आंतरिक सुरक्षा
नगा समस्या
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नगा क्षेत्र में फैले उग्रवाद तथा इसको समाप्त करने के लिये किये जा रहे समझौते की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत सरकार एवं विभिन्न नगा नेशनल पोलिटिकल ग्रुप (NNPGs) के मध्य समझौते के लिये 31 अक्तूबर, 2019 की समयसीमा तय की गई थी। किंतु इसके बावजूद विभिन्न हितधारक किसी भी समझौते को अंजाम देने में सफल नहीं हो सके हैं। हालाँकि समझौते हेतु बातचीत जारी है तथा नगा समूहों में एक प्रमुख संगठन नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नगालिम (NSCN-IM) अभी भी समझौते में शामिल है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि समझौते को अंतिम रूप देने से पूर्व नगालैंड के पड़ोसी राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम तथा मणिपुर से भी अवश्य चर्चा की जाएगी, ताकि संबंधित राज्यों की चिंताओं को दूर किया जा सके।
इतिहास
नगा एक नृजातीय समूह है, जो विभिन्न जनजातियों में विभाजित है। ब्रिटिश काल एवं उससे पूर्व भी नगा अपनी पृथक पहचान एवं उसके संरक्षण के लिये प्रसिद्ध रहे हैं। वर्ष 1929 में साइमन कमीशन के समक्ष सर्वप्रथम नगाओं ने अपने भविष्य का निर्धारण स्वयं करने की मांग कर प्रतिरोध की शुरुआत का प्रारंभिक साक्ष्य दिया था। नगा इस क्षेत्र में भारत के पूर्वोत्तर तथा म्याँमार में फैले हुए हैं। वर्ष 1935 के भारत शासन अधिनियम से तत्कालीन बर्मा जिसे वर्तमान में म्याँमार कहा जाता है, को भारत से पृथक कर दिया गया। राजनीतिक सीमा के निर्धारण ने नगाओं को भारत एवं म्यांमार में विभाजित कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व ही अर्थात् 14 अगस्त, 1947 को विभिन्न नगा समूहों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इसमें प्रमुख भूमिका नगा नेशनल कौंसिल की मानी गई। इन समूहों ने भूमिगत सरकार तथा सेना का गठन किया। तत्कालीन भारत सरकार ने इसे भारतीय एकता-अखंडता के लिये अनुचित माना तथा उचित कार्रवाई की गई। वर्ष 1958 में पूर्वोत्तर के अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम (AFSPA) लागू किया गया। इस क्षेत्र में पिछले कई दशकों से हिंसा एवं शांति समझौते के लिये प्रयास साथ-साथ चलते रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी ठोस नतीजे पर पहुँचना संभव नहीं हो सका है।
नगा समूहों की मांगें
NNPGs पूर्वोत्तर में फैले हुए नगा क्षेत्रों को मिलाकर एक वृहत नगालैंड अर्थात् नगालिम की मांग करते रहे हैं, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर तथा म्याँमार के भी कुछ क्षेत्र शामिल हैं। इसके लिये वे ऐतिहासिक कारकों एवं पृथक संस्कृति का हवाला देते हैं। इसके तहत उनकी मांग है कि नगालिम को विशेष दर्जा दिया जाए। साथ ही नगा समूह नगालिम के प्रशासन के लिये येह्ज़ाबो अर्थात् एक पृथक संविधान तथा अपने क्षेत्र के प्रतिनिधित्त्व के लिये एक पृथक झंडे की मांग करते रहे हैं।
पहचान का संकट
पहचान के संकट को एक ऐसी अवधारणा के रूप में व्याख्यायित किया जाता है जिसमें कोई व्यक्ति अथवा समूह दीर्घ अवधि में अपनी संस्कृति, सभ्यता की पहचान को लेकर असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होता है। भारत एवं विश्व में ऐसे समुदाय एवं समाज जो आधुनिक विचारों को नहीं अपना सके हैं तथा अभी भी अपनी पुरातन मान्यताओं के आधार पर जीवन व्यतीत कर रहे हैं, में प्रायः आने वाले बदलावों के परिणामस्वरूप पहचान के संकट की की भावना उत्पन्न हो रही है। भारत में यह समस्या प्रमुख रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में देखी जा सकती है। पूर्वोत्तर में विभिन्न नृजातीय तत्त्व विद्यमान हैं, इन नृजातीय समूहों में सांस्कृतिक स्तर पर भिन्नताएँ हैं। विभिन्न नृजातीय समूह आधुनिक भौतिक कारकों के चलते न चाहते हुए भी करीब आए हैं, इससे इनकी पहचान का संकट उत्पन्न हुआ है। इसी के परिणामस्वरूप विभिन्न नृजातीय समूह जिसमें नगा भी शामिल हैं, स्वयं की पृथक पहचान स्थापित करने के लिये निरंतर सरकार से संघर्ष कर रहे हैं।
नगा उग्रवाद एवं NSCN
वर्ष 1975 में नगा नेशनल कौंसिल ने सरकार के साथ शिलॉन्ग समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते के अंतर्गत NNC ने भारतीय संविधान को स्वीकार कर लिया। किंतु NNC के निर्णय से क्षुब्ध होकर इसाक, मुइवा तथा खपलांग ने मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नगालैंड (NSCN) की स्थापना की। इसाक, मुइवा और खपलांग के मध्य मतभेदों के चलते NSCN दो गुटों इसाक, मुइवा गुट (NSCN-IM) तथा खपलांग गुट (NSCN-K) में विभाजित हो गया। NNC के प्रमुख फीसो की मृत्यु के पश्चात् वर्ष 1991 में NSCN-IM ने स्वयं को नगाओं का प्रमुख संगठन के रूप में स्थापित किया। वर्ष 1997 में NSCN-IM ने संघर्ष विराम की घोषणा करके केंद्र सरकार के साथ बातचीत की प्रक्रिया आरंभ की। वर्ष 2015 में समझौते की रूपरेखा निश्चित की गई। वर्तमान में इसी समझौते पर बातचीत जारी है जिस पर अब तक अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है।
समझौते से संबंधित मुद्दे
NNPGs एक पृथक नगालिम की मांग कर रहे हैं। यदि एक नगालिम का निर्माण किया जाता है तो नगालैंड के पड़ोसी राज्य मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश तथा असम की सीमाओं में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी। इस प्रकार एक समस्या को दूर करने के लिये अन्य राज्यों में इसी प्रकार की समस्याओं का जन्म हो सकता है। इतना ही नहीं नगाओं की मांग पृथक संविधान एवं पृथक झंडे की भी है। ध्यान देने योग्य है कि जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्रता पश्चात् इसी प्रकार की सहूलियतें दी गई थीं किंतु इसका संबंधित क्षेत्र में कोई लाभ सामने नहीं आ सका और न ही उग्रवाद कम हुआ। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया। यदि केंद्र नगाओं के लिये इस प्रकार की व्यवस्था करती है तो यह केंद्र सरकार की नीति पर प्रश्नचिह्न लगाएगा। अलग झंडे की मांग भी इसी प्रकार की समस्या को जन्म देगी, ध्यातव्य है कि कुछ समय पूर्व कर्नाटक सरकार ने राज्य झंडे की मांग की थी लेकिन केंद्र ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया था। झंडा किसी देश की पहचान का द्योतक होता है, इसी आधार पर एक देश एक ध्वज का विचार मान्य है।
संभावित समाधान
वर्तमान में समझौता बातचीत के दौर में है, किंतु सरकार के बयानों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार NNPGs की मांगों को पूर्ण रूप से स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है। समझौते के लिये एक बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया जा रहा है। नगालिम के स्थान पर नगालैंड को दी जाने वाली विभिन्न सहूलियतों को अन्य संबंधित राज्यों में निवास कर रहे नगाओं तक भी विस्तृत किया जाएगा, साथ ही सांस्कृतिक मंचों और कार्यक्रमों पर नगाओं को स्वयं का झंडा उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी किंतु यह छूट राजनीतिक मामलों में नहीं होगी। पृथक संविधान के स्थान पर नगाओं को स्वायत्तता दी जाएगी तथा उनके हितों की विशेष रक्षा की जाएगी। साथ ही अन्य मांगें जिनके प्रभाव व्यापक नहीं हैं, उनको स्वीकार करने पर सरकार विचार कर सकती है।
नगा आमजन की स्थिति
नगा क्षेत्र स्वतंत्रता के बाद से ही नगा उग्रवाद तथा उग्रवाद रोकने के लिये सरकार की ओर से की गई जवाबी कार्रवाई के बीच जूझता रहा है। इससे न सिर्फ इस क्षेत्र का विकास बाधित हुआ है बल्कि इस क्षेत्र के लोग हिंसा से प्रभावित भी हुए हैं। यदि नगा मांग को कुछ संगठनों की स्वार्थ पूर्ति का उपकरण कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कई दशकों से नगा क्षेत्र में विभिन्न उग्रवादी संगठन समानांतर कर प्रणाली को लागू किये हुए हैं। इस स्थिति ने जबरन वसूली की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित किया है, परिणामतः क्षेत्रीय उद्यमों, संपन्न लोगों के आर्थिक शोषण में वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में नगा आमजन क्षेत्र में शांति की आशा में है तथा हिंसक संघर्ष को छोड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं। नगा युवा इस बात से सहमत हैं कि भारत एवं विश्व तीव्र गति से विकास कर रहा है तथा नगाओं को इस विकास की दौड़ में शामिल होना है तो शिक्षा पर बल देना होगा, इसके लिये शांति की सर्वाधिक आवश्यकता है, इसलिये यह शांति चाहे नगा समझौते से आए या इसके बिना किंतु इसका परिणाम इस क्षेत्र का विकास तथा आधुनिकता के रूप में सामने आना चाहिये।
निष्कर्ष
ब्रिटिश सरकार भारत को 652 रियासतों में विभाजित छोड़कर गए थी। इन रियासतों को मिलाकर भारत ने इन्हें एक सूत्र में पिरोया तथा वर्तमान भारत का निर्माण किया। किंतु कुछ क्षेत्रों में समस्याएँ स्वतंत्रता के पूर्व से ही बनी हुईं थीं, इन समस्याओं का निराकरण आज़ादी के बाद भी नहीं किया जा सका। नगा समस्या भी एक ऐसी ही समस्या है किंतु वर्तमान में इस समस्या का समाधान ढूँढना महत्त्वपूर्ण हो गया है। अब भारत सरकार तथा नगा एक मंच पर बातचीत के लिये साथ आए हैं तथा ऐसी संभावनाएँ व्यक्त की जा रही हैं कि एक शताब्दी से भी अधिक समय से व्याप्त संघर्ष समाप्त हो सकता है तथा यह क्षेत्र भी विकास के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है। किंतु इसके लिये आवश्यक है कि सरकार इस बातचीत में सक्रियता दिखाए तथा ऐसे प्रावधानों को समझौते में शामिल न करे, जिनकी व्याख्या वस्तुनिष्ठ रूप से न की जा सकती हो। अतीत में किये गए समझौतों में यह समस्या रही है कि इनके प्रावधानों की व्याख्या सरकार एवं अन्य हित समूहों द्वारा अपने हित के अनुसार की जाती रही, इससे अतीत के समझौते असफल हो गए।
प्रश्न: नगा समस्या के संदर्भ में पहचान के संकट की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये। साथ ही नगा समझौते को सफल बनाने हेतु आवश्यक सुझाव दीजिये।