एडिटोरियल (06 Mar, 2019)



इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ता भारत और चुनौतियाँ

संदर्भ

देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने की अपनी नीति के तहत हाल ही में भारत सरकार ने फेम (FAME) II कार्यक्रम को मंज़ूरी दी है। भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता में लगातार हो रहे क्षरण के परिप्रेक्ष्य में यह बेहद महत्त्वपूर्ण पहल है। जहाँ केंद्र सरकार का लक्ष्य 2030 तक देश में सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह इलेक्ट्रिक चालित करने का है, वहीं इस अवधि में व्यक्तिगत परिवहन वाले 40 प्रतिशत वाहनों को भी इलेक्ट्रिक चालित करने का लक्ष्य है। गौरतलब है कि आज विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। वायु प्रदूषण की अनदेखी कर हम न केवल कई प्रकार के गंभीर रोगों को आमंत्रण दे रहे हैं, बल्कि देश का प्रशिक्षित श्रमबल (Skilled Workforce) भी विदेशों की ओर आकर्षित हो रहा है।

भारत में क्या रहा है अब तक रुझान?

कुछ समय पहले तक डीज़ल सस्ता होने की वज़ह से भारत में डीज़ल कारों के प्रति झुकाव अधिक देखने को मिलता था। इसका प्रमुख कारण था पेट्रोल की तुलना में डीज़ल की कीमत 20-25 रुपए प्रति लीटर कम होना, जबकि डीज़ल से चलने वाली कारों की कीमत पेट्रोल चालित कारों की तुलना में अधिक होती है। 2012-13 में एक समय ऐसा था जब देश में बिकने वाले सभी यात्री वाहनों में 47% डीज़ल चालित वाहन थे।

खरीदारों के इस रुख में बदलाव तब आया, जब अक्तूबर 2014 में डीज़ल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर बाज़ार के हवाले कर दिया गया। जैसे-जैसे डीज़ल और पेट्रोल की कीमतों के बीच अंतर कम होता गया, वैसे-वैसे परिस्थितियों में बदलाव आता चला गया। आज कुल बिकने वाले यात्री वाहनों में केवल 23% कारें डीज़ल चालित होती हैं।

लेकिन भारत सरकार ने BS-IV के बाद सीधे BS-VI उत्सर्जन मानकों को अपनाने का जो फैसला किया है, उससे डीज़ल कारों के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका है। इसकी वज़ह से देश में इलेक्ट्रिक कारों के बाज़ार को बूस्ट मिलने की संभावना है, इसके अलावा इस फैसले से सड़क मार्ग से सार्वजनिक परिवहन और माल की आवाजाही के परंपरागत तरीकों में भी बदलाव आ सकता है।

क्यों ज़रूरी हैं इलेक्ट्रिक वाहन

जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में तेज़ी से वृद्धि की संभावना ने जीवाश्म ईंधन के उपयोग और उससे होने वाले उत्सर्जन में कमी लाने के प्रयासों पर पहल करने को विवश कर दिया है। भारत ने अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में 33% से 35% कम करने की प्रतिबद्धता जताई है।

नवीकरणीय (अक्षय) ऊर्जा में उन्नयन और प्रगति: पिछले एक दशक में पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकियों में हुई प्रगति से इनकी लागत में भारी कमी आई है और स्वच्छ, कम कार्बन उत्सर्जन वाली ऊर्जा के इस्तेमाल की संभावना को बल मिला है। भारत ने 2020 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ने और 2020 तक ही गैर-जीवाश्म स्रोतों से कुल विद्युत उत्पादन का 40% हासिल करने का लक्ष्य रखा है।

तेज़ी से बढ़ रहा शहरीकरण: आर्थिक विकास की वज़ह से विशेष रूप से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है और इसकी वज़ह से ग्रामीण आबादी रोज़गार की तलाश में शहरों का रुख करती है। एक ओर जहाँ शहरीकरण आर्थिक विकास की प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, वहीं इसकी वज़ह से ऊर्जा और परिवहन अवसंरचना पर दबाव तो बढ़ता ही है, साथ ही भीड़भाड़ और प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार आज विश्व के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल से हालात बदले जा सकते हैं क्योंकि इनसे शहरों में होने वाले स्थानीय प्रदूषण पर लगाम कसी जा सकेगी।

बैटरी तकनीक में प्रगति: बैटरी प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति से उच्च ऊर्जा घनत्व प्राप्त किया जा सकता है तथा चार्जिंग में तेज़ी लाने के साथ चार्जिंग के दौरान होने वाली बैटरी की क्षमता में होने वाली कमी को भी नियंत्रित किया जा सकता है। अत्याधुनिक मोटरों के साथ इन बैटरियों के सम्मिश्रण से इलेक्ट्रिक वाहनों की कार्य प्रणाली सुधरी है तथा इनकी क्षमता बढ़ी है और लागत कम हुई है।

ऊर्जा सुरक्षा: आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine) पर आधारित प्रणाली को चलाने के लिये पेट्रोल, डीज़ल और CNG जैसे महँगे ईंधनों की आवश्यकता होती है, जिनकी आपूर्ति मौसम, भू-राजनीतिक घटनाओं और अन्य कारकों से प्रभावित हो सकती है। भारत अपनी आवश्यकता का 80% कच्चा तेल आयात करता है और शहरीकरण के कारण बढ़ती परिवहन आवश्यकताओं के मद्देनज़र इसमें इज़ाफा ही होना है, जो ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है।

प्रमुख चिंता

लेकिन देखने में यह आया है कि तमाम सरकारी प्रोत्साहनों और भारी-भरकम सब्सिडी के बावजूद इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति लोगों में अधिक उत्साह देखने को नहीं मिल रहा और न ही वे इन वाहनों को अपनाने के लिये उत्सुक दिखाई देते हैं। यदि हालात ऐसे ही बने रहे और लोगों के रुझान में बदलाव नहीं आया तो इससे न तो तेल की खपत कम होगी और न ही शहरी आबोहवा में कोई सुधार हो पाएगा। इसके अलावा, देशभर में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के लिये बुनियादी संरचना उपलब्ध कराना भी एक बड़ी चुनौती है।

आगे की राह

  • पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ऐसे शहरों, राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्यों की पहचान करनी होगी जहाँ सिटी बसों और कमर्शियल टैक्सियों को शत-प्रतिशत इलेक्ट्रिक मोड पर चलाया जा सके। इसके लिये तकनीकी व्यवहार्यता और आर्थिक व्यवहार्यता दोनों को दृष्टिगत रखना होगा।
  • पायलट प्रोजेक्ट्स की पहचान हो जाने के बाद सबसे बड़ी ज़रूरत होगी इन वाहनों के लिये चार्जिंग पॉइंट बनाने की, जहाँ तेज़ी से इन वाहनों को चार्ज करने की सुविधा होनी चाहिये। इसके बिना परिवहन व्यवस्था के छोटे से हिस्से को भी इलेक्ट्रिक मोड पर लाने की कल्पना करना बेमानी होगा।
  • इसके अलावा, इन वाहनों पर दी जाने वाली सब्सिडी नीति पर भी नज़र रखनी होगी। शहर में चलने वाली सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के वाहनों को इसमें वरीयता दी जानी चाहिये, साथ ही निजी दोपहिया वाहनों और कारों की अनदेखी भी नहीं होनी चाहिये।
  • लेकिन ये सभी उपाय तभी सफल हो पाएंगे जब इलेक्ट्रिक वाहनों को संपूर्ण रूप से मेक इन इंडिया की तर्ज़ पर देश में ही बनाने की व्यवस्था की जाए। अभी ऐसे वाहनों का एक बड़ा हिस्सा आयातित उपकरणों पर निर्भर है।

भारत सरकार की फेम (FAME) इंडिया योजना

अभी कुछ दिनों पहले सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण और उनके तेज़ी से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये फेम इंडिया योजना के दूसरे चरण को मंज़ूरी दी है। कुल 10 हज़ार करोड़ रुपए लागत वाली यह योजना 1 अप्रैल, 2019 से तीन वर्षों के लिये शुरू की जाएगी। यह योजना मौजूदा ‘फेम इंडिया वन’ का विस्तारित संस्करण है, जो 1 अप्रैल, 2015 को लागू की गई थी।

प्रमुख उद्देश्य

इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में इलेक्ट्रिक और हाईब्रिड वाहनों के तेज़ी से इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। इसके लिये लोगों को इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद में शुरुआती स्तर पर सब्सिडी देने तथा ऐसे वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत संरचना विकसित करना है। यह योजना पर्यावरण प्रदूषण और ईंधन सुरक्षा जैसी समस्याओं का समाधान करेगी।

फेम इंडिया की प्रमुख विशेषताएँ

  • बिजली से चलने वाली सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर ज़ोर।
  • इलेक्ट्रिक बसों के संचालन पर होने वाले खर्चों के लिये मांग आधारित प्रोत्साहन राशि मॉडल अपनाना, ऐसे खर्च के लिये धन राज्य और शहरी परिवहन निगमों द्वारा दिया जाना।
  • सार्वजनिक परिवहन सेवाओं और वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिये पंजीकृत 3 वॉट और 4 वॉट श्रेणी वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रोत्साहन राशि।
  • 2 वॉट श्रेणी वाले इलेक्ट्रिक वाहनों में मुख्य ध्यान निजी वाहनों पर केंद्रित करना।
  • इस योजना के तहत 2 वॉट वाले 10 लाख, 3 वॉट वाले 5 लाख, 4 वॉट वाले 55 हज़ार वाहन और 7000 बसों को वित्तीय प्रोत्साहन राशि देने की योजना है।
  • नवीन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन राशि का लाभ केवल उन्हीं वाहनों को दिया जाएगा, जिनमें अत्याधुनिक लिथियम आयोन या ऐसी ही अन्य नई तकनीक वाली बैट्रियाँ लगाई गई हों।
  • योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग के लिये पर्याप्त आधारभूत ढाँचा उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है इसके तहत महानगरों, 10 लाख से ज़्यादा की आबादी वाले शहरों, स्मार्ट शहरों, छोटे शहरों और पर्वतीय राज्यों के शहरों में तीन किलोमीटर के अंतराल में 2700 चार्जिंग स्टेशन बनाने का प्रस्ताव हैं।
  • बड़े शहरों को जोड़ने वाले प्रमुख राजमार्गों पर भी चार्जिंग स्टेशन बनाने की योजना है।
  • ऐसे राजमार्गों पर 25 किलोमीटर के अंतराल पर दोनों तरफ ऐसे चार्जिंग स्टेशन लगाने की योजना है।

दिल्ली-चंडीगढ़ के बीच चार्जिंग स्टेशन लगाने की तैयारी

इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) दिल्ली-चंडीगढ़ राजमार्ग पर इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये सौर ऊर्जा आधारित चार्जिंग स्टेशन का नेटवर्क लगाएगी। इसके तहत दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच 250 किलोमीटर लंबे राजमार्ग पर एक निश्चित अंतराल पर चार्जिंग स्टेशन लगाए जाएंगे। इससे विद्युत चालित वाहनों का इस्तेमाल करने वाले लोगों को राहत मिलेगी और दो शहरों के बीच यात्रा को लेकर उनमें विश्वास बढ़ेगा। आपको बता दें कि भारत वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता घटाने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दे रहा है। लेकिन इसके लिये ऐसे वाहनों की बैटरियों को चार्ज करने हेतु जरूरी अवसंरचना विकसित करना आवश्यक है।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्रमुख चुनौतियाँ

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या देश इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिये पूरी तरह से तैयार है? देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की राह में आने वाली कुछ बड़ी चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

  • बेसिक प्लेटफॉर्म और अवसंरचना: केवल इलेक्ट्रिक वाहन बनाने से काम नहीं चलने वाला। इसको इस्तेमाल करने के लिए बेसिक प्लेटफॉर्म/इन्फ्रास्ट्रक्चर की बेहद आवश्यकता है जो फिलहाल भारत में नहीं है। इस तरफ सरकार को विशेष ध्यान देना होगा।
  • चार्जिंग स्टेशनों की कमी: देश में एक तरफ जहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रिक वाहकों के लिये चार्जिंग स्टेशन लगभग न के बराबर हैं, जिस वज़ह से लोग इलेक्ट्रिक गाड़ियों को खरीदने से कतराते हैं। यह सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती है। पेट्रोल/डीज़ल और CNG की तरह ही इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग स्टेशन भी अधिक-से-अधिक संख्या में होने चाहिये।
  • ज़्यादा चलने वाली बैटरी: देश में ऐसी इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ बननी चाहिये जो कम बैटरी खर्च कर ज्यादा चलें। मेट्रो सिटी में ट्रैफिक अधिक होने की वज़ह से माइलेज कम मिलता है, इसलिये इलेक्ट्रिक गाड़ियों की माइलेज तो ज़्यादा होनी ही चाहिये, साथ ही इनमें बैटरी भी लंबे समय तक चलने वाली हो तो बेहतर होगा।
  • टॉप स्पीड में कमी: आजकल जितने भी इलेक्ट्रिक वाहन आ रहे हैं, चाहे दोपहिया हों या चार पहियों वाले, इन सभी की टॉप स्पीड काफी कम रहती है। पहले इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों की स्पीड 25 किलोमीटर अधिकतम होती थी, लेकिन अब कुछ मॉडल 50 किलोमीटर टॉप स्पीड वाले आने लगे हैं। लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है।
  • अधिक कीमत: पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाले वाहनों की कीमत इलेक्ट्रिक वाहनों के मुकाबले कम होती है। ऐसे में सरकार को ऑटो कंपनियों के साथ मिलकर सस्ते इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर ज़ोर देना होगा ताकि कम कीमत की वज़ह से लोग इन्हें अपनाने के लिये प्रोत्साहित हों।

स्रोत: 28 फरवरी को The Hindu BusinessLine में प्रकाशित आलेख Time to usher in the EV Revolution तथा अन्य जानकारी पर आधारित