गांधी और उनके विचार
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में महात्मा गांधी और उनके विचारों का उल्लेख किया गया है। साथ ही वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता पर भी चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
जो बदलाव तुम दुनिया में देखना चाहते हो,
वह खुद में लेकर आओ
-महात्मा गांधी
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।” गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने समस्त जीवन में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और साथ ही दुनिया भर में हाशिये के समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। साथ ही महात्मा गांधी ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया।
महात्मा गांधी - परिचय
गांधी जी का जन्म पोरबंदर की रियासत में 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी, पोरबंदर रियासत के दीवान थे और उनकी माँ का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। मात्र 13 वर्ष की उम्र में गांधी जी का विवाह कस्तूरबा कपाड़िया से कर दिया गया। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से प्राप्त की और बाद में वे वकालत की पढ़ाई करने के लिये लंदन चले गए। उल्लेखनीय है कि लंदन में ही उनके एक दोस्त ने उन्हें भगवद् गीता से परिचित कराया और इसका प्रभाव गांधी जी की अन्य गतिविधियों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। वकालत की पढ़ाई के बाद जब गांधी भारत वापस लौटे तो उन्हें वकील के रूप में नौकरी प्राप्त करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वर्ष 1893 में दादा अब्दुल्ला (एक व्यापारी जिनका दक्षिण अफ्रीका में शिपिंग का व्यापार था) ने गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में मुकदमा लड़ने के लिये आमंत्रित किया, जिसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया और गांधी जी दक्षिण अफ्रीका के लिये रवाना हो गए। विदित है कि गांधी जी के इस निर्णय ने उनके राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी
दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अश्वेतों और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव को महसूस किया। उन्हें कई अवसरों पर अपमान का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्होंने नस्लीय भेदभाव से लड़ने का निर्णय लिया। उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने तथा फुटपाथ पर चलने तक का अधिकार नहीं था, गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया और अंततः वर्ष 1894 में 'नटाल इंडियन कांग्रेस' नामक एक संगठन स्थापित करने में सफल रहे। दक्षिण अफ्रीका में 21 वर्षों तक रहने के बाद वे वर्ष 1915 में वापस भारत लौट आए।
भारत में गांधी जी का आगमन
दक्षिण अफ्रीका में लंबे समय तक रहने और अंग्रेज़ों की नस्लवादी नीति के खिलाफ सक्रियता के कारण गांधी जी ने एक राष्ट्रवादी, सिद्धांतवादी और आयोजक के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया। वर्ष 1915 में गांधी भारत आए और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति तैयार करने हेतु देश के गाँव-गाँव का दौरा किया।
गांधी और सत्याग्रह
गांधी जी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को ‘सत्याग्रह’ का नाम दिया। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गांधी जी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएँ होती हैं। चंपारण और बारदोली सत्याग्रह गांधी जी द्वारा केवल लोगों के लिये भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गए थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गए थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।
वर्तमान में कितना प्रसांगिक है सत्याग्रह?
महात्मा गांधी के सत्याग्रह को युद्ध के नैतिक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने आम जन को यह सिखाया कि सत्याग्रह का प्रयोग समस्या तथा संघर्ष के समाधान हेतु किस प्रकार किया जाता है। गांधी का सत्याग्रह राजनीतिक मुद्दों के निवारण हेतु एक प्रभावी साधन साबित हुआ है। युद्ध और शांति, आतंकवाद, मानवाधिकार, सतत विकास, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक-राजनीतिक अशांति और राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार से संबंधित समकालीन चुनौतियों में से कई को गांधीवादी तरीके से हल किया जा सकता है। अतः 21वीं सदी के लोगों के पास अभी भी गांधीवाद से सीखने के लिये बहुत कुछ सीखना बाकी है।
शिक्षा पर गांधीवादी दृष्टिकोण
गांधी जी एक महान शिक्षाविद थे, उनका मानना था कि किसी देश की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक प्रगति अंततः शिक्षा पर निर्भर करती है। उनकी राय में शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य आत्म-मूल्यांकन है। उनके अनुसार, छात्रों के लिये चरित्र निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है और यह उचित शिक्षा के अभाव में संभव नहीं है।
गांधी जी की शिक्षा अवधारणा
गांधी जी की शिक्षा अवधारणा को बुनियादी शिक्षा (Basic Education) के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में नैतिक और धार्मिक शिक्षा को शामिल करने पर बल दिया। गांधी जी ने शिक्षा की अवधारणा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए:
- अच्छे चरित्र का निर्माण करना
- आदर्श नागरिक बनाना
- स्वावलंबी बनाना
- सर्वांगीण विकास करना
गांधी जी का धर्म
विदित है कि गांधी जी का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था और चूँकि उनके पिता दीवान थे, इसलिये उन्हें अन्य धर्मों के लोगों से मिलने का भी काफी अवसर मिला, उनके कई इसाई और मुस्लिम दोस्त थे। साथ ही गांधी जी अपनी युवा अवस्था में जैन धर्म से भी काफी प्रभावित थे। कई विश्लेषकों का मानना है कि गांधी जी ने ‘सत्याग्रह’ की अवधारणा हेतु जैन धर्म के प्रचलित सिद्धांत ‘अहिंसा’ से प्रेरणा ली थी।
गांधी जी ने ‘भगवान’ को ‘सत्य’ के रूप में उल्लेखित किया था। उनका कहना था कि “मैं लकीर का फकीर नहीं हूँ।” वे संसार के सभी धर्मों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर कसकर देखते थे, जो भी उसमें खरा नहीं उतरता वे उसे अस्वीकार कर देते और जो उसमें खरा उतरता वे उसे स्वीकार कर लेते थे। गांधी जी के अनुसार, हमने धर्म को केवल खानपान का विषय बनाकर उसकी प्रतिष्ठा कम कर दी है। वे चाहते थे कि सभी धर्म के लोग अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्म के ग्रंथों और उनके अनुयायियों का भी आदर करें।
वर्तमान समय में गांधी और उनके विचारों की प्रासंगिकता
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उनकी अहिंसा की अवधारणा न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सहायक हुई बल्कि इसके माध्यम से विश्व को शोषण और अत्याचार से निपटने के लिये एक और हथियार मिला। हालाँकि आज ऐसा समय आ गया है जब अधिकतर लोग गांधी और उनके विचारों की आवश्यकता को ही नकार रहे हैं और वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाया जा रहा है। आज गांधी जी को सिर्फ 2 अक्तूबर के ही दिन याद किया जाता है। आज गांधी के विचारों को ताक पर रखकर हिंसा के सहारे तमाम तरह के हितों को साधने का प्रयास किया जा रहा है।
जानकर मानते हैं कि गांधी के विचार ऐसे समय में सबसे अधिक प्रासंगिक हैं जब लोग लालच, व्यापक हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन-शैली के समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हों। गांधी जी की अहिंसा और सत्याग्रह की अवधारणा की आज सबसे अधिक आवश्यकता है, क्योंकि यही वह समय है जब मात्र प्रतिशोध के नाम पर किसी की भी हत्या कर दी जाती है और अपने आलोचकों को दुश्मन से अधिक कुछ नहीं समझा जाता। संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला और अब म्याँमार में आंग सान सू की जैसे लोगों के नेतृत्व में दुनिया भर में कई उत्पीड़ित समाजों द्वारा लोगों को जुटाने की गांधीवादी तकनीक को सफलतापूर्वक नियोजित किया गया है, जो कि इस बात की गवाही देता है कि गांधी और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
निष्कर्ष
यदि 21वीं सदी को परिभाषित करने में वैश्वीकरण, मुक्त बाजारों, निजीकरण और उदारीकरण जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाना आवश्यक है तो यह भी अनिवार्य है कि हिंसा, उग्रवाद, असमानता, गरीबी और विषमता जैसे शब्दों को अनदेखा न किया जाए। हिंसा, उग्रवाद, असमानता, गरीबी और विषमता आदि की उपस्थिति में भी यदि कोई गांधी और उनके विचारों की प्रासंगिकता का प्रश्न करता है तो शायद गांधी के विचारों को लेकर उस व्यक्ति की समझ में कोई अस्पष्टता है। लोकतंत्र में आलोचना करना सभी का अधिकार होता है, परंतु आलोचना करने से पूर्व यह भी आवश्यक है कि हम उस व्यक्ति के बारे में अच्छे से पढ़ें और तर्क के आधार पर उसकी आलोचना करें।
प्रश्न: शिक्षा पर गांधीवादी दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता पर विचार कीजिये।