आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19
संदर्भ
केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपना पहला बजट पेश करने से पहले 4 जुलाई को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 पेश किया। आर्थिक समीक्षा को देश की अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का आईना तथा उसके समक्ष आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करने का टूल (Tool) माना जाता है। यह मुख्य आर्थिक सलाहकार के. सुब्रमण्यम द्वारा तैयार किया गया पहला आर्थिक सर्वेक्षण है।
क्या होता है आर्थिक सर्वेक्षण?
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया जाता है कि वर्ष के दौरान विकास की प्रवृत्ति क्या रही? किन-किन योजनाओं को अमल में लाया गया? इनके क्या-क्या संभावित परिणाम सामने आने वाले हैं? इस तरह के सभी पहलुओं पर सूचना दिये जाने के साथ अर्थव्यवस्था, पूर्वानुमान और नीतिगत स्तर पर चुनौतियों संबंधी विस्तृत सूचनाओं को भी इसमें स्थान दिया जाता है। इसमें अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार हालातों की रूपरेखा और सुधार के उपायों के बारे में बताया जाता है। मुख्यतः यह सर्वेक्षण भविष्य में बनाई जाने वाली नीतियों के लिये एक दृष्टिकोण का काम करता है। विस्तृत आर्थिक स्थिति में इस बात पर भी जोर दिया जाएगा कि किन क्षेत्रों पर सरकार को ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इस सर्वेक्षण में केवल सिफारिशें होती हैं और इन्हें लेकर कोई वैधानिक बाध्यता नहीं होती और इस कारण से सरकार इन्हें केवल निर्देशात्मक रूप से लेती है।
क्या खास है इस आर्थिक सर्वेक्षण में? (प्रमुख बिंदु)
वर्ष 2018-19 में भारत तेज़ी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था है।
2018-19 में अर्थव्यवस्था की स्थिति
- GDP वृद्धि दर वर्ष 2017-18 में 7.2 प्रतिशत की जगह वर्ष 2018-19 में 6.8 प्रतिशत रही।
- वर्ष 2018-19 में मुद्रास्फीति की दर 3.4 प्रतिशत तक सीमित रही।
- सकल अग्रिम के प्रतिशत के रूप में NPA दिसंबर, 2018 के अंत में घटकर 10.1 प्रतिशत रह गया, जो कि मार्च 2018 में 11.5 प्रतिशत था।
- स्थिर निवेश में वृद्धि दर वर्ष 2016-17 में 8.3 प्रतिशत से बढ़कर 2017-18 में 9.3 प्रतिशत और उससे अगले साल 2018-19 में 10 प्रतिशत हो गई।
- चालू खाता घाटा GDP के 2.1 प्रतिशत पर समायोजित करने योग्य है।
- केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 2017-18 में GDP के 3.5 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में 3.4 प्रतिशत रह गया।
- निजी निवेश में वृद्धि और खपत में तेज़ी के चलते 2019-20 में वृद्धि दर में बढ़ोतरी होने की संभावना है।
- GDP वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, पिछले वित्त वर्ष में GDP की वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत पर थी।
- देश को वर्ष 2024-25 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये GDP वृद्धि दर को निरंतर 8 प्रतिशत बनाए रखने की ज़रूरत।
- मांग, नौकरियों, निर्यात की विभिन्न आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये इन्हें अलग समस्याओं के रूप में नहीं, बल्कि एक साथ जोड़कर देखा जाना चाहिये।
- वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा 5.8 प्रतिशत रहने का अनुमान, 2018 में यह 6.4 प्रतिशत था। इसका संशोधित बजट अनुमान 3.4 प्रतिशत का था। (देश की आय की तुलना में ज़्यादा खर्च के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।)
- GDP के प्रतिशत के अनुसार, वर्ष 2017-18 के मुकाबले वित्त वर्ष 2018-19 के अनंतिम अनुमान में केंद्र सरकार के कुल परिव्यय में 0.3 प्रतिशत की कमी आई है।
- राजस्व व्यय में 0.4 प्रतिशत की कमी आई और पूंजीगत व्यय में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- संशोधित राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के तहत वित्त वर्ष 2020-21 तक GDP के 3 प्रतिशत तक राजकोषीय घाटे की परिकल्पना की गई है।
- आने वाले दिनों में तेल की कीमतों में गिरावट का अनुमान तथा चालू वित्त वर्ष के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आएगी।
- प्रत्यक्ष कर संग्रह में 13.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि कॉर्पोरेट टैक्स संग्रह भी बेहतर हुआ है।
- अप्रत्यक्ष कर संग्रह में बजट अनुमान (16 प्रतिशत) की तुलना में कमी आई है। इसकी प्रमुख वज़ह GST राजस्व में कमी आना है।
मुद्रा प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता
- NPA अनुपात में कमी आने से बैंकिंग प्रणाली बेहतर हुई।
- दिवाला और दिवालियापन संहिता से बड़ी मात्रा में फँसे कर्जों का समाधान हुआ और व्यापार संस्कृति बेहतर हुई।
- मार्च 2019 तक CIRP के तहत 1,73,359 करोड़ रुपए के दावे वाले 94 मामलों का समाधान हुआ।
- फरवरी 2019 तक 2.84 लाख करोड़ रुपए के 6079 मामले वापस ले लिये गए।
- RBI की रिपोर्ट की अनुसार फँसे कर्ज़ वाले खातों से बैंकों ने 50 हज़ार करोड़ रुपए प्राप्त किये। अतिरिक्त 50 हज़ार करोड़ रुपयों को गैर-मानक से मानक परिसंपत्तियों में अपग्रेड किया गया।
- सितंबर 2018 से तरलता स्थिति कमज़ोर रही और सरकारी बॉण्डों पर इसका असर दिखा।
- NBFC क्षेत्र में दबाव और पूंजी बाजार से प्राप्त किये जाने वाले इक्विटी वित्त उपलब्धता में कमी के कारण वित्तीय प्रवाह संकुचित रहा।
- वर्ष 2018-19 के दौरान सार्वजनिक इक्विटी जारी करने से पूंजी निर्माण में 81 प्रतिशत की कमी आई।
- NBFC के ऋण विकास दर में मार्च, 2018 के 30 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2019 में 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
आर्थिक समीक्षा में भविष्य में गंभीर जल संकट की ओर संकेत किया गया है।
जल संकट पर चर्चा
- वर्ष 2050 तक भारत में पानी की किल्लत एक बड़ी समस्या होगी।
- 89 प्रतिशत भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई कार्य के लिये किया जाता है।
- सिंचाई के लिये पानी पर तुरंत विचार करने की ज़रूरत है ताकि कृषि उत्पादकता बढ़ सके।
- सिंचाई के लिये पानी के उपयोग में सुधार को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- देश में धान और गन्ने की फसल को सबसे ज़्यादा पानी की ज़रूरत होती है और ये फसलें उपलब्ध जल का 60 प्रतिशत से अधिक ले लेती हैं जिससे अन्य फसलों के लिये कम पानी उपलब्ध रहता है।
- कृषि भूमि के बँटवारे और जल संसाधनों के कम होने से संकट बढ़ा है।
सर्वे में न्यूनतम मज़दूरी की रूपरेखा भी तय करने की बात कही गई है।
न्यूनतम वेतन प्रणाली का पुनर्निर्धारण
- बेहतर और प्रभावी न्यूनतम मज़दूरी तय करने की प्रक्रिया को मजबूत किया जाएगा। इससे निचले स्तर पर न्यूनतम मज़दूरी को बेहतर किया जा सकेगा।
- देश की मौजूदा न्यूनतम वेतन प्रणाली में सभी राज्यों में विभिन्न अनुसूचित रोज़गार श्रेणियों के लिये 1915 प्रकार के न्यूनतम वेतन हैं।
- देश में प्रत्येक तीन में से एक दिहाड़ी मजदूर न्यूनतम वेतन कानून के तहत सुरक्षित नहीं है। न्यूनतम वेतन को तर्कसंगत बनाया जाए, जैसा कि वेतन संबंधी संहिता विधेयक के अंतर्गत प्रस्तावित किया गया है।
- सरकार द्वारा पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में पृथक ‘नेशनल फ्लोर मिनिमम वेज’ अधिसूचित किया जाना चाहिये।
- न्यूनतम वेतन के बारे में नियमित अधिसूचनाओं के लिये श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के अंतर्गत ‘नेशनल लेवल डैशबोर्ड’ का प्रस्ताव किया गया है।
- वैधानिक न्यूनतम वेतन का भुगतान न होने पर शिकायत दर्ज कराने के लिये टोल फ्री नंबर बनाया जाए।
जलवायु परिवर्तन पर सरकार के प्रयासों की चर्चा भी आर्थिक सर्वे में है।
सतत् विकास और जलवायु परिवर्तन
- भारत का SDG सूचकांक राज्यों के लिये 42 से 69 के बीच और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 57 से 68 के बीच है। राज्यों में 69 अंकों के साथ केरल और हिमाचल प्रदेश सबसे आगे हैं तथा केंद्रशासित प्रदेशों में चंडीगढ़ और पुद्दुचेरी क्रमशः 68 और 65 अंकों के साथ सबसे आगे हैं।
- नमामि गंगे मिशन को SDG-6 हासिल करने के लिये नीतिगत प्राथमिकता के आधार पर लॉन्च किया गया था।
- इस कार्यक्रम के तहत 2015-20 की अवधि के लिये 20 हज़ार करोड़ रुपए का बजटीय आवंटन किया गया है।
- SDG को हासिल करने के लिये संसाधन दक्षता पर राष्ट्रीय नीति का सुझाव दिया गया।
- 2019 में पूरे देश के लिये MCAP कार्यक्रम लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और इसे कम करना; पूरे देश में वायु की गुणवत्ता के निगरानी नेटवर्क को मजबूत करना है।
- पेरिस समझौता जलवायु वित्त की भूमिका पर ज़ोर देता है जिसके बिना प्रस्तावित NDC का लाभ नहीं मिल सकता। भारत के NDC को लागू करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों की वित्तीय सहायता के साथ घरेलू बजटीय सहायता की भी आवश्यकता है।
- वर्ष 2020 तक 20-25 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की भारत की घोषणा को देखते हुए वर्ष 2014 में 290 करोड़ की लागत से क्लाइमेट चेंज एक्शन प्रोग्राम (CCAP) लॉन्च किया गया था।
कृषि और खाद्य प्रबंधन
- वर्ष 2014-15 में कृषि क्षेत्र की विकास दर 0.2 प्रतिशत नकारात्मक थी, जो वर्ष 2016-17 में 6.3 प्रतिशत हो गई थी , लेकिन वर्ष 2018-19 में यह घटकर 2.9 प्रतिशत पर आ गई।
- वर्ष 2017-18 में कृषि क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण 15.2 प्रतिशत घटा। 2016-17 में यह 15.6 प्रतिशत रहा था।
- कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 2005-06 की अवधि के 11.7 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गई।
- छोटे और सीमांत किसानों में ऐसी महिलाओं की संख्या 28 प्रतिशत रही। छोटे और सीमांत किसानों में भूमि स्वामित्व वाली परिचालन खेती के मामलों में बदलाव देखा गया।
- उर्वरकों का प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में ज़ीरो बजट सहित जैविक और प्राकृतिक कृषि तकनीक सिंचाई जल के तर्कसंगत इस्तेमाल और मिट्ठी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
- लघु और सीमांत किसानों के बीच संसाधनों के इस्तेमाल को अधिक न्यायसंगत बनाने के लिये ICT को लागू करना और कस्टम हायरिंग सेंटर के ज़रिये सक्षम प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना ज़रूरी।
- कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के समग्र और सतत विकास के लिये आजीविकाओं के संसाधनों का वैविधिकरण करना होगा। इसके तहत दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक देश में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देना, पशुधन का विकास करना तथा दुनिया में मछलियों के दूसरे बड़े उत्पादक देश में मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देना शामिल है।
आयात-निर्यात की स्थिति
- वर्ष 2018-19 में निर्यात (पुनर्निर्यात सहित): 23,07,663 करोड़ रुपए
- वर्ष 2018-19 में आयात 35,94,373 करोड़ रुपए
- भारत के मुख्य व्यापार साझेदारों में अमेरिका, चीन, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब शामिल रहे।
- भारत ने 2018-19 में विभिन्न देशों/देशों के समूह के साथ 28 द्विपक्षीय, बहु-पक्षीय समझौते किये।
- इन देशों को कुल 121.7 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया, जो कि भारत के कुल निर्यात का 36.9 प्रतिशत था।
- इन देशों से कुल 266.9 अरब डॉलर मूल्य का आयात हुआ, जो भारत के कुल आयात का 52 प्रतिशत रहा।
- वर्ष 2018-19 में आयात में 15.4 प्रतिशत जबकि निर्यात में 12.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया गया है।
- विदेशी मुद्रा भंडार अभी सर्वोच्च स्तर पर है। विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2018-19 में 412.9 अरब डॉलर रहने का अनुमान है।
उद्योग और अवसंरचना
- वर्ष 2018-19 में आठ बुनियादी उद्योगों के कुल सूचकांक में 4.3 प्रतिशत की वृद्धि।
- विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता रिपोर्ट 2019 में भारत दुनिया के 190 देशों में 77वें स्थान पर पहुँचा यानी पहले की तुलना में 23 स्थान ऊपर उठा।
- वर्ष 2018-19 में देश में सड़क निर्माण 30 किलोमीटर प्रतिदिन के हिसाब हुआ, जबकि 2014-15 में यह 12 किलोमीटर प्रतिदिन था।
- वर्ष 2017-18 की तुलना में 2018-19 में रेल द्वारा माल ढुलाई और यात्री वाहन क्षमता में क्रमशः 5.33 और 0.64 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- वर्ष 2018-19 के दौरान कुल फोन कनेक्शनों के संख्या 118.34 करोड़ हो गई।
- बिजली की स्थापित क्षमता वर्ष 2019 में 3,56,100 मेगावाट रही, जबकि 2018 में यह 3,44,002 मेगावाट थी।
- अवसंरचना कमियों को पूरा करने के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी जरूरी।
- अवसंरचना क्षेत्र से जुड़़े विवादों का तय समय पर निपटान करने के लिये संस्थागत प्रणाली की आवश्यकता।
सेवा (Service) तथा पर्यटन क्षेत्र
- सेवा क्षेत्र (निर्माण को छोड़कर) की भारत के सकल मूल्य संवर्द्धन में 54.3 प्रतिशत की हिस्सेदारी है और इसने वर्ष 2018-19 में सकल मूल्य संवर्द्धन में आधे से अधिक का योगदान दिया है।
- वर्ष 2017-18 में IT-BPM उद्योग 8.4 प्रतिशत बढ़कर 167 अरब डॉलर पर पहुँच गया और इसके वर्ष 2018-19 में इसके 181 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- सेवा क्षेत्र की वृद्धि वर्ष 2017-18 के 8.1 प्रतिशत से मामूली रूप से गिरकर वर्ष 2018-19 में 7.5 प्रतिशत पर आ गई।
- वित्तीय सेवाओं, रियल एस्टेट और व्यावसायिक सेवाओं में वृद्धि अपेक्षाकृत तेज़ रही, जबकि होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण सेवाओं में वृद्धि दर कम रही।
- वर्ष 2017 में रोज़गार में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 34 प्रतिशत थी।
- वर्ष 2018-19 में 10.6 मिलियन विदेशी पर्यटक आए, जबकि वर्ष 2017-18 में इनकी संख्या 10.4 मिलियन थी।
- पर्यटकों से विदेशी मुद्रा की आमदनी वर्ष 2018-19 में 27.7 अरब डॉलर रही, जबकि वर्ष 2017-18 में 28.7 अरब डॉलर थी।
समग्र विकास के लिये सामाजिक बुनियादी ढाँचे, जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और संपर्क स्थापित करने में सार्वजनिक निवेश महत्त्वपूर्ण है और इसकी चर्चा आर्थिक समीक्षा में की गई है।
सामाजिक बुनियादी ढाँचा तथा रोज़गार और मानव विकास
- स्वास्थ्य पर कुल GDP प्रतिशत में वर्ष 2018-19 में 1.5 प्रतिशत वृद्धि की गई, जो वर्ष 2014-15 में 1.2 प्रतिशत थी।
- इसी अवधि के दौरान शिक्षा पर खर्च 2.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 3 प्रतिशत किया गया।
- कौशल विकास को प्रोत्साहन देने के लिये वित्तीयन साधन के रूप में कौशल प्रमाणपत्रों की शुरुआत, पाठ्यक्रम विकास साधनों के प्रावधान, प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण आदि के लिये प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने में उद्योगों को शामिल करना, मांग-आपूर्ति अंतरालों के आकलन के लिये स्थानीय निकायों को शामिल करके प्रशिक्षकों का डेटाबेस बनाकर, ग्रामीण युवकों के कौशल की मैपिंग करना।
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत वर्ष 2014 से करीब 1,90,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया।
- प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत करीब 1.54 करोड़ घरों का निर्माण कार्य पूरा किया गया, जबकि 31 मार्च, 2019 तक मूलभूत सुविधाओं के साथ एक करोड़ पक्के मकान बनाने का लक्ष्य था।
- स्वस्थ भारत के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत योजना के ज़रिये पहुँच योग्य, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं।
- देशभर में वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवाओं के तहत राष्ट्रीय आयुष मिशन की शुरुआत की गई, ताकि इन सेवाओं की पहुँच में सुधार हो और सस्ती सेवाएँ मिलें।
- बजटीय आवंटन पर वास्तविक व्यय को बढ़ाकर और पिछले चार वर्ष में बजट आवंटन बढ़ाकर रोज़गार सृजन योजना मनरेगा को प्राथमिकता दी गई।
स्वस्थ भारत के जरिये स्वच्छ भारत से सुंदर भारत
- 93.1 प्रतिशत स्वपरिवारों की शौचालयों तक पहुँच।
- जिन लोगों की शौचालयों तक पहुँच है, उनमें से 96.6 प्रतिशत ग्रामीण भारत में उनका उपयोग कर रहे हैं।
- 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्यक्तिगत घरेलू शौचालय की कवरेज़।
- दीर्घकालिक सतत् सुधारों के लिये पर्यावरणीय और जल प्रबंधन संबंधी मामलों को स्वच्छ भारत मिशन में शामिल किये जाने की ज़रूरत है।