फार्मास्युटिकल सेवाओं में सुधार का समय
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में फार्मास्युटिकल सेवाओं में सुधार व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
स्वास्थ्य क्षेत्र, दुनिया के सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। यही कारण है कि दवा उद्योग को आर्थिक विकास की प्रक्रिया में एक प्रमुख उद्योग के रूप में देखा जाता है। भारतीय दवा उद्योग वैश्विक फार्मा सेक्टर में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है और हाल के वर्षों में इसमें उल्लेखनीय विकास भी हुआ है। लेकिन Covid-19 के बढते प्रभाव से भारतीय दवा उद्योग के प्रभावित होने की आशंका ज़ाहिर की जा रही है, ऐसे में यह सही समय है कि भारतीय फार्मा उद्योग को अपनी शोध एवं अनुसंधान प्रक्रिया में परिवर्तन करना चाहिये। भारतीय फार्मा उद्योग को हेल्थ इम्पैक्ट फंड (Health Impact Fund) के निर्माण की दिशा में विचार करना चाहिये।
भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। भारतीय फार्मास्युटिकल सेक्टर उद्योग विभिन्न टीकों की वैश्विक मांग का 50 प्रतिशत, अमेरिका में सामान्य मांग का 40 प्रतिशत और यूके में सभी दवा का 25 प्रतिशत आपूर्ति करता है। फार्मास्युटिकल सेक्टर में भारत की इन उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने हाल ही में 3000 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता के साथ बल्क ड्रग पार्क्स को बढ़ावा देने के लिये एक योजना को मंज़ूरी दी है।
इस आलेख में भारत में फार्मास्युटिकल उद्योग की स्थिति, समस्याएँ व चुनौतियाँ, हेल्थ इम्पैक्ट फंड की भूमिका और फार्मास्युटिकल उद्योग के विकास में विभिन्न सुझावों पर विमर्श किया जाएगा।
भारतीय फार्मा उद्योग की वर्त्तमान स्थिति
- भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। विभिन्न वैक्सीन की वैश्विक मांग में भारतीय दवा क्षेत्र की आपूर्ति 50 प्रतिशत से अधिक है।
- वर्ष 2017 में फार्मास्युटिकल क्षेत्र का मूल्य 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- वित्त वर्ष 2018 में भारत का दवा निर्यात 17.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 19.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
- जैव-फार्मास्युटिकल्स, जैव-सेवा, जैव-कृषि, जैव-उद्योग और जैव सूचना विज्ञान से युक्त भारत का जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग प्रति वर्ष लगभग 30 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर के साथ वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
भारतीय फार्मा उद्योग की समस्याएँ
- शोध एवं अनुसंधान की कमी
- भारतीय फार्मा उद्योग में अनुसंधान घटकों और वास्तविक समय में अच्छी विनिर्माण प्रथाओं का अभाव है।
- भारतीय फार्मा कंपनियों द्वारा अनुसंधान और विकास में निवेश वित्त वर्ष 2018 में 8.5 प्रतिशत हो गया है जो वित्त वर्ष 2012 में 5.3 प्रतिशत के सापेक्ष अधिक है, लेकिन यह अमेरिकी फार्मा कंपनियों की तुलना में अभी भी कम है क्योंकि अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में 15–20% तक निवेश करती हैं।
- अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अक्सर यह आरोप लगाती हैं कि भारतीय फार्मा कंपनियाँ दवा निर्माण में किसी भी प्रकार का शोध नहीं करती हैं और अमेरिकी फार्मा कंपनियों द्वारा निर्मित दवा का पेटेंट समाप्त होने के बाद उसकी ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API) का उपयोग कर जेनेरिक दवाओं का निर्माण कर रही हैं।
जेनेरिक व ब्रांडेड दवाओं में अंतर
- जेनेरिक दवाएँ
- वे दवाएँ, जिनके निर्माण या वितरण के लिये किसी पेटेंट की आवश्यकता नहीं होती, जेनेरिक दवाएँ कहलाती हैं।
- जेनेरिक दवाओं की रासायनिक संरचना ब्रांडेड दवाओं के समान होती है परंतु उनकी बिक्री रासायनिक नाम से ही की जाती है। जैसे- क्रोसिन या पैनाडॉल ब्रांडेड दवाएँ हैं जबकि इसकी जेनेरिक दवा का नाम पैरासीटामाॅल है।
- ब्रांडेड दवाएँ
- जब कोई कंपनी वर्षों के शोध और परीक्षण के बाद किसी दवा का निर्माण करती है तो वह उस दवा का पेटेंट (Patent) करा लेती है, आमतौर पर किसी दवा हेतु पेटेंट 20 वर्षों के लिये दिया जाता है।
- पेटेंट एक तरह का लाइसेंस होता है जो पेटेंट धारक कंपनी को ही संबंधित दवा के निर्माण और वितरण का अधिकार प्रदान करता है। पेटेंट की समयसीमा तक केवल पेटेंट धारक कंपनी ही उस दवा का निर्माण कर सकती है। इस प्रकार बनी दवाएँ ब्रांडेड दवाएँ होती हैं।
- नीतिगत समर्थन का अभाव
- भारत में सस्ती दरों पर जेनेरिक दवाओं के निर्माण तथा कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार करने हेतु देश के सभी राज्यों में छोटे पैमाने पर कच्चे माल की विनिर्माण इकाइयों / इनक्यूबेटरों की स्थापना के लिये अनुकूल सरकारी नीति का अभाव है।
- सरकार के पास उद्योग तथा फार्मासिस्ट समुदाय को उद्यमी बनाने और इनक्यूबेटर्स की स्थापना को बढ़ावा देने के लिये अवसंरचना का अभाव है।
- स्वदेशी रूप से उत्पादित कच्चे माल की अच्छी गुणवत्ता का भी अभाव है।
- छोटी इकाईयों से उत्पादित कच्चे माल की गुणवत्ता विनिर्देशों का पता लगाने के लिये इसे राज्य की परीक्षण प्रयोगशाला में ठीक से सत्यापित किया जाना चाहिये।
- कच्चे माल के गुणवत्ता विनिर्देशन के कार्य को गति देने के लिये हर राज्य में एक कार्यात्मक परीक्षण प्रयोगशाला की आवश्यकता है।
- कुशल श्रम का अभाव
- फार्मास्युटिकल कंपनियों में कुशल श्रमशक्ति की कमी है। फार्मास्युटिकल पाठ्क्रमों का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी कमी है, परिणामस्वरूप फार्मा सेक्टर में कार्य करने वाले लोग अन्य क्षेत्रों से होते हैं, जिन्हें इस क्षेत्र की बारीकियों का ज्ञान नहीं होता है।
- नैदानिक परीक्षणों में मानकों का अनुपालन न करना
- भ्रष्टाचार, परीक्षण की अल्प लागत, बेतरतीब अनुपालन और दवा कंपनियों व चिकित्सकों की मिलीभगत ने भारत में अनैतिक दवा परीक्षणों को अवसर दिया है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर संसदीय समिति ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization-CDSCO) को सौंपी रिपोर्ट में कहा कि ऐसे पर्याप्त साक्ष्य हैं कि दवा निर्माताओं, CDSCO के कुछ कर्मियों और कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच अनैतिक मिलीभगत है।
- समिति ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि CDSCO ने बेतरतीब ढंग से चयनित 42 दवा नमूनों में से 33 को भारतीय मरीज़ों पर किसी नैदानिक परीक्षण के बिना ही इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी।
हेल्थ इम्पैक्ट फंड की आवश्यकता क्यों?
- हेल्थ इम्पैक्ट फंड को 20,000 करोड़ रूपए की प्रारंभिक राशि के साथ प्रारंभ किया जा सकता है। इस फंड के ज़रिये कई दवाओं पर शोध के कार्य को गति प्रदान की जा सकती है।
- इस शोध व अनुसंधान के द्वारा निर्मित दवाओं के माध्यम से प्रतिवर्ष 17,000 करोड़ रूपए से 20,000 करोड़ रूपए की धनराशि जुटाई जा सकती है।
- इस फंड के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं में रुचि रखने वाली फार्मास्युटिकल कंपनियों को शोध कार्य हेतु मौद्रिक सहायता प्रदान की जा सकती है।
- शोध व अनुसंधान के द्वारा निर्मित की गई दवाएँ अन्य देशों के द्वारा निर्मित ब्रांडेड दवाओं से सस्ती होंगी, जिसका विशेष लाभ लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के ज़रिये प्राप्त होगा।
- इस प्रकार हेल्थ इम्पैक्ट फंड के द्वारा फार्मास्युटिकल इनोवेटर्स COVID-19 के प्रकोप को रोकने व उपयुक्त दवाओं की आपूर्ति करने या विकसित करने के लिये पूरी तरह से तैयार होंगे।
- हेल्थ इम्पैक्ट फंड दवाओं की बिक्री करने के बजाय बेहतर स्वास्थ्य परिणामों को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध होगा।
सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयास
- सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास एवं शोध व अनुसंधान को बढ़ाने के लिये वर्ष 2025 तक अपनी कुल जीडीपी का 2.5% इस क्षेत्र पर खर्च करने का लक्ष्य रखा है।
- भारतीय दवा उद्योग के विकास के लिये सरकार की नीति में अनुसंधान और विकास (Research & Development) पर काफी ज़ोर दिया गया है।
- ग्रीन फील्ड फार्मा परियोजना के लिये ऑटोमैटिक रूट के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) को मंज़ूरी दी गई है।
- साथ ही स्वस्थ्य क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों के बीच विचार-विमर्श के लिये समय-समय पर सरकार व निजी क्षेत्र के सहयोग से इंडिया फार्मा एंड इंडिया मेडिकल डिवाइस सम्मेलन जैसे प्रयासों को भी बढ़ावा दिया गया है।
- साथ ही ब्राउन फील्ड फार्मा परियोजना के लिये ऑटोमैटिक रूट के तहत 74% FDI की मंज़ूरी दी गई है, 74% से अधिक की FDI के लिये सरकारी अनुमोदन मार्ग के तहत अनुमति दी गई है।
फार्मा क्षेत्र के उन्नयन हेतु प्रमुख सुझाव
- अनुसंधान योजनाएँ
- उद्योगों द्वारा पहचान किये गए शोधकर्त्ता / संकाय के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से शोध कार्य प्रारंभ किया जाना चाहिये।
- उद्योगों के बेहतर संचालन के लिये शोध कार्य करने वाले छात्रों को प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाना चाहिये।
- आंतरिक औद्योगिक प्रशिक्षण
- फार्मा उद्योग को, प्रशिक्षुओं को उस क्षेत्र की आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षित करना चाहिये।
- उपयोगकर्त्ता के अनुकूल नीतियों को अपनाने से लघु उद्योग स्थापित करने में मदद मिलेगी और इस क्षेत्र में छात्रों और मध्यम वर्ग के व्यापार मालिकों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे फार्मासिस्टों के लिये बेरोज़गारी की समस्या को दूर करने और राष्ट्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
- विशेष फार्मा अनुसंधान केंद्रों की स्थापना
- भारतीय शैक्षणिक संस्थान छात्रों के रचनात्मक विचारों से भरे हैं। भारतीय फार्मा उद्योग भविष्य में प्रगति के लिये इन रचनात्मक विचारों को अपना सकता है।
- फार्मेसी छात्रों को डेटा व्याख्या और डेटा माइनिंग का अच्छा ज्ञान होने के साथ उपकरणों के संचालन में अत्यधिक जानकारी है। अतः इनका सहयोग उद्योगों में अनुसंधान के लिये किया अ सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- उद्योग क्षेत्र और सरकार को नए फार्मूलों, दवाओं और उपचारों का आविष्कार, अनुसंधान और विकास करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिये।
निष्कर्ष
देश के नागरिकों के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच के साथ ही विश्व के अन्य देशों में भी कम लागत में दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में भारतीय दवा निर्माताओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। निश्चित रूप से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में हेल्थ इम्पैक्ट फंड की निर्णायक भूमिका हो सकती है। हमें शोध व अनुसंधान के लिये बेहतर अवसंरचना का निर्माण करना होगा ताकि COVID-19 जैसे संचारी रोगों के प्रति सुरक्षात्मक रणनीतियों का निर्माण किया जा सके।
प्रश्न- भारतीय फार्मा उद्योग की समस्याओं का उल्लेख करते हुए बताएँ की इन समस्याओं के समाधान में हेल्थ इम्पैक्ट फंड की क्या भूमिका हो सकती है, साथ ही फार्मा उद्योग के विकास हेतु प्रमुख सुझावों का भी उल्लेख कीजिये।