप का कारण बन सकते हैं।
  • महामारी का खतरा: चिंता का एक अन्य विषय ऐसे विषाणुओं और जीवाणुओं का उभार भी है जो महामारी पैदा करने की क्षमता रखते हैं। रोग पैदा करने में सक्षम ये सूक्ष्मजीव सैकड़ों या हजारों वर्षों तक निष्क्रिय बने रह सकते हैं।  
    • वर्ष 1918 के स्पेनिश फ्लू पेंडेमिक का कारण बनने वाले H1N1 इन्फ्लूएंज़ा वायरस के साथ ही चेचक (Smallpox) उत्पन्न करने वाले विषाणुओं की आनुवंशिक सामग्री पर्माफ्रॉस्ट में पाई गई है।  
    • चेचक (जिसका उन्मूलन कर दिया गया था) जैसे वायरस का फिर से उभरना चिंताजनक होगा, जबकि इसके लिये अब नियमित टीकाकरण की गति धीमी पड़ गई है।
  • तिब्बत के पठार से प्राप्त वायरस के नमूने: ये स्थितियाँ केवल आर्कटिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हैं। हज़ारों वर्ष से बने रहे हिमनदों की बर्फ पिघल रही है।  
    • हाल ही में तिब्बत के पठार के हिमनदों में 15,000 वर्ष पुराने वायरस  पाए गए हैं।

आगे की राह

  • जलवायु परिवर्तन की गति पर रोक लगाना: जलवायु परिवर्तन की गति को कम करने और पर्माफ्रॉस्ट की रक्षा के लिये यह अनिवार्य है कि अगले दशक में वैश्विक CO2 उत्सर्जन को 45% तक कम किया जाए और वर्ष 2050 के बाद उन्हें शून्य के स्तर पर लाया जाए।  
    • जलवायु परिवर्तन के शमन के लिये वैश्विक सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है। कोई एक देश अपने उत्सर्जन में कटौती करता है तो इसका कोई लाभ नहीं होगा, यदि अन्य देश भी इसका पालन नहीं करते हैं।
  • क्षरण की गति पर नियंत्रण: वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ ने आर्कटिक के पिघलने से सर्वाधिक प्रभावित ’जैकबशवन ग्लेशियर’ (Jakobshavn glacier, Greenland) के सामने 100 मीटर लंबा बाँध बनाने का सुझाव दिया है ताकि इसके क्षरण को नियंत्रित किया जा सके। 
  • कृत्रिम हिमखंडों को संयुक्त करना: इंडोनेशिया के एक वास्तुकार को ‘Refreeze the Arctic’ नामक परियोजना के लिये पुरस्कृत किया गया है, जिसमें पिघलते हुए ग्लेशियरों के जल को इकट्ठा करने और इसके अलवणीकरण और पुनः जमाने के साथ बड़े हेक्सागोनल हिमखंडों के निर्माण जैसी कार्रवाइयाँ शामिल हैं।   
    • इन हिमखंडों के वृहत आकार के कारण इन्हें संयुक्त कर एक विशाल ग्लेशियर का निर्माण किया जा सकता है।
  • हिमखंडों की मोटाई में वृद्धि करना: कुछ शोधकर्त्ताओं ने अधिक बर्फ निर्माण के रूप में एक समाधान प्रस्तुत किया है। उनके प्रस्ताव में पवन ऊर्जा द्वारा संचालित पंपों के माध्यम से ग्लेशियर के निचले हिस्सों के बर्फ को जमा कर शीर्ष पर फैलाना है, ताकि ये जम जाएं और ग्लेशियर की स्थिरता को मज़बूती प्रदान करें।   
  • लोगों को जागरूक करना: टुंड्रा और उसके नीचे का पर्माफ्रॉस्ट हमारे लिये सुदूर क्षेत्र प्रतीत हो सकता है, लेकिन हम पृथ्वी पर कहीं भी रहते हों, हमारे दैनिक कार्य जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं।  
    • अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम कर, ऊर्जा-कुशल उत्पादों में निवेश कर और जलवायु-अनुकूल व्यवसायों, कानूनों और नीतियों का समर्थन कर हम विश्व के पर्माफ्रॉस्ट को संरक्षित करने और पृथ्वी को लगातार गर्म करते दुष्चक्र को टालने में मदद कर सकते हैं।   

निष्कर्ष

प्रत्येक देश को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को अपनी विदेश नीति के शीर्ष एजेंडे में शामिल करने की आवश्यकता है। हमें यह ज़रूरी क़दम उठाना ही होगा और जिस शीघ्रता से हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे, हमारी जलवायु कार्रवाइयों का उतना ही अधिक लाभ हम उठा सकेंगे।

अभ्यास प्रश्न: पर्माफ्रॉस्ट और हिमनदों के पिघलने से अप्रत्याशित समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। चर्चा कीजिये।


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