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एडिटोरियल

  • 06 Mar, 2023
  • 13 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

प्लेटफॉर्म कर्मचारियों को सुरक्षित करने की कोशिश

यह एडिटोरियल 24/02/2023 को ‘हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “Protecting platform workers” लेख पर आधारित है। इसमें प्लेटफॉर्म वर्कर्स से संबद्ध मुद्दों और इनके समाधान के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

  • तकनीकी नवाचारों और डिजिटल प्लेटफॉर्म के कारण कार्य की दुनिया में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। गिग वर्कर्स का उदय भी इसी से संबद्ध एक परिघटना है। वर्ष 2029-30 तक गिग कार्यबल के 2.35 करोड़ कर्मचारियों तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • भारत की G-20 अध्यक्षता लाभ की सुवाह्यता (जो एक नियोक्ता के बजाय एक व्यक्ति से जुड़े होते हैं और बिना किसी रुकावट के एक नौकरी से दूसरी नौकरी तक ले जाए जा सकते हैं) पर अधिक अंतर्राष्ट्रीय समन्वय और सहयोग को बढ़ावा देने में सकारात्मक योगदान करेगी, इस प्रकार सीमा पार किये जाते प्लेटफॉर्म वर्क के लिये कर्मियों के हित की रक्षा करेगी।
  • इस प्रकार, भारत की G-20 अध्यक्षता द्वारा ‘गिग एवं प्लेटफॉर्म इकोनॉमी और सामाजिक सुरक्षा’ को प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में चिह्नित करने का निर्णय उपयुक्त है। निर्विवाद रूप से, प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था रोज़गार के नए अवसर भी सृजित करती है। हालाँकि, श्रम बाज़ारों पर इसके संभावित विघटनकारी प्रभाव (disruptive effects) भी पड़ सकते हैं।

नोट:

  • मोटे तौर पर, प्लेटफॉर्म इकॉनमी दो बिज़नेस मॉडलों- ‘क्राउडवर्क’ (Crowdwork) और ‘वर्क-ऑन-डिमांड वाया ऐप्स’ (Work-on-demand via apps) के माध्यम से संचालित होती है।
    • क्राउडवर्कर्स उन प्लेटफार्मों के माध्यम से ऑनलाइन कार्य करते हैं जो सीमाओं के पार बड़ी संख्या में ग्राहकों, संगठनों और व्यवसायों को जोड़ते हैं।
    • दूसरी ओर, ‘वर्क-ऑन डिमांड वाया ऐप्स’ का तात्पर्य स्थान-आधारित और भौगोलिक दृष्टि से सीमित कार्य से है, जिसे प्लेटफॉर्म द्वारा सुगम बनाया जाता है।

प्लेटफॉर्म वर्कर्स के समक्ष विद्यमान प्रमुख समस्याएँ

  • कर्मियों के रूप में वर्गीकरण:
    • प्लेटफॉर्म कर्मियों के समक्ष विद्यमान प्रमुख समस्याओं में से एक यह है कि उन्हें प्रायः कर्मचारियों के बजाय स्वतंत्र संविदाकारों (contractors) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप वे कुछ लाभों के हक़दार नहीं हो पाते, जैसे न्यूनतम वेतन, ओवरटाइम वेतन और श्रमिक मुआवजा।
  • अभिगम्यता संबंधी समस्याएँ:
    • भले ही गिग इकॉनमी उन सभी के लिये सुलभ है जो इस तरह के रोज़गार में संलग्न होने के इच्छुक हैं साथ ही, इसके ज़रिए रोज़गार के व्यापक विकल्प उपलब्ध हैं फिर भी इंटरनेट सेवाओं और डिजिटल तकनीक तक पहुँच एक प्रतिबंधक कारक हो सकती है।
    • इसने गिग इकॉनमी को काफी हद तक एक शहरी परिघटना बना दिया है।
  • व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिम:
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ रोज़गार में संलग्न कर्मी, विशेष रूप से ऐप-आधारित टैक्सी एवं डिलीवरी क्षेत्रों से संलग्न महिला कर्मी, विभिन्न व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करते हैं।
  • कम वेतन:
    • भारत में कई प्लेटफॉर्म कर्मी कम वेतन अर्जित करते हैं, प्रायः न्यूनतम वेतन से भी कम। यह आंशिक रूप से इस तथ्य के कारण है कि प्लेटफॉर्म कंपनियाँ मूल्य पर प्रतिस्पर्द्धा करती हैं और कम वेतन पर भी नौकरी करने को तैयार कर्मियों का एक बड़ा समूह मौजूद है।
  • सुदीर्घ कार्य-घंटे:
    • प्लेटफॉर्म कर्मियों को प्रायः अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिये पर्याप्त धन अर्जित करने के लिये लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है। इससे उनमें शारीरिक-मानसिक-भावनात्मक थकान की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • सामाजिक सुरक्षा का अभाव:
    • प्लेटफॉर्म कर्मी पेंशन या बीमा जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभों के हक़दार नहीं होते। यह उन्हें दुर्घटना या बीमारी के मामले में जोखिमपूर्ण स्थिति में डालता है।
  • सौदेबाजी शक्ति का अभाव:
    • प्लेटफॉर्म कर्मी आमतौर पर अकेले कार्य करते हैं और उनके पास सौदेबाजी की शक्ति नहीं होती है जो एक संघ या सामूहिक सौदेबाजी समझौते का अंग होने पर प्राप्त होती है। इसका अर्थ यह है कि वे बेहतर वेतन या कार्य स्थिति के लिये बातचीत कर सकने में सक्षम नही हो पाते।
  • भेदभाव:
    • कुछ प्लेटफॉर्म कंपनियों पर कर्मियों के कुछ समूहों, जैसे महिलाओं या निचली जातियों के कर्मियों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया गया है।
      • दलित गिग वर्कर, जो सबसे निचली जाति से ताल्लुक रखते हैं, सीमित कार्य अवसरों, कम वेतन और सामाजिक बहिष्करण के रूप में भेदभाव का सामना करते हैं।
      • कुछ ग्राहकों द्वारा मुस्लिम डिलीवरी बॉय से सेवा लेने मना करने या उनका अपना धर्म जानने के बाद अपने ऑर्डर रद्द कर देने जैसे मामले भी प्रकाश में आए हैं।
  • विनियमन का अभाव:
    • भारत में वर्तमान में प्लेटफॉर्म वर्क के लिये कोई नियामक ढाँचा मौजूद नहीं है। इसका अभिप्राय यह है कि प्लेटफॉर्म कंपनियाँ श्रम कानूनों या मानकों का अनुपालन किये बिना भी कार्य कर सकती हैं।

प्लेटफॉर्म वर्कर्स के अधिकारों की रक्षा कैसे की जा सकती है?

  • एक नई विधिक श्रेणी का निर्माण करना:
    • कर्मियों और स्वतंत्र संविदाकारों के बीच के ग्रे क्षेत्र में आने वाले लोगों के लिये ‘स्वतंत्र कर्मी’ (independent workers) नामक एक नई विधिक श्रेणी बनाई जा सकती है। इस पर उपयुक्त सतर्कता से विचार किया जा सकता है।
    • कुछ मामलों में, स्वतंत्र कर्मी स्वतंत्र व्यवसायों की तरह होते हैं क्योंकि उन्हें यह चुनने की स्वतंत्रता होती है कि वे कब और कहाँ कार्य करेंगे; साथ ही उनके पास कई मध्यस्थों के साथ कार्य करने का विकल्प भी होता है।
    • हालाँकि, कुछ मामलों में वे पारंपरिक कर्मियों के समान भी हैं, क्योंकि मध्यस्थ स्वतंत्र कर्मियों पर कुछ तरीकों से नियंत्रण भी रखता है, जैसे कि उनकी फीस या फीस कैप निर्धारित करने के रूप में।
  • सामाजिक सुरक्षा कवरेज़ का विस्तार:
    • गिग इकोनॉमी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा कवरेज़ देने के लिये किया जा सकता है।
    • गिग इकॉनमी पर अधिकांश लेन-देन इंटरनेट के माध्यम से किया जाता है और इस प्रकार इसे ट्रैक किया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये, इंडोनेशिया ने देश में आमतौर पर मोटरसाइकिल टैक्सी सवारी के लिये उपयोग किये जाने वाले डिजिटल प्लेटफॉर्म को सुरक्षित करने के लिये एक डिजिटल तंत्र पेश किया है ।
      • ऐप्लीकेशन का उपयोग करते समय चालक और यात्री दोनों के दुर्घटना बीमा (उस यात्रा के दौरान) के लिये टैरिफ की एक छोटी सी राशि स्वचालित रूप से काट ली जाती है।
  • सामूहिक सौदेबाजी:
    • प्लेटफॉर्म कर्मियों को बेहतर वेतन, लाभ और कार्य करने की स्थिति पर समझौता वार्ता करने के लिये प्लेटफॉर्म के मालिकों के साथ सामूहिक रूप से सौदेबाजी करने की अनुमति दी जानी चाहिये। सामूहिक सौदेबाजी प्लेटफॉर्म कर्मियों को समझौता वार्ताओं में अधिक लाभ उठाने में मदद कर सकती है और यह सुनिश्चित कर सकती है कि उनकी आवाज़ सुनी जाए।
  • लाभों तक पहुँच:
    • प्लेटफॉर्म कर्मियों को स्वास्थ्य बीमा, वैतनिक अस्वस्थता अवकाश और सेवानिवृत्ति योजनाओं जैसे लाभों तक पहुँच प्राप्त होनी चाहिये। सरकारी नियमों और निजी क्षेत्र की पहल के संयोजन के माध्यम से इसे साकार किया जा सकता है।
  • उचित वेतन:
    • प्लेटफार्म कर्मियों को उनके कार्य के लिये उपयुक्त वेतन दिया जाना चाहिये। प्लेटफॉर्म के लिये अपनी भुगतान संरचना का खुलासा करना आवश्यक बनाया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे पारदर्शी एवं निष्पक्ष हैं।
  • भेदभाव के विरुद्ध सुरक्षा:
    • प्लेटफॉर्म कर्मियों को लिंग, जाति, नस्ल, धर्म, यौन उन्मुखता या निःशक्तता के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध संरक्षित किया जाना चाहिये। प्लेटफॉर्म के पास भेदभाव को रोकने के लिये नीतियाँ होनी चाहिये और कर्मियों को भेदभाव की घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिये एक तंत्र प्रदान किया जाना चाहिये।
  • संगठित होने का अधिकार:
    • प्लेटफॉर्म कर्मियों के पास अपने हितों की रक्षा के लिये संगठित होने और संघ बनाने का अधिकार होना चाहिये। इससे उन्हें बेहतर वेतन, लाभ और काम स्थिति पर समझौता वार्ता करने में भी मदद मिल सकती है।
  • विनियमन और प्रवर्तन:
    • सरकारों को प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था को विनियमित करना चाहिये और प्लेटफॉर्म कर्मियों के अधिकारों की रक्षा के लिये श्रम कानूनों को लागू करना चाहिये। इसमें यह सुनिश्चित करने के लिये प्लेटफॉर्म की निगरानी करना भी शामिल हो सकता है कि वे श्रम कानूनों का पालन कर रहे हैं और उल्लंघन के लिये उन पर अर्थदंड लगाया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की उभरती हुई गिग इकॉनमी में गिग वर्कर्स के लिये कौन-से चुनौतियाँ एवं अवसर मौजूद हैं? उनके साथ उचित उपचार और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये किन नीतिगत परिवर्तनों की आवश्यकता है?

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (वर्ष 2021)


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