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एडिटोरियल

  • 06 Jan, 2023
  • 11 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

नीली अर्थव्यवस्था से होने वाले लाभ को बढ़ाना

यह एडिटोरियल 02/01/2022 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Developing the blue economy requires collaborative effort” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘नीली अर्थव्यवस्था’ और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भूमि क्षेत्र के हिसाब से विश्व के सातवें सबसे बड़े देश होने के साथ ही भारत के पास एक विशाल और विविध समुद्री क्षेत्र भी है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के तट पर अवस्थित जीवंत बंदरगाह शहरों से लेकर अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के रमणीय समुद्र तटों तक, देश की नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) इसके आर्थिक विकास एवं वृद्धि में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

  • सरकार ने नीली अर्थव्यवस्था के विकास का समर्थन करने के लिये कई पहलों की शुरूआत की है की है। सरकार द्वारा शुरू की गई सागर माला परियोजना भारत की बंदरगाह अवसंरचना के आधुनिकीकरण और तटीय क्षेत्रों तक कनेक्टिविटी में सुधार पर लक्षित है तो नीली अर्थव्यवस्था कार्यक्रम (Blue Economy Program) तटवर्ती क्षेत्रों में सतत आर्थिक विकास पर केंद्रित है।
  • भारत में नीली अर्थव्यवस्था से संबद्ध कई चुनौतियाँ भी मौजूद हैं जिनमें जलवायु परिवर्तन, समुद्री प्रदूषण और समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन आदि शामिल हैं। इस परिदृश्य में, भारत के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकने और देश की दीर्घकालिक समृद्धि में योगदान करने के लिये नीली अर्थव्यवस्था की क्षमताओं की संवीक्षा करना प्रासंगिक है।

नीली अर्थव्यवस्था क्या है?

  • नीली अर्थव्यवस्था या ‘ब्लू इकोनॉमी’ अन्वेषण, आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और परिवहन के लिये समुद्री संसाधनों के सतत उपयोग के साथ ही समुद्री एवं तटीय पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य के संरक्षण को संदर्भित करती है।
    • भारत में, नीली अर्थव्यवस्था में नौवहन, पर्यटन, मत्स्य पालन और अपतटीय तेल एवं गैस अन्वेषण सहित कई क्षेत्र शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि विश्व व्यापार का 80% समुद्रों के माध्यम से सम्पन्न होता है, दुनिया की 40% आबादी तटीय क्षेत्रों के आसपास निवास करती है और 3 बिलियन से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिये महासागरों का उपयोग करते हैं।

नीली अर्थव्यवस्था का महत्त्व

  • परिवहन: भारत के नौ तटवर्ती राज्यों में 12 प्रमुख और 200 छोटे बंदरगाहों में विस्तृत 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा के साथ, भारत की नीली अर्थव्यवस्था परिवहन के माध्यम से देश के 95% व्यवसाय का समर्थन करती है और इसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में अनुमानित 4% का योगदान करती है।
  • शिपिंग उद्योग का विस्तार: भारत शिपिंग उद्योग में अपनी उपस्थिति के विस्तार की इच्छा रखता है और जहाज़ मरम्मत एवं इनके रखरखाव के एक ‘हब’ के रूप में अपनी क्षमता का विस्तार करना चाहता है। यह देश के लिये विभिन्न आर्थिक और भू-राजनीतिक लाभों के द्वार खोल सकता है।
  • अपतटीय ऊर्जा उत्पादन (Offshore Energy Production): भारत में अपतटीय पवन और सौर ऊर्जा विकसित करने के भी अवसर मौजूद हैं, जो देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद कर सकते हैं।
  • ‘एक्वाकल्चर’ और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी (Aquaculture and Marine Biotechnology): नीली अर्थव्यवस्था इन क्षेत्रों के विकास का समर्थन कर सकती है, जिनमें देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान करने तथा महासागर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार लाने की क्षमता है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल: यह संयुक्त राष्ट्र के सभी सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से SDG14 ‘जल निमग्न जीवन’ (life below water), का समर्थन करता है।

भारत की नीली अर्थव्यवस्था से सबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • अवसंरचना की कमी: भारत के कई तटीय क्षेत्रों में बंदरगाहों, हवाई अड्डों और अन्य अवसंरचनाओं की कमी है, जिससे इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों का विकास एवं विस्तार करना कठिन साबित हो सकता है।
  • ओवरफिशिंग (Overfishing): भारत के तटीय जल क्षेत्र में ‘ओवरफिशिंग’ एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इससे मछली के भंडार में कमी आ सकती है और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँच सकती है। इसका मत्स्यग्रहण उद्योग और नीली अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • समुद्री प्रदूषण: तेल रिसाव, प्लास्टिक अपशिष्ट और औद्योगिक गंदले प्रवाह जैसे स्रोतों से होने वाला प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को हानि पहुँचा सकते हैं और इनका नीली अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • जलवायु परिवर्तन: समुद्र का बढ़ता स्तर, नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean dipole) या ‘भारतीय नीनो’ और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभाव तटीय समुदायों के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं तथा नीली अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
  • मत्स्यग्रहण के लिये भारत-श्रीलंका संघर्ष: पाक खाड़ी (Palk Bay) क्षेत्र में भारतीय और श्रीलंकाई जल क्षेत्र के बीच की सीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है, जिसके कारण भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों के बीच भ्रम एवं संघर्ष की स्थिति बनती रही है।
    • इस मुद्दे के समाधान के लिये, भारत और श्रीलंका दोनों ने पाक खाड़ी क्षेत्र में मत्स्यग्रहण गतिविधियों को विनियमित करने एवं स्पष्ट सीमाएँ स्थापित करने के लिये समझौता वार्ताओं का प्रयास किया है। हालाँकि ये प्रयास इस मुद्दे को हल करने में पूर्णतः सफल नहीं रहे हैं।

नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा उठाये गए प्रमुख कदम

आगे की राह

  • सतत् संसाधन प्रबंधन: सतत संसाधन प्रबंधन अभ्यासों को लागू करना (जैसे ग्रहण मात्रा या कैच लिमिट निर्धारित करना), समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करना और ओवरफिशिंग एवं अन्य प्रकार के संसाधन अतिदोहन को रोकने के लिये विनियमन प्रवर्तित करना, समुद्री संसाधनों और उनपर निर्भर उद्योगों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता को सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
  • अवसंरचना में निवेश: तटीय क्षेत्रों में बंदरगाहों, हवाई अड्डों और अन्य सुविधाओं जैसी अवसंरचनाओं में निवेश करने से इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के विकास एवं विस्तार में मदद मिल सकती है।
  • अनुसंधान एवं विकास: नीली अर्थव्यवस्था में प्रौद्योगिकियों एवं अभ्यासों में सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने से दक्षता बढ़ाने और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सहायता मिल सकती है।
    • भारत को समुद्री ICTs और परिवहन (शिपिंग) एवं संचार सेवाओं के साथ ही समुद्री अनुसंधान एवं विकास के लिये एक ज्ञान केंद्र के निर्माण पर ध्यान देना चाहिये।
  • भागीदारी एवं सहयोग: ज्ञान एवं विशेषज्ञता के आदान-प्रदान और विभिन्न परियोजनाओं एवं पहलों पर सहयोग करने के लिये अन्य देशों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तथा अन्य हितधारकों के साथ कार्य करना, नीली अर्थव्यवस्था के विकास एवं वृद्धि का समर्थन करने में मदद कर सकता है।
    • इसके साथ ही, भारत को अपने महासागरों को केवल जल निकायों के रूप में नहीं देखना चाहिये, बल्कि निरंतर आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संवाद के एक वैश्विक मंच के रूप में देखना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत की नीली अर्थव्यवस्था के लिये विद्यमान चुनौतियों एवं अवसरों पर विचार करें और इस क्षेत्र के सतत विकास के लिये नवोन्मेषी रणनीतियों के सुझाव दें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मुख्य परीक्षा

Q1.  स्वतंत्रता के बाद भारत में कृषि के क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (वर्ष 2017)

Q2. नीली क्रांति को परिभाषित करते हुए, भारत में मत्स्य पालन विकास की समस्याओं और रणनीतियों की व्याख्या कीजिये।  (वर्ष 2018)


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