व्यवसाय और मानव अधिकारों पर राष्ट्रीय कार्ययोजना
यह एडिटोरियल 31/03/2021 को ‘डाउन टू अर्थ’ में प्रकाशित लेख "Would cats bell themselves? The wait for the National Action Plan on Business and Human Rights” पर आधारित है। इसमें व्यवसाय और मानव अधिकारों पर राष्ट्रीय कार्ययोजना से संबंधित विभिन्न पक्षों पर चर्चा की गई है।
भारत लंबे समय (लगभग एक दशक से अधिक) से व्यवसाय और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांत (UNGP) का समर्थन करता आ रहा है। इसके अनुरूप भारत को भी व्यवसाय और मानवाधिकार पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAP) विकसित करनी है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यवसाय मानवाधिकारों का उल्लंघन न करें।
इस संदर्भ में नवंबर 2018 में व्यवसाय और मानवाधिकार फोरम, जिनेवा में भारत सरकार ने औपचारिक घोषणा करते हुए कहा था कि वह व्यवसाय और मानव अधिकारों पर एक राष्ट्रीय कार्ययोजना विकसित करेगा।
फरवरी 2019 में भारत ने व्यवसाय और मानव अधिकारों पर एक राष्ट्रीय कार्ययोजना का मसौदा प्रकाशित किया, जिसे 'ज़ीरो ड्राफ्ट' के रूप में भी जाना जाता है तथा इस राष्ट्रीय कार्ययोजना को वर्ष 2020 में अंतिम रूप से प्रकाशित करने का लक्ष्य था। हालाँकि अंतिम NAP अभी भी तैयार नहीं है।
व्यवसाय और मानव अधिकारों पर राष्ट्रीय कार्ययोजना की आवश्यकता
- लक्ष्य: यह योजना तीन सिद्धांतों पर आधारित होगी- ‘संरक्षण का राजकीय कर्तव्य’, ‘सम्मान का कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व’ और ‘उपचार तक पहुँच।’ अर्थात् यह राष्ट्रीय कार्य योजना राज्य के कर्तव्य को निर्धारित करने में ( मानव अधिकारों की रक्षा, सम्मान के लिये कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व निर्धारित करने और व्यापार से संबंधित मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ उपाय सुनिश्चित करने हेतु ) भारत के कानूनी ढाँचे का अनुसरण करेगी।
- प्रेरणा स्त्रोत: भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना गांधीवादी सिद्धांत के ‘ट्रस्टीशिप’ से प्रेरित है, जो परिभाषित करती है कि व्यापार का उद्देश्य सभी हितधारकों की सेवा करना है।
- आवश्यकता: विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि कोविड -19 महामारी हितधारक पूंजीवाद की अवधारणा के लिये एक लिटमस परीक्षण है।
- NAP कोविड-19 के संदर्भ में इसलिये अधिक प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि इस महामारी ने व्यवसाय संचालन संबंधी कई व्यवस्थागत कमज़ोरियों को उजागर किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि कोविड -19 के कारण 400 मिलियन भारतीय श्रमिकों का निर्धनता के निम्न स्तर तक पहुँचने का खतरा है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: यह व्यवसाय और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांत (जिनका भारत एक हस्ताक्षरकर्त्ता है) की परिकल्पना करता है, जबकि राज्य की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सिद्धांत के सभी तीनों स्तंभ वास्तविक रूप में प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं।
- इसके अलावा सतत् विकास लक्ष्य 8 (SDG 8) का एजेंडा 2030 व्यावसायिक क्षेत्रों में मानव अधिकारों की प्राप्ति पर केंद्रित है।
व्यापार और मानव अधिकार संबंधी मामले
- समयावधि:
- पिछले दो दशकों में मानवाधिकारों और पर्यावरण अधिकारों के उल्लंघन के आरोप में कई संयंत्र बंद कर दिये गए:
- कोका कोला संयंत्र : प्लाचीमाड़ा (2004), मेहदीगंज (2013) और हापुड़ (2016)।
- हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (मरकरी) संयंत्र, कोडाइकनाल (2001)।
- स्टरलाइट कॉपर प्लांट, थूथुकुडी (2018)।
- पिछले दो दशकों में मानवाधिकारों और पर्यावरण अधिकारों के उल्लंघन के आरोप में कई संयंत्र बंद कर दिये गए:
- विचलन:
- इसके लिये एक कानून बनाया गया है, जो कंपनियों को स्कूल परिसर के आस-पास तंबाकू का विज्ञापन करने से रोकता है जबकि इसके विपरीत कक्षाओं के अंदर तंबाकू से संबंधित आईटीसी लिमिटेड के नोटबुक और उन पर प्रिंटेड लोगो (logo) विज्ञापन के रूप में मौजूद हैं।
- भारत में प्रतिवर्ष एक मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु तंबाकू के सेवन के कारण होती है। हालाँकि लाइफ इंश्योरेंस कार्पोरेशन (LIC) तंबाकू कंपनी के निवेशकों में से एक है, जिसका स्वामित्व भारत सरकार के पास है।
- PUBG जैसे खेलों में बच्चों के शामिल होने के कारण उनके माता-पिता को दोषी ठहराया जाता है।
- लेकिन कनाडा के एक स्कूल में बच्चों के माता-पिता ने यह आरोप लगाया कि “कंपनियाँ मनोवैज्ञानिकों को नियुक्त करती हैं, जो मानव मस्तिष्क को पढ़ने कार्य करते हैं और खेल को यथासंभव नशे की लत बनाने के लिये प्रयास करते हैं”।
एनएपी के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
- चरम अनौपचारिकरण: भारत अत्यधिक अनौपचारिकताओं का सामना करता है, जैसे: कम कुशल और कम वेतन वाली नौकरियाँ, वेतन में लैंगिक अंतर, बाल श्रम की व्यापकता और मज़दूर/बंधुआ मज़दूरी के मुद्दे।
- सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा, संघीकरण और सामूहिक सौदेबाज़ी विशेष रूप से अनौपचारिक श्रमिकों के लिये एक चुनौती बनी हुई है।
- विवाद का उच्च स्तर: समुदायों को उनके जीवन और आजीविका के लिये आवश्यक भूमि, पानी तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच एवं नियंत्रण के अधिकार से वंचित रखना भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है जिसे NAP के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।
- शिकायत निवारण तंत्रों की कमी: NAP के प्रभावी कार्यान्वयन में उपाय तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है।
- परिचालन-स्तरीय शिकायत तंत्रों की कमी कभी-कभी हितधारकों के लिये उपचार तंत्र तक पहुँचने में बाधक साबित हो सकती है।
आगे की राह:
- CAG को मज़बूत बनाना: CAG को उन लेखा परीक्षक मानकों, जो मानव-अधिकारों के अनुपालन को सुनिश्चित करने और सभी सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिये समानता की मांग करते हैं, को विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- इसमें सार्वजनिक खरीद और सार्वजनिक निवेश के सभी मामलों में मानव अधिकारों के लिये सम्मान सुनिश्चित करना चाहिये।
- CEC को मज़बूत करना: केंद्रीय चुनाव आयोगों (CEC) को राजनीतिक दलों के कॉर्पोरेट फंडिंग को विनियमित करने के लिये अनिवार्य किया जाना चाहिये, जिसमें दान के अनिवार्य खुलासे के साथ-साथ व्यवसायों और राजनीतिक दलों के हितों के संघर्ष को निर्देशित करना शामिल है।
- NHRC और SHRC को मज़बूत बनाना: व्यवसायों को नोटिस जारी करने और व्यवसायों में मानव अधिकारों की स्थिति की निगरानी हेतु व्यवसाय और मानवाधिकार लोकपाल बनाने के लिये मानव अधिकार आयोगों की शक्तियों का विस्तार करने की आवश्यकता है।
- MSME को मज़बूत बनाना: भारत में बड़ी संख्या में सूक्ष्म, लघु और मध्यम (MSME) उद्योग स्थापित हैं। भारत के NAP की सफलता, एमएसएमई क्षेत्र द्वारा राष्ट्रीय कार्ययोजना को अपनाने की क्षमता पर टिकी हुई है।
- सरकार बड़ी कंपनियों द्वारा प्रशिक्षण, जागरूकता और प्रोत्साहन के माध्यम से MSME क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
- सिंक्रोनाइज़िंग एजुकेशन: व्यवसाय प्रबंधक मानवाधिकारों को केवल एक जोखिम के रूप में देखेंगे, न कि व्यावसायिक रूप में। इस प्रकार व्यावसायिक और मानव अधिकारों को प्रबंधन पाठ्यक्रम का एक मुख्य हिस्सा बनाने के लिये सक्रिय प्रयास करने की आवश्यकता है।
- ताकि प्रत्येक व्यवसाय प्रबंधक को एक मानवाधिकार रक्षक बनाया जा सके।
- अंतर्स्थापित उत्तरदायित्व: भविष्य के कार्य, गोपनीयता और असमानता पर प्रौद्योगिकी का बढ़ता प्रभाव और प्रभुत्व भारत के लिये चिंता का विषय है।
- NAP को अर्थव्यवस्था में श्रमिकों के अधिकारों के साथ शुरू होने वाले मानवाधिकार मुद्दों पर प्रौद्योगिकी कंपनियों की जवाबदेही को शामिल करने के लिये कदम उठाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत के लिये NAP प्रक्रिया सतत् और समावेशी विकास के माध्यम से दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी और उत्तरदायी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थान प्राप्त करने का एक अवसर है। व्यवसाय और मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय कार्ययोजना भारतीय व्यवसायों को उनके उद्देश्य को फिर से परिभाषित करने और इस महामारी से मनुष्य को बाहर निकालने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में काम कर सकती है।
अभ्यास प्रश्न: व्यवसाय और मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय कार्य योजना भारतीय व्यवसायों को उनके उद्देश्य को फिर से परिभाषित करने और इस महामारी से मनुष्य को बाहर निकालने में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में काम कर सकती है। टिप्पणी।