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  • 04 Dec, 2019
  • 20 min read
शासन व्यवस्था

ट्रांसजेंडर विधेयक और उसका विरोध

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में ट्रांसजेंडर विधेयक और उसके खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

ट्रांसजेंडर समुदाय और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के विरोध के बीच बीते महीने राज्यसभा ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। गौरतलब है कि इस विधेयक का उद्देश्य समाज के हाशिये पर खड़े ट्रांसजेंडर वर्ग के विरुद्ध लांछन, भेदभाव और दुर्व्यवहार को समाप्त कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है। हालाँकि स्वयं ट्रांसजेंडर समुदाय ही इस विधेयक का विरोध कर रहा है, ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि भारतीय संविधान देश के प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में भेदभाव से मुक्ति का अधिकार देता है, परंतु हालिया ट्रांसजेंडर विधेयक उनके इसी अधिकार का उल्लंघन कर रहा है।

क्या कहता है विधेयक?

ध्यातव्य है कि इस विधेयक को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री द्वारा जुलाई 2019 में राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया था।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा

  • यह विधेयक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसका लिंग जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाता है। विधेयक के तहत ट्रांसजेंडर की परिभाषा में ट्रांस-मैन, ट्रांस-विमेन, इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्ति और जेंडर क्वीर को शामिल किया गया है। साथ ही इसमें किन्नर जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले लोगों को भी शामिल किया गया है।

भेदभाव पर प्रतिबंध

  • विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ होने वाले भेदभाव को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है, जिसमें निम्नलिखित के संबंध में सेवा प्रदान करने से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना शामिल है: (1) शिक्षा (2) रोज़गार (3) स्वास्थ्य सेवा (4) सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुँच एवं उनका उपभोग (5) कहीं आने-जाने (मूवमेंट) का अधिकार (6) किसी मकान में निवास करने, उसे किराये पर लेने और स्वामित्व हासिल करने का अधिकार (7) सार्वजनिक या निजी पद ग्रहण करने का अवसर।

निवास का अधिकार

  • विधेयक के अनुसार, प्रत्येक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार में रहने का अधिकार है। यदि ट्रांसजेंडर व्यक्ति का परिवार उसकी देखभाल करने में असमर्थ है तो न्यायालय के आदेश पर उसे पुनर्वास केंद्र में भेजा जा सकता है।

रोज़गार

  • कोई भी सरकारी या निजी संस्थान भर्ती और पदोन्नति जैसे रोज़गार संबंधी मामलों में किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है। यदि संस्थान में 100 से अधिक कर्मचारी हैं तो उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायतों की जाँच के लिये एक शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करे।

शिक्षा

  • सरकार द्वारा वित्तपोषित या मान्यता प्राप्त शिक्षा संस्थानों के लिये यह अनिवार्य है कि वे बिना किसी भेदभाव के ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समावेशी शिक्षा, खेल और मनोरंजक सुविधाएँ प्रदान करें।

स्वास्थ्य देखभाल

  • विधेयक में सरकार के लिये निर्देश है कि वह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये आवश्यक कदम उठाए, जिसमें अलग HIV सर्विलांस सेंटर और सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (Sex Reassignment Surgeries) इत्यादि शामिल हैं। सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिये चिकित्सा पाठ्यक्रम की समीक्षा करेगी और साथ ही उनके लिये एक व्यापक चिकित्सा बीमा योजना की रूपरेखा भी तैयार करेगी।

पहचान प्रमाण पत्र या सर्टिफिकेट

  • एक ट्रांसजेंडर ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी पहचान से जुड़ा प्रमाण पत्र या सर्टिफिकेट जारी करने के लिये आवेदन कर सकता है। विदित हो कि संशोधित प्रमाण पत्र केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब व्यक्ति अपने लिंग को पुरुष या महिला के रूप में बदलने के लिये सर्जरी करवाता है।

सरकार द्वारा कल्याणकारी प्रयास

  • विधेयक के अनुसार, संबंधित सरकार समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पूर्ण समावेश और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाएगी। सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बचाव एवं पुनर्वास तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार के लिये भी कदम उठाएगी। साथ ही सरकार ऐसी योजनाओं के निर्माण को भी प्रोत्साहन देगी जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति संवेदनशील हों और सांस्कृतिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दें।

अपराध और दंड

  • इस विधेयक के तहत निम्नलिखित को अपराध के रूप में मान्यता दी गई है: (1) ट्रांसजेंडर व्यक्ति से भीख मंगवाना या उसे इस कार्य के लिये मजबूर करना (2) उन्हें सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने से रोकना (3) उन्हें घर-परिवार या गाँव में निवास करने से रोकना (4) उन्हें शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से उत्पीड़ित करना। इन अपराधों के लिये कम-से-काम 6 महीने और अधिकतम दो वर्ष की सजा हो सकती है तथा साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।

राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (NCT)

  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के संबंध में नीतियाँ, विधान और योजनाएं बनाने एवं उनका निरीक्षण करने हेतु केंद्र सरकार को सलाह देने के लिये राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (NCT) के गठन का भी प्रावधान किया गया है। यह परिषद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों का निवारण भी करेगी।

विधेयक की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2014 में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों और उनकी लैंगिक पहचान के बारे में निर्णय लेने के उनके अधिकार को मान्यता दी।
  • जिसके एक वर्ष बाद अप्रैल 2015 में DMK के नेता तिरुचि शिवा ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों पर एक निजी विधेयक प्रस्तुत किया। लेकिन सदन के पटल पर कभी भी तिरुचि शिवा के निजी विधेयक पर चर्चा नहीं की गई।
  • अगस्त 2016 में लोकसभा में सरकार ने भी ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिये एक विधेयक प्रस्तुत किया।
  • कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के व्यक्तियों द्वारा ट्रांसजेंडर की परिभाषा और कई अन्य मुद्दों को लेकर सरकार के इस विधेयक की काफी आलोचना की गई।
    • गौरतलब है कि विधेयक में ट्रांसजेंडर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया था जो “न पूर्ण स्त्री हो और न ही पूर्ण पुरुष।”
  • चौतरफा आलोचनाओं के बाद विधेयक को एक संसदीय स्थायी समिति के पास समीक्षा के लिये भेजा गया था, परंतु जुलाई 2017 में सरकार ने समिति की रिपोर्ट खारिज कर दी।
  • दिसंबर 2018 में सरकार विधेयक को लेकर एक बार फिर लोकसभा में प्रस्तुत हुई और इसे 27 संशोधनों के साथ पारित कर दिया गया, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा में संशोधन भी शामिल था।
  • लोकसभा में पारित होने के बाद विधेयक को राज्यसभा में भेजा गया, जहाँ वह पास नहीं हो सका। इसके बाद सरकार ने जुलाई 2019 में एक बार फिर यह विधेयक प्रस्तुत किया और अगस्त में यह विधेयक लोकसभा में पास हो गया।

भारत और ट्रांसजेंडर

  • भारत में स्पष्ट तौर पर ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर सामाजिक जागरूकता की कमी दिखाई देती है। विदित हो कि वर्षों तक भारत की जनगणनाओं में ट्रांसजेंडर को तीसरे समुदाय के रूप में मान्यता नहीं दी गई।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में कुल 4,87,803 ऐसे लोग थे जिनकी न तो ‘महिला’ के रूप में पहचान की जा सकती थी और न ही ‘पुरुष’ के रूप में।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2011 में हुई जनगणना ऐसी पहली जनगणना थी जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों की गिनती की गई। वर्ष 2011 की जनगणना ने 55,000 ऐसे ट्रांसजेंडर बच्चों की भी गिनती की जिन्हें उनके माता-पिता द्वारा पहचाना गया था।

भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित मुद्दे

  • देश में ट्रांसजेंडर समुदाय को HIV सहित कई यौन स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। UNDP द्वारा किये गए एक अध्ययन में सामने आया था कि देश में ट्रांस-विमेन के बीच HIV के प्रसार की दर सबसे अधिक है।
  • कई अध्ययनों से पता चला है कि ट्रांसजेंडर लोगों के बीच बाल यौन शोषण, यौन हिंसा, कार्यस्थल पर हिंसा और घृणा जैसे अपराधों सहित शारीरिक और मौखिक हिंसा की दर काफी अधिक है।
  • ट्रांसजेंडर समुदाय की विभिन्न सामाजिक समस्याएँ जैसे- बहिष्कार, बेरोज़गारी, शैक्षिक तथा चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शादी व बच्चा गोद लेने की समस्या आदि।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मताधिकार 1994 में ही मिल गया था, परंतु उन्हें मतदाता पहचान-पत्र जारी करने का कार्य पुरुष और महिला के प्रश्न पर उलझ गया।
  • इन्हें संपत्ति का अधिकार और बच्चा गोद लेने जैसे कुछ कानूनी अधिकार भी नहीं दिये जाते हैं।
  • इन्हें समाज द्वारा अक्सर परित्यक्त कर दिया जाता है, जिससे ये मानव तस्करी का आसानी से शिकार बन जाते हैं। साथ ही अस्पतालों और थानों में भी इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।
  • भारत में आज भी ट्रांसजेंडर होना एक सामाजिक बीमारी समझी जाती है और उन्हें सामाजिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण है कि इन्हें न तो पुरुषों की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही महिलाओं की, जो लैंगिक आधार पर विभाजन की पुरातन व्यवस्था का अंग है।
  • इसका नतीज़ा यह होता है कि ये शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं और बेरोज़गार ही रहते हैं। ये सामान्य लोगों के लिये उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते हैं।

हालिया विधेयक से जुड़े मुद्दे

  • वर्तमान में कई आपराधिक और नागरिक कानून लिंग की दो श्रेणियों यानी पुरुष और महिला को ही मान्यता देते हैं। इनमें भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860, राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA) और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जैसे कानून शामिल हैं।
  • हालिया विधेयक में तीसरे लिंग यानी 'ट्रांसजेंडर' को मान्यता देने की बात की गई है। हालाँकि विधेयक यह स्पष्ट नहीं करता है कि कुछ मौजूदा कानूनों के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा।
  • गौरतलब है कि यह विधेयक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और इंटरसेक्स व्यक्तियों को एक ही श्रेणी में रखता है जिसके कारण यह दोनों में से किसी भी समुदाय के विशिष्ट मुद्दों को संबोधित नहीं कर पाता।
  • विधेयक में दी गई ’परिवार’ शब्द की परिभाषा किन्नरों और अन्य सांस्कृतिक समुदायों की वास्तविकताओं को पहचानने में विफल रही है, जो सामाजिक एवं पारिवारिक अस्थिरता के कारण अक्सर घरानों (Gharanas) में रहते हैं।
  • यह विधेयक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बचाव, संरक्षण और पुनर्वास के लिये कदम उठाने हेतु सरकार पर दायित्व डालता है। सामाजिक कार्यकत्ताओं का कहना है कि यह प्रावधान अस्पष्ट है और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की स्वायत्तता को कमज़ोर करने के लिये इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • साथ ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण देने के मुद्दे पर भी विधेयक में कोई प्रावधान नहीं किया गया है, जबकि शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण लंबे समय से समुदाय की एक प्रमुख मांग रही है। विदित हो कि वर्ष 2014 में NALSA ने भी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये शिक्षा और रोज़गार में आरक्षण दिये जाने के निर्देश दिये थे।
  • इसके अलावा ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों का कहना है कि विधेयक में शिक्षा या स्वास्थ्य लाभ के बारे में दिया गया कोई भी प्रावधान किसी भी राज्य निकाय पर कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं डालता है।
  • कई जानकारों का यह भी मानना है कि इस विधेयक के तहत प्रस्तावित राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद में स्वयं ट्रांसजेंडर समुदाय का ही प्रतिनिधित्व काफी कम है। साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रतिनिधित्व के चयन की प्रक्रिया पर सवालिया-निशान लगाए गए हैं।
    • विदित है कि प्रस्तावित राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद में ट्रांसजेंडर समुदाय से कुल 5 सदस्य होंगे।
  • ज़िला स्क्रीनिंग कमेटी ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान के लिये एक प्रमाण पत्र जारी करेगी, जो कि स्पष्ट तौर पर गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है।
    • साथ ही यदि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पहचान प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया जाता है, तो इस विधेयक में ज़िला स्क्रीनिंग कमेटी के ऐसे निर्णय के विरुद्ध अपील हेतु कोई भी व्यवस्था नहीं है।
  • इस विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ होने वाले अपराधों के लिये अलग दंड के प्रावधान किये गए हैं, जो कि समान अपराधों के लिये IPC में निश्चित दंड से काफी कम है। इसके कारण ट्रांसजेंडर में असमानता की भावना उत्पन्न हो रही है।

सुझाव

  • विधेयक में दी गई ‘परिवार’ की परिभाषा को और अधिक समावेशी बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • विधेयक के तहत ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को अलग-अलग परिभाषित किया जाना चाहिये और प्रत्येक के लिये एक विशिष्ट दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये ।
  • विधेयक की आलोचना कर रहे कई लोगों का कहना है कि लोकसभा में पारित होते समय इस विधेयक पर अधिक चर्चा नहीं हो सकी थी, क्योंकि उसी दिन सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त करने का भी निर्णय लिया था।
  • ट्रांसजेंडर समुदाय की मांग है कि विधेयक पर एक बार पुनः चर्चा की जाए और ट्रांसजेंडर समुदाय के मुद्दों को मद्देनज़र रखते हुए विधेयक में आवश्यक सुधार किये जाएँ।

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 देश में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को पूरी तरह से प्रतिबंधित करता है। जिस प्रकार महिलाओं और पुरुषों को सम्मान और गरिमा से जीवन जीने का अधिकार है उसी प्रकार देश के LGBTQ समुदाय को भी सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। आवश्यक है कि ट्रांसजेंडर बिल से जुड़ी ट्रांसजेंडर समुदाय की चिंताओं को गंभीरता से सुना जाए और उनका समाधान करने का प्रयास किया जाए, क्योंकि अंततः यह विधेयक उन्ही से संबंधित है और उनकी सहमति के बिना इसे लागू करना इसकी सफलता में बड़ी बाधा हो सकती है।

प्रश्न: ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित मुद्दों का उल्लेख करते हुए यह बताएँ कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 इन मुद्दों का समाधान करने में कहाँ तक सक्षम है?


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